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१४८ विंशतिविहरमानजिनचतुष्पदी. षष्ठ
३-विहरमानजिन-जनक-नाम, ( हरिगीत-छंदमां ) श्रीविहरमान के तातकी नामावली इणविध कही, श्रेयांस सुदृढ सुग्रीव ने वलि निसढ सहु जाणो सही । देवसेन मित्रप्रभ और कीर्ति नाम अनुक्रमसे लहो, मेघ नागराज ने विजय जाणो निश्चय निज हृदये ग्रहो ।६। पद्मराज वल्मिक देवानंद है नाम जिनवर तातनो, कुलसेन महाबल वीरसिंह शंसय नहीं कोई जातनो। है नाम तातनो भूमिपाल ने देवराज सोहामणा, पिता सर्वभूति नामना राजपाल पण रलियामणा ॥ ७ ॥
४-विहरमानजिन-सहधर्मिणी, (हरिगीत-छंदमां ) रुक्मिणी देवी प्रियंगु मोहिनी देवी किंपुरुषा तथा, जयसेना ने वीरसेना क्रमसुं नाम भार्या का यथा । पत्नी जयावती विजयावती ने विमलादेवी शुद्धमति, श्रीनंदसेना विजयावती पुनि लीलावती नामे सति ॥८॥ सुगंधादेवी नामे पत्नी वलि भद्रावती भली, अरु गंधसेना मोहनीदेवी रायसेना रंगरली । सूरिकांता श्रीपद्मावती ने रत्नमाला अनुपमा, इम नाम विंशति विहरमान की पत्नियों का अनुक्रमा ॥९॥
५-विहरमानजिन-लंछन, (हरिगीत-छंदमा) लंछन वृषभ त्रिहुं विहरमान के पढम द्वादश सतरमा, छट्ठा ने दशमा चौदमा उगणीसमा के चन्द्रमा ।