Page #1
--------------------------------------------------------------------------
________________ THE FREE INDOLOGICAL COLLECTION WWW.SANSKRITDOCUMENTS.ORG/TFIC FAIR USE DECLARATION This book is sourced from another online repository and provided to you at this site under the TFIC collection. It is provided under commonly held Fair Use guidelines for individual educational or research use. We believe that the book is in the public domain and public dissemination was the intent of the original repository. We applaud and support their work wholeheartedly and only provide this version of this book at this site to make it available to even more readers. We believe that cataloging plays a big part in finding valuable books and try to facilitate that, through our TFIC group efforts. In some cases, the original sources are no longer online or are very hard to access, or marked up in or provided in Indian languages, rather than the more widely used English language. TFIC tries to address these needs too. Our intent is to aid all these repositories and digitization projects and is in no way to undercut them. For more information about our mission and our fair use guidelines, please visit our website. Note that we provide this book and others because, to the best of our knowledge, they are in the public domain, in our jurisdiction. However, before downloading and using it, you must verify that it is legal for you, in your jurisdiction, to access and use this copy of the book. Please do not download this book in error. We may not be held responsible for any copyright or other legal violations. Placing this notice in the front of every book, serves to both alert you, and to relieve us of any responsibility. If you are the intellectual property owner of this or any other book in our collection, please email us, if you have any objections to how we present or provide this book here, or to our providing this book at all. We shall work with you immediately. -The TFIC Team.
Page #2
--------------------------------------------------------------------------
Page #3
--------------------------------------------------------------------------
________________
MAMMARRANAMA RRRRRRA
SAM
जैन भजन संग्रह।
भाग पहलो।
HTOMPETimil
-IN
4-4ANNA
प्रकाशक:- .
- फतेचन्द चौथमल करमचन्द बोथरा नं० १२, नोरमल लोहिया ष्ट्रीट
- कलकत्ता।
KARMAKE
CAM
AIM
adMANYAAVA
नं० १६, सिनागोग ष्ट्रीट के ओसवाल प्रेस में बाबू महालचन्द बयेद
द्वारा मुद्रित !
MAur
प्रथमावृत्ति २०००]
[वीर निर्वाणाब्द २४५०
.
.
. " AATKAR
NRNAVA
M
Xvir
7
PM
TIRIT
1AAOMADIR
Page #4
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्राप्ति स्थान :१ फतेचन्द चौथमल करमचन्द बोथरा
०१३, नोरमल लोहिया ट्रीट कलकत्ता। २ चौथमल परतापमल बोथरा
मु० राजलदेशर .... (राजपुताना)
Page #5
--------------------------------------------------------------------------
________________
विषयानुक्रमणिका।
-
पृष्ठांक
१
W
w
.
संख्या विषय १ पच्चीस बोल की चरचा २ हुण्डी लुकेजीको ३ प्रदेशी राजारी संघ ४ उपदेशिक ढोल ५ मावचन्द्र सूरिकृत ढाल १ली
, ६ वर्द्धमान जिन स्तवन ७ ढाल उपदेशिक ८ पञ्चीस बोल ६ पानाको चरचा १० अल्या बोहत ११ गतागत
१०० १०१
१०४
१२३
Page #6
--------------------------------------------------------------------------
________________
१२ ढोल (गुलाबचन्दजी लुणियाकृत, १३ श्रीभिक्षुगणिरानको गुणाकी ढाल (जयाचार्यकृत् १७८
१५ जबकुंवर को चौढालियो
ओसवाल प्रेस। नं० १६ सिनागोग ष्ट्रोट, कलकत्ता
Nm
Page #7
--------------------------------------------------------------------------
________________
पञ्चीस बोल की चरचा।
। पहले बोले गति चार ४
१ एक गति किग्रा में पावे ? मनुष्य में पावे। २ दोय गति किणा में पाये ? श्रावक में मनुष्य,
तिथंच। ३ तीन गति किगण में पावे ? नमसक वेद में
पावे, ( देवता टल्यो )।
४ चार गति किण में पावे ? समचे जीव में। २ द जे बोले जात पांच ५-~
१ एक जात किण में पावे ? एकेन्द्री में । २ दोय जात किगल में पावे ? बैक्रेय शरीर में-- , एकेन्द्रौ, पंचेन्द्री।
३ तीन जात किण में पावे ? तीन विकलेन्द्रौ में। ५ चार लात किण में पावे ? बसकाय में (एकी
न्द्री टली)। ५ पांच जात किण में पावे ? समचै जीन में। . ३ तौजे बोले काय छव ६
Page #8
--------------------------------------------------------------------------
________________
१ एक काय किण में पावे ? साधु में-वसकाय । २ दोय काय किण में पावे ? बैक्र य शरीर में__ वाउकाय, वसकाय। ३ तीन काय किम में पावे? तेजूलेथ्या में एकेन्द्रौ,
पृथ्वी, मानी, बनास्पति में। ४ चार काय किण में पोवे ? तेजूलेण्या में मावे
(तेज, वाऊ टलो)। ५ पांच काय किस में पावे ? एकेन्द्री में पावे
(नस टली)। ६ छव काय किण में पावे ? समचे जीव मे। ४ चौथे बोले इन्द्री पांच ५
१ एक इन्द्री किच्छ में पावे ? पृश्वीकाय में-रूपर्श । २ दोय इन्द्री किण में पावे ? लट, गिंडोला में- रस, स्पर्श ३ तीन बून्द्री किण में पावे ? कौड़ी, मक्कोड़ा में
प्रागा, रस, स्प। ४ चार इन्द्री किण में पावे ? माखी, मच्छर में
(श्रोतेन्द्री टली)। ५ पांच इन्द्री किण में पावे ? समचे जीव में । पांचवें बोले प्रर्याय छव ६१ एक प्रर्याय किण में पावे ? शरीर प्रर्यायरे अल
Page #9
--------------------------------------------------------------------------
________________
3
7
( ३ )
धिया में आहार प्रर्याय |
२ दोय प्रयय किण में पावे? इन्द्रौ प्रर्यायरे अलधिया में आहार, शरौर ।
३ तीन प्रर्याय किया में पावे ? एकेन्द्री अपर्याप्ता में आहार, शरीर, इन्द्री ।
४ चार प्रर्याय किण में पावे ? एकेन्द्रों में ( मन, भाषा टली ) ।
५ पांच प्रयय किरण में पावे ? माखो में पावे (सन प्रर्याय टली ) ।
६ छव प्रर्याय किण में पावे ? समचै जौव में ।
६ कट्ठे बोले प्राण दश १०
――――――
१ एक प्राण कि में पावे ? चउदमें गुणस्थान में
आयुष बल प्राण |
२ दोय प्राण किग में पावे? बाटे बहता जीव मेंकाया, आयुष |
३ तीन प्राण किग में पावे ? एकेन्द्री अपयाप्ता मेंस्पर्श, काया, आयुष ।
४ चार प्राण किण में पावे ? एकेन्द्रो में - स्पर्श, काया, श्वासोश्वास, आयुष ।
५. पांच प्राण किण में पावे ? तेरहवें गुणस्थान में ( पांच इन्द्रियां का टल्या ) !
Page #10
--------------------------------------------------------------------------
________________
६ छव प्राण किण में पावे ? बेइन्द्री में-रस, स्पर्श
वचन, काया, प्रवासोपवास, आयुष । ७ सात प्राण किण में मावे ? तेइन्द्रौ में ( श्रोत, ___ चक्ष, सन टल्या)। ८ आठ प्राण किण में पावे ? चौइन्द्री में ( श्रोत,
मन टल्या)। ६ नव प्राण किण में पावे ? असन्नी पंचेन्द्री में
(मन टल्यो)। १० दश प्राण किरण में पावे ? समचे जीव में ।' ७ सातवें बोले शरीर पांच ५१ एक शरीर किरण में पावे ? एक शरीर किरा
ही में नहीं पाये। २ दोय शरीर किश में मावे ? बाटे वहता जीव
में-तेजस, कास। ३ तीन शरीर किण में पावे ? पृथ्वीकाय में-ो
दारिक, तेजस, कार्मण । ४ चार शरीर किण में पावे ? वायुकाय में ( त्रा
हारिक टलो)। ५ पांच शरीर किण में मावे ? समचे जौर में। ८ आठवें बोले योग पन्द्रह १५
१ एका योग किगा में पावे ? दोसता धान के
Page #11
--------------------------------------------------------------------------
________________
दाणा में औदारिक । २ दोय योग किण में पावे ? उड़ती माखौ में
औदारिक, व्यवहार भाषा । ३ तीन योग किण में पावे ? तेउकाय में प्रौदो
रिक, औदारिक मिश्र, कार्मण । ४ चार योग किण में पावे ? बेइन्द्री में' औदा
रिक, औदारिक मिश्र, व्यवहार भाषा,
कामण । ५ पांच योग किण में पावे ? वाउकाय में औदा
रिक, औदारिक मिश्र, बैक्रय, बैक्रय
मिश्र, कार्मण। ६ छव योग किण में पावे ? असन्नी में औदा.
रिक, औदारिक मिश्र, बैक्रय, बैक्रय
मिश्र, व्यवहार भाषा, कार्मण । ७ सोत योग किण में पावे ? केवलयां में -सत्य
मन, व्यवहार मन, सत्यभाषा, व्यवहार
भाषा, औदारिक मिश्र, कार्मण । ८ साठ योग किण में पावे ? तौजे गुणस्थान में - .. नेमां ४ मन, ४ वचन को। ६ नव योग किया में पावे ? परिहार विशुद्ध
चारित्र में -४ मन का, ४ बचन का, १
Page #12
--------------------------------------------------------------------------
________________
औदारिक । दश योग किण में पावे ? तौजे गुणस्थान
में-४ मन का, ४ बचन का, औदारिक,
बैक्रय।
२१ ग्यारह योग किण में पावे ? नारको में- ४ मन का, ४ बचन का, बैक्रय, बैक्रय
मिश्र, कामगा। १२ बारह योग किण में पावे ? 'श्रावक में
(आहारिक, आहारिक मिश्र, कार्मण
टलया)। १३ तेरह योग किण में पावे ? तिथंच में
(आहारिक, आहारिक मिश्र, टलया)। १४ चउदह योग किण में पावे ? मन योगी में
(कार्मण टलो)। १५ पद्रह योग किण में पावे ? समजीव में। ६ नवमें बोले उपयोग बारह १२
१ एक उपयोग किण में पावे ? बाटे बहता
सिद्धां में केवल ज्ञान। २ दोय उपयोग किण में पावे। सिद्धां में
केवल ज्ञान, केवल दर्शन। ३ तीन उपयोग किण में पावे ? एकेन्द्रौ में
Page #13
--------------------------------------------------------------------------
________________
मति, श्रुति अज्ञान, अचक्षु दर्शन । ४ चार उपयोग किण में पावे ? दश गुण
स्थान में-४ ज्ञान ( केवल बरजौने ) ५ पांच उपयोग किण में पावे ? बेइन्द्री में
मति, श्रुति जान, मति, श्रुति अज्ञान,
अचक्षु दर्शन। ६ छव उपयोग किण में पावे ? मिल्थ्याती में
३ अज्ञान, ३ दर्शन ( केवल बरजीने )। ७ सात उपयोग किण में पावे ? छ? गुणस्थान
में-केवल बरजौने ४ ज्ञान ने ३ दर्शन । ८ आठ उपयोग किण में पावे ? अचर्म में -३ .
अज्ञान, ४ दर्शन, १ केवल ज्ञान। ६ नव उपयोग किण में पावे ? देवता में (मन
पर्यव, केवल ज्ञान, केवल दर्शन टला ) १० दश उपयोग, किण में पावे ? स्लोवेद में
( केवल ज्ञान, केवल दर्शन टलाा)। ११ इग्यारह उपयोग किण में पावे ? अभाषक
में ( मन पर्यव टलो)। १२ बारह उपयोग किण में पावे ? समचे जीव
में।
१० दशवे बोले कर्म आठ ८
Page #14
--------------------------------------------------------------------------
________________
( ८ )
१, २, ३ कर्म किण में पावे ? कियहौ, में नहीं पावे |
४ चार कर्म किण में पावे? केवलां में - बेदनी,
आयुष्य, नाम, गोव ।
५, ६ कर्म किण में मावे ? किग्रहों में नहीं पावे ।
७ सात कर्म किया में पावे ? बारवें गुगास्थान में ( मोहनी टलो ) ।
८ आठ कर्म किया में पावे ? समचे जीव में । ११ इग्यारवे' बोले गुणस्थान चवदह १४
१ एक गुणस्थान किण में पावे पहलो |
? एकेन्द्रौ में -
२ दोय गुणस्थान किए में पावे बेइन्द्रो में - ? पहलो, दूजी ।
३ तीन गुणस्थान कि में मावे ? पर्याप्ता में१, २,४.
४ चार गुणस्थान किया में पावे? देवता में - ४, प्रथम ।
५ पांच गुणस्थान किए में पावे ? तिर्यंच सन्नौ पंचेन्टो से ५ प्रथम ।
Page #15
--------------------------------------------------------------------------
________________
(&)
में ६ प्रथम |
७ सांत गुणस्थान किण में पावे ? तेजू लेभ्या में सात प्रथम /
८ आठ गुणस्थान किण में पावे ? अप्रमादी में आठ छेहला ।
2 नव गुसास्थान किग में पावे ? स्त्रीवेद मे नव
प्रथम ।
१० दश गुणस्थान किग में पावे? लोभ कषाय में दश प्रथम ।
११ इग्यारह गुणस्थान किंग में पावे? चक्षु दर्शन में ( १, १३, १४ टला ) |
?
१२ बारह गुणस्थान किग में पावे १ सम्यक्ती में ( १, ३ टला ) |
१३ तेरह गुणस्थान किय में पावे ? संयोगी में ( चवदमों टो) ।
९४ चवदह गुणस्थान किग में पावे ? समचे जीव मे ।
१२ बारहवें' बोले पांच इन्द्रां को २३ विषय८ विषय एकेन्द्री में ८, स्पर्श इन्द्रौ को ।
१३ विषय बेइद्री में ५ रस, ८ स्पर्श इंद्री
2
की ।
X
Page #16
--------------------------------------------------------------------------
________________
( १० )
१५ विषय तेइंद्री में २ घ्राण, ५ रस, ८ स्पर्श
इंद्री को ।
२० विषय चौइंद्री में ( श्रुत इंट्री को तीन टली ) । २३ विषय पंचेइंद्री में ।
१३ तेरहवें बोले १० प्रकार का मित्थ्यात्व किस में पावे मिथ्याती में पावे ।
१४ वदवें बोले नवतत्व नो ११५ भेद तिसमें जीव
•
3
ना १४
१ एक भेद किय में मावे ? केवल ज्ञानो में पावे चवदमों ।
२ दोय भेद कि में मावे ? देवतां में पावे १३ १४.
३ तीन भेद किस में पावे ? मनुष्य में पावे ११, १३, १४.
४ चार भेद किए में पावे ? एकेइंद्री में पावे
४ प्रथम ।
५. पांच भेद किस में पावे ? भाषक में पावे - ६, ८, १०, १२, १४.
६ छव भेद किम' पावे ? सम्यक्ती में पावे - ५, ७, ८, ११, १३, १४.
Page #17
--------------------------------------------------------------------------
________________
७ सात भेद किण में पावे ? पर्याप्ता में पावे
७ मर्याप्ता का। ८ आठ भेद किण में पावे ? अनाहारिक में ____ पावे ७ पर्याप्ता १ चवदमों। ६ नव भेद किण में पावे ? औदारिक मिश्र में __पावे ( २, ६, ८, १०, १२ टल्या)। १० दश भेद किण में पावे ? बसकाय में पावे
(एकेन्द्री का ४ टल्या)। ११ इग्यारह भेद किण में पावे ? कोरा तिर्यंचरे
भेदां में ( ११, १३, १४ टल्या )। १२ बारह भेद किण में पावे ? असन्नी में पावे
( १३, १४ टल्या)। १३ तेरह भेद किण में पावे ? कोरा असंयती में
पावे ( चवदमों टल्यो)। १४ चवदह भेद किण में पावे ? समचे जीव में ५ पन्द्रहवें बोले आत्मा आठ ८१ एक आत्मा किण में पाव ? द्रव्य जीव में
पाव-द्रव्य आत्मा। २ दोय आत्मा किण में मावे ? उपशम भाव में
पाव-दर्शन, चारित्र ३ तीन आत्मा किण में पावे ? उदय भाव में
Page #18
--------------------------------------------------------------------------
________________
( १२ ) पावे-कषाय, योग, दर्शन। ४ चार आत्मा किण में पावे ? सिद्धां में पावे
द्रव्य, उपयोग, ज्ञान, दर्शन । ५ पांच आत्मा किण में पावे ? निर्जरा में पावे
(द्रव्य, कषाय, चारित्र टली)। । ६ छव आत्मा किण ने पावे ? मित्याती में पावे
(ज्ञान, चारित्र टली)। ७ सात आत्मा किण में पावे ? श्रावक में पावे
(चारित्व टली)। ८ आठ आत्मा किण में मावे ? साधु में पावे। १६ सोलहवें बोले दण्डक चोबोस २४
१ एक दण्डक किण में पावे ? सात नारको के
पाव-१ प्रथम। २ दोय दण्डक किण में पावे ? श्रावक में पाव
२०, २१ । ३ तीन दण्डक किण में पावे ? शुक्ल लेश्या में
पाव-२०, २१, २४ । ४ चार दण्डक किग्य में पावे ? तिर्यंच बसकाय.
में पावे -१७, १८, १६, २० । ५ पांच दण्डक किण में पावे ? एकेन्द्री में
मावे-१२, १३, १४, १५, १६ ।
Page #19
--------------------------------------------------------------------------
________________
( १३ ) ६ छव दण्डक किण में पावे ? वसकाय में नपुं
सक में पावे-१, १७, १८, १६, २०, २१ । ७ सात दण्डक किण में पावे ? कोरा अचक्षु दर्शन में पावे-१२, १३, १४, १५, १६,
१७, १८। ८ आठ दण्डक किण में पावे ? कोरा असन्नी में ___ पावे-१२, १३, १४, १५, १६, १७, १८, १६ । ६ नव दण्डक किण में पावे ? तिर्यंच में पावे
१२ से २० ताई। १० दश दण्डक किण में पावे ? असन्नौ में पावे
१२ से २१ ताई। ११ इग्यारह दण्डक किण में पावे ? नपुंसक
वेद में पावे ( १३ देवता का टला)।। १२ बारह दण्डक किण में पावे ? गर्भ बिना
सन्नी कृष्ण लेण्या में पावे-१ से ११ ताई,
१ बाईसमों। . १३ तेरह दण्डक किंण में पावे ? सर्व देवता में
पावे-२ से ११ ताई, २२, २३, २४. १४ चवदह दण्डक किण में पावे ? कोरा सन्नी __ मे पावे-१३ देवतां रा, १ नारको रो। १५ पन्द्रह दण्डक किण में पावे ? स्त्रीवेद में
Page #20
--------------------------------------------------------------------------
________________
पावे-१३ देवतांरा, २०, २१. १६ सोलह दण्डक किण में मावे ? सन्नी में पावे
( ५ स्थावर, ३ विकलेन्द्रौ टल्या ) १७ सतरह दण्डक किण में पावे ? चक्षु दर्शन में ___ पवि (५ थावर, बेइन्द्रौ तेइन्द्रौ का टला) १८ अट्ठारह दण्डक किण में पावे ? तेज लेश्या
में पावे ( ३ बिकलेन्द्रौ, नारको, तेउ, वाउ
का टल्या)। १६ उगणौस दण्डक किण मे मावे? सम्यक्तौ में ,
पावे ( ५ थावर का टल्या)। २० बौस दण्डक किण में पावे ? अढाई दीप'
बारे नौचा लोक में ( २१, २२, २३, २४
टल्या )। २१ इकवीस दण्डक किण में पावे ? नौचा लोक
में पावे ( २२, २३, २४ टल्या)। २२ बाईस दण्डक किण में पावे ? कृष्ण लेश्या
में पावे ( २३, २४ टल्या)। २३ तेईस दण्डक किण में पावे ? एकेन्द्रौ कौ
आगत में (नार को रो एक दण्डक पहलो
टल्यो)। २४ चौबीस दण्डक किण में मावे ? अबतौमें पावे ।
Page #21
--------------------------------------------------------------------------
________________
१७ सतरहवें बोले लेण्या छब
१ एक लेण्या किण में पावे ? तेरहवें गुणस्थान
में मावे-१ शुक्ल । २ दोय लेण्या किण में पावे ? तिजी नारको
में पावे-कापोत, नौल। ३ तीन लेण्या किण में पावे ? देउकाय में
पावे-कृष्ण, नौल, कापोत । ४ चार लेश्या किण में पावे ? पृथ्वी काय में
. पावे ( पद्म, शुक्ल टली)। ५ पांच लेण्या किण में पावे ? सन्यासी री गत
देवता में पावे ( शुक्ल टली)। ६ छव लेण्या किण में पावे ? समचै जौव में । १८ अट्ठारहवें बोले दृष्टि तीन ३१ एक दृष्टि किण में पावे ? चौथे गुणस्थान में
पावे सम्यक् दृष्टि । २ दोय दृष्टि किण में पावे ? बेइन्द्रों में पावे
सम्यक्, मिथ्या।
३ तीन दृष्टि किण में पावे ? समचे जीव में । १६ उगणीसर्वे बोले ध्यान चार ।
१ एक ध्यान किण में पावे ? केवलयां में पाव
१ शुल। .
Page #22
--------------------------------------------------------------------------
________________
२ दोय ध्यान किण में पावे ? सातवें गुणस्थान
में पावे-धर्म, शुक्ल । ३ तीन ध्यान किण में पावे ? श्रावक में पावे
(शुक्ल टला )।
४ चार ध्यान किणा में पावे ? समचै जीव में । २० बीसवें बोले ६ द्रव्य री ३० बोल ।
१ एक द्रव्य अलोक में पावे-आकाशास्तिकाय ।
६ छव द्रव्य लोक में पावे। २१ इकबीसवें बोले रास दोय ----
१ एक रास किण में पावे ? जीव मे पाव-१
जीव रास।
२ दोह रास किण में पावे ? लोक में पावे। २२ वाईसवें बोले श्रावकग १२ ब्रत-ते श्रावक में
पावे।
२३ तेईसवें बोले साधुजी ना पांच महाव्रत-साधु में - पावे। २४ चौबीसवें बोले भांगा ४६-~-श्रावक में पाये । २५ पच्चीसवे बोले चारित्र पांच ५---- १ एक चारित्र किण में पावे ? केवलयां में
पाव-यथाख्यात । २ दोय चारित्र किण में पावे ? पुलाकनियंठा
Page #23
--------------------------------------------------------------------------
________________
में पाव -सामायक, छेदोस्थापनीय । ३ तीन चारिच किट में पावे ? छ? गुणास्थान
में पाय-सामायक, छेदोस्थापनौय, परिहार विशुद्ध । ४ चार चारिश किण में पाव ? लोभकषाय में
पाके ( १ यथाख्यात टलो ) । ५ पांच चारित्र किरण में पाये ? साधु में
माव।
वर
E
By
SARROR
.MAR
३
Page #24
--------------------------------------------------------------------------
________________
अथ हुण्डी लूंकारि लिख्यते ।
शहर नेता मध्ये लंका गुजराती सरूपचन्दजी रामचदजौरा उपासरा थी हुण्डी आयो ति में शुद्ध प्ररूपणा जाणो ने उपरे देखा देख लिखी है ।
ܘ
( १ ) तीन ही काल का भाव केवल ज्ञानी देख्या कोई जौवने नव तत्वरे जाणपणा बिना संसार समुद्र संतिरतो देख्यो नहीं । साख सूत्र प्रथम सूयगडांग, अध्ययन १२, गाथा १६ ।
( २ ) जौव ने अजीव रास दो कही तीसरी रास कहवे तिने त्रिरासियो निन्हव कहोजे । सा० सू० उववाई, प्र० १६,
( ३ ) जीव अजीव चम थावर जाणे नहीं तिगरा पचक्खाण दुपचक्खाण कया । सा० सू० भगवती,
ܟ
श. ७, उ० २.
