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१०२ श्रीपञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. [तृतीयतेरसी अमावस चोथ, चउदसि तेरसि तंत । चउदस पंचमि ग्यारसी, ग्यारसि बारसि मंत ॥ २२०॥ नवमी छठ एकादशी, दशमी क्रमसे जाण । मास पक्षना ऊपरे, तिथि भाषी परमाण ॥२२१ ॥ ६२-६३ जिनेश्वरोनी दीक्षाना नक्षत्र अने राशिनक्षत्र राशि जन्मनी जे, व्रतमें पिण ते होय । मर्म एहज पहचानिये, जिन आगमने जोय ॥ २२२ ॥ ६४-६५ जिनेश्वरोनी दीक्षा वय अने तपवासुपूज्य मल्लि नेमि पास, वीर ए पंच कुमार । वय प्रथमे व्रत आदरे, शेष वय पश्चिम धार ॥२२३॥ व्रतमें सुमति नित्य भक्त, अट्टमे मल्लि पास । चोथतप वासुपूज्यने, छट्ठ शेष जिन खास ॥ २२४ ॥ ६६-जिनेश्वरोनी दीक्षा-शिबिकासुदर्शना सुप्रभा अरु, सिद्धार्था जस नाम । अर्थसिद्धा अभयंकरा, निवृतिकरि शुभ धाम ॥ २२५ ॥ मनोहरा मनोरमिका, सूरप्रभा वलि जान । शुक्रप्रभा विमलप्रभा, पृथ्वी पण शुभ मान ॥ २२६ ॥ देवदिन्ना सागरदत्ता, नागदत्ता सुजान । सर्वार्था विजया भली, वैजयंती मन आन ॥ २२७ ॥