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३२ पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. [गुजराती भाषामां ८१-८२ वसुधारावृष्टि अने पंच दिव्योद्भव
जिनेश्वरो ज्यां पारणो करे छे त्यां उत्कृष्टथी साढी बार क्रोड अने जघन्यथी साढी बार लाख सोनैयानी वर्षा थाय छे. तेमज त्यां १ जल-कुसुमवृष्टि, २ वसुधारा ( सोनैया ) वृष्टि ३ चेलोत्क्षेप ( वसनवृष्टि ) ४ दुन्दुभिध्वनि, ५ अहोदानंनी घोषणा, ए पंच दिव्य प्रगट थाय छ. जिनेश्वरोनो दान दुनियामां बहु आश्चर्य उत्पन्न करे छे. ८३-८५ उत्कृष्टतप, अभिग्रह अने विहारभूमि
श्रीऋषभतीर्थमां १२ मासी, मध्यम जिनतीर्थमा ८ मासी अने श्रीवीरतीर्थमां ६ मासी उत्कृष्ट तप होय छे. सर्वे जिनवरोने द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव भेदवाला अनेक प्रकारना अभिग्रह होय छे. परन्तु वीरपरमात्माने १ अप्रीतिवाला स्थानमां न रहेवू, २ कायाने नित्य वोसिरावीने रहे, ३ मौन राख, ४ हाथमांज भोजन करवू, लेवं, ५ गृहस्थोनो विनय न करवू. ए पांच अभिग्रह अधिक समजवा. छमस्थ अवस्थामां ऋषभदेव, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ अने महावीर ए जिनवरोनो आर्य, अनार्य बन्ने देशोमां अने शेष प्रभुओनो आर्यदेशमांज विहार थयेल छे. केवलि अवस्थामां सर्व तीर्थकर आर्यदेशमांज विचरे छे.
१-ए सोनैया तोल ( वजन ) मा एक लाख, त्रीश हजार, बशो मण, अने तेर सेर, चोवीश टांक होय छे.