( ४ ) जीव अजीव ने जागे नहीं जीव अजीव दोनां ने जागे नहीं तिगने संगमरी ओलखना नहीं । सा० सू० दशवेकालिक, अ० ४, गा० १२.
( ५ ) सभ्यता बिना चारित नहीं समयक्त बिना व्रत नहीं । मा० सू० उत्तराध्ययन, अ० २८, गा० २६,
Page #25
--------------------------------------------------------------------------
________________
( १६ ) (६) ज्ञान बिना दया नहीं दया चारित्र एक ही कह्या सा० सू० दशव कालिक, अ० ४, गा १०.
(७) असंजती अब्रती अपञ्चखाणीने सूजतो : असूजतो फासु अफासु देव तिणने एकान्त पाप कह्यो में निर्जरा नधौ । सा० स० भगवती, श० ८, उ० ६.
(८) सोश्वता असावता रौ खबर नहौं तिण ने बोध रहित कह्यो । सो० सू० प्र० सूबगड़ांग अ० १, उ० २, गा० ४.. . (६) साधु थोड़ा असाधु घमा । सा० सू० दशवैकालि, अ. ७, गा० ४८.
(१०) साधुरे सर्व थको प्राणातिपात का त्याग छै तिणरे अपञ्चक्खाणगै परिग्रह रौ क्रिया नहीं। सा० सू० पन्नवणा, पद २२.
(११) साधु रो आहार असावद्य कह्यो साधु रो आहार बुत में कह्या साधु पाप रहित छै । सा० सू० दशव कालिक, अ० ५, उ० १, गा० ६२.
(१२) भगवान् श्री महावीर स्वामी ठंडो आहार घणा दिना रो लोपनो लियो। सा० स० प्र० आचारांग, अ०८, उ. ४, गा० १३.
(१३) केवल ज्ञानी परूप्यां बिना आप आपरी प्ररूपणा करे जिके ने किंचित माल जाणपणो नहीं।
Page #26
--------------------------------------------------------------------------
________________
( २० ) सा० सू० प्र० सूयगडांग; अ० १, उ० २ गा० १४,
(१४) श्रावक ने केवल ज्ञानी प्ररुप्यां विना टूसरा धर्म मानणो नहौं । सा० सू. उववाई, प्रश्न२०.
(१५) समयक्ती ने धर्म कोवल ज्ञानौ प्राप्यो मानणो दूसरो मानणो नहौं ! सा० सु० उत्तराध्ययन, अ० २८, गा० ३१,
(१६ ) केवल जानी वी पाखंडियारी बचनांची खबर नही। जिकारे घशो अकालमरण बालमररह होसी । सा० सृ० उत्तराध्ययन, अ० ३६, गा० २६५,
(१७) पर वचन सूई अर्थ परमार्थ शेष थाकता रह्या सोई सर्व अनर्थ । सा० स० उववाई, प्रश्न २०.
(१८ ) केवलयां गे आचार सोई छमस्थ रो आचार, पोवला गे अनाचार सोई छमस्थ रो अनाबार। सा० स० प्र० आचारांग, अ० २, उ० ६.
(१८) वत्तवया दोय कही-१ खसमय वत्तवय, २ पर समय वत्तवय । खममय वत्तवय की साधु तो प्राज्ञा देवे । परसमय बत्तवय में सात औगुण-अनर्थ १, अहित २, असंजम भाव ३, अक्रिया ४, उनमारग ५, उपयोग रहित ६, मिथ्यात ७ । सा० स० अनुयोगहार, ७ नब पूरी हुई जठे,
(२०) केवली प्रकापियो एकन्त धर्म कह्यो । सा०
Page #27
--------------------------------------------------------------------------
________________
( २१ )
सू० प्र० सूयगड़ांग, अ० ६, गा० ७.
(२१) वली प्ररूषियो धर्म यथार्थ सरल शुद्ध माया कपटाई रहित । सा० सू० प्र० सूयगड़ांग, आ० ८गा० १.
(२२) जिन करो में किंचित मात्र हिंसा नहीं ते करणौ ज्ञान गै सार कही । सा० सू० प्र० सूचगडांग, च० १, उ० ४, गा० १०.
( २३ ) केवल ज्ञानी भाष्यो धर्म सन्देह रहित कहो । सा० सू० प्र० सूयडांग, अ० १०, गा० ३. (२४) ग्रापगे छान्दो रुौंवे ते धर्म। सा० सू० उत्तराध्ययन, अ० ४, गाथा ८
(२५) केवली प्ररूपियो धर्म अहिंसा संजमोत्तवो ! सा० सू दशवैकालिक, अ० १, गाँ० १,
( २६ ) अपन्दारी प्रशंसा करे करावे करता ने भलो जाणे तो प्रायश्चित | सा० स० निशोथ, उ० ११ बो० ८१.
( २० ) बालमग्गा रौ प्रशंसा करे करावे करताने भलो जाये तो प्रायश्चित । सा० सू० निशौध उ० ११, वो० ११.
( २८ ) गृहस्थौ ने श्रसंजती ने असाथ, पाण, खादम. खादस, वत्य, पडिग्गह, कम्मल, पायपुच्छरा,
1
Page #28
--------------------------------------------------------------------------
________________
( २२ ) ८ बोल देवे, दिवावे, देवतां ने भलो नाणे तिणने बामासौ प्रायश्चित अावे । सा० सू० निशोथ, उ० १५ बो० १४-७५.
(२६ ) वोसराया ने अणवोसराया कहे अणवोसराया ने वोमराया कहे तिण ने प्रायश्चित । सा० -सू० निशीथ, उ० १६, बो० १३-१४.
(३० ) सौषा साधु होकर के सगैषा साधवों ने थानक देवे नहीं दिरावे नहीं देवतां ने भलो जाणे नहीं तो प्रायश्चित । मा० सू० निशोथ, उ० १७, बो०
२२३.
(३१) स्टहाथ गै व्यावच करे करावे करतो ने भलो जाणे तो प्रायश्चित । सा० म० निशोथ, उ० ११, बो० ११.
(३२) सरीषौ साध्वियां ने थानक देवे नहीं दिरावे नहीं देवतां ने भलो जाने नहीं तो प्रायश्चित । सा० सू० निशीथ, उ० १७, बो० २२४.
(३३ ) साधु बसे तिण थानक में न्याति, अन्य न्याति, श्रावक अथवा श्राविका आधी रात वा सारी रात राखे तो प्रायश्चित । सा० सू० निशीथ, उ० ८ वो० १२.
(३४) वसे तिणने तीन करण, तीन जोग
Page #29
--------------------------------------------------------------------------
________________
( २३ ) नहीं निषेधे तो प्रायश्चित । सा० सू० निशीथ, उ०८ बो० १३.
(३५) रहस्थौ प्रते दान देवे तिवारी प्रशंसा करे तो छव काया रो हिंसा लागे । सा० सू० सुयगडांग, अ० ११, गा० २०.
(३६ ) विषय सहित धर्म प्ररूपे ते बुरो ज्यं तालपुट विष खायां बुरो। सा० सू० उत्तराध्ययन, अ० २०, गा० ४४.
(३७ ) भाषा दोय कही-१ आराधक भाषा, २ विराधक भाषा । विगधक भाषा में ४ औ गुणा-~असंजम, अब्रत, अपाड्याई, अपञ्चक्रिया पाप कर्म । सा० सू पन्नवणा, पद ११. ___ (३८) मिश्र भाषा बोलाां महा मोहणी कर्म बंधे । सा० सू० दशाश्रुत सकंध, अ० ६, बो० ६. - (३६) मिश्र भाषा छोड़े छुडावे तिणने समाधि कही। सा० सू० प्र० सूखगडांग, अ० १०, गा० १५.
(४० ) मिश्र भाषा सर्व थकी छोडणी कही। सा० सू० दशवैकोलिक अ० ७, गा० १.
(४१) मिश्र भाषारे धौरी वचन प्रवक्तव्य अणविमासियेरो बोलणहार कह्यो, अज्ञानवादी कह्यो, पूछाां रो जबाब देवा असमर्थ कयो मिश्न धर्म प्ररूप
Page #30
--------------------------------------------------------------------------
________________
( २४ ) होवालो आमगे मत थापा भणी छल बल मांडौ छ। सा० सू० प्र० सुबगडांग, अ० १२, गा० ५.
(४२) साधुरौ माजा मारे धर्म श्रद्धे तिणने काम भोग में खूतो कह्यो, हिंसा रो बारणेवाली कह्यो। सा० सृ० प्र० आचारांग, अ० ६, उ० ४. .
(४३) साधु गै अाना बारे धर्म कहसी तिगारा तम ने नियम भृष्ट कथा, ने चूर्ख कहा। सा० सू० प्र० आचारांग, अ० २, उ. २.
(४४ ) आजा बारे धर्म कह पाना सांहि पाप कहे, ए दो बोल कोई जीव ने होजो सतौ । मा० सू० प्र० आचारांय, ० ५, उ० ६.
(४५) प्रवचन सुं विरुद्ध प्ररूपयेवाले ने भगवान् निन्हव कयो, निन्हबारो आचार छे। सा० सू० उववाई, प्र. १६,
(४६) राग द्वेष ने याष कह्यो । मा० म० उत्तचराध्ययन, अ० ३१, गा० ३.
(४७) कोई कोई इस कहे साता दियां साता होवे तिवारे श्री भगवान छव बोल प्ररूप्या-१ भारज मार्ग सु बेगलो, २ ममाधि माग सू न्यारो, ३ जैन धर्म रो हेलणा करगहार कहो, ४ थोड़ा सुखांचे का. रणे घणा सुरवां गे हारमाहार कयो, ५ अमोक्ष गे
Page #31
--------------------------------------------------------------------------
________________
( २५ ) कारण कह्यो, ६ लोहबाग्गियां नौ परे घणो अरसौ ॥ ला. सू० प्र० सुयगडांग, अ० ३, उ० ४, गा० ६-७.
(४८) साधु होकर से अगुकार पारे वास्ते बसजीव ने बांधे बंधारे बांधतां ने भलो जाणे, छोडे छुडावे छोडतां ने अलो जाये तिने चोमासौ प्रायश्चित आवे सा० सू० निशीथ, उ० १२, बो० १--२.
(४६) मोन रा माग जाये नहौं तिणने शौ भगवान् रौ आना से लाभ न हों। सा० सू० प्र० आचारांग, अ० ४, उ०.४.
(५०) ब्राह्मणां ने जिमायां तमतमा पहुंचे। सासू. उत्तराध्ययन, अ० १४, गा० १२.
(५१) साधुरै अठारह पाप रा सर्व थकी त्याग कै. देश थको नहौं । सा० सू० उबवाई, प्र० २१,
(५२) साधु रा भण्ड उपगर परिग्रह मे कह्या नहौं, मुरच्छा गख ता परिग्रह लागे । सा० सू० दशबैकालिक, अ० ६, गा० २१.
(५३) साधुरे नवकाटि पचक्वाण कया । सां. सू० दशवकालिक, अ० ४.
(५४) आचारजां गै छाना बिना आहार करे करतां ले भलो जाणे तो प्रायश्चित । सा० सू० निशीथ उ. ४, बो० २२.
Page #32
--------------------------------------------------------------------------
________________
( ५५ ) पुण्य पाप सं जीव ने पचतो दौठो। सा० सू. उत्तराध्ययन, अ० १०, गा० १५.
(५६) पुण्य पाए ने खपावणो कह्यो । सा० सू० उत्तराध्ययन, अ० २१, गा० छेहली.
(५७) उसन्ना मासत्थो ढीला ने बंदना प्रशंसा कर करावे करतां ने भलो जाणे तो चौमासौ प्रायश्चित । सा० सू० निशीथ, उ० १३, बो० ४२-४३४४-४५.
(५८) साधु गृहस्थी को औषधि करे करावे करतां ने भलो जाणे तो प्रायश्चित । सा० सू. निशीथ, उ० १२, बो० १७.
( ५६ ) सामायक दोय कही-१ आगार सामायक, २ अणागार सामायक। सा० म० ठाणांग, ठा० २. उ० ३, बो० ६.
(६०) चारित्र दोय कह्या-~-१ आगार चारित्र, २ अणागार चारित्र । सा० सू० ठाणांग, ठा० २, उ० १, बो० २५.
(६१) धर्म दोय कह्या-१ मूत्र धर्म, २ चारित्र धर्म । सा० सू० ठाणांग, ठा० २, उ० १, बो.
२५,
Page #33
--------------------------------------------------------------------------
________________
( २७ ) , (६२) कर्म खपावा रौ करणी दोय कही-१ संयम, २ तप । सा० सू० उत्तराध्ययन, अ० २८, गा० ३६.
(६३) मार्ग दोय प्ररूप्या-१ भगवान रो प्ररूप्यो मार्ग, २ पाखण्डियांरो मार्ग । सा. सू. उत्तराध्ययन, अ० २३, गा० ६३.
(६४) संवर गुण ने आसव गुण जुदा जुदा कह्या छै । सा० सू० प्र० आचारांग, अ० ४, उ० २.
(६५ ) करणी ४ कही-१ इहलोक ने हित, २ परलोक ने हित, ३ कौति श्लाघा हित, ४ निर्जरा ने हित । सा० सू० दशवैकालिक, अ० ६, ७० ४.
(६६ ) प्रज्ञा दोय कही-१ ज्ञान प्रज्ञा, २ पचक्वाण प्रज्ञा । सा० सू० प्र० आचारांग, अ० २,
उ० ४.
(६७) धर्म दोय कह्या-१ आगार धर्म, २ आणागार धर्म। सा० सू० उववाई, भगवान ने कोणिक राजा वन्दना करने गया जठे.
६८. ध्यान चार कद्या-१ आर्त ध्यान, २ रुद्र ध्यान, ३ धर्म ध्यान, ४ शुल्ल ध्यान । सा० सू० उबवाई तथा भगवती.
Page #34
--------------------------------------------------------------------------
________________
( २८ ) ६६ साधु असंजती ने ऊभो रह, बैठ, सो, पाव, जाव, काम कर । ए ६ बोल साधु ने कहणा नहौं ।' मा० सू० दशवैकालिक, अ० ७, गो० ४७.
--
Page #35
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री प्रदेशी राजा री संघ |
॥ दोहा ॥
संघ प्रदेशौराय नी, राय प्रसेखी मांय । तिण अनुसार हूं, कहूँ सांभलज्यो चित लाय ॥१॥ अमल कम्मा नगरी तिहां, अंबशाल ना बाग | तिहां श्री वौर समोसा भव जीवांरे भाग ॥२॥ खवर हुइ नगरी मांहि लोक बांदा ने जाय । सेन गजा पिया आवियो सेव करे चित लाय || ३ || च्या दिशा देवता आया वन्दण काज | लुल लुल नें लटका करे धन्य दिहाड़ी आज || ४ ॥ ॥ ढाल १ ली ॥
सरियाभ देव लिंग अवसरे बेठो सरियाभ बिमागरे । प्रथम देवलोक सुधर्मी सभा सह परवार संग जाण ॥ पून्य तथा फल एहवा || १ || सामानिक च्यार हजार रे । अग्रमहेषी च्यारे भली । ते पिंग सहित परिवार रे ॥ २ ॥ परषधा तीन साते अणी आतम रक्षक ग देवरे । सोले हो सहस्र सूरियाभ नौ !
Page #36
--------------------------------------------------------------------------
________________
( ३० )
1
अहो निशि करत है सेवरे ॥ ३ ॥ वले अनेरा देवता । वैसे सूरियाभ ने पास रे । तेहनें संग परवस्यो थकी । लौला करे मन हुलास रे || पु० ॥ ४ ॥ तिण विरियां सूरियाभ तो । दौधो अवध गिनान रे ॥ बाग में वौर ने देख नें । पामियो हर्ष अशमान रे ॥ पु० ॥ ५ ॥ उठियो बेग सतावसुं । बले उत्तगसण कौधो तेहरे ॥ सात आठ पग स्हामो जाय नें । नमोत्यु गां करो धर नेहरे | पु० ॥ ६ ॥ एक कियो के सिद्धां भगौ । दूसरो वौर ने कौधरे ॥ देखो को आप उहां घको । एम बोल्यो मन लहलौन रे ॥ पुः ॥ ७ ॥ वले सूरियाभ मन चिन्तवे । नाम सुख्खा हुलसाय रे ॥ अरिहन्त ने रे भगवन्त में । दौठांइ दुःख टल जाय ॥ पु० ॥ ८ ॥ बाणी सुगी बनणा कियां । पर भव में मुख होय रे ॥ दुःख दालिद्र देखें नहीं । शंका नहीं तिल कोय रे ॥ पु० || ८ || एहवो करौ विचारणा । सेवग देवने तेड़र े । वेग जा जम्बूर े दौप में । वौर जिनेश्वर केडर ॥ पु० ॥ १० ॥ भगवन्त में बन्दणा करे । दे सत्कार सन्मान रे || मांडलो निपट चोखो कर े । एक जोजन परिमाणरे ॥ पु० ॥ ११ ॥ अगर तगर गंध वटौ । फेर
सुगन्ध कर चंपरे । मोह पहलग रिषेवने । आगन्या
.
