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उल्लास ]
पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. ८५ धर्म नमीजिन नेमि फणिधर, वासुपूज्य विमल ने वीर । वर्ग मृगतणो एहनो कहिये, अडग थई महाधीर ॥भ०॥३॥ पद्म मल्लि मुनिसुव्रत पारस, मूषक वर्ग सुचंग । कुंथुजिननोवर्ग बिलाड़ो, इम चोवीसे जिन रंग ॥०॥४॥ श्वान मेष ने सर्प गरुडनु, मृग सिंहर्नु वलि होय । बिलाड मूषक, माहो माहें, वैरभाव नित जोय ॥०॥५॥ २८ षडारकोना नाम, प्रमाण अने जिनजन्मप्रथम आरो सुषम-सुषम, दजो सुषमा जान । सुषमदुषम तीजो चउ, दुःषमसुषमा मान ॥९२ ॥ दुष्षमा पांचमो दुषमदुषम, छट्ठो महा विकराल । चार तीन दोय सागरा, कोडाकोडि निहाल ॥ ९३ ॥ एक कोडाकोडि ऊन कर-सहस वयालिस वर्ष । चोथो आरो जानिये, पंचम इगविस सहस ॥९४ ॥ छट्ठो इकवीस सहस्रनो, वर्षतणो ए जाण । सूरिराजेन्द्रे भाषियो, सूत्र थकी परमाण ॥९५॥ तीजा आरा अन्तमें, शेष संख्यातो काल । जन्म मोक्ष श्रीऋषभनो, थइयो जय जयकार ॥ ९६ ॥ चतुर्थ आरक मध्ये अजित, अर आइ वीरान्त । संभवाइ कुन्थु जिना, पश्चिम भाग महन्त ॥ ९७ ॥