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सारांश ४ उल्लास ] पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. ४३ सुनन्दा अने वीरप्रभुने सुलसा प्रथम श्राविका जाणवी. शेष जिनेश्वरोना श्रावक श्राविकाना नाम अप्रसिद्ध छे. ११० भक्तराजाओना नाम१ भरतचक्री ९ युद्धवीर्य | १७ कुबेरनृपति २ सगरचक्री १० सीमन्धर १८ सुभूमचक्री ३ मृगसेन ११ त्रिपृष्ठवासुदेव १९ अजितराजा ४ मित्रवीर्य १२ द्विपृष्ठवासुदेव २० विजयमहनृप ५ सत्यवीर्य १३ स्वयंभूवासुदेव २१ हरिशेणचक्री ६ अजितसेन १४ पुरुषोत्तमवासुदेव २२ श्रीकृष्णवासुदेव ७ दानवीर्य १५ पुरुषसिंहवासुदेव २३ प्रसेनजित ८ मघवाचक्री ।१६ कोणालक २४ श्रेणिकनृप १११ जिनागमननी वधाइ लावनारने प्रीतिदान
जिनवरोना आगमननी वधाइ लावनार नियुक्त, या अनियुक्त माणसने चक्रवर्ती जघन्यथी साढी बार लाख अने उत्कृष्टथी साढी बार क्रोड सोनैयानो, वासुदेव तेटलाज रजतनो, मांडलिकराजा लाख सोनैयानो, सामान्यराजा हजार सोनैया या रुपियानो अने सेठ, सेनापति, अमात्य वगेरे पोताना विभव प्रमाणे प्रीतिदान आपे छे. ११२-१२८ एना आगल__ यक्ष, यक्षिणी, गणधर, साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविका, केवली, मनःपर्यवज्ञानी, अवधिज्ञानी, चौदपूर्वी, वैक्रियलब्धिधर, वादीमुनि, सामान्यमुनि,अनुत्तरोपपातिकमुनि, प्रकीर्णक अने प्रत्येकबुद्धनी संख्या कोष्टकथी जाणवी.