पाछी संपरे ॥ ५० ॥ २२ए सूरियाभ कयां थकां ।
Page #37
--------------------------------------------------------------------------
________________
।
पामीयो हर्ष उल्लास रे ॥ आयो के बेग सताव सं । वौर जिलेश्वर पासरे ॥ पु० ॥ १३ ॥ कहै ई सेवक सूरियाम नो । बन्दणा करू बारम्बार रे ॥ वौर जिणेश्वर इम कहै । जनो छै तुम आचार ने ॥ पु० ॥१४॥ इम सुणी सुर हो घणो । उठियो धर्म में प्रौत रे ॥ मांडलो निपट चोखो कग्रो कही सु करी सर्व रौतरे पु० ॥ १५ ॥ सूरिमाभ देव कने आय में। दौधौ सर्व जताय रे ॥ सृरियाभ सुण हर्षित थयो। बोलियो ए. हवी बाय रे ॥ पु० ॥ ६॥ सुधर्मी सभा मझे जाय ने। सुखर घण्टा बजाय रे ॥ मोटे मोटे शब्द करौ । देव भेला हुवा आयरे ॥ पु० ॥ १७ ॥
॥ दोहा॥ बचन सुणो सूरियाभनो । सेवक हर्षित थाय ॥ सुधर्मी सभा मझे। घण्टा दीवी बजाय ॥ १ ॥ सृरियाम देव वौर वान्दवा। जासौ धर्म में हेज ॥ देव देवी बेगा आवज्यो। विलम्ब न कोज्यो जेज ॥२॥ हृता देव प्रमाद में । विषय रोग में ताम ॥ घण्टा शब्द मुण्या पछौ । सहु हुवा सावधान ॥३॥ मांहों मांही इसड़ी कहै। बान्दण में जगनाथ ॥ आपणा धगी पधारियां। आपां हुम्यां साथ ॥४॥
Page #38
--------------------------------------------------------------------------
________________
(३२ ) ॥ ढाल २ जी बालुडा नी देशी ॥
एकाएको देव बन्द णा कारण् । केई पूजा सल्कारौनेए । कई अरथ ने हेते प्रश्न पूछस्यांए। अर्थ तणोनिह - चो करौए। ११ कई किलोल भूत केईक जिन तणाए। वचन अपरब सांभल्या है। २। एकाएको बयण सुर सूरियाभना आघा लङ्घ सके नहीं ए। ३। मांहिरा बयण । कई मानत कई भगवन्त गै भक्तनेए। ४ ।कई सूरियार निमित्त कडक इम कहै जीवित व्यवहार आपणोए। ॥ ५ ॥ अपनी ऋ समेत सूरियाभेए। देगा आबने भेला हुवाए ॥ ६ ॥ देव देवौ आया देख सूरियाम हर्षियो । सेवक ने बोलावियोए ॥ ७॥ हुकम करे के एम जाण बिमाश ने बेग सताबौ करो ए ॥ ८॥ अनेक थंभ लगाय शोभै पूतला रूप विविध प्रकार का ए ॥६॥ घग्यो धण्टानी सेण मरिम रत्ना तणो जालाां जोर विरामतौए॥ १० ॥ लख जोजन परिसा चाले उतावलो बैग सतावी करो ए॥ ११५ अधिको जल्लस बणाय म्हारी आगन्या पाठी बेगौ सोपवो ए ॥ १२ ॥ अभोगि ए देव सुण हर्षित हुवो प्रमाण कगै सर्व अगन्याए ॥ १३ ॥ देव शक्त तत्काल रूड़ी रौत सं कियो विमाण ज शोभतो ए ॥ १४ ॥ विमाग पाबड़िया तीन उत्तर
Page #39
--------------------------------------------------------------------------
________________
( ३३ ) बारणा पूरब उत्तर दक्षिण दिशा ए ॥ १५ ॥ बच रत्न में नौंव ऊंडी लूलसं रिष्ट रत्न मांहिं जड़ीए ॥ १६ ॥ बिंटली रत्न जड़ी सांध रूप सोवन तणां पावड़िया नां पाटिया ए .॥ १७ ॥ बच रत्न जड़ी सांध पावड़ियां तणो माहोमांहिं खिसे नहीं है ॥ १८ ॥ मोटो तोरण्य 'एक देव वेगशे पावड़िया में पागले ए ॥ १६ ॥ रूप विविध प्रकार तोरणा उपरै अचरिजकारी अति घणाए ॥ २० ॥ सुरज किरण सम तेज तोरण दोपतो देखता लोयण ठरै ए ॥ २१ ॥ आठ पाठ मंगलिक तोरण ऊपरे शोभमान ज्ञानी कह्या ए ॥ २२ ॥
२
-
on
॥दोहा॥ अभियोगी देवता, जाण बिमागरे मांय । पोष्या मंडप घर कह्या, अनेक थंभ लगाय ॥१॥ शोभे तोरण पूतला, विविध भारी रूप । पेष्या मंडप घर तणे, अति विस्तार अनूप ॥२॥ खसबोई छै अति घणी, बाजारो विस्तार। राग ,छतीस चालापता, मामै सुख अपार ॥३॥
Page #40
--------------------------------------------------------------------------
________________
॥ ढाल ३ जी॥ सुणज्योरे नर वारीया मतरा चोरे रमणी रस रंग चे तोरे येतो
प्राणिया ( एदेशी) पेष्या मंडप घर बांगयो रे । वैकारो देव अनूप। संवालो पंच बरसो रे । लता चित्राम लरूपरे ॥ पुन्छ तणा फल जो ज्यो । १॥ भोगि मागे मधि वैक्रव्यो र मोटो चौतरो एक। ध्यान पासा बज रत्न में। दौठाई हर्ष विशेष रे ॥ पु० ॥२॥ मरिश पीठका उपरे है। कियो सिंहासण एक ॥ विविध प्रकार का सूप मे पोतो देखवा जोग विशेष रे ॥ ५ ॥ ३ ॥ रक्त सोना में चाकलो। हठलो तणे रुपा में भाग॥ च्या माधा सोना तणा । मस्तक महि लाग रे । पु० ॥४॥ ईस उपला गातर रे जब सोना में मणि । बज रत्न सोना में जड़ी ॥ मणि रतनां नांवाहे बारह वे ॥ पु०॥ ५ ॥ रूप छै विविध प्रकार कारे । रचिया रूड़ी रौतको । पान पीठ मणि स्थान में। जाब विमाया शैत रे ।
पु०॥६॥ पाठ जोजन लांवो कह्यो । ही इतरो जाय रे ॥ च्यार जोजन ऊंचो को है। सर्व रतनां मांहि बखारा र पु० ॥ ७॥ समुद्या नवां शोभतारे । ढाक्यो सिंहासण एक ॥ राता वस्त्र सुं भौंटियोरे । सुवालो साखरप जेम ॥ पु० ॥ ८॥ लिए
Page #41
--------------------------------------------------------------------------
________________
( ३५ )
सिंहासा उपरेर । वेकुव्यो चंद्रवो एक ॥ विचे बस्त अति दीप तो । धोला रतनां मांहि विशेष र े ॥ ५० ॥ ८ ॥ रतन चंद्रवा बिचमें रे । बज चांकुड़ो जाय । ति में मोती वैकुब्यो । श्रोतो मोटा कुम्भ समान रे ॥ ॥ पु० ॥ १० ॥ च्योर मोती तिगरी माखती । पर्छ कुम्भ समान । लहिके मोत्यांरो भूमको । सोवन पनड्यां जाय र े || पु० ॥ ११ ॥ हार घठारै बोसरग रे । त्यां करो शोभे सार | चिहुं दिशि मोती बेगला । उठे शब्द तयो णि कार || पु० ॥ १२ ॥ सोत्यां रो शब्द सुहामयो । तन मन में सुख थाय । शव्द दशो दिशि प्रगटे । एहवी माल रही लहकाय दे ॥ पु० ॥ १३ ॥ सामानिक देवतां तारे भद्रासय च्यार हजार रे । ईशाण बायव कूप में । एतो शोभ रह्या श्रौकार से ॥० ॥ १४ ॥ च्यारज देवी मूलगी रे । त्यांरा सिंहासा च्चार ॥ पूर्व दिश से वैकुव्या । वे तो होठां हर्ष चमार के | पु० | १५ || भिंतर प्रषधा तथा । भद्रासब आठ हजार रे । सिंहासय रे पाखती । किया अग्नि कूपर सांयरे ॥ ० ॥ १६ ॥ दश हजार भद्रसा रे | मध्य प्रषधा राजाय रे ॥ दक्षिण दिशि में वेव्या । सेवक चतुर सुजाग रे ॥ ५० ॥ १७ ॥ निरत कूण में बारली तयार । भद्रासणा बारे हजार रे |
Page #42
--------------------------------------------------------------------------
________________
( ३६ )
पश्चिम दिश सात अगणका तागा । वेकुव्या साते हो श्रतम रिख रा देवता रे ।
सार रे ॥ पु० ॥ १८ ॥ भद्रासण सोले हजार र े । सिंहासण रे
चिहुँ दिशे ।
शोभायमान
पु
रचिया रूड़ चाकार रे ॥ ५० ॥ १६ ॥ दिसे घणोर् । रातै बर्ग विभाग | जगते सूरज जेहवा वलि इणसु' र अधिको जाण ॥ पु० ॥ २० ॥ वर्ण रस गंध फर्श नो रे । वर्ण को जिनराय । प्रधानिक बिमाण निपाय नें । कह्यो सूरियांभ में आयरे ॥ g० ॥ २१ ॥ सूरयाम सुग हर्यो घणो रे । वेठो सिंहासण चाय | बीजाई देवी देवता । तो बेठी ठिकाणे चाय रे ॥ ५० ॥ २२ ॥ वाजंत्र शब्द होता थकां रे । चागल पांछे थाट रे । पसवाड़ देवी देवतारे । एतो वह घणा गह घाट रे ॥ पु० ॥ २३ ॥ असंख्याता तिरका लोकना लंघ्या समुद्र मे होप | नंदीश्वर द्वीप श्रवियो र े । रुचक पर्वत समोर ॥ ० ॥ २४ ॥ देवनी ऋड्व संकोचतो र े । नम्ब दीप आयो धौर | अम्ब कम्पारे वागमें रे । जठे विचरे श्रौमहावीर रे ॥ पु ॥ २५ ॥ सूरियाभ ऋ सु परिवखोरे । अग्र महे नौ तौर । भाव भगत कोधो घणो । पछे बान्द्या महावीर रे || पु० ॥ २६ ॥
+
}
Page #43
--------------------------------------------------------------------------
________________
॥दोहा॥ बन्दणा करने इम कहै, हूं सुरियाभ देव । बान्दु छं हूँ पूज्य ने, भाव सहित कर सेव ॥१॥ बलता वीर इसड़ी कहै, ओकारज सुखकार ।। च्यारू नातना देव नो, ज नो छै आचार ॥ २ ॥ बचन सुण्यो श्रीवौरनो, सूरियोभ हर्षित थाय । बन्दना करी नौचासणे, सन्मुख बेठो आय ॥३॥ भगवन्त दौधौ देशना, आण मोटो मंडाण । काचा सुख संमार ना, साचा सुख निर्वाण ॥४॥ बाणी सुण ने परषधा, हिवड़े हर्षित थाय । सूरियाभ देव पूछा कर,ते सुण ज्यो चित लाय॥५॥
॥ढाल ४ थी॥ सूरियाभ में बोले बकर जोड़ी। विनो करी में मदन मचकोड़ी। कृपा करी कहो अन्तरजामौ । हूं भवसिद्ध के अभवो खामौ ॥ १ ॥ समकित के वा मिथ्या मत भारी । प्रत के वा अप्रत संसारौ। सुलभ टुलभ बोधी ज्ञानी । आराधक विराधक अज्ञानी ॥२॥ चर्म फेवा अचर्म खामी प्रभुजौ । बार बोलारी चरचा बूजी । बलता वौर कहै इम जावे। सांभल बाणी तू सूरियाभ ध्यावे ॥ ३ ॥ बारे ही बोल है तेरे माहौ।
Page #44
--------------------------------------------------------------------------
________________
बला है पिग्य अबला नाहौं । वोर बखाणज इसड़ो नांच्यो । यी देव तथा थर् नाचयो ॥ ४ ॥ लुल लुल सूरियास पाये लागो। भगवंत कन्हें चायो सांसो आगो। बन्दणा करी ने बोले बासा । प्रभुजी तीन काल - रा जाण ॥ ५ ॥ हुवो हुवेलो होसौ स्वामी। आप से - बात नहौं काई छानी। द्रवादिका जाणो ने देखो। मैं ऋद्ध लोगी पामे विशेषो ॥६॥ गोतमादिका श्रमण ने दिखाई। बतीस विध से नाटक पाडू। वौर सुणी सूरियाम नौ बाण । नो अखै नो पर जाण ॥७॥ हां कह्यां तो सावध लागे। ना कयां भोगी रा भोगज भागे । मुनीश्वर नौ छै एही वाणी । देव तणो ए छान्दो जाणौ ॥८॥ साध बचन सावद्य नहीं भारदै । पाप ठिकाणे चुपज राखे। साधारी तो एहिज बायो। जद सृरियाभ वात मन जाणो ॥६॥ सूरियाभ मन में सड़ी धारौ नाटक पाइयो ऋद्ध विस्तारी। लुल लुल सूरियाभ लागो माइ । आयो जिण दिश पालो जाई ॥ १०॥
॥दोहा॥ देव तगौ ऋद्ध देख नें, पूछ गोतम स्वाम। इतनी ऋद्ध विस्तार में, घाली कुण से ठास ॥ १ गाला सनर नीसगै, बारै कर फलाव ।
Page #45
--------------------------------------------------------------------------
________________
॥
( ३६ ) मेह नाणो पाछा धसै, व पेठी तिण न्याव ॥२॥ दूहां सूरियाम देव नो, झिहां सूरियाभ बिमाण । बोर कहै उर्दू लोकमें, सर्व रत्ना में जाण ॥३॥ सुधर्म देव लोकना, बतीस लाख विमाण । मध्य भाग शक्र इन्द्रनो, पांच विमाण बखाण ॥४॥ विचला सुधर्म बिमाण सु, पुरव दिश ने जाण। संख्याता जोजन गयां, त्यां सूरियाम बिमाण ॥५॥ लाख सवा छ, जोजन पोहलो जाण । गोल चन्द्रमा सारोषो, सोवन कोट बखाण ॥६॥ ऊंचो जोजन तौनस, धुरसो जोजन नाण । पचास जोजन मध्य विच, अपर पचीस बखाण ॥
॥ ढाल ५ मी ॥
देशी चौपाई नी। कोसौसा मणिय रत्न तणा । पंच वर्ण शोभे अति घणा । लाम्बा एक जोजन तणा । अई जोजन ज्यारा पोहल पणा ॥१॥ ऊंचा देश उणा जोजन कह्या । प्रतर रूप मान ए शोभ रह्या ॥ १॥ दरवाजा च्यार प्यार हजारी । त्यांरा थोड़ा सा कहं विस्तारौ ॥ २ ॥ पांच सो जोजन के ऊंच पगो। अढाई सो जोजन पहोल पयो। अढाई से जोजन प्रवेश पणा । घादिक तुम चित्राम घणा ॥३॥ सहस सूरज उद्योत घणो ।
Page #46
--------------------------------------------------------------------------
________________
(४० ) सूरियाभ बिमाण री पोल तणो। लग रह्या हार अर्द्ध हारी। देखा नैणा में सुख कारी ॥ ४ ॥ भोम तणे सोवन पसस्यो । पंच वर्गों मणियां मांहि जड़यो । देहली हंस गर्भ रतन तणौ। इन्द्रादिक गो मेज माहि भणी ॥ ५ ॥ हार ऊपर तौरसा अतरंगा । जोतक रत्ना में शोभे चंगा। पुतलियां जोहिताक तणौ । रूम रुड़ो दह दीपमान घणौ ॥ ६ ॥ वेड य रतन किंवोड़ जड्या रुड़ा। तिके छिद्र रहित दृढ़ पुरा । बनर रतन नांम सांध जड़ी तासा। बर में भोगल भोगल पासा ॥७॥ हार पासा दोन अंक रतन तणा । अनेक रत्न में घोष घणा। पोल में वेलू सोवन तणी। इसड़ी ऋद्ध रो सूरियाभ धणौ ॥ ८॥ द्वारा पासा दोनं प्रवेश धया । सोला सोलो कलशा चंदन भया । नाग दंतादिक घंटा देह तणो । तिण रो पिण छै विस्तार घणो ॥६॥ बिमाण में एक लण कहै पूरा । पांचसे जोजन छै टूरा। च्यार बाग चिहु दिश ने रूड़ा। साढी बारा जोजन तणा। कहै अधिकरो लांब पणो ॥ १०॥ पांच से जोजन उंचेरा कह्या । दोला दोला गढ बिंटी रह्या। शब्द उठे त्यां तिणारे तणो । त्यां बागांरी विस्तार घणो ॥११॥ बिमाग में एकलण कह्यो। लाख जोजन चोतराजे रह्यो । तिण ऊपर महिल सृरियाम
Page #47
--------------------------------------------------------------------------
________________
तणा। शिखर बंध शोभे अतिघणा ॥ १२ ॥ मध्य भाग एक प्रसाद भण्डो। पांच से जोजन रो अंच पयो । तिण पाखतौ च्यार प्रसाद कह्या । अढाइ से जोजन उई रह्या ॥ १३ ॥ तिण चिहुँ दिश सोलै प्रसाद तशो। सवा से जोजनच पळो । बले चोसठ प्रसाद कद्या देह । साढा बासठ जोजन ऊंचा जह ॥ १४॥ सर्व पच्चासौ तणो । ऊंचा सं आधी पहुल पणो । ओम अपर पंछट भोम कहौ । सूरियाम बिसाण में शोभ रहौ ॥ १५ ॥
॥ दोहा ॥ कुण हुँतो पुरन भव, बसतो कुपसे गाम । कुणा करणी इण वारी, कृपा करौ कहो खाम ॥१॥ बौर जियोश्वर इम कहै, सुण गोतम करी खंत । कही दिखालु तो कन्है, पुरव भव विरतंत ॥२॥
॥ ढाल ६ठी॥
. तिण काल ने तिण समेंरे। जंबूद्वीप मझार ॥ भरत क्षेत्रर स्वेतंबिकार ! नगरी हुंती ऋच दार रे ॥ गोतम सुण पूरख भव एह ॥ १ ॥ मृघबन नांवे बाग थोरे ईशाण कूणरे मांय । फल फूल कर शोभतोरे'
Page #48
--------------------------------------------------------------------------
________________
शीतल गहरी छांयरे ॥ गो० ॥ २ ॥ तिण नगरौ रो छो धोरे । राय प्रदेशौ नाम । अधरमौ अधिको धणोरे । रिझतो माठा कामरे । ॥ गो० ॥ ३ ॥ आकरा कर . लेती घणारे । करतो जीवांरी घात । पर मुखिये दुःखियो हुतोरे । रहता लोही खरड़या हाथरे ॥ गो० ॥ ४ ॥ धजा ज्यूं चाहवो इंतोरे । अधरमी अवनौत। पापे धन भेलो करै रे। दुष्ट नौ खोटो नौत रे ॥ गो० ॥ ५ ॥ बाणी खोटी बोलतोरे। थोड़े गुने घणी मार ॥ । कागा न राखै केहनौ रे । रुद्र ध्यान भयंकार रे ॥ गो० ॥६॥ हाथ पाव छेदन करै रे । कान आंख जीम : दांत ॥ मार कूट दे बहु विधेरे । पड़े देशां में धाकरे । गो० ॥ ७॥ थड़ हड़ काम्पे नेड़ा-थका. रे । अलगा पाप वचन ॥..औसं रो-तो कुछ चले रे । न माने-माइता-रा-बैग्णरे ॥ गो ॥८॥ पटरायौ तिसराय नौ रे। सूरिकन्ता नाम ॥ राजा सुराजी घमो रे । रूप- . वंत अभिराम रे ॥ गो० ॥६॥ तिण राणी रे । जनमियो रे । सुरिकन्त कुमार ॥ युवराज पदवी दोपतोरे।। रूप गुणे मुविचार रे ॥ गो० ॥ १० ॥ बडोभाई चित खारयो रे । प्रोतकारी प्रधान ॥ भार सुप्यो छै राज नो रे । राय बधार मान रे ॥ गो० ॥ ११॥ नाम चलावे राज नो रे । च्चार वद्धि निधान ॥ डंड ले.
Page #49
--------------------------------------------------------------------------
________________
(४३. ).. पिण संतोष ने रे । राज नीत सावधान रे ॥ गो० ॥ १२ ॥ पछवा रूप मेढी सुत छै । चक्ष भुत आधार। सगलाही दोधी अगन्यां रे। करै राज सुविचार रे। गो० ॥ १३ ॥ तिगाकाले में तिण समै रे । देश कुणाल ऋद्धवंत । नगरी सारथौ मोटको रे । कोटग बाग सोहंत र ॥गो॥१४॥ तिरह नगरी रो अधिपति रे । जित शनु सिरदार । प्रदेशौ के छै घणो रे मांहों मांही प्यार रे ॥ गो० ॥ १५ ॥ राय प्रदेशी एकदा रे । भारी भेटणो सभाय। चित स्वारथी में मेलियो रे । दियो जित शव ने जाय रे ॥ गो० ॥ १६ ॥ राज पंथ आवास में रे । चित में उतास्यो नाय । भारी लीला भोगवेरे नाटक में दिन जाय रे । गो० ॥ १७ ॥
॥दोहा॥ देश कुखालो दोपतो, साध घणा तिण माय । आरज क्षेत्र अति भलो, साधां रौ घणौ चाहय॥१३ . ज्यां ज्यां विचरे साधुजी, कर घणो उद्योत। धर्म दीपावे जिन तणो, टाले मिथ्या छोत ॥२॥ लेड्ससा जिनवर तणा, साध घणा तिमवार । च्चार ज्ञान तथा धनी, केशी नाम कुमार ॥३॥
Page #50
--------------------------------------------------------------------------
________________
॥ ढाल ७ मी॥
तिण काले में वि समैरे । पारस संतानिक साध कसो कुमर समगुण शोभताजी । संजम तपरी समाध। भलाई पधायाहो पास सन्तानियांजौ ॥ भव जौवारे आग। मर्ग वतावे हो मुनिवर मोखरो रे । उपजावे बैराग ॥ अला० ॥ २ ॥ विनयवन्त गुरु ना छै घणाजी लज्या में दयावन्त ।। ज्ञान दर्शा च्यार निरमलाजी। जशवन्त वचन महंत ॥ भ० ॥३॥ जौल्या कषाय इन्द्रा निन्द्राजी। जीता परिसाह जाग । जामण भरण तणो भय सेटने जौ। तप करी में प्रधान ॥ भ० ॥ ४ ॥ गुमा घया त्यां में छै सहो जो । कहिये आगम जोय । मोटा मुनीश्वर दो पख निरमलाजी। बलवन्त रूपवन्त होय ॥ भ० ॥ ५ क्षमावन्त लुनि सत्यवंत छै जी। जबदे पूरब धार ।। त्यागी वैरागी साग तेहनेजी। पांच से हो अनागार ॥ भ० ॥ ६ ॥ आय उतरिया कोटग वागमे जौ। टाली मिध्या जोड़ । सावधौ नगरी ना लोकां मके जौ। खबर हुई ठोड़ टोड़ ॥ भ० १॥ ७॥ लोक बान्दण ने जावे छ घणा जी । मज धर अधिक उल्लास ।। चितली सवग तेड़ी आप रो जी। पृछा कौधौ तास ।। भ० ॥८॥ लोक जावे के मोटा
Page #51
--------------------------------------------------------------------------
________________
. ( ४५ ) कुल तणा जौ । किणरी महोछब काज ॥ सेवक हाथ जोड़ी ने इम कहै रे । साध पधाख्या आज ॥ भ० ॥ ६ ॥ बचन मुणों में चित हर्षित हुवोजी । गुड़वेल बैठ बांदा जाय ।। बन्दणा कर बाणी सांभलो जी देशना दिधौ मुनिराय ।। भ०॥ १० ॥ लोकालोक नव तत्व तणाजी आख्या भिन्न २१ भेद । काचा सुख संसार नां रे। मतकरो कूड़ी खेद ॥ अ० ॥ ११॥ काम भोग दोनं कर्म छै रे । बिलसंतां विगड़न्त । सुख थोड़ा ने दुःख छै अति घणा जी। रोम कूड़ कर खन्त ॥ भ० ॥ १२ ॥ दोय धर्म उज्जल दिखाड़िया जी । आगार में अणगार । पांच महाबत चोखा साधना जी। श्रावक ना ब्रत वार ॥ भ० ॥ १३ ॥
॥दोहा॥ चित सुण में रिझ्यो घणो, सरध्या तुमना बैण । थे तारक भव जीवना, मिलिया साचा सेण ॥१॥ सेठ सन्यापति राजवी, धन्य ते हुवे अणगार । इसी सगत सो में नहीं द्यो श्रावक ना बत बार ॥२॥ श्रावक ना व्रत श्रादया, भाव सहित कर सेव । डिगायो डिगे नहौं, जो चलावे नर देव ॥३॥ . . पोसा पडिकमणा करे, देय सृपाले दान। स्वेतस्वीकारी विनती, करिवा सं छै ध्यान ॥४॥
Page #52
--------------------------------------------------------------------------
________________
॥ ढाल ८ मी॥
-
-
-
-
चौतले राजा नो भेटणो । आयो गुरां रे पास हो महामुनि । सेतम्बौका में हो पूज्य जी जांवतां । बन्दणा करु उलास हो महामुनि। पूज्य जी पधारों हो नगरौ हम तणौ ॥ १॥ होसौ घणो उपकार हो महा० घणा लोकां में हो मारग घालस्यो। थे देस्यो पार उतार हो महा० । पू० ॥ २॥ सैविया-नगरी हो स्वामौजी दीपती। छै वा देखवा जोग हो महा०॥ तिण में तो आयां नफो बहु निपजे। सुखिया वसे सहु लोग हो महा० ॥ पु० ॥३॥ प्रदेशो में सेल्यो भेटणी । ले चालं हूं खाम हो महा० ॥ एकवार दोयवार कोनी विनती। गुरु नहीं बोल्या ताम हो महा० ॥ पू० ॥ ४ ॥ तौजी वार करतां विनती। गुरु बोल्या हेत लगाय हो चतुर नर फलियो कलियोहो चिता बाग छै। पशु जाब के न जाय हो । चतुर नर । उत्तर दे मोने दूण बातरो ॥ ५॥ हां खामी चित कहै जावे सही । वले गुरु बोल्या आम हो चतुरनर । तिणही वाग में कोई पारधी वसे। तो जायके न जाय हो । ॥ चतुः । उ० ॥६॥ हां खामी चित कहै नावे नहीं। भय उपजे तिण मांयहो ॥ महा० । गुरु कहै वाग ज्यं
Page #53
--------------------------------------------------------------------------
________________
( ४७ ) नगरी सेविया। पारधी प्रदेशौ राय हो ॥ च० ॥ ७॥ अकर अन्योई पापो अति घणो । तिण बागमें कम रहवाय हो । चतु० मुलक घण्णोई रहांने विचरवा । मुखे सुख विहार कराय हो ॥ च० ॥ उ० ॥८॥ थारे सु प्रयोजन राय सु। वचन बदे चित एम हो महा० । लोग बसे सहु सेठ सैन्यापति। सेवा करसी धर प्रेम हो महा० । पू० ॥ ६ ॥ भाव सहित बहिरादसौ। अशणादिक च्चारूं आहार हो महा० । वस्त्र भान देशी अति घणा । करसी बन्दणा ने नमस्कार हो म. । पृ० ॥ १० ॥ बार बार कीनी बिनती । चित डाहो सुवनौत हो म । बलता मुनि कहै जाणीजसौ ज्यु साधारी रौत हो चतु० । उ० ॥ ११ ॥ सांभल बाणो चित हो घणो । रोमांचित हुइ सारौ देह हो म० । रौझ्यो ते नो विशेष वखाणिये। धर्म दलालो सुनेह हो महा० ॥ पू० ॥ १२ ॥
॥दोहा॥
बन्दणा कीधी भाव सु, गुरां सुबहु राग। लेड भेटणो चालियो, आयो मृगबन बोग ॥१॥ बन पालक ने इम कहै, जो आवे इहां साध। थानक देजे आगन्यां, उपजाजे समाध ॥२॥
Page #54
--------------------------------------------------------------------------
________________
(४८ ) भोली साध प्रधारियां, तुरत काहै मुझ आय। . हर्ष वधाइ दियां थकां, देसु दालिद्र गमाय ॥३॥ इम जीतावगा दे करी, आयो चितो राय । सिरपाव लेन गयो, धर्म करे चित लाय ॥४॥ पर उपगारी जाण में, आबा तिहां चलाय। पांच सो मुनि परिवार सु, निरलोभी ऋषगय ॥५॥ बागवान पुशी करी, थानक आगन्यो दोध ।। आई चितजी ने कह्यो, जाणे अमृत पौध ॥६॥ सुण आसण सु उतग्रो, बन्दगा बे कर जोड़। रथ वेसी आयो बागमें, नमः घणो धर कोड ॥७॥ बन्दणा कर बाणी सुणी, आगल बेठो प्राय । सतगुरु दोधी देशना, परषधा सुणे चितलाय ॥८॥ परषधा सुण हरषत हुई, जिण मारग छै धन । धरम दलाली चित करे, ते सुणज्यो एक मन ॥६॥
॥ ढाल ६ मी ॥ हाथ जोड़ी करू बिनती, सांभल ज्यो सुनिराय हो । स्वामी । ओ राय प्रदेशी पापियो। ओणो मारग ठाय हो.. खामी । म्हारा राजा ने धर्म सुगावज्यो॥ १॥ आका डंड लेवे वगा। ओ करे घगा अकाज हो स्वा० । ओ काण न राखै केहनौ। न आगौ किग
Page #55
--------------------------------------------------------------------------
________________
( ४१ ) रौं लाज हो खा० ॥ २ ॥ धर्म कथा कहो अगत सु। समझे प्रदेशी राय हो स्वा० । आकरा डण्ड लेने नहीं पाप कर्म टल जाय हो स्वामी ॥ म्हारा० ॥ ३ ॥ दो पद चौपद पशु पंखिया । दया उपने दिल माहे हो स्वामी । जीव हिंसा सुनिवृते। तो संवर निर्जरा थाय हो स्वा० ॥ ४ ॥ परदेशी समझवां थकां। समझे घया नर नार हो खा० ॥ आ हुवै बधोतर जिन धर्म नौ । दूण परदेश मभार हो खा० ।। म्हां ॥ ५ ॥ बार वार करू बिनती, 2 उपगारी परम् हो स्वा० । गुरू कहै च्यार बोल बिनां। न लहे केवलियो धर्म हो चिता हूं धर्म सुणावू किंण विधे ॥ ६ ॥ धर्म वणो
षो घरमो। किम कर अणुगय हो चिता ॥ च्यार बोल प्रगट कहुँ । सांभल ज्यांरो नाम हो चिता हूँ धर्मः ॥ ७॥ वाग में आयां साधु कने, रहोमो न जाय चलाय हो चिता. ओबन्दणा भाव करे नहौं । चरचो न करे काय हो. चिता ॥ ॥ ८॥ गांव माहिं आयां थकां । बन्दणां न करे काय हो , चिता। घर आवी पिण साध में । दान दियो नहीं जाय हो चिता ॥ हूं० ॥ ६॥ ऊंच नौच जाये नहौं। हाथं न ऊंचों
थाय हो चिवा । ओ सहामो पिण जोवे नहौं । मुखड़ो __ देवे ओ ढांक हो चिता ॥ हूं० ॥ १० ॥ च्यार बोल
Page #56
--------------------------------------------------------------------------
________________
( ५०० समला हवां । पांमें धर्म विशेष हो चिता। ही मांहेलो । बोल न पावे एक हो चिता ॥ ॥ घोड़ा देश कमोद ना । मैं सख्या है ताय हो स्वामी। किण हिक बिरियां राय में दौधो सरबजीताय ।
खामो० ॥ १२ ॥ दूण मिस कर थां कने पास - राय समझगा नौत हो स्वामी। थे धर्म कथा निशंक
सु कहज्यो आप निचिंत हो । स्वा० ॥ १३ ॥
१.
