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महास] श्रीपश्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. आयु कर्यों जिन हीन के, शेष नव्यासी रहे । तीजो आरो रह्यो शेष, ऋषभ मुगति लहे ॥३॥ आरक चोथा माहीं, सहु जिनजी शिववर्या । सूरिराजेन्द्र प्रमाण, सकल सुखे संचर्या ॥४॥ १६१ जिनेश्वरोनी युगान्तकृद्भूमिमोक्ष मारग वह्यो ते कहुं, सहु जिनपतिनो जेह । ऋषभ मोक्ष गयां पछी, असंख्य पट्ट लग लेह ॥४६१॥ अजित संख्याता पाट लग, जावत नमिजिणंद।
अड नेमि चउ पार्श्वनाथ, त्रिपाट वीरजिणंद ॥ ४६२ ॥ १६२ जिनेश्वरोनी पर्यायान्तकृद्भूमि-- 'परियायान्तर भूमिका, ऋषभ केवलसुं जाण । अन्तर्मुहूर्ते पछी गया, मरुदेवी शिव ठाण ॥ ४६३ ॥ दु ति चउ वरसां पछी, नेमि पार्श्व ने वीर । शेष इकादि दिनान्तरे, मुक्ति गया कइ धीर ॥ ४६४ ॥ १६३-१६४ मोक्षमार्ग अने मोक्षविनयसहु जिनवरनो मोक्षपथ, सुमुनि श्रावक दोय । दर्शन ज्ञान चारित्र कर, अथवा वैविध होय ॥ ४६५॥ मोक्षविनय पण मेदसुं, भाषे सहु जिनराय । दर्शन ज्ञान चारित्र तप, उपकारिता गवाय ॥ ४६६॥