________________
१७८ श्रीमहावीर-गौतम-प्रवचन. [शुभाऽशुभकर्म
अहर्निश परनिंदा करे, धर्मवचन न सुहाय । परपरिवादना योगथी, मरी नरकमां जाय ॥२८४) अणदीठी अण सांभली, करे पराई बात । आप पिंड पापे भरे, मरी नरकमें जाय ॥२८५॥ ताकी मार्या तीरडां, बींध्या वनचर जीव । हिंसा करीने ऊपन्यो, नरके करतो रीव ॥२८६॥ पूरव पाप प्रभावथी, उपन्या नरक मझार । विविध प्रकारे वेदना, सहता कष्ट अपार ॥२८७॥ लडती पीयर सासरे, देती सबल सराप । कूडा कलंक चढावती, अवगुण वाली आप ॥२८८।। घात करे विसवास दे, छल करती छकमांह । मरी नरके जायने, भोगे दुक्ख अथाह ॥२८९॥