॥ दोहा ॥ .
4
सतगुरु कहे जाणीजसी, काले अवसर देख । इम सांभल चित स्वारथी, हर्षित हुवो विशेष ॥१॥" उठी ने बन्दणा करी, आयो नगरी मांय । किण बिध ल्याव राय नें, सांभल ज्योचित लाय ॥२॥
coomowome
Ama
॥ ढाल १० मी॥ . आय राजा ने इम कहै। सांभल ज्यो सहाराय जी। ॥ घोड़ा देश कमोदना । मैं ताजा किया चरायजी ॥ धर्म दलाली चित करे ॥ १॥ किण बिट त्यावे राय ने। सांभल ज्यों नर नारोजी॥ चि सरोषा उपगारिया । बिरला इण संसारोजी ॥ ध० 17|| भाप मोमें सूप्या हता। ते देख लेज्यो चौड़न
HOMohd.r
Page #57
--------------------------------------------------------------------------
________________
अवसर बरते एहवो । घोड़ा किसड़ाक दोड़े जो ध० / ॥ ३ ॥ राय प्रदेशी चिन्तवे । मान्यो बचन अनुपोजी राजा ने बहुलौ हुवे । घोड़ा हाथी नौ चूमोजी ॥ ध० ॥ ४ ॥ रथ रे घोड़ा जोतरा। चढियो प्रदेशौ रायो जौ ॥ चित बैठो खड़वा भणी । घणा जोजन ले जायो जौ ॥ ध० ॥ ५ ॥ आहमा रहामा दोड़िया। हुई छायां तणी उमेदोजी ॥ राय प्रदेशौ इम कहै । चिता पामु छु खदो जौ ॥ ३० ॥ ६ ॥ प्रदेशी कयां थकां । चित अवसर रो जाणोजी ॥ गैरौ छायां बागरौ । रथ उभो राख्यो आगोजी ॥ ध० ॥ ७ ॥ धर्म कथा केसी कहै। मोटे मोटे सादोजौ॥ रोय प्रदेशौ देख में। मन मान्यो विषवादोजी ॥ ध० ॥ ८॥ कुण बक्र जड मुढ ए। जड मुढ करै सेवाजी ॥ पंडित नहीं अजाणा छ काढणा लागो कवाजी ॥ ३० ॥६॥ धर्म करो दो घणो । मुख आगे छै घाटोजो ॥ सुएहने रोजगार छै। मोडो ऊंचो बैठो पाटोजी ॥ ३० ॥ १० ॥ अणख करी राजा घणौ । धर्म तणो नहीं रागोजी। इण मोडे म्हारो आय में । रोक्यो सगलो बागोनी ॥ ध० ॥ ११ ॥ हूं उठ बैठ सक नहौं । मन में इसड़ी आइजी ॥ जितनी हिरदा में अपनी। चित में सर्व सुणाईजी ॥ ३० ॥ १२॥ चिता कुण, जड मूढ ए ।
Page #58
--------------------------------------------------------------------------
________________
वाग सहु म्हारो रुधोजी इत्यादिक श्रवणे सुगों। चित उत्तर दे सुधीजी । ध० ॥ १३ ॥ खामौ ए नर भोटका। केसी नाम कुमारी जो विचरता आया वाग में । पांच सी मुनि भरवारी नौ । ध० ॥ १४॥ साध तथा. ब्रत पादस्यां। सूको ममता ने मायाजौ। श्रदा यांरी एहको। जूदा मान जौव कायाजी ॥ ध० ॥ १५ ॥ जीव काया जूदा जाण ने। तब बोला इम रायोजौ। चिता ए नर जाग छ। तो हूं आबु रे चलाया नौ ॥ ध० १६ ॥ खामी ए नर जोग छै । बचन कान मे घालेजो। राय प्रदेशी चित बेहु । केशी स्वाम पे चालजी ॥ ५० ॥ १७॥ दाजो ओय उभा रह्यो। ऊंचा न कर हाथोजी । आवो पधार म्हांने ना दियो । प्रश्न पूछ नर नाथाजी ॥ ध० ॥ १८॥ अही साक्ष थारौ अवधिका। जदा माना जीव कायोजी। बलता मुनि इसड़ी कहै। डाबरो हेत लगायोजौ ॥ ३० ॥ १६ ॥ भारी बस्त मुलाय में भयो न चाहवे डागोजी ॥ सवलो पन्थ सूझे नहौं । उजड़ पड़े अयामाजी ॥ ३० ॥ २० ॥ इण दृष्टांते राय तें। भांज्यो म्हारो डाणोजौ ॥ बन्दणा भाव करी नहीं। तं उभो ठोडा सा आगाजी । ध० ॥ २१ ॥ म्हाने बाग में देख नें । थारे मन मे दूसड़ी प्राइजी ।
Page #59
--------------------------------------------------------------------------
________________
( ५३ )
कुंग बक्र जड मुट ए । ते चित में सर्ब सुगाईजो ॥ वं० ॥ २२ ॥ तुमनें चित चरचा करौ । चाली इहां आयाजी | ए अर्थ समर्थ है । हां स्वामी सत्यबायाओ ॥ ध० ॥ २३ ॥ काचो बात थारी नहीं । पहिले प्रश्न राय राज्याजी | अचरज माग्यो अतिघणो । श्रो मारग सही सांचाजो | ध० ॥ २४ ॥ प्रदेशी राजा कहै । किस्याज्ञान घां पासोजी । मनरी बात म्हांरी
1
कहो । ओ उत्तर प्रकाशोजी ॥ ध० ॥ २५ ॥ गुरु कहै पांच ज्ञाना तथा । जूदो जूदो है न्यावाजी । च्यार ज्ञान है म्हां कने । तिय सु जाग्यो घांरो भावोजी ॥ ६० ॥ २६ ॥ राय कहै केशौ खामनें । तुम कहो तो बेसुनी | गुरु कहै जायगां तांहरी । बैसण रहे किम कहिस्यु जो ॥ ध० ॥ २७ ॥ आप बेठ बेहं नगा । प्रश्न पूछै धर प्रेमोनी । थोरौ २ श्रद्धा सर्व साधां तणो । श्रद्धा है कहो केमोजौ ॥ ध० ॥ २८ ॥ जौव काया मानो जूदा । एम तुम नहीं मानोजी ॥ केशी कहै सर्व साधां ती । श्रद्धा एक पिछागोजी ॥ ६० ॥ २६ # आ श्रद्धा खामी थांहरो । नौव काया कहो जूदोंजो ॥ प्रश्न पूछै साधां भणौ । दूग स्वेतं का रो मृदोजी ||
·
ध० ॥ ३० ॥
Page #60
--------------------------------------------------------------------------
________________
hase!
"
( ५४ )
॥ दोहा ॥
पूरै इग्यारा प्रश्न, गुरु प्रवे राजान | गुरु उत्तर दे कि बिध भलो, गुण सागर बुद्धवान |१| पूछे प्रश्न पहलड़ो, राय प्रदेशी एम ।
गुरु समस्तावे क्षिण विधे, ते सुगज्यो घर प्रेम |२|
॥ ढाल ११ मी ॥
·
अधरम अवनीत, चालतो म्हांरी रोल | दादो हम तणोए । पानी हुतो घणों ए ॥ १ ॥ तुम कहणौ मुनिराय, गया होसी नरकां मांय । हेत दादा तो ए । मा पर हु'तो घणो ए ॥ २ ॥ आय दादा कहै आप, पोता मत कर पाप । हूं नरकां पड़यो ए । पाप घणो कस्यो ए ॥ ३ ॥ इम दादा कहै चाय, तो मालु मुनिराय | नहीं तर मांहरो ए । मत भादया सो खरो ए ॥ ४ ॥ गुरु कहै चोज लगाय, सांभल प्रदेशी राय । राणी तांहरी ए । सूरिकन्ता खरौ ए ३५ ॥ पहिर त्रोट जल न्हाय, सह शिणगार वणाथ | सोहन महणा तणो ए जलूसाइ घणौ ए ॥ ६ ॥ कोई पुरुष अनेरा आय, काम भोग लिपटाय । निजर घारे पड़े ए । तो डंड कुण सो करे ए ॥ ७ ॥ छेटु हाथ ने पोव । शूली
Page #61
--------------------------------------------------------------------------
________________
( ५५ ) देवु चढाय । शिर काट धर्म ए। पूरजो पूरजो करु ए।॥८॥ ओ नर कूरे अरदास, मा जाउं न्यातिला पास। जाय ने कहु खरो ए मा ज्यूमती करोए ॥ ६ ॥ हूँ दुःख पाउ कुंआप, पर बिया ने पाप । तो तू जाणदे ए विश्थामा खाण दे ए ॥ १०॥ खामौ थारा कहग रौ बात, मो अपराधी साख्यात । खिमात्र सही ए । ढीलो सुकू नहीं ए॥११॥ इतरे गुन्हे राय, अलगा मेल्या न जाय। खिण एक जाण न दे ए। विश्रामा खाण न दे ए ॥१॥ थारे दादे केलव्या कूर, संच्या पापरा पूर । जाय नरकां पड़यो ए जजौरां जड़यो ए॥ १३ ॥ पत्य सागर रौ मार । बिण भुगत्यां निरधार । छुट को नहीं ए। इम जाणे सही ए ॥ १४ ॥ करे परमा धामी घात। ज्यांरी पन रे जात । मार घणो पड़े ए। ढौल नहीं करे ए॥ १५ ॥ जाण कहु जाय, पिण दादो न सके बाय । रुखघाला घणा ए। दुःख नरकां तणा ए ॥ १६ ॥ इण विध दश दृष्टन्ते गय । तू सरध जदा जीव काय ॥ फेर जाणे मती ए। भठन बोलारती ए॥ १७॥ ओ दिष्टान्तो दियो मुनिराय । पिण म्हारी न आयो दाय ॥ बुद्ध थारो घणो ए। जुगत मेलण तणी ए ॥ १८ ॥ पिण दादी म्हारी खाम । करतो धरम रो काम ॥ तप क्रिया घणी ए। नवतत्व विध तणौ ए
Page #62
--------------------------------------------------------------------------
________________
( ५६ )
+
१६ ॥ हूं दादौ ने अंत, हन्तो दृष्ट नें कंत । आपण गोडती ए । अलगो नहीं छोडतो ए ॥ २० ॥ संच्या पून्य ना घाट । नहीं कोई दुःख उचाट । तुम कहो सही ए । वा देवलोके गई ए ॥ २१ ॥ देवलोक थो आय । दादी कहै मोय वाय ॥ पोता धर्म करो ए । इसी कहै जो मोय । तर मांहरो ए । मंत गुरु कहै सांभल गये ।
ओ मारग खगे ए ॥ २२ ॥ शंका न करूं कोय ॥ नहीं झाल्यो सो खरे ए || २३ ||
कोई देव पूजा नें नाय । खान मंजस करौ ए । धूप
धारगो धरौ ए ॥ २४ ॥
सेथखाना में मांय । कोई
आवो मधारी ए । मोसुं बातां
भङ्गो कहै इम वाय ॥ करो ए ॥ २५ ॥ तो जाय के नहीं जाय । उत्तर दे
मुझ राय । किम जाय अशुच भयो ए । अछवाई घणौ ए ॥ २६ ॥ गुरु कहै सांभल एम । दादौ आवे फेम | दुर्गंध इहां तगौ ए । उंची नाय घणो ॥२१॥
1
पांच सें जोजन लग जाय । देव न सके आय | नेह लगे तवे ए। मुखां मगन हुवे ए ॥ २८ ॥ मुहूर्त नाटक सार । वर्ष जाथ दोय हजार | पूछे कि भणी ए । मोठ्यां खमै घणी ए ॥ २८ ॥ पल्य सागर नी स्थित
"
기
1
मेले देव्यां सुरौं चित्त । मोह रह्या सही एक आय स नही ए ॥ ३० ॥ इम जायो राजान | जूदा नीव काय
Page #63
--------------------------------------------------------------------------
________________
मान । राजा कहै बलि ए । बुद्द थारो निरमली ए। ____३१ ॥ ज्ञानी पुरुष को श्राप । जान तणे प्रताप ।
हेत भेलो सही ए । मोय हिरदे बेसे नहौं ए ॥ ३२ ॥
-
-
॥दोहा॥ नौजो प्रश्न गुरू प्रते, वलि पूछ राजान। .' एक दिवस्त्र सभा मके. हूँ बेठो करौ संडाय ॥१॥ सेठ सैन्यापति मंत्रवी, देखता सहु काय। . कोटवाल दूक चोरटो, आछौ सृप्या मोय ॥२॥ पारख्या करवा भणी, घाला कोरठी मांय । .. ऊपर ढाक्यो ढांकणो, छेक न सख्या काय ॥३॥ लोह कोठी लोह ढांकणो, सौसा सुं रे जड़ाय । रख वाला राख्या बलि, ओछ न रखी काय ॥४
उण कोठी रो ढांकणो, किणही उत्तायो नांय । , चोर मओ तिण काठिये, ठीक न पड़ी काय ॥५॥ , जीव वाहर थौ निसरे, कोठी पड़ तो छेक ।
जीव कायर मानत जूदा, श्रद्धत बात विशेष ॥६॥ छिद्र न पड़ियो कोठिये, किम मानु हूं. बात। जीव काया एकहीज छै, कूड़ नहीं तिल मात ॥
Page #64
--------------------------------------------------------------------------
________________
॥ढोल १२ मी ।
परदेशी राजा सुणो ॥ काइ कूण्ड आकार लोरे। नौंपी मांहिं बारथौ । अंडी घणो विशालो र । परदेशी राजा सुणो ॥ १ ॥ बायस पैसे न तेह में । भाडा बजर किंवाडो रे । काई मेरी ढोल डांका करे। पड़े शाला मझारो रे ॥ २॥ मांहि बजर किवाड़े छ। बले छिष्ट्र न राख्योरे । भैरी ढोल बजावियो।' बारे मुणे ने सुणायो रे ॥ ५० ॥ ३ ॥ राय कहै शब्द सु सही। तब बोल्या गुरु ए मारे । शाला रै छिद्र पर नहौं । शब्द निसरियो केमोरे। प० ॥ ४॥ रूपी शब्द शाला सं निसस्यो । न पड़यो छिद्र 'न बारो रे । ते जीव अरूपी निसयां। कोठी केम पडे बघारी रे॥ प्र० ॥ ५ ॥ शब्द शाला सुं निसयां। छिद्र न पड़िय रायो रे । दूण दृष्टान्त श्रव ले जूदा जीव ने कायो र .॥ ५० ॥ ६ ॥ हेत जुगत में ओपमा । बुद्ध सु मेलो। न्यायो रे । म्हारे तो दिल बैसे नहीं। किम सरध। तुम बायो रे । प० ७॥ चोथो प्रश्न पूछ बलि। म्हारे शंका पडी मन जाणो रे । एक दिवस सभा मझे। ह बेठोकरी मंडाणोरे ॥ प० ॥ ८॥ को वाल एक चोर टो चोरी करतो माल्यो रे । मे
Page #65
--------------------------------------------------------------------------
________________
पाणी सुपियो । मै मार काठी में घाल्यो रे ॥ प० ॥ ६॥ ऊपर दिनो ढांकणो। छिद्र छेका न राखी कायोरे। काल किता एक पछै जोड्यो । किड़ा दिठा तिण मांह्यो रे । प० ॥ १० ॥ मैं तो जतन किया अति घणा। रखवाला छा बैठार । छिद्र को पड़ियो नहीं। जीव कठिार पैठा रे ॥ ५० ॥ ११ ॥ जीव कोठी में पैसतां । कोठी न पड़यो बारो रे । तो उहांरी श्रद्धा छै खरौ। जीव काया नहौं न्यारी रे । प० ॥ १२॥ गुरु कहै धमिया लोह में दौठो छ । रायो रे । राय कहै दौठो अछ। तो सुदा तू चित लगायो रे । प० ॥ १३ ॥ अग्न सु लोह धमतां थकां। माल घणो जब उठी रे । अग्न लोह में धस गई। श्रा बात सांची के झूठी रे ॥ प० ॥ १४ ॥ राय कहै अग्न तो धस गई। निसरी पारथी पारो रे । गुरु कहै रोजा कोइ लोहरे कोइ पड़ियो छिट्र बघारो रे ॥१०॥१५॥ रोय कहै छिद्र पड़यो नहीं । तब गुरु बोल्यो एमोरे । लोहार छिद्र पड़यो नहीं। तो अग्न पैठी राय के मोर ॥ ५० ॥ १६ ॥ अग्न लोहा में पैसतां । न पड़यो छिद्र लवलेसो रे । तो साठी छिद्र किणा विध पड़े। नीव काया प्रवेशो रे ॥ ५० ॥ १७॥ प्रगट रूप तेल काया रो। तू जाणे लोह में पेठी रे ॥ काठी में जीव
Page #66
--------------------------------------------------------------------------
________________
40
( ६० )
उपना । तिगरी क्यु' नहीं बेठो रे ॥ प० ॥ १८ ॥ इ न्याय राजा तांह रे । रहगई भोलप मोटो रे । सरध जदा जौव काय नें । तू छोड दे सरंधा खोटी रे ॥ प० ॥ १८ ॥ कारण हेत जुगत करौ । न्याय मेलण बुड्ड सेठौर | मिग थांरौ श्रद्धा थां कने । हारे तो मल न बैठी रे ॥ प० ॥ २० ॥
॥ दोहा ॥
- प्रश्न पूछूं पांच सों, जौव काया एक जान | साची श्रद्धा मांहरी, कूडौ न करूँ ताण ॥१॥ कोई चतुर है मानवी, कला शिल्प विज्ञान | समरथ सगला काम में, बलवंत तरुण नवान ||२| तौर कबाण हाथे ग्रहौ, वल सु' गाठी खांच | अलगो न्हाखे जोर सु', बाण चलावे पाय ॥३॥ तिमहिज बालक बुद्धि बिना, जल सु' बाण चलाय । तो सांची श्रद्धा तांहरी, जदो नौव नें काय ॥४॥ थे जीव गियो सव सारसा, नगियो सह में देख । बालक सुनाय चले, तो जीव काया है एक ॥५
Page #67
--------------------------------------------------------------------------
________________
..
