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________________ उल्लास] श्रीपञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. १४१ सुविधिशासने रुद्रमुनि, शीतले विद्यानल होय। सुप्रतिष्ठ श्रेयांसने, अचल वापुज जोय ॥ ४९२ ॥ पुंडरिक विमलेशने, अनंत अजितधर जान । अजितनाम धर्मजिन, शांति पेढाल पिछान ॥ ४९३ ।। वीरशासने सत्यकी, रुद्र इग्यारे एह । मुनिपदधारी महागुणी, वंदीजे गुण गेह ॥४९४ ॥ १७१ जिन तीर्थमां दर्शनोत्पत्तिजैन शैव ने सांख्यमत, ऋषभतीर्थ में जाण । वैदान्तिक नास्तिकमती, शीतलतीर्थ वखाण ॥ ४९५ ॥ पार्श्व तीर्थमें बौद्धमत, क्षणिकवादि ते होय । वीर वारे वैशेषिका, सप्त पदारथ जोय ॥४९६ ॥ १७२ जिनशासनमा दश आश्चर्य साहिब शांति जिनेश्वर देव के, ए राहसाहिबा इण चोवीसी माहिं के, आश्चर्य दश थयारे लो। सा० अष्टोत्तर शत साधु के, इक समये शिव लह्यारे लो॥ सा० अवगाहना उत्कृष्ट के, पांच शत धनुष्यनीरे लो। सा० नवाणुं ऋषभना पुत्र के, भरतसुत आठनीरे लो इ०।१। सा० ऋषभ सहित आठ के, सिद्धिबधु वर्यारे लो। सा० आश्चर्य पहिलो एह के, उत्कृष्ट मुनि तारे लो॥
SR No.022123
Book TitlePanchsaptati Shatsthan Chatushpadi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendrasuri, Yatindravijay
PublisherRatanchand Hajarimal Kasturchandji Porwad Jain
Publication Year1935
Total Pages202
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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