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उल्लास] पञ्चसप्ततिशतस्थानचतुष्पदी. ९३
शीतल शुक्ल लेश्या थकि, चन्द्रप्रभ जिन नाम । चन्द्रद्युति पीवा दोहलो, माता उपन्यो ताम ॥१५७॥ शुभ क्रिया पोते करी, सुविधि नाम सुहाय । गर्भछते माता तणो, आचार सम्यग् थाय ॥ १५८ ॥ जगत्ताप हरे शीतलजिन, गर्भावासे मात । हस्तस्पर्शे दाह शम्यो, तातनुं शीतलनाथ ॥ १५९ ॥ कल्याणकारि श्रेयांसनु, गर्भ छतां जिनमाय । देवाधिष्ठित शय्या चढे, श्रेयसुं श्रेयांस थाय ॥ १६० ॥ वसु नाम सुर इन्द्रनो, पूज्यां वासुपूज्य । पुत्र वसुपूज्य. रायनो, नामसुं वासुपूज्य ॥१६१ ॥ अंतर बाहिर गत मला, विमल थया जिन भाण । गर्भ माता निर्मल मति, तातें विमल वखाण ॥ १६२॥ अनंत ज्ञान दर्शन चरित, अनंतनाथ महंत । मणिदाम सुपनो मातने, तातें जिनप अनंत ॥१६३॥ धर्मस्वभावथी धर्मनाथ, अन्वर्थ नाम विशेष । सुतगर्भे अति धर्मिणी, माता थई अशेष ॥१६४ ॥ शांति करण शांतिप्रभू, सहु जिन एहवा जाण । देशमें सर्वत्र शांति थइ, शांति नाम सुख ठाण ॥१६५॥ कुपृथिवी ऊपर रह्या, निजुत्ति कुंथुनाह । भूस्थिर रत्न स्तूपनो, सुपन तणो उच्छाह ॥ १६६ ॥