॥ ढाल १३ मी ॥
. गुरु कहै तरुण पुरुष में । तू समरथ जागा राजा न हो परदेशी। ताण को छै अति घणौ। पिण सुरण तू सूरत दे कान हो प्रदेशौ ॥ तू सरथ जू दा जीव काय ॥ १ ॥ धन खरची बंधो नहौं । सरक आल पांषन थोय हो प्र० । बोहिज तरूण पुरुष छ । बाण चलाय के न चलाय हो ॥ प्र० ॥ २ ॥ राय कहै बाण चाले नहौं । उपग्रण अंदूरी जाण हो मुनीश्वरं । इण्ड दृष्टान्त जाण ले । बालक नहीं चलावे बाण हो प्र० ॥ ३ ॥ वालक री ओछौ बुद्ध प्रगन्यां । बल प्राक्रम नहीं पर हो प्र० ॥४॥त तरुणा से काव साज सजोर न चाले काय हो प्र० ॥ तौर कबाण सैंठा घणा । पिण बालक बल नहौं काय हो ॥ प्र० ॥ ५ ॥ तो दोन पूरा समरथ हुवा। बलवंत में जुगत कबाण हो प्र० दोन्यां में एक पूरो नहौं ! तो चाले नहीं वाण हो ग्रं.' ॥ ६ ॥ दूण न्याय तू सरध ले। ज दा जीव में काय हो प० राय कहै दिल बैसे नहौं। थे तो मेलो अण हुता न्याय हो मुनीश्वर ॥ ७ ॥ छठो प्रश्न पूछे वलि । कोई वलवन्त पुरुष प्रधान हो मुनीश्वर। लोह तांबादिक धात नो । भार उठावा ? सावधान हो मुनीश्वर
Page #68
--------------------------------------------------------------------------
________________
॥ थारी श्रद्धा हो दिल बैसे नहीं ॥ ८॥ उतरोही भार बुढो ग्रहे। दुरबल देह निरधार हो मुनी० जाजरे शरीर लौलर पड़े। मांदी भूख ढषा अपार ही ॥ मु. ॥६॥ दांत पड़या डिग डिग करे । लाहादिक भार ले जाय ही मु० । तो साचौ श्रद्धा तांहरौ। तो जूदा जीव में काय ही मुनौ० ॥ १० ॥ जो बुढा सु भार चालै नहौं । तो किम मानु तुम बोय हो मु० साची मत छोडी मांहरो। कूड़ो मत कम भलाय ही मु० ॥ ११ ॥ गुरु कहै रोजा तू सांभलै काई कावड़ छै प्रधान हो प्र० बांस छाबडो हाय नवा। भार घाल्यो छै उनमान ही प्र० ॥ १२ ॥ वलवन्त पुरुष प्रधान छ। कावड़ ले जाय के न ले जाय हो प्र० । राय कहे ले जाय उठाय नें । तरुणा रे नहौं तमाय हो मु० ॥ १३ ॥ बलवंत पुरुष जवान छ। कावड़ बादौ घाव हो प्र. बाहिज तरुणो पुरुष छै। कावड़ ले जाय के न ले जोय हो प्र० ॥ १४ ॥ राजा कहै भार चालै नहौं । कावड़ जूनी पड़ी एम हो मु० गुरू कहै इशा न्याय देख ले । बुढो भार खांचे कम हो प्र० ॥ १५ ॥ वलवंत सु' भार खंचे नहौं । जनी पडी कावड़ निरवार हो प्र० - ज्यू बुढा सु भार चाले नहीं। तू अन्तर मांहि विचार हो ग्र० ॥ १६ ॥ इगा दृष्टान्त तू देख ले
Page #69
--------------------------------------------------------------------------
________________
( ६३ )
जोव काया नहीं एक हो प्र० संधी पंथ बताविया तू छोड दे कुड़ी टेक हो प्र० ॥ १७ ॥ राय कहै बुध थारो निरमली । थे तो मेल्या हेत अनेक हो मु० नॅ अचरज हवा | म्हारे तो हि दे बेसे नहीं एक
៖
सुग
हो सु० ॥ १८ ॥
॥ दोहा ॥
प्रश्न पूछे सातमा, गुरु प्रवे राजान |
गुरु उत्तर दे कि विधे, सुग ज्यो सूरत दे कान ॥ १ ॥ एक दिवस सभा मझे, हं बेठा करो मंडाण | कोटवाल इक चोरटो, मोनें सूप्यो आण ॥ २ ॥
1
॥ ढाल १४ मी ॥
जीवता चोर ने तोलियोजी । करौ मसोसी ने घात । पारख्या करवा जीवनौनी । मैं खैरु कियो तोलमान || मुनीश्वर किम सरधु तुम बात ॥ १ ॥ मारो ने वले तोलियोजौ । न घट्यो मूल लिगार | म्हारे तो वैसे नहीं जो । थे मेलो भेद अपार ॥ मु० ॥ २ ॥ दूण न्याय मत म्हांरो खरोजी । जीव काया है एक । साची श्रद्धा मांहरौ जौ । थे तो मेलो हेत अनेक मु० ॥ ३ ॥ चोर मुवे में नौवतो नौ । फेर पड़त तिलमात तो न्यारा कर जाणतो जो । मानतो थारौ बात ॥ मु०
1
Page #70
--------------------------------------------------------------------------
________________
( ६३ ) ॥४॥ गुरु कहे बाय भरी दिवड़ी जी। दोठी छै ते राय। राय कहै दौठी अछैनौ। तो सुण चित लगाय ॥ प्र०॥ ५ ॥ बाय भरौ तोलौ दिवड़ी नौ। तोलौ काठी ने . बाय । घटे के न घटे सही जौ। सुण उत्तर दे मुझ
राय ॥ प्र० ॥ ६ ॥ राय कहै बायु काय में जौ। भार नहीं मुनिराय । दूण न्याय तू जास ले जौ। जदा जीव ने काय ॥ प्र० ॥ ७॥ भसंख्या बाउ काय निसरौ जौ। दिवड़ी माहौं घटाय । एकण जीव निकल्यांजौ । राना काय कम घटाय ॥८॥ तिण कारण त सरध ले जौ। जीव काया छै दोय। छोड दे खांच की नहीं जी । तू अन्तर विचारी जोय ॥ प्र० ॥ ६ ॥ राय कहै थारी अकल सुनी । मेलो ए दृष्टान्त । म्हारे तो दिल वैसे नहीं जी। न मिटी मन री भात ॥ म. १०॥ प्रश्न पूछौं आठमों जो हंथांने निरधार । सांची श्रद्धा मांहरी जौ। तो देज्यो अर्थ विचार ॥ यु ॥ ११॥
॥दोहा॥ बांका प्रम्न आठमो, गुरु ने पूछ राय । मोटे मंडाणे करो, बेठो सभा वशाय ॥१॥ कोटवाल दूक चोरटो, आयौ संप्या मोय । पारखा करवा जोवरी, मैं टू कड़ा कौधा दोय ॥२॥
Page #71
--------------------------------------------------------------------------
________________
जद जीव नहीं देखियो, टू कड़ा कौधा च्यार ।,
आठ सोला संख्या किया, जीव काया नहौं न्यार ॥३॥ . नीव निकलतो देख लें, तो मानत मन साच । . तिण कारण महा मुनि, म्हारो मत छै साच ॥४६
॥ ढाल १५ मी ॥ . गुरु कहै राजा तू एहवा ए। कठियारा सूरख जेहवा ए। राय कहै वलि एम ए। कठियारा सूरख केम ए ॥ १॥ गुरु बोल्या चोज लगाय ए। सांभलप्रदेशी राय ए। कठियारा अटवी बाट में ए । भेला, हुवा चाल्या काठ ने ए॥२॥ आघा अटवी मांही जाय ए। मिसलत कोधी मन मांय ए । कठियारा एकण भगौ ए। दोनो भोलावण भोजन, तणौ.ए. ॥३॥ रहे काठ ले आवां इतर ए। तू भोजन त्यार करो जितरे ए । लकडी थोडी थोडी कर आपस्यां ए। थांरभारी कर थापस्यां ए ॥ ४ ॥ तूं रखे प्रमाद, में लाग ए। कदास बुझ जावेली आग ए। तो अरणी, मांही सं काढ,ए। देने काम सिराणे चाढए ॥ ५.५ इम सौखावा दोधौ घणो ए। आया चाल्यो अटवी भणी ए। लारे नोंद तणे बश थाय ए । अग्न खोरो गयो बुझाय -
Page #72
--------------------------------------------------------------------------
________________
ए॥ ६॥ उठौने बले पेखियो ए। अग्न खौरो बुझिया देखियो ए। किम निमजावु आहार ए। ल्याउं परणो मासु फाड़ ए ॥ ७ ॥ कमर वांधी फरसो माल ए। आयो अरणी पे चाल ए। घणो जो माया तो होय ए। अरणी टुकड़ा किया दोय ए॥८॥ जब निजर न पड़ी भाग ए। अरणी च्यार आठ किया भाग ए। लाए असंख्योता रो ढीग किया ए। तोही अन्न दि. खालो नहीं दिया ए॥६॥ रह्यो फावी फोटो होय । आ किसी विपद पग माय ए। हूं अधन अपून्य अभाग ए। हिवे काढ कियां भाग ए॥ १० ॥ मोनें संप्यो कुण जंजाल ए। फरसी दौनी हेठौ राल ए। योद 'आवे इम बातरा ए। मो ने कांसु कहसौ साथ रा ए ॥ ११॥ रह्यो आरत ध्यान में ध्याय ए । बले नौंचो माथी घाल ए। इतरा में कठियाग आविया ए। भारत रा लखम पाविया ए॥ १२ ॥ तूं भारत ध्यान किम करे ए। वले बिलखो होय बोले तरे ए। थे कारज गया भोलाय ए।मो सुगरज सरी नहीं काय ए॥ १३ ॥ निद्रा कोष्ट या अग्नि तणी ए। सहुवात कही साथ्यां भणी ए। अग्न न निकली लकडी माय ए । ति सुदुःख पड़ियो आय ए ॥१४ तिण कारण ह दिलगीर ए। भाई जाहां दुःख जाहां पौड
Page #73
--------------------------------------------------------------------------
________________
"
ए। मांहो मांही सहु इम भणे ए। आपां रह्या भरो से जढ लणे ए ॥ १५ ॥ इतरा में निपुण छै एक ए। चतुराई बंत विशेष ए। कला जाणे छै जे छतो ए। लकड़ी में लकड़ी घाल मथो ए॥ १६ ॥ अन संदूषो पाड़ ए। निपजाया च्या आहार ए। सनान संपाडो कर बहु ए। परि पक पड़ा ने सहु हुवा सस ए ॥ १७ ॥ भेला हुई भोजन करौ ए। चलु करी में- मुख सुछण धरी ए। जीमो में ताजा होय ए। तिण में कहै मूरख जोय ए॥ १८॥ ते क्रोध कियो घट मांय ए। ते में अकल दिसै न कांय ए । म पाडौ जे आग ए। संसार चतुर रो माग ए ॥ १६ ॥ काठियारो शूट अयाण ए। लकडी सु मांडी ताण ए। आग पड़े नहीं पारखो ए। राजा तू कठियारा सारखो ए ॥ २० ॥ राजा पूछे गुरु भणी ए। खामी परषधी मिली अति घणौ ए। थे चतुर अवसर रा जाण ए। मोने कठण कहो छो बागा ए ॥ २१ ॥ देखे परषधा लोग ए। था ने मृरख कहणो जोग ए। गुरु कहै राजा एतली ए। परषधा चाली केतली ए ॥ २२ ॥ जाणु खामी हूं सही ए। मरषधा च्यारे कही ए। न्यारा न्यारा नांव किसाए । राय कहै हुवे जिसा ए ॥ २३ ॥ क्षत्री गाथा पति ब्राह्मना तगी ए पिशवारी चोथौ भणी-ए। गुरु
Page #74
--------------------------------------------------------------------------
________________
14
कहै तू जाणे इसो ए। 'आसं अपराध्यांना डण्ड किसो ए ॥ २४ ॥ राजा रों खून करूं तर एन्हिान छेदी छेदी ने पूरजो २ कर ए । तांहरो अपराधी थाय ए। तन बाल तिण लगाय ए.॥ २५ ॥ ब्राह्मण रो अप राधौ घगो ए। लखण खान कागला-प गाल कूडाला ने आकार ए । सोरदागदे सांमें लिला ड़ाए ॥ २६ ॥ ऋषिश्वरां सूं रहामा बह ए । तिण ने डण्ड सूरख जड कहय ए ॥ २७ ॥ तें प्रश्न पछया बा कडा ए।-तिक क्रोध उघड टांकडा-ए। म्हार तोर मन माहए। तिल मात्र प्रावी (नांह ए ॥२८- तर बांको चरचा पूछौ घणी ए। तिण सूजड सूरख कह्योरे, तो भगो ए। बल तो बोले राय ए। खामी सांभलो म्हारी बाय ए ॥ २६ ॥ हूँ पहिलो प्रश्न' पूछिया ए। म्हारो किरतब थाने मुझिया ए। म्हारी कही मनोगमः।
बात ए। तबही समझो खामी नाथ ए ॥ ३० ॥ आडा. - टेडा आण ए। मैं तो प्रश्न प्रशा जाण ए। ज्ञान तो प्राप्त भणी ए। में तो बांको चरचा पुछो घणो ए ॥३शा ज्यू ज्यू पूछ बांकोतरे ए। ज्यू ज्य जिमा धर्म री,
खबर पड़े ए। जाणवा नौव अजीव ए। समकित . चारित्र नौ, नौंवाए । ३२ ॥ मैं मन में विचार इसी कियो ए । नागो में वांकी बरतियो ए। जाण पणा से
Page #75
--------------------------------------------------------------------------
________________
(
ܬ
६६
सुधरे काज ए । बलता बोल्या मुनिराज ए ॥ ३३ ॥ 'जागे है राय तूं एतला ए । बोपारौ चाल्या केतला ए ।
हां खामी नागु च्यार ए । त्यांरो न्यारो न्यारो विचार
t
• ए ॥ ३४ ॥ ए कदे पिग करड़ो बोल ए । दोरोसो गठिडी खोल ए । एक नरमाई कर घग्यो । मिया समरथ न देवा भगौ ए ॥ ३५ ॥ तौजा दे सन्मान बहु परे ए | व्याज दाम मुख आगे धरे ए । बले नरमाई करे घणी ए । बले भाव भगत बोरा तौ ए ॥ ३६ ॥ चौथो थारी खोटी नीत ए । पाछो देवगणरी नहीं गेत ए । बौरो आय मांगे तर ए । बोले गाल धका धूमी कर ए ॥ ३७ ॥ गुरु कहै च्चारां मांह ए । कुण विवहारियो कहाय ए । कुण न कहिये विवहारियो रे राजा कहै जिम धारियों ए ॥ ३८ ॥ राय कहै व्यापारी तीन ए । चोथो नहीं परबी ए । बलता गुरु बोल्या एतरे ए । तं पहिला व्योपारी नौ परे ए ॥ ३६ ॥ बांका 'प्रश्न वातां कहिए । पिण जाणु व्रत ले सौ सही ए । `यंत्र भगत से पारखो ए । तूं पहिला बोमारौ सारखा ए ॥ ४० ॥ गुरु मिलिया ज्ञान भंडार ए । त्यां दिना छे जाब विचार ए । खुसामदी नहीं काण ए । मुनि बोला है अमृत वाण ए ॥ ४१ ॥ प्रश्न कच्चा हेत जुगत
1
ए । ति सु बेगौ मिले मुगत ए । तं शंका मूल न
·
Page #76
--------------------------------------------------------------------------
________________
(७०) राख ए । सूत्र राय प्रसंगी में साख ए:॥ ४२ ॥
॥दोहा॥ . गुरु प्रते राजा कहै, थे चतुर अवसर रा जाण । आप उपदेश भला कह्या, निपुण गुगारी खांण ॥१॥ शरीर में सुजीव काढबा, थे समरथ छो अतीव । आंवला प्रमाण हाथसे, माने काढ दिखालो जीव ॥२॥
॥ ढाल १६ मी॥ . तिण काले में तिण समेंजी, राय प्रदेशी पास । वृक्ष तणा जे पानडाजी। वाय हलवि.तास ॥ मुनिश्वर उत्तर दे छै जी एम ॥ १ ॥ गुरु कहै राजा प्रतेजो, वृक्ष तणा जे पान। देव नाग वे किन्नराजी, जाव गंधव राजान ॥ मुनि० ॥ २॥ राय कहै नहीं देवताजी, गंधव नहौं ए हिलाय । वृक्ष तणा जे पानडाजी, हला वे वाजकाय ॥ मु० ॥ ३॥ गुरु कहै तू देख अजी। रूप सहित वाजकाय । कर्म वेद लेश्या तेहनें जी । माह शरीर कषाय ॥ स० ॥४॥ गय कह देखं नहीं जो । नब गुरु बोला एम । तं वायु रूप देखे नहीं रे तो जीव देखालुकम ॥ मु० ॥ ५ ॥ छमस्थ तो देख नहौं रे, दश स्थानक रा जान । देख तो श्री केवली
Page #77
--------------------------------------------------------------------------
________________
(०१ ) जी । तूं जीव काया जूदा मान ॥ मु० ॥ ६ ॥ सांभल राय हर्यो घणो जौ । ए रत्नारी खाण दशमा प्रश्न पूळू वलिजी, मोटा ज्ञानी गुरु जाण ॥ मु० ॥ ७ ॥ थे कही हाथी कंथवोजी, जीव बराबर हाय। गुरु कहै राजा तूं सांभले रे, जीव में फेर न कोय ॥ मु० ॥८॥ तो हाथी थी कंथवा रे, थोडा सा कर्म बंधाय । आकाया पा सर्व अल्प छै रे । बलि छोटौं तिगरी काय ॥ मु० ॥ ॥ सोस उसास तो कंथवार, इतना वा जिनराय आहार निहार ओछो तेहनेजी । जीव बरोबर कहाय ॥ मु० ॥ १० ॥ अोछौ ऋद्ध क्रांत कंथवारे हाथी री मोटी जाण गुरु कहै राजा इमज छै रे, तू' शंका मूल न आण प्रदेशौ तं सरध जदा जीव काय ॥ ११ ॥ आप कहो जीव सोरसा जी, ओछी अधिको क्रांत । गुरु कहै राजा तूं सांभले रे, दीवारो दृष्टान्त ॥ प्र० ॥१२॥ गंभौर मोटौ शाला हुवेरे । काई दीवो म्हेल्यो मांय । आडा जड़ किवाड़ ने रे, वले छेतीन राखे काय ॥ प्र० ॥ १३ ॥ मांहे दीवो उजालियो रे', 'शाला में करे उजास । बारे जोत न निसरै दे, इतरी हो कर प्रकाश । मु० ॥ १४ ॥ दीवा ऊपर डालो दियो रे, जोत दूतरौ हो दूर मझार । शाला में मांही बारणो जो, सगले हुवे अंधार प्र० ॥ १५ ॥ सुडो कुडो ने सिरावलो रे।
Page #78
--------------------------------------------------------------------------
________________
ranti
( ७२: १) . आधो पाथो जाण। चौथे भाग में सोलर, जावः बतौस चौष्ट प्रमाण. ॥ प्र॥ १६ ॥ तिग दीवारा कि णा सं दीवो ढांक काय । ता पिणा जोत मांही रहेगा । बारे उजास न होय ॥ ग्र० ॥ १७॥ चासठ बह तेह । मेजौ, बार उजास.न थाय । इण :दृष्टांत जीवड़ीजो राजा रहे है काया मांय ॥ प्र० ॥ १८॥ मोटौ कीया बांधी जीवड़े र तिहां करे घणो उद्योत कर्म धमा काया न्हानड़ी जौ, तिण सुंदब गई जोत॥ प्र ॥ १६ ॥ इण दृष्टांते सरधले जी जूदा जीव नें.. काय ।। एन्दा कर सरधिया पिण मत छोड्यो नहीं जाय । प्र० ॥ २०॥ . . .
॥ दोहाँ ॥ :: प्रश्न पूछ इग्यार मों, मुनि उत्तर दौनो जाब । . 5. लोह बाणियो कधी तव, आई धरम रौ आब ॥ . : राय प्रदेशी गुरु प्रते, बोले जोडी हाथ । । ।
“पहलो प्रश्न हं पूछियो, म्हारी कही मनोगत बातार.. - मैं जाणीनें पूछिया, आड़ा टेडा बैण। । • ज्ञान तणी प्राप्त भगो; थे मौलिया साचा सैण ॥३॥ . ' दादा पड़ दादा तणो, दर पौड्यां रो-राह ।। । विडा बुढा रो सेवियो, किम छूटःखामी नाह शि
m
Page #79
--------------------------------------------------------------------------
________________
( ७३ ) .. में खरो कर जागियो, थांगे धर्म के सार । । पिण मी सुं छुट नहीं, बडा बुढां रो भार ॥५॥ मत घणा दिन भालियो, छोडता यावे लाज। . जिम छ तिमहिज हरण यो, थे मोटा मुनिराज॥६॥ ,, बचन सुम्ही राजा तयो, तब गुरु बोल्या एम। .
राना तू पिछतावसी, लोह बाणिया जेम ॥७॥ .
खामी कुण्ड लोह. वाणिया, कहो हुवो के जेमः । ; कृपा कर मुग्णाय द्यो, हूं सुग्णस्युं धर. ग्रेम -
ढाल १७मी ॥ .. (देशो चोपाई नो)
:
गुरु बोल्या राय सांभल जेह, प्रश्न इग्यारमा गे उत्तर एह । कोद्रक बाणिया धनरी चाह, भेला हुई घटवौ सांही जाय ॥ १. ॥ जांत जातां घायो उद्यान, आगे भाई लोहरी खान। निरधन रे तो लोहरो ज धन, खान देखी सहु छरष्या मन ॥ २ ॥ जाण्यो दलिद्र गया न टूर, लोहरो भार उमाइयो पूर, सगला अत्यन्त हुवा खुसाल, विण पईसां ए मौलियो माल ॥३॥ मागा चाल्या धनरौ चाय, तस्वो देखो अायो दाय । न्हावद्यो सहु खोह रो भार, सगला तरवा बांधा भार
Page #80
--------------------------------------------------------------------------
________________
( ७४ ) ॥ ४ ॥ कह्यो मान लोह दौना राल, तरवो बांध लियो । तत्काल । इतरा मांही बाणिया एक, लोह ने सांगे किया विशेष ॥ ५ ॥ सगला साथी बोलना एम, तं लोह ड़ो छाउ नहीं कम । तरवा थी लोह आवे घसा, भार, छोड दे लोहड़ा तमो ॥ ६ ॥ तब पाठो बोलियो तिम वार, मैं दर थको उपाइयो आर । खप कोनी म्हारी आ जाय, तिच कारण छोड़ नहीं भाय ॥ ७॥ तिहां थौं चाल आधेरा गया, तब ते खान तांबा दो लया। लोह न्हाख तांबा दिया घात, उण सुरख रे वाहिन बाल ॥ ८॥ आगे आई रूपा सानारौ खान, महिम होरा रतन बखाण। मणि माणिक माती आविया, सगला रे मन भाविया ॥ ६॥ न्हाखदिया सह पिछलो भार, बजहीरा बांध्या सार। उसो देखे लोह बागियो। लोह भार रो माह आणियो ॥ १० ॥ सगला कदै छोड दे लोह, लोह थकी उतार दे माह । बज़ हीरा रोलोह आवे वह, आपां सारीसा हुस्यां सक्षु ॥ ११ ॥ लाह बाणियो बालो बाय, छेडा मेलो कर बलाय। मैं तो भार लौयो साही लीयो, थे छोड मेल में का सु कियो ॥ १२ ॥ तब सगला मन में जाणियो, ए सूरख् दिस लोह बाणियो। साथ्यां सौख दोधी है घणी, पिण मत न उपनी शूरख भणी ॥ १३ ॥ सगला पाच
Page #81
--------------------------------------------------------------------------
________________
( ७५ )
चायr faare, आय पोहता अपणे घर बार । भारी माल लाया बहु घरे, एक हीरा रा दमड़ा करे ॥ १४ है ति रा श्राव्या बहुला दाम, दाम घको सिके बहु काम संत भोम्या बणाया आवास, तरुणी नोर मिली त्यां पास ॥ १५ ॥ मादल बान रह्या धू कार, बतीस विध नाटक विस्तार | सेवक नोड़ खड़ा रहे हाथ, कोई न लोप हनी बात || १६ || बिलस रह्या मन गमता 2. भोग, पुन्य घको आय मिला संयोग । लोह वाणिये मन में पाम्यो साग, हड़ हड़ हांसे सगला लोग ॥ १७ ॥ लोह में बेच्यो गंठड़ी खोल, तिग रो मिलो अल्पसा मोल | थोड़ा दिन में दियो निठाय । क्यु हो नाही लारे गई खाय ॥ १८ ॥ घर में आई दलित भूख, भूख को देहो गई लूक । साध्यां तथौ मेहला - यत देख नाटक क्रिया सुख विशेष ॥ १८ ॥ ज्यू देखे ज्य' सोच करे, पछे गरज कहो. कुणसौ, सरे । अधन्य
a
अपुन्य अकृत पुन्य तो, तूटती अमावस रो जख्यो | २० || दूरपन्त लखण नौ वाय: लज्या दया रही, नहीं काय । को न कस्यो साध्यां सगो, पछे पिसावो थयो घणो ॥ २१ ॥ तेह तणी पर सांभल राय, रखे तोने पिकता वो थाय । पहिलो क्यु' तू कर्म बंधाय, म हुवेली धर्मगे चाय ॥ २२ ॥
Page #82
--------------------------------------------------------------------------
________________
3
f
4
}
3
·
दे
1
( ७६ )
॥ दोहा ॥
G
लोह बागिये जिम कियो, तिम' न करू खाम af सरिसा गुरु मेटिया, सरिया बंछित काम ॥ प्रदेशी प्रति बुझियो, सांभल ए दृष्टान्त ।
त जुगत करौ बारियो, मिलिया सौ संत स्वामी ये मोटा पुरुष, म्हांरा खोल्या अन्तर नै
कृपा कर सुणाय द्यो, तुम मुख हंदा बैरा ॥३॥
मुनिवर दोनो देशना, माटो परषवा मांय । राय प्रदेशी आद दे, सुणे सर्व चितलाय ॥४॥
॥ दाल १८ - मी ॥
( विण जारारी देशी )
चेतन चेतो रे मनुष्य तसो भव माय । प्रमाद में मड़ज्यो मतौ । चेतन चेतोरे ॥ १ ॥ चेतन चेतो रे जरा रोग हुवे श्राय, सैंठा रहज्यो शूरा सती ॥ चेतन • ॥ २ ॥ चेतन० बासो वसियो छाय, जीव बटाउ पाहुगो || चे० ॥ २ ॥ चेत. देहरी सूरछा मति, आय, कूड़ी मतकर चाकरौ ॥ चे० ॥ चे० 'छोडी जासी प्राण, ढेरी करसी राखरी ॥ चे० ॥ ४ ॥ चे० रोग न व्याप्यों पाय, पांचु इन्द्रोक सावतां ॥ चे० ॥ चे० ज्यां चेतन
Page #83
--------------------------------------------------------------------------
________________
(७७ ) घट माहे, राखो धर्मरी जाबता ॥ चे० ॥ ५ ॥ सत गुरू - नो ए सौख, ए अवसर मति चूकज्यो ॥ चे० ॥ चे.
पर निन्दा पर नार, तिरथ नेड़ा मत काज्यो ॥०॥ 1६ ॥ चे० पड़े सगा में सैन्य पड़े संच्यो धन हाथ रो । चे० । चे. बंधव त्रिया पृत, न पले धर्म जगनाथ रो ॥ चे० ॥ ७॥ चे कर ज्यो कछु करतूत, ओ मनुष्य तणो भव पाय में ॥ चे० ॥ चे० मत द्यो नरक ना सूत परनी चुगली खाय ने । चे० ॥ ८॥ चे० आथ न चाले साथ, नारी सम्पत से सही। चे। चे० सई पाछै रह जात छोड जासी निज देह सही । चे० ॥ ८ ॥ च. हाथी हौंडोला ने हाट, पोरा पारसौ सही। चे। चे तोने हुवेलो उचाट पाछै गरज सरे नहौं ।' ॥ १० ॥ चे जब लग खार्थ होय । तब लग सुख जीजी करे । च । चे० स्वार्थ पुगां सीय। मुखदौठा सं लड़ पड़े ॥ च ॥ ११ ॥ ए संसार सरूप । देखी में प्रति बुझज्यो। चे० । काम भोग महा कूप । तिण मांही मत मुरभज्यो । चे॥ १२ ॥ साध पणो ल्यो सार । काम भोग त्यागन करो। चे । श्रावक ना ब्रत बार । शिवरमणि वेगा बरो ॥ चे ॥ १३॥ अधिर
आजखो जाण । तन धन जोबन अथिर है। चे। । पालो जिनवर आण पिछतावो न पड़े पछै । चे॥
Page #84
--------------------------------------------------------------------------
________________
( ९८ ) १४ ॥ पायो बार अनन्त । आयु पल सोगर तणो। च. । कोई अन्य न मितियो संत । समकित रस जाण्यो. नहौं ॥ ० ॥ १५ ॥ हुवा काल अनन्त भव सागर सलियो घणे। चे. वे न मिल्या. साचा सन्त। धर्म रस पानी नहीं ॥ चे ० ॥ १६ ॥ इत्यादिक उपदेश ! जाव दृष्टान्त में जाणिया। चे। कसो स्वामी कहै रस। दया धर्म दिल आणज्यो ॥ च ॥ १० ॥
॥दोहा॥ सुगुरु तणी बाणी सुणी, धणोज रियो राय । हाथ जोडी में इस का है, मैं सरध्या तुमना बाय ॥१॥ परदेशी राजा हिवे. श्रावक ना ब्रत लौध। लागो रंग सजीठ जिम, जाणे अमृत पौध ॥२॥ उठण लागो तिण समें, बिगर खमायो जाय । आचारज रो हेत दे, इस बाल्या मुनिराय ॥३॥
॥ढाल १९मी ॥ नागणे छै राजा तूं वातरा ए। आचारज कितगै जात राए। राय कहे जागा वाम ए। आचारज तीन ज नाम ए ॥ १॥ कला शिल्य धर्म प्रायरिया ए। तीनां रा नाम मैं धारिया ए। गुरु कहै तू जा इसी ए ॥ आरो दिनो भगत करवौ किसी ए ॥ २ ॥ जाणु धर्म
Page #85
--------------------------------------------------------------------------
________________
( ७६ ) वेहु तणौ ए । कला शिल्प आयरिया भणी ए । अश_णादिक च्यारू आहार ए। जिमाउं पूजा सत्कार ए
॥ ३ ॥ सिनान मंजण नाहण करौ ए। पुष्पादिक माला गलधरौ ए। देव पुष्म पहराय ए। तिक धुर पौव्यां लग खाय ए॥ ४॥ एतो संसार रा गुरु कह्याए। राजा बार अनन्तो लया ए। हिवे धर्म याचारज तणो ए। सेवा भगत करौ घणी ए ॥ ५ ॥ राय कहै धर्म आचा रज तणो एं। सेवा अगत करवी घणी ए। बन्दणा सत्कार सन्सान ए। देणो चवदे प्रकार रो दान ए. ॥ ६ ॥ बचन बिना सुभाषणो ए । ज्यांरो कुरुब घणोंहो राखणा ए। आणे मारग सुल ए। स्वामी कुण के गुरु सम तुल्य ए ॥ ७॥ गुरु आप तिरे पर तार ए । खामो गरु विना घोर अंधार ए। ज्यां राखो गुरांची प्रतित ए। जिके गया जमारो जीत ए। गुरु दौवा खुरु देव ए । नित्य कीजै गुरांची सेव ए। इम बोलना सुनियाय ए । सांभल प्रदेशौ राय ए ॥ ६ ॥ एहवा चतुर विचक्षण जाण ए1, म्हांले बोले बांकी बाण ए। थारे कां सु आई दिल मांय ए । म्हारे बिगर खमाया आय ए॥ १० ॥. हिवे सांभल ज्यो मुनिराय ए। उहांने इसड़ी आई मन मांय ए। नगर च्यातिला में मा तणो.ए। खामी कुजश फैलो छै अति घणो ए ॥ ११ ॥ म्हारी
Page #86
--------------------------------------------------------------------------
________________
( ८० ) होतो खोटी नीत ए। रहती घणा ने अप्रतित ए। रह्यो मिथ्या मत राच ए। कुण माने पापो से साच ए॥ १२ ॥ म्हारो कुटम्बौ लोग लााय ए। पछै लाग सुथारे पाय ए। नर नारी जाने नेहयो ए। भो पनड नमायो एहवी ए॥ १३ ॥ तब बोलाा मुनिराय ए। राय ज्यू तोमे सुख थाय ए। हिवे नगरौ माही भाय ए।' कुटम्व मेलो कियो राय ए ॥ १४ ॥ व्याही न्याति लोग ए। घणाई मिलियो छै थोक ए। सूरिकन्तादिका राणियां ए। राजा रथ वैसाणी में आणीया ए॥ १५ ॥ अधिक्षा धर्म सु प्रेम ए। राजा चढियो कोणक जेम ए। गजहोदे मसवार ए। राजा चाला मध्य बाजार ए॥ १६ ॥ मृग बन मेडो याय ए। हेडो उतरियो राय ए। देखे सहु परवारए ।खमावे बारम्वार ए ॥ १७ ॥ लोक सहु सन जागियो ए। पापी में पड पाणियो ए। धन २ कोसौ खाम ए। प्रदेशी रा सान्या काम ए॥ १८॥ लोक सहु मन भावियो ए। खामी इसड़ा ने नमावियो ए । मोटा जिन मारग वहे ए। तो पाखंडी दविया रहें ए ॥ १६ ॥ त्रो धर्म के रानवियां तणेर ए बले सांचे मन करै तां तणाए। शूरवीर रो छ सही ए । इहां जात रो कारण नहीं ए। २० ॥ समझयो प्रदेशी राय ए। अायो घणा जगारी
Page #87
--------------------------------------------------------------------------
________________
१
( ८१ ) दाय ए । नरनारी नांछे आपगाए । ते राजी हुवे ते घणर ए ॥ २१॥ देखा देखो बान्धे वार्म ए। देखा देखी वाधे धर्म। ए इम सांभल में नर नार ए । करज्यो आतम नो उद्धार ए ॥ २२॥
॥ दोहा ॥ बायो मुझ में परषधा, हरण हुवी सन सांय । सगत सारू बतादरी, बोया जिया दिश जाब ॥१॥ उठण्ड लागो लिण सने, . गुरू कहे रहजे ठोका। पहली हुवे वमखिका तं, पछमत हुने अरमणोक ॥२॥ रममौका खामी किन हुवे, अरमनछोक हुवे कोम । बलता गुरु इसड़ौ काहै, राय सांभल हुवे जेम ॥३॥ - इक्ष खेत में बाग खुला, बले जटवारी शाल । ' । पहलौ तो समयीक हुने, पछै अरमलोक हुवे भूपाल ॥४॥
.। ढाल २० मी . इक्षु रहता है, ज्यांरा माका छे तारे । लामा रस. चालारे, त्यांरा बहै घणा लालाई । बह साल माबोला चे भौड़ लागी रहे है ॥ १.इच्छु रस पोलोजे रे, खाई ने दोजेरी । बोहला रस पोजे रे । देख देखने और रे वन लागे हो बसणीस इक्षुरा रहे त मुहारणा रे ॥ २ ॥
Page #88
--------------------------------------------------------------------------
________________
( ८२.) रस ले घर आया रे, ठिकाणे लगाया रे। सूका में खेतो रे, मांहौं उडे रेतो रे जद लागे हो इक्षुरा खेत अशोभता रे ॥३॥ हिवड़ा में बैठार, थारा प्रणाम सैंठोर । विहार कर नोवां रे, अनेरा गावांर । तोतं इचुरा खेत जिम राजिन्द मत हुवे रे ॥ ४ ॥ बाग गह रौ छायां रे, मांजर ए आयां रे । वह फल में फलिया रे, फल में भार ढलिया रे । तव लागे हो राजिन्द योग सुहावणा रे ॥ ५ ॥ कई आवे ने जावे रे, बहु चीजां खाने रे । पामे र तस साता रे, पान नौला में रातार। तब लागे हो रमणीक वाग सुहावणारे ॥६॥ फागुण बाय बाजेरे, पान मड़वाने लागे रे। निकल गया डाला रे, नहौं फल रसाला रे, तब काला शंखर लागे हो वाग अशोभता र ॥ ७ ॥ हिवड़ा में बेठार, धारा प्रणास सेंठारे । विहार कर जावां रे, अनेरा गांवार । तो तं फागुण रा वांग सम राजिन्द मत हजेरे ॥८॥ लाटा धान माहिजे रे, खाई ने ने दौरे । उपजे उदमादोरे, ढोग देवे अगाधोरे । तब जादा हो लाटा चल लागौ रहै रे ॥ ६ ॥ धुर में वले वोरा रे, मिलिया ठोड़ा ठोड़ा रे । हाकम लाटा
। उंबडा २ वजार रे बले विणजारा सोदागर सहगां भोमियां रे । १० ॥ चोधरी पटवारी रे, तुला
Page #89
--------------------------------------------------------------------------
________________
( ८३ ) । वट चारौ रे । काय घका नंगारे, कई लेता चुगारे . तब लागे हो लाटा राजिन्द सुहामगा रे ॥११॥ लाटा
ले चाल्यार, धान ठिकाणे घाल्यारे । भौड़ छौ ते सहु भागौर, रेत उडवा लागौ रे। तब लागे हो राजा लाटा अशोभता रे ॥१२॥ हिवडां तो झाझोर, थारो वर्ग ताजोरे ।। धर्म पायो रसौलो रे । रखे पड़ जाय ढोलोरे । ते तू मटक बैरागी हो राजिन्द मत हुजेरे ॥ १३ ॥ नटवारी शालारे, गावे गीत रसाला रे । बाजा · ताल बजावे रे, सहु देखण आवर। तब लागे हो नटवारौ शाला सुहावणोरे ॥ १४ ॥ जल सुमुख धोवे रे, हड़ताल लगावेरे । सांग नवां २ बाणेरे । नाच रूप रसाणे रे। जद लागे हो नटवारी शाल सुहावणी रे ॥ १५ ॥ दिहाड़ो गया उगौर, नाटक गयो पूगी रे । लोग लागा ठिकाणेरे, नर लागा काम खाणेरे । तब लागे हो नटवारी शाल अशोमतौर" '१६ ॥ भोजौक हुतार, कोई पड़िया ने सूतारे ।
मुख काज लटेरा रे, आंख्यां गोंड झंखरा । तब . . लागे हो नटवारी शाल अशोमती रे ॥ १७ ॥ रहजे तं
ठीका र, ताने दोनी छे सौखोरे । च्यार रमणीकारे धर्म पाल सदौकार । ज्यं तुने टौकार धावसी धर्म तणो रे ॥ २८॥ .
Page #90
--------------------------------------------------------------------------
________________
PATI
+
8
. ॥दोहा॥ अरमणीक स्वामी नहीं हुव, म्हारे धम । ५... सात हजार गांव खालसे, जाांरा करदेसु च्चार भाग एक माग राण्या, निमत, दजो भाग खजाना। तीजोभाग घोड़ा हाथियां, चौथा भाग ह्य दोन ॥२॥ आप कन्हे ब्रत आदस्या, चोखा पालसु खास । सामायक पासा करी, सार आतम काम ॥३॥ प्रदेशी इम बोलिया, धर वैराग्य अतीव । • बेले बेले पारणो, कराय दी जाव जीव ॥४॥
इम परतीत उपजाय मैं, मेव्या गुरु ना पाय ।। कार जोड़ी बन्दणा करी, पायो जिण दिश नाय ॥५॥ कैसी सरोषा गुरु मिल्या, चित सरोषा प्रधान । प्रदेशी पापी हुता, आगयी धर्म र ठाम ॥६॥
ढाल २१ मी ... प्रदेशी श्रावक ययो, नवतत्व मेरो जाण ॥ डिगायो डिगे महौं, जो देव चलावे आणरे ॥ बेसंगे मन बालीयो ॥ १ ॥ सासायक पाषा कर शीलब्रत रो नेम र । आछौ पाले आंखड़ी, देव गुरु धर्मप्र मरें
॥ वै० ॥२॥ दान दे चवदे प्रकार का. साधां ने निर्दी । घरे । हाड मौंजो धर्म सुरंगो, मन लागा शिव
Page #91
--------------------------------------------------------------------------
________________
( ८५ ) लाख र ॥ बै० ॥ ३ ॥ देव गुरु. धर्म परख में, सेंठो समकित धार रे । शंका कंखा मिट गई, कचिया प्रबचन सारर । बै० ॥ ४ ॥ तिणदिन नुब्रत आदस्या राज देश भण्डार रे बल बाहण राण्यां तयौ, न करे सार संभाल रे ॥ बै० ॥ ५ ॥ चाकर नझार परिवार सु उतरियो मन राग रे । पर अव की खरची भणी, वगत दिवस रयो लोग रे ॥ बै० ॥ ६ ॥ बेले बेले पारयोग, तपस्या कर अभङ्गरे । सोक्ष भगी उठ्यो सही, करता कर्मा सुजङ्गद ॥ वै० ॥ ७ ॥ करजे हूंता राजवी, सचिवो जिन धर्म रे । लाग्यो रसायण एहवी भाज गयो मन अल रे ॥ वै० ॥ ८॥
॥दोहा॥ जयां लग धर्म पायी नहीं, करतो माठा पाप । भासमा रेसन आवतो, पड़ती लोकां में छाम ॥१॥
सृरिकन्ता उपर, हुंता घणोज · प्यार । -तिण नामें सुत ना दिया, सूरिकन्त 'कुवार ॥२॥ कुगा बेटो कुण पतिरो, कुण नारी कुण भाय । खार्थ लग सहु को सगा, परमार्थ मुनिराय ॥३॥ राणी मन में जाणिया, दूना सुन सरे काज । सूरिकन्त कुमार ने, लेई बेसाणु राज ॥४॥
Page #92
--------------------------------------------------------------------------
________________
॥ ढाल २२ मी ॥
'
-
-
-
हिवे राणौ मन में जाणिया, ओता भ्रम गयो भूपाल रे । लाला । सार करे नहीं रानरी, माने लागी - कुण जंजाल रे लाला ॥ जोय जो स्वार्थ का संगार ॥ एतो मुतलब केरा यार रे .लाला जो मुतलब होतो नहीं, ती छटक दिखाड़े छह रे। लालाराजाय नमो ॥२॥ दूण राजा सुगरज सरे नहीं। नहीं चाले राजरो मार रे । लाला । किण ही जहरादिकरा जोग स. के न्हाई मार रे । लाला ॥ जो० ॥.३ ॥ एहवी करीत
ये विचारणा, श्रोता कवर बुलायो पासरे"। लाला ॥ जितरी हिरदा में उपनौ, जेती कह सुनाई बाँतर ।। लाला ॥ जो० ॥ ४ ॥ बेटा थारा बाप ने मार तू, किण हो'शस्त्रादिक रा जोगरे । लाला नाराज वैसा तो भणी, म्हारे मिट जयावे दुःख में सागर । लाला ॥ जो० ॥ ५ ॥ कुमर सुणो मन चिन्तवे, आता दुष्टणी , दिसे मातरे। म्हारो पिता पिण पापी हुता, रहता लोही खरड्या हाथ रे। लाला ॥ जो. ॥६॥ ना। कहुँ तो मो दुरी, हां कहु तो म्हारो बापरे । ओता. अणबीले उठी गया डर ने रयो चुप चापर । लाला । जो० ॥ ७ ॥ कंवर अवसर रो जाण-कै. दूग पाछा न
R
Page #93
--------------------------------------------------------------------------
________________
{ ८७ ) दिया जाबर । जद राणौ मन में जामीया, हाहा गई रहारी आबरे ॥ लाला ॥ जो० ॥ ८ ॥ मैं तो कयो छो हित भयो, इण रे न आई दायरे । कदास जाय कहसौ बाप नें, तो पड़े गला में आय रे ॥ लाला ॥ जो० ॥६॥ मन माहौं चिन्ता अति धयो, लाग रहौ उत्पातरे। लाला। कोई अबसर देखो अटकली, पहिला करघातर। लाला ॥ जो० ॥ १० ॥ छल छिद्र - जोती फिर, एकदिन अवसर जाण रे । थारे बेलारो
छै पारणो, सी म्हारे किजे आगरे। लाला ॥ जो० ॥ ११ ॥ बारबार करो बिनतो, तब राजा मानी बातरे । लाला । या भोजनरी त्यारी करे, करण कंथनी घातरे लाला ॥ जो० ॥ १२ ॥ मुख ऊपर मौठौं लवे, बोले वोहली ग्रौतरे लाल । आ अन्तर घात खेले घणी, आटुसमण केरी बात रे लाला ॥ जो० ॥ १३॥ कुर्ण माता पिता में कामणी, वले सजन सगाने माय रे । ए दुसमया कपड़ा डोलरा कर्म उदै हुवा थायर ॥ जो० ॥ १४ ॥ पहिलो सगपण पिउ तणो, दूसरो बारे ब्रत धारौ रे । तीजो तपसी वैरागिया, गणी करुणा न
आणी लिगारी रे ॥ जो० ॥ १५ ॥ श्रावक ब्रत लौधां __ पछ, तप तेरे बेला कौधर। एक कम चालीस दिन,
राजा जश रा नगारा दोध रे लाला ॥ जो० ॥ १६ ॥
Page #94
--------------------------------------------------------------------------
________________
FES
दियो आय रे ॥ जी० ॥ ११ ॥ राय प्रदेशो क्षम्या पा घणौ रे, रह्यो न रूड़े धर्म में ध्यान रे। इसडी तो क्षमा साधु कर रे, तो सही पामै केवल ज्ञान र ।। जो० ॥ १२ ॥ तेरमा बेला ना छो पारणो के, आलोई निन्दी निशल्य थाय रे। काल अवसर मरण लची करौ रे, मो सूरियाभ देव हुवा छै जायर । जो
इति प्रदेशी राजा की सिंध समाप्त
कर
Page #95
--------------------------------------------------------------------------
________________
___ श्री श्री १०८ श्री जीतमलजी स्वामी कृत
उपदेश की ढाल लिख्यते ।
॥दोहा॥ अरिहन्त देव अराधिये, निर्मल गुरू निग्रन्थ । धर्म जिन आज्ञा चितधरो, तत्व अमोलक तच्च ॥ २१ मुढ मिथ्यात मन मोहिया, थापे हिन्सा धर्म । घान्दे निर्गुण देव गुरु, ते मूल्या अज्ञानी मम ॥ २॥ कहै धर्म ने कारणे, प्राण हण्यां नहीं पाप। देव गुरु कारणे हण्या, आजा दे जिन श्राप ॥ ३॥ इस कही विरुद्ध प्ररूपता, नहीं आणे मन लाज । देवल प्रतिमा कारणे, करे अनेक अकाज ॥ ४॥ हिंसा धर्मी जोन ना, भाख्या फल अगवन्त । । ठाम ठाम सूत्र मध्ये , ते मुणजी करि खंत ॥ ५॥
• पृथ्वो हणि देवल प्रतिमा करावे, धर्म हते जीव झारे । त्यांने मन्द बुद्धि कह्या दशमें यंगे, वले पहले
Page #96
--------------------------------------------------------------------------
________________
ही आसव हारे रे । कुमत्यां थे हिंसाधम काइ याना ए आंकड़ो॥ समण माहण काई हिंसा अमे, केट्न । भेदन सोग । सूयगडांग अठारमें आख्यो, बाल्हारो पड़सौ विजोगरे । कु० ॥२२॥ आचाराङ्गर चौथे अध्ययन, दने उदेशे प्रमाण । धर्म हेत हण्या दोष नहीं. छ, चार अनारजरी बाणरे ॥ कु० ॥३॥ आचारागर चौथे । अध्ययन, दूजे उदेश जाणो । धर्म हेत काई जीव नहीं। हणना, ओ आरज वचन प्रमाणार ॥ कु० ॥१४ ॥ जीव जन्म मरण मुकाव्या, पामे अहेत अबोध । आचारजित पहले अध्ययन, पहले उदेश साधरे । कु० ॥५॥ पाचा गङ्गारे चौथे अध्ययन, पहलो उदेशो पिछाणा।धर्म हेत। जीव नहीं हणना, तीन काल ज़िन बाणारे । कुछ। ६ ॥ प्रश्न व्याकरणरे पांचमें अध्ययन, प्रतिमा परिग्रह में चाली । परिग्रह सेवी धर्म कहौने, कुमति हिये काई घालो रे ॥ कु० ॥७॥ तीन मनोरथ श्रावक ना चाल्या, ठाणांग तौजे ठाणे । प्रारम्भ परिग्रह छोडण रौ भावना ते सेव्यां धर्म किम जाखेरे ॥ कु० ८ दशबैकालिक धर्म अहिंसा, दया ज्ञान गे सारो। सूयगडा पहले अध्वयन, चौथे उदेशे मझारी रे ॥ कु० ॥८ अठाइसमें उतराध्ययन में, माच ना मारग अमेति । देवगुरु धर्म मालरा थापो, आहीन माटो मोलरो॥
CM
4T
Page #97
--------------------------------------------------------------------------
________________
( ६३ ' )
पालो ।
·
१० ॥ धर्म ठिकाणे जीव हो तो, दया किसी ठोड़ कुगुरां ना बहकाया आतमने, कांय लगावा कालो रे || कु० ॥ ११ ॥ उतराध्ययनरे बारमें अध्ययन, तोर्थ शौल बतायो । घ शत्रुंजादिक तौरथ थापो, आई पण झूठ चलायार े ॥ कु० ॥ १२ ॥ ज्ञान दरशण रा जतन करते, यात्रा कही सुखदायो । ज्ञाता सूत्र पांच में अध्ययने तो थाने तो खवर न कायो रे || कु० ॥ १३ ॥ इम ही महाबीर सोमल ने, यात्रा भगवती में भाखौ । शतक अठार में दशमें उदेशे, चारित्र जतन ते यात्रा दाखोरे || कु० ॥ १४ ॥ ठाम ठाम तीर्थ यात्रा अमोलक जिन को आगम माहिं । ते तीर्थ यात्रा •थांयूँ करनो `न द्यावे, तिण सू मांडी वोकलाईरे ॥ कु० ॥ १५ ॥ शतुंजय ने पर्वत को जिनेश्वर, पिण तौ न कह्यो लिगारो । अन्तगढ़ ज्ञाता सूत्र माहौं, देखो पाठ उघाड़ोर े ॥ कु० ॥ १६ ॥ तीर्थ कहे ति 'माथे पग देवो, तिण पर चढ़ो ज तो सुधा । वले मल मूत्र तिण ऊपर न्हाखी, त्यांरे लेखे ते पूरा अंधारे ॥ कु॰ ॥ १० ॥ मुख सू ं कहे मैं चूर्णी टोका मानां, वले माना आगम पेताली । तेपिय बोल्यां रो नहीं ठिकाणो त्यारे कर्म तणो रख कालौर ॥ कु० ॥ १८ ॥ महा
,
निशौष र अध्ययन पांच में, कमलप्रभा को साय ।
›
}
2
;
Page #98
--------------------------------------------------------------------------
________________
सावज पाप ना सर्व जिनालय, त्याने मुढ न माने काय रे । कु० ॥ १६ ॥ मिथ्यातपणे द्रोपदी प्रतिमा पूजी, एक थयां समयत पाई । गन्ध हस्त अचारज कह्यो के, ओघ नियुक्ति वृत्ति मांईरे ।कु० ॥ २०॥ अभवी संगमादिक प्रतिमा पूज, देहिज प्रतिमा सूमि पूज । ते जौत व्यवहार लौकिक रीत छे, बोध नियुक्ति वृत्ति न सूझे रे ॥ कु० ॥ २१ ॥ भगवन्त ने बंदतां तथा दीक्षा लेता, कयो पेचा हियाए मुहाए तायो । तथा परलोक हियाए सुहाए, राय प्रसिणि भगवती मायोरे ॥ ० ॥ २२ ॥ प्रतिमा पूल तथा लाय सूधन काढतां कहयो । पच्छा हियाए सुहाए। राय प्रसणी भगवती माहिं, तिहां पेचा पाठ कह्यो नाहीरे ॥ कु०॥ २३ ॥ प्रतिमा, पून लाय. सूधन काढे, तिहां पचा हियाए नहीं कांहौं । भगवन्त ने वान्दतां दीक्षा लेतां, किहांई पच्छा माठ छे नाही रे ॥ का० ॥ २४॥ पछा हियाए ते यासद मांहि लौकिक खाते मंगलोक । पेच्चा हियाए ते परभव मांहो, लोकोत्तर खाती तहतीक रे॥ कु० ॥ २५ ॥ भाई काहे जिन प्रतिमा पूज, ले तो निस्साए पाठ बाद जाणे। तो बंधक ने अधिकार लाय सूधन काढे, त्यां पिण्ड निस्साए पोठ पिछाणोरे ॥ कु० ॥ २६ ॥ पच्छा पाठ लारे निस्साए को छे, ते इण
Page #99
--------------------------------------------------------------------------
________________
भव माहे द्रव्य मोक्ष जोय। लाय थकी धन बार काढ्यां; दरिद्र ते मुकावा होयरे ॥ क० ॥ २७ ॥ राज वेसतां सूर्याभ प्रतिमा पूजी; त्या पिण पच्छा पाठ लारै निसरसाए। ते पिण दूा भव में; विच भेटण ने मोच सुहायर ॥ कु० ॥ २८ ॥ तुगौया नगरी ना श्रावका पिण, किया विघ्न सेटणा ने द्रव्य मंगलौक । सरसव द्रोव दही ने अक्षत, तिम सूभि कियो लोकोक रे ॥ कु० ॥ २६ ॥ भगवन्त ने बांदतां दीक्षा लेतां, पेचा परलोए लारे निसरसाए। तो लोकोत्तर खाते परलोक नी मोक्ष, यो जाणों कर्म थको सुकायर ॥ कु० ॥ ३० ॥ भसम ग्रह उतरिया पाछे, समण निग्रंथ नौ उदै २ पूजा थाय । ए प्रत्यक्ष पाठ कह्यो सूत्र में; ते पिच बिकलाने खबर न कायरे ॥ कु० ॥ ३१ ॥ सिंघमट्टो कियो जिन बल्लभ खरतरो; तिणतीर्थ यात्रा उडाई। जिन प्रतिमा थापे करि पेट भराई; भसम ग्रह प्रताप वताईरे ॥ कु० ॥ ३२ ॥ इत्यादिक प्रकरण टोका में; बोल कह्या छे अनेक । थे कहो प्रकण टोका म्हे मानां; पिण बोल नहीं माना एकर ॥ कु० ॥ ३३ ॥ जद कहे प्रकरण टौको नहीं मानो तो, प्रांरो नाम लेवा किन्याय । सूत्र ना उत्तर कह दूण ऊपरी, ते सुणजो चितलायरे कु० ॥ ३४ ॥ सुखदेव ने कह्यो थावरचा पुत्र, सामल
Page #100
--------------------------------------------------------------------------
________________
FEBTERBA
ने कह्यो महावीर । थारे बाह्मण सम्बन्धियाः । कह्यो छे, कुलथा मास मां भेद उदारर । कु ॥३५ : बाह्मण रा मत महावीर न माने, पिण त्यारे साख दिखाई । ज्यूं थाने प्रकरण -से-पिणः साख बताई भव जीव समझावण ताई ॥ कु० ॥३६ ॥ मुख से कह । प्रकरण सहु मानां, तो दूतरा. बोल न मानो कि लेखे। अभिन्तर आंख हिया से फटी, - आप भौख्या सामो नहीं देखरे ॥ कु० ॥ ३० ॥-- वले मुख से कहा जिन आज्ञा मानां, पिण आज्ञा रौ नहीं ठोक। आजा रो नाम लेोई झूठ बोल , मो प्रतक्ष पाषंडीकर । कुः । ॥ ३८ ॥ सूर्याभ ने वांदन रौ आना, पिण नाटकरी - आन्ना नहीं दीध। मन माहि नाटक ने नहौं, अनुमोद्यो, रायग्रसेणि प्रसिद्धरः ॥, कु० ॥ ३६ वर्धमान । जिन भागे नाटकरी, आज्ञा न दौधौ तहतौक। तो. प्रतिमा भागे माजा किम देशी, ओ,तो पिण मांधा ने नहौं छे ठौंकर ॥ कु० ॥ ४० ॥ आज्ञा अन्जिा कर रह्या ए सूर्ख, माज्ञा रा मुढ अजाण । भोला ने भरम । में पाड बिगोया, ते पिण डुबै कर कर ताणरः ॥ कु०७४ ॥४१॥ जिन आज्ञा, मांहि धर्म कहो, जिन आजा बारे नहौं अंश । ए समयक्त रा मुल मुढ आजाण, हण रह्या जीव निधंसर । कु० ॥ ४२ ॥ कही कही ने
Page #101
--------------------------------------------------------------------------
________________
कितरोएक कहूं, पाज्ञा दया एक जाणो । मिण आज्ञा रो निरणो करे न्याय वादी, तो पामें पद निरवाणोरे । कु० ॥ ४३ ॥ श्राजा बारे कहे धर्म पत्नानी, आजा मांही पाप मन भ्रान्त । द्रव्य लिङ्गो साधां रे भेष माहौं, ते मिण हिंसा धर्मी री पांतर ॥ कु० ॥ ४४ ॥ मुख तूं कहे म्हे दया धर्मों छां, चाले हिंसा धर्म रौ चाल । जीव खवायां में धर्म प्ररूपे, तो मोह मिथ्यात में लालरे ॥ कु० ॥ ४५ ॥ ब्रत सेवायां में धर्म प्ररूपे पाप सेव्यां कहे पुण्य । त्यां ने ही हिंसा धर्मों जाणो, त्यांरी श्रद्धा आचार नबनरे । कु० ॥ ४६॥ इम: सांभल उत्तम नर नारी, हिंसाधर्मों नो संग न कीजे। दया धर्मों जिन पाना में चाले, त्यांरो सिको शिर पर धर लौजेरे । कु० ॥ ४७॥ सम्वत अठारह से नब्वे वर्षे, द्वितीय भाद्रवा सुद पांचम बुधवारी । हिंसा धर्मी ओलखावण काजे, जोड़ कौधौ बालोतरे शहर मझारो रे ॥ १० ॥४८॥
Page #102
--------------------------------------------------------------------------
________________
- ढाल पाश्चन्द्र सूरि कृत
-
- दुलहो नर 'भव पामणों जीवने, टुलहो श्रावका कुल अवतारो। गुणवन्त गुलनों संग छै दोहिलो ते आमौने मत हारोरे ॥ प्राणी जीव दया व्रत पालो ॥ गुरु सम सांभल आगम बाणी। थे परमार्थ संभालोरे. प्राणी जीव दया वत पालो ॥ १ ॥ आखव प्रति पक्ष संवर बोल्यो, तेहनौ रहस्य बिचारो, आरम्भ प्रास्रव संजम सम्बर, इमजागी जीव म मारोरे ॥ प्राणी जी० ॥ २ ॥ जीव सहुने नौवगो वंछे, मरमो न वंछे कोई
आपणे दुख के जिम छै परने, हिये विमासौ जोईर ॥ प्राणी जी० ॥ ३ ॥ अंग उपाङ्ग शस्त्र धारा अणी सं, नख चख छेद मेदे कोई । जेहवी बेदनां मनुष्यने होवे तेहवी एकेन्द्रीने होईरे ॥ प्रागी,जी० ॥ ४ ॥ जोजरा पुरुषने बलवन्त तरुणो, देवे मुष्ठि ग्रहारो। जेटःख वेटे तेहवो एकट्रिने, लोधां हाथ मझारोरे । प्रागी जो० ॥ ५ ॥ समकित बिन गज भव सुसला रौ, दया चोखे चित पालौ। प्रति संसार कियो तिठामें, मेघडंसर हुयो दुखटालौरे ॥ प्राणी जी० ॥ ६ ॥ अभयदान दानां
Page #103
--------------------------------------------------------------------------
________________
{ ६* }
★
मांहि मोटो, वले दोन सुपात्रे दाख्यो । श्रागम सांभलने जिनमत नोवो, मूल दवाधर्म भाष्योरे ॥ प्राणी 'नी ० ० ॥ ७ ॥ लोह पिता ज्यो तिरे महोदधि, कदा पश्चिम ऊगे भागा । सहज चग्नि पण शीतल होने, तोही हिंसा में धर्म म जाखरे ॥ प्राणी जी० ॥ ॥ चग्नि सौंचीनें कमल वधारे, चौर धोवा ने कादो आये । ज्यं कुगुरु प्रसंगे मूरख मानव, जीव हो धर्म जागो ॥ प्राणी जी० ॥ १० ॥ आगम वेद पुराण कुदान में कह्यो दया धर्म सारो । वलि जिनजी वचन सांचा जाणो तो, छः काय नौवांनें सत मारोरे ॥ प्राणी जो० ॥ ११ ॥ अर्थ अनर्थ धर्म जांगीने, जीव हो मन्द बुद्धि | पिं धर्म काजे छः काय हवे त्यांरी, श्रवा घणी के संधीरे # 'ग्रासी जी० ॥ १२ ॥ सूईरे नाके सौंधड़ो पोवे, ते किम चघो पैसे । हिंसा सांही धर्म प्ररूपे, ते सालो साल न 'बेसेर ॥ प्राणी जी० ॥ १३ ॥ पिता बिना पुत्र उपलो, मा बिन देटो जायो । यों हिंसा में धर्म प्ररुये, यो रहने 'अचरज आयोरे | प्राणी जौ० ॥ - १४ पार्श्वचन्द्र सूरि भइ परे, आचां सहित करुणा पाले । ते तर दुर्गति ना दुखटाले ज्ञान कला उजवालेरे ॥ प्राणो नो
1
०
॥ १५ ॥
ATT
1
Page #104
--------------------------------------------------------------------------
________________
चरन कमल चित नित नमु, प्रणम् शिर नामौ । सावथौ नगरी पिता मात लक्षण अवगाहना । वर्ण त्राजखे कुंवर पदे, तपस्या प्रमाणा। चारित्र तप प्रभु गुणनिला है, छमस्थ केवल नाण । तीर्थ गणधर क्षेवली जिन शासण प्रमाण ॥१॥ देव लोक दशमें बीस सागर पुरगा थिती पाये । कुण्डलपुर नगरी चवी, श्रीजिनवर
आये। पिता सिद्धार्थ पुत्र, माता सलादे नंदा । ज्यांरौ कुचे अवतस्या, श्री वीर जिगन्दा । ज्यार चरणे लंछन सिंहनो हे, अबगाहना कर सात। तन कञ्चन कर शोमता, तें प्रणम् जगनाथ ॥२॥ बहोतर वर्ष नो भाउखो, पायो सुखकारी। चौस बर्ष लग कुवर पदे रह्या अभिग्रह धारी। सुमेर गिरि पर इन्द्र चौछ मिल मोझव कौधा । अनन्त वली अरिहन्त जागा, नाम प्रभु वीरज दीधर । ज्यांरी मात पिता शुद्ध गत लह्या हे, पछे लियो संयम भार। तपस्यो कौधौ निरमलौ, साडी दार वर्ष मझार ॥३॥ नव चौमामौ तपकियो एका कियो छमासौ। पांच दिन अगो अभिग्रहो, छमास चौमासौ। एक एक मासे तप कियो, प्रभु हादश विरियां । बोहतर पख छमास दोय विरिया कौधा तीन अढाइ दोय तीन हे डेड दोय मासौ दोय । भव सोभद्र महाभद्र तपकियो, इम सोला दिन होय ॥ ४ ॥
Page #105
--------------------------------------------------------------------------
________________
( १०३ ) __ भिक्षु नौ पडिमां अष्ट भक्ता नौ हादश कौनौ । दोयसे
ने गुण तोस छठ तप गिणती लौनी। इग्यारे वर्ष छ मास पचौस दिन तपस्या करा इग्यारे मास उगपिस दिवस हे पारणा अलेरा । इविध प्रभुजी तप कियो हे, पछै उपन्यो केवल नाणा। तीस वर्ष जणा विचरिया, ते पणामुं वईमान ॥.५ ॥ प्रथम अष्ट दूजो प्रष्ट दोय चंपा-भगिये। चतुर्दश नालंदे पाहड छः मथ ग भगिये । भद्दलपुरना सब मिल अड़तीसज गिणिये। एक आलम्बो एक सावथौ हे एक अनार्यज जाण । चर्म चौमासो पावापुरी, त्यां पहुंता निरबाग ॥ ६ ॥ ज्यारे मुनिवर चवदे सहस्व सहस छतौसे आजिंका। एक लक्ष गुणसठ सहंस श्रावक तीन लाख श्राविका। अधिक अठारा सहंस इग्यारे गण धरनी माला । गौतम खामी बड़ा शिष्य सती चन्दन बाला। ज्यारे केवल ज्ञानी सात सा हे प्रभु पहता निरबाण । शासण बरते खाम नो, इकवीस सहस वर्ष परमाय ॥ ७ ॥ पुरब तीन से जाय, तेरेसे अवधिज. ज्ञानी। मनपर्यव ज्ञानी पांच सात से केवल ज्ञानी। वैके लब्ध ना धार सात से मुनिवर कहिये। वादी चारसे जाण, के चरचा भिन्न २ लहिये । एका एक संजम लियो हे, प्रभु एका एक निरवाण। चोष्ट वर्ष लग
Page #106
--------------------------------------------------------------------------
________________
(. १०४ ) चालियो हे दर्शण केवल नाण ॥ ८॥ बारै नरवर एक वृषभ, वृषभ दश हयवर । दश हयवर एक मेष, मेष पांच से गज गयवर । पांच से गजहर एक सिंह, सिंह दोय सहंस अष्टापद । वीस लाख अष्टापद एक बासुदेव, दोय बासुदेव एक चक्र हद । कोड़ चक्रिया एक सुर गण्यो हे कोड़ सुरां एक इन्द। इन्द अनन्ता सेना नमः चिंटी भागुली अग्र जिणंद ॥ ६ ॥ आप तणाजी प्रभु गुण अनन्ता कोई पार न पावे। लब्ध प्रभाव कोड़ कायो कर शीश बनावे। श्री श्री कोड़ा कोड़ बदन गुण करे श्रावक ना कोड़ी कोड़ा सागर लगे हे, करज्ञान गुण सार। भाप तणा जी प्रभु गुण अनन्ता मोसे कहतां न आवे पार ॥ १० ॥ चवदे राज लोक बले बालनी कणिया। सर्व जीवनौ रोम राय, नहीं जाये गिणिया। एक एक बालुड़ी अनंत अनंत गुण करे अनंता । पूज्य प्रसाद वाहै लालचंद नहीं पावे अंता । सम्बत अठार बासठे हे मास मृगसिर अरी छन्द। . रामपुरे गुण गाविया । धन्य २ वौर जिणन्द ॥ ११ ॥
॥ढाल उपदेशिक ॥ - मति ताक ई नार बिरामी ॥ ए आंकड़ी ॥ परनारी हे काली नागण के विष वेल समाणी । तेज
SIMA
Page #107
--------------------------------------------------------------------------
________________
( १०५ )
गुणवन्त ने बालग्र छायो ॥ मति० हेरौ ए नर्क तगौ निसाणी ॥ मति० ॥ १ ॥ रावन राय त्रिखण्ड नो साहिब, सोता हरि घर आगी । राम चढ्या दाल बा - दल लेकर माग्यो हे सारंग माणौ । कथा आगम मांह भाणौ ॥ मति० ॥ २ ॥ पद्मोतर निज लाज गमाई, किचक नौंच कहाणी । मनोरथ मुओ मैगरह्या बश, अपजशनौ अहनायौ । जग मांहे प्रगट कहाणी ॥ मति• ॥ ३ ॥ गौ ब्राह्मण ने बाल हत्या, ऋष नार हत्या बले जाणौ । तेह थौ पाप अधिक पिण लागे, भाख्यो केवल नाणो । अनन्त दुःखारौ खाणौ ॥ मति० ॥ ४ ॥ रत्न यत्न कर शौयल आराधो, छोडौ ने कुमति प्राणौ । मुक्त महेल नौं सहल अचल सुख, मुक्त रमण निसरायौ । कहु वौर जिणंद बाणी ॥ मति० ॥ ५ ॥ साल छिया सिय महा मन्दिर में, शौल कथा सुबखायो । शौल विनां सह जन्म अख्यारथ, क्या राजा क्या राणौ । भौल जश उत्तम प्राणो ॥ मति० ॥ ६ ॥
1
7
१४
Page #108
--------------------------------------------------------------------------
________________
अथ पच्चीस बोल
१ पहिले बोले गति च्यार ४
नर्कगति १ तिर्यंचगति २ मनुष्यगति ३ देव
गति ४ २ दूजे बोले जातिपांच ५
एकेन्द्री १ बेइन्द्री २ तेइन्द्री ३ चोइन्द्री ४
पंचेन्द्री ५
3 तीजे बोले काया छ्व
पृथ्वीकाय १ अप्पकाय २ तेउकाय ३ बाउ
काय ४ बनस्पतिकाय ५ चमकाय ६ ४ चौथे बोले इन्द्री पांच ५ .
श्रोतइन्द्रौ १ चक्षु इन्द्रौ २ घ्राणइन्द्री ३ रम
इन्द्रौ ४ स्पर्शइन्द्री ५ ५ पांचमें वोले पर्याय छव ६
आहारपर्याय १ शरीरपर्याय २ इन्द्रीय पर्याय शामोवामपर्याय ४ भाषापर्याय ५ मनपर्याय
Page #109
--------------------------------------------------------------------------
________________
। १०७ ) -६छ बोले प्राण १०
श्रोतेंद्री बलप्राण १ चक्षुइन्द्रोबलप्रोण २ घ्राणा इन्द्री बलप्रागा ३ रसेन्द्रौबलप्राण ४ स्पर्शइन्द्री बलप्राग ५ मनबलप्राग ६ बचनबलप्रागा ७ काया बलप्रागा ८ शासोश्वास बलप्राण ६ आऊखोबल
प्राण १० ७ सातमें बोले शरीर पांच ५
औदारिक शरीर १ बैक्रियशरीर २ आहारिक
शरीर ३ तेजसशरीर ४ कार्मणशरीर ५ ८ आठवें बोले जोग पंदराह १५ ४ च्यारमनका
सत्यमनजोग १ असत्यमनजोग २ मिश्रमन जोग ३ व्यवहारमनजोग ४ ४ च्यारबचनका
सत्यभाषा १ असत्यभाषा २ मिश्रभाषा ३ व्यवहार भाषा ४ ७ सातकायाका
औदारिक १ प्रौदोरिक मिश्र २ बैक्रिय ३ बैक्रिय मिश्च ४ आहारिक ५ आहारिक मिश्र ६ काम नोग
Page #110
--------------------------------------------------------------------------
________________
९ नवमें बोले उपयोग बारह १२ । ५ पांच ज्ञान
मतिज्ञान १ श्रुतिज्ञान २ अवधिज्ञान ३ मनप
यवज्ञान ४ केवलज्ञान ५ ३ तीन अज्ञान
मतिअज्ञान १ श्रुतिअज्ञान २ बिभद्गअज्ञान ३ ४ च्चार दर्शन चक्षुदर्शण १ अचक्षुदर्शन २ अवधिदर्शण :
केवल दर्शण ४ १० दशमें बोले कर्म आठ ८
ज्ञानवर्णी कर्म १ दर्शगावर्णी कर्म २ बेदनी कर्म ३ मोहणी कर्म ४ आयुष्य कर्म ५ नामकर्म
६ गोचकर्म ७ अंतरायकर्म ८ ११ इग्यारामें बोले गुणस्थान चौदाह १४
१ पहिलो मिथ्याती गुणस्थान ।। २ टूजो सादृत्वादान समदृष्टि गुणस्थान । ३ तौजी मिश्र गुण स्थान। ४ चौथो अब्रती समदृष्टि गुणस्थान । ५ पांचमो देशबिरती श्रावक गुणस्थान ।
c
c
Page #111
--------------------------------------------------------------------------
________________
( १०६ ) ६ छट्ठो प्रमादौ साधु गुणस्थान । । ७ सातवों अप्रमादौ साधु गुणस्थान । ८ आठवों नियट बादर गुणस्थान । ६ नवमो अनियट बादर गुणस्थान । १० दशमो सुक्षम संप्राय गुणस्थान । ११ दूग्यारहमं उपशांति मोह गुगास्थान । १२ बोर क्षीण मोहनौ गुणस्थान । १३ तेरभु संयोगी केवलौ गुणस्थान । १४ चौदसं अयोगी केवलौ गुणस्थान । १२बारमें बोले पांच इन्द्रियांकी तेबीस विषय
श्रोतइन्द्रौको तीन विषय जीव शब्द १ अजीव शब्द २ मिश्र शब्द ३ चक्षु इन्द्रीको पांच विषय कालो १ पौलो २ धोलो ३ रातो ४ नौलो ५ घ्राण इन्द्रौको दोय विषय सुगन्ध १ दुर्गध २ रस इन्द्रीकी पांच विषय खट्टो १ मौठो २ कड़वो ३ कसायलो ४ तीखो ५ स्पर्श इन्द्रौको आठ विषय हलको १ भारी २ खरदरो ३ सुहालो ४ ल खो । ५ चोपड़यो ६ ठण्डो ७ उन्हो ८
Page #112
--------------------------------------------------------------------------
________________
१३ तेरमें बोले दश प्रकारका मिथ्याती
१ जौवनें अजीव श्रद्धह ते मिथ्याती २ अजीवनें जीव श्रवह ते मिथ्याती ३ धर्म, अधर्म श्रवह ते मिथ्याती ४ अधर्म धर्म श्रद्धह ते मिथ्याती ५ साधुनें असाधु श्रद्धह ते मिथ्याती. ६ असाधु साधु श्रद्दह ते मिथ्याती ७ मार्ग, कुमार्ग अवह ते मिथ्याती
८ कुमार्गर्ने मार्ग श्रद्धह ते मिथ्याती . मोक्षगयांने अमोक्षगया श्रद्धह ते मिथ्याती
१० अमोक्षगयांने मोक्षगया श्रद्धह ते मिथ्याती १४ चौदमें बोले नवतत्वको जाण पणों तींका ११५ एकसो पंन्द्रराह बोल १४ चौदाह जौवका
सुक्ष्म एकेन्द्रौका देय भेदः१ पहिलो अपर्याप्तो २ दूसरो पर्याप्तो बादर एकेन्द्रौकादाय भेदः३ तीजो अपर्याप्तो ४ चौथो पर्याप्तो बेन्द्रीका दीय भेदः५ पांचमं अपर्याप्तो ६ छट्टो पर्याप्तो
Page #113
--------------------------------------------------------------------------
________________
तेइन्द्रीका दोय भेदः७ सातमू अपर्याप्तो ८ आठम पर्याप्ता घोइन्द्रीका दीय भेद:८ नवम अपर्याप्तो १० दशम पर्याप्तो असन्नी पंचेन्द्रीका दोय भेदः११ ग्यारमं अपर्याप्तो १२ बारमं पर्याप्तो सन्नी पंचेन्द्रीका दाय भेदः१३ तेरमं अपर्याप्तो १४ चौदम पर्याप्ती १४ चौदे अजीवका भेदः-- धर्मास्ति कायका ३ तीन भेदःखंध, देश, प्रदेश, अधर्मास्ति कायका ३ तीन भेदःखंध, देश, प्रदेश, आकाशास्ति कायका ३ तीन भेदःवंध, देश, प्रदेश, कालको दशम भेद (ए दश भेद अरूपौ छै) पुद्गलास्ति कायका ४ च्यार भेदः
बंध, देश, प्रदेश, परमाणु ६ पुन्य नव प्रकारे
अन्नपुन्य १ पाणपुन्य २ लैगपुन्य छ ३ सयणा** लैण-जागां ज़मीनादिक। . .
Page #114
--------------------------------------------------------------------------
________________
( ११२ ) पुन्य ॐ ४ बल्यपुन्य ५ मनपुन्च ६ बचनपुन्य ७ कायापुन्य ८ नमस्कारपुन्य ६ पाप अठारे प्रकारे:प्राणोतिपात १ मृषावाद २ अदत्तादान ३ मैथन ४ परिग्रह ५ क्रोध ६ मान ७ माया ८ लोभ ६ राग १० द्वेष ११ कलह १२ अभ्याख्यान १३ पैशुन्य ® १४ परपरिवाद १५ रतिभरति १६ मायामृषा १७ मिथ्यादर्शन शल्य १८ बोस आस्रवकाः-- मिथ्यात्व आस्रव १ अब्रत आस्रव २ प्रमाद आस्रव ३ कषाय पासव ४ जोग पासव ५ प्राणातिपात जीवको हिंसा करैते आस्रव ६ मृषावाद झूठ बोलते आस्रव ७ अदत्तादान चोरी करते आमव ८ मैथुन सर्वते आसव परिग्रह राखै ते आसव १० श्रुत इन्द्री मोकली मेले ते भासव ११ चक्षुइन्द्री मोकली मेले ते पासव १२ घ्राण इन्द्री मोकलौ मेलेते प्रास्रव १३ रस इन्द्री मोकली मेलेते आस्रव १४ स्पर्शइन्द्री मोकलौ मेलेते प्रास्त्रव १५ मनप्रववि ते * सयन-पाट बाजोटा दिक। * वाद-बोलना । * पैशुन्य चुगली।
Page #115
--------------------------------------------------------------------------
________________
( ११३ ) वासव १६ बचनप्रवविते वास्रव १० कायाप्रबर्ताव ते आस्रव १८ भण्डोपगरणमेलता अजयणा करै ते आस्रव १६ सुई कुसाग्रमाव सेवे ते आस्रव २० बोस संबरका:सम्यक् ते संबर १ ब्रत ते संबर २ अप्रमाद ते संबर ३ अकषाय संबर ४ अजोग संबर ५ प्राणातिपात न करे ते संबर ६ मृषाबाद न बोले ते संबर ७ चोरी न करे ते संबर ८ मैथ न न सेवते संबर परिग्रह न राख ते संबर १० श्रुत इन्द्री बश करे ते संबर ११ चक्षुइंद्री वश करे ते संबर १२ प्राणइन्द्री बश करे ते संघर १३ रसदन्द्री बश करे ते संबर १४ स्पर्श'ट्री बशकरे ते संबर १५ मन बशकरे ते संबर १६ बचन बश को ते संबर १७ काया बश करे ते संबर १८ भण्डउपगरणमेलतां अजयणानकरे
ते संबर १६ सुई कुसाग्र न सेवे ते संबर २० १२. निरर्जरा बारै प्रकारैः-*
अणसण ® १ उणोदरौ भिक्षाचरौ ३ रसपरि* अजयणा यत्नां। , * अससण-उपवासादिक । * उणोदरी कमखाना।
Page #116
--------------------------------------------------------------------------
________________
'
( ११४ )
त्याग ४ कायक्लेश ५ प्रतिसंलेषना ६ प्रायश्चित्त सिज्झाय १० ध्यान
७ विनय ८ वेयावच
११ बिउसग्ग १२
४ बंध च्यार प्रकार:
प्रकृतिबंध १ स्थितिबंध २ अनुभागबन्ध ३
प्रदेशबंध ४
४ मोक्ष च्यार प्रकार:
ज्ञान १ दर्शण २ चारित्र ३ तप ४ १५ पंदरमें बोले आत्मा आठ ८
e
द्रव्य आत्मा ? कषाय आत्मा २ योग आत्मा ३ उपयोग आत्मा ४ ज्ञान आत्मा ५ दर्शण आत्मा ६ चारित श्रात्मा ७ वीर्य आत्मा ८
१६ सोलमें बोले दंडक चोबीस २४
१. सातनारकियां को एक दंडक दशदंडक भवनपतिका:---
असुर कुमार १ नाग कुमार २ सोवन कुमार ३ बिद्युत कुमार : अग्नि कुमार ५ दीप कुमार ६ उदधि कुमार 9 दिसा कुमार ८ बायु कुमार 2 स्तनित कुमार १०
* विसग्ग-निवर्तवो ।
दु
Page #117
--------------------------------------------------------------------------
________________
,
( ११५ ) ५ पांच थावरका पंच दंडकः__पृथ्वीकाय १ अप्पकाय २ तेउकाय ३ वायुकाय
४ बनस्पतिकाय ५ १ बेइन्द्री को सतरमों १ तेइन्द्री को अठारमो १ चौइन्द्री को उगणौसमों १ तियंज पंचेंद्रो को बौसमों
१ मनुष्य पंचेंद्री को दूकबौसमों . १ बानव्यंतर देवतांको बावीसमों
१ ज्योतषौ देवतांको तेबौसमों १ बैमानिक देवतां को चौबीसमों १७ सतरचे बोले लेझ्या छः ६
कृष्ण लेश्या १ नौल लेण्या १ कापोत लेण्या ३
तेजुलेश्या ४ पद्म लेण्या ५ मॉल लेण्या ६ १८ अठारमें बोले दृष्टि तीन ३
सम्यक् दृष्टि १ मित्या दृष्टि २ सममिथ्या दृष्टि ३ १९ उगणीसवें वोले ध्यान च्यार ४
आर्तध्यान १ रौद्रध्यान २ धर्मध्यान ३ शुक्लध्यान ४
Page #118
--------------------------------------------------------------------------
________________
। ११६ ) २० बीसमें बोले षट द्रव्यको जाण पणो
धर्मास्तिकायनें पांचा बोलां ओलखीजेःद्रव्यथको एक द्रव्य खत्री लोक प्रमाणे काल थको आदि अन्त रहित भावयौ अरूपी गुणथको जीव पुद्गल ने हालवा चालवा को साझ, अधर्मास्तिकायन पांचा बोलां अोलखोजेःद्रव्यथौ एक द्रव्य खेवधी लोकप्रमाणे कालधको आदि अन्त रहित भावथो अरूपी गुणथी थिररहवानों साझ । आकाशास्तिकायनें पांच बोल करौ भोलखोजेः-द्रव्यथौ एक द्रव्य खेवथी लोक अलोक प्रमाणे कालथी आदि अंत रहित भाव थौ अरूपौ गुणथी भाजन गुण । कालने पांचा बोलां करी ओलखोजे:-द्रव्यथौ अनन्ता द्रव्य खेवथी अढ़ाई द्वौप प्रमाणे कालथी आदि अन्त रहित भावथी अरूपी गुणधौ वर्तमानगुण । पुद्गलास्तिकायनें पांच वोलकरी पोलखोजेःद्रव्यथौ अनन्ता द्रव्य खेवथी लोक प्रमाणे काल यो आदि अन्त रहित भाव घो रूपी गुणथी गले
ॐ मैले। जीवास्तिकायनें पांच बोल करी ओल' खोजे:-द्रव्यों अनन्ता द्रव्य खत्री लोक प्रमाणे
Page #119
--------------------------------------------------------------------------
________________
कालथौ आदि अंत रहित भावथी अरूपौ गुणयौ
चैतन्य गुण। २१ इकबीसमें बोले राशि दोय २
जीवराशि १ अजीवराशि २ २२ बावीसमें बोले श्रावक का १२ बारे बूत १ पहिला ब्रत में श्रावक स्थावर जीव हणवाको
प्रमाण करे और बस जीव हालतो चालतो
हावाका सउपयोग त्याग करे । २ ट्जा ब्रत में मोटको झठ बोलवाका सउपयोग
त्याग करे। __ ३ तौजा ब्रत में श्रावक राजडण्डे लोकभण्डे इसी
मोटको चोरी करवाका त्याग करे । '४ चौथा ब्रत में श्रावक मर्याद उपरांत मैथुन सेवा
का त्याग करे। ५ पांचमां ब्रत में श्रावक मर्यादा उपरांत परिग्रह
राखवाका त्याग करे । ६ छट्ठा ब्रतके विषे श्रावक दशों दिशिमें मर्यादा
उपरान्त जाबाका त्याग करे । ७ सातवां ब्रतक विषे श्रावक उपभोग परिभोग
का बोल २६ छबोस छै जिणारी मर्यादा उप
Page #120
--------------------------------------------------------------------------
________________
रान्त त्याग कर तथा पन्दरह कर्मादानको
मर्यादा उपरांत त्याग करे। ८ आठमा ब्रतके विषे श्रावक मर्यादा उपगंत
अनर्थ दण्ड का त्याग करे।। ६ नवमां ब्रतके विषै श्रावक सामायकको मर्याद
.
करे।
१० दशमां ब्रतके विषे श्रावक देसावगासो संवरको
मर्याद करे। ११ इगारम ब्रत में श्रावक पोषह करे। १२ बारमं व्रत श्रावक सुध साधु निग्रंथनें निर्दोष
__ आहार पाणी आदि चवदे प्रकार दान देवे । २३ ते बोलमें बोले साधुजीका पंच महाबूत १ पहिला महाव्रतमें साधुजी सर्वथा प्रकारे जीव
हिंसा कर नहीं करावे नहीं करताने भलो
जाणे नहीं मनसे बचनसे कायासे। . २ टूसरा महाव्रतमें सोधुजी सर्वथा प्रकार झूठ
बोले नहीं बोलावे नहीं बोलतां प्रते भलो जागणे
नहीं मनसे बचनसे कायासे । ३ तौजा महाव्रतमें साधुनी सर्वधा प्रकारे चोरी
करे नहीं करावे नहीं करतां प्रते भलो जागो
Page #121
--------------------------------------------------------------------------
________________
( ११६ ) नहीं मनसे बचनसे कायासे । ४ चौथा महाव्रत में साधुजौ सर्वथा प्रकारे मैथुन
सेवे नहीं सेवावे नहौं सेवतां प्रते भलो जाणे
नहौं मनसे बचनसे कायासे । ५ पंचमां महाव्रत में साधुजी सर्वथा प्रकारे परि
यह राखे नहीं रखोव नहौं राखतां प्रते भलो
जाणे नहीं मनसे बचनसे कायासे । २४ चौबीसमें बोले भांगा ४९ गुणचास
करण ३ तीन जोग ३ तौनसे हुवे। करण ३ तीनका नाम-करू नहीं कराऊ नहौं अनुमोदूँ, नहौं । जोग ३ तीनका नाममनसा, बायसा कायसा। मांक ११ इग्यारेको भांगा ६:एक करण एक नोगसे कहणां, करू नहीं मनसा, करू नहौं बायसा, करू नहीं कायसा, कराऊं नहीं मनसा, कराऊं नहीं बायसा, कराऊं नहीं कायसा, अनुमोटू नहीं मनसा, अनुमोटू नहौं वायसा, अनुमोदू नहीं कायसा। प्रांक १२ बागको भांगा :--
Page #122
--------------------------------------------------------------------------
________________
एक करण दोय जोगसे, कर नहीं मनसा बायसा, करु नहौं मनसा कायसा, कर नहीं बायसा कायसा, कराऊं नहीं मनसा बायसा, कराऊनहीं मनसा कायसा, कराऊं नही बायसा कायसा, अनुमोटू नहौं मनसा, बायसा अनुमोदनहीं मनसा कायसा; अनुमोद नहीं वायसा कायसा। आंक १३ तेराको भांगा ३ तीन:एक करण तीन जोगसे, कर नहीं मनसा बायसा कायसा, कराऊ नहीं मनसा बायसा कायसा, अनुमोद नहौं सनसा बायसा कायसा। प्रांक २१ को मांगा:दोय करण एक जोगसे, करू नहीं कराज नहीं मनसा, कह नहीं कगऊ नहीं बायसा करू नहीं कराऊ नहीं कायसा, करू' नहीं अनुमोद नहीं मनमा, करू नहीं अनुमोद' नहीं बायसा, कर नहीं अनुमोद नहीं कायसा कराऊ नहीं अनुमोद नहीं मनसा कराऊ नहीं अनुमोद नहीं कायसा, कगज नहीं अनुमोटू नहीं कायसा !
Page #123
--------------------------------------------------------------------------
________________
॥ अथ पानाकी चरचा॥
। जीव रूपोक अरूपी, अरूपो किणन्याय कालो
पौलो नौलो रातो धोलो ए पांच वर्ण नहीं
पावे इण न्याय। २ अजीव रूपीके अरूपो, रूपो अरूमौ दोनू ही है किणन्याय धर्मास्तिकाय अधर्मास्तिकाय आकाशा स्तिकाय काल ए च्या तो अरूपी और
पुङ्गलास्तिकाय रूपौ। ३ पुन्य रूपीक अरूपी, रूपी ते किणन्याय पुन्यते
शुभ कर्म, कर्म ते पुगल पुगल ते रूपौ हो
४ पाप रूपीक अरूपो, रूपी ते किणन्याय पापते
अशुभ कर्म कर्मते पुसल पुशलते रूपी ही है। ५ आस्त्रव रूपोक अरूपी, अरूपोते किणन्याय आस्रव 'जीवका परिणाम के परिणामते जीव छै, जीव ते
अरूपी के, पांच वर्ण पावे नहीं इण न्याय । ६ संबर रूपीक अरूपी, अरूपौ किणन्याय पांच वर्ण पावे नहीं।
Page #124
--------------------------------------------------------------------------
________________
( १२२ )
तौन
कराज
नहीं
चांक ३२ बत्तीसको भांगा, ३ तो करण दोय नोगसें, करूनही नहीं अनुमोद नहीं मनसा बायसा, करू कराऊ' नहीं अनुमोद नहीं मनसा कायसा, करू ं नहीं कराऊ' नहीं अनुमोद नहीं बायसा
कायसा ।
श्रांक ३३ तेतीसको भांगो १ एक: तौन करण ं तीन जोगसें, करू' नहीं, कराउ नहीं अनुमोद नहीं मनसा बायसा कार्यसा २५ पचीस में बोले चारित्र ५
•
65
सामायक चारित्र १ छेदोपस्थापनीय चारित पडिहार विशुद्ध चारित्र ३ सूक्ष्म संपर चारित्र : यथाक्षात चारित्र ५
॥ इति २५ पच्चीस वोल सम्पूर्णम् ॥ .
1
܀
If
5
Page #125
--------------------------------------------------------------------------
________________
( १२५ ) प्रासरी निवद्य के अशुभ जोग सावध छै। ६ संबर सावद्यक निवंद्य निर्वद्य छै ते किणन्याय ___ कर्मा ने रोके ते निवंद्य छ। ७ निरजरा सावद्य निर्वद्य निवंद्य छै ते किण
न्याय कर्म तोडवारा परिणाम निवंद्य छ। ८ बंध सावध के निर्वद्य दोनू नहीं ते किणन्याय __अजीव के इण न्याय । ८ मोक्ष सापद्य के निर्वा, निर्वद्य छै, सकल कर्म
मूकाय सिव भगवंत थया ते निर्वद्य छ। ॥लडी तोजी आज्ञा मांहि बाहिरकी॥ १ जीव आज्ञा मांहि के बारे, दोन है ते किणन्याय, जौवका चोखा परिणाम आज्ञा मांहि
छै, खोटा परिणाम आज्ञा बाहिर छ। २ अजीव आजा मांहि बाहिर, दनू नहौं, अजीव
WW
के।
३ पुन्य आज्ञा मांहि के बाहिर दोन नहीं अजीव •
छै दुगा न्याय। ४ पाप आज्ञा मांहि बारे दो नहीं अजीव छ । ५ आसव आज्ञा मांहिके बारे, दोडू छै, ते किणन्याय, आखव नां पांच भेद छै तिणमें
Page #126
--------------------------------------------------------------------------
________________
( १२४ ) ७ निर्जरा रूमौके अरुपी अरूपी के ते. किगन्याय निर्जरा जीवका परिणाम के पांच वर्ण पावे नहीं .
इश न्याय। ८ बंध रुपीके अरुपी, रूपो किणन्याय बंध ते शुभः ।। अशुभ कर्म है, कर्म ते पुद्गल छ। पृङ्गल ते
रुमो छ। ८ मोक्षरुपी के अरूपी अरुपी छै ते किणन्याय समस्त । कर्मासे मुकावे ते मोक्ष अरुपीते जीव सिद्ध थया । ते मां पांच वर्ण पावे नहीं इणन्याय । ॥ लड़ी दूजी सावध निरवद्यकी ॥ १ लीव सावद्यक निर्वद्य दोन ही छै ते किणन्याय
चोखा परिणामां निर्वद्य खोटा परिणामा सावदा ।
छ।
p
२ अजीव सावद्य निर्वद्य दोनू नहीं अजीव है। ३ पुन्य सावद्य निर्वा, दोन नहीं अजीव है। ४ पाप सावध निर्वद्य, दोन नहीं अजीव छ। । ५ आस्रव सावद्यके निवा, दोनू ही छ किण, न्याय मिथ्यात्व आस्रव अव्रत आस्रव प्रमाद ।
आसव, कषाय आसव, ए च्चार तो एकान्त । मावटा के. पाभ जोगां में निरजरा होय निण...
5
:11
.
Page #127
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रासरी निवद्य के अशुभ जोग सावध है। ६ संबर सावद्यक निर्वद्य निर्वद्य छै ते किणन्याय
कर्मा में गेकी ते निवंद्य छ। ७ निरजरा सावद्यक निर्वद्य निर्वद्य छै ते किग
न्याय कर्म तोडवारा परिणाम निर्वद्य छ। ८ बंध सावद्यके निर्वद्य दोनू नहीं ते किणन्याय
अजीव छै डण न्याय । ६. मोक्ष सापद्यके निर्वद्य, निर्वद्य है, सकल कर्म
मूकाय सिद्ध भगवंत थया ते,निर्वद्य छै। लडी तोजी आज्ञा मांहि बाहिरकी॥ १ जीव आज्ञा मांहि के बार, दोन 7 ते किणन्याय, जीवज्ञा चोखा परिणाम आज्ञा मांहि
है, खोटा परिणाम आज्ञा बाहिर है। २ अजीव आज्ञा मांहि बाहिर, द नहौं, अजीव
है।
३ पुन्य आज्ञा मांहि के बाहिर दो नहीं अजीव —
छै दुगा न्याय । ४ पाप आज्ञा मांहि बारे दोन नहीं अजीव है। ५ बास्त्रव आज्ञा मांहिके बारे, दोलूंडू छै, ते किणन्याय, आस्रव नां पांच भेद छै तिणमें
Page #128
--------------------------------------------------------------------------
________________
। १२६ ) मिथ्यात्वे अबत प्रमाद कषाय ए च्यार तो आज्ञा बाहिर छै अने जोग नां दोय भेद शुभ जोग तो आज्ञा मांहि छै अशुभ जोग आज्ञा बाहिर है। ६ संबर अाज्ञा मांहि के बाहिर, आज्ञा मांहि छै .ते किणन्याय कर्म रोकवारा परिणाम आज्ञा .
मांहि । ७ निर्जरा अज्ञा मांहिके बाहर, आज्ञा माहि के
ते किणन्याय कर्म तोडवारा परिणाम आज्ञा
मांहि है। ८ बंध प्राज्ञा मांहिके बाहर, दोन नहौं ते किणन्याय, जाज्ञा मांहि बाहर तो जीव हुवे ए बंध
तो अजीव छै इन्चाय।। है मोक्ष आज्ञा माहिके बाहर, आज्ञा माहि छै
ते किणान्याय, कर्म दूकाय सिद्ध थया ते आज्ञा
में है।
॥लडी चौथो जीव अजीवकी ॥ १ जीव ते जोव छै के अजीव, जीव । ते किणन्या
सदाकाल जौवको जीव रहसे अजीव कदे 'हुवे नहीं।
जीत के के अजीव छै, अजीव छै अजी
Page #129
--------------------------------------------------------------------------
________________
( १२७ ) वको जीव किण ही कालमें हुवे नहीं। ३ पुन्य जीव छै के अजीव है, अजीव छै ते किणन्याय पुन्वते शुभकर्म शुभ कर्मते पुगल छै पुगल
ते अजीव छ। ४ पाप जीव छै के अजीव छै, अजीव छै। किणन्याय पाप ते अशुभ कर्म पुगल छै पुगल ते
अजीव छ। ५ आलव जीव छै के अजीव छै जीव छ, ते किण न्याय शुभ अशुस कर्म ग्रह ते आस्रव छै कर्म
यह ते जीव ही छै। ६ संवर जीवके अजीव, जीव छै ते किणन्याय
कर्म रोके ते जीव हो छ । ७ निर्जरा जीवके अजीव, जीव है किगन्याय कर्म
तोड़े ते जीव छ। ८ बंध जीवके अजीव छै, अजीव छै ते किणन्याय
. शुभ अशुभ कर्मको बंध अजीव छ । __६ मोक्ष जीवके अजीव, जीव है, किणन्याय समस्त
कर्म लूकावे ते मोक्ष जीव छ । ॥ लड़ी पांचवीं जीव चोरके साहूकार ॥ १. जीव चारक साहूकार, दोन छै किणन्याय
Page #130
--------------------------------------------------------------------------
________________
( १२८ ) चोखा परिणामां साहूकार छै मांठा परिणामां
चोर के। २ अजीव चोरके साहूकार दोनं नहीं किणन्याय
चोर साइकार तो जीव हुवे ये अजीव छै। ३ पुन्य चोरके साहूकार, दोनू नहीं अजीव है। ४ पोप चोरके साइजार, दोन नहीं अजीव छै। ५ श्राखब चोरके साइलार, दोन छै किणन्याय च्यार प्रास्त्रव तो चोर है, अने अशुभ जोग पण
चोर छै शुभ जोग साहूकार छै। ६ संबर चोरके साहूकार, साइकार है किणन्याय
कर्स रोकवारा परिणाम साहूकार है। ७ निर्जरा चोरके साइकार, साइकारकै किणन्याय ___ कर्म तोड़वारा परिणाम साहूकार छ । ८ बंध चोरके साइकार, दोन नहीं अजीव छ ! है मोक्ष बोरके साहूकार साहूकार किगन्याय कर्म कायकर सिद्ध थया ते साहूकार है। लडी छटी जीव छांडवा जोगके .
आदरवा जोगकी। १ जीव छांडवा जोगके बादरवा जोग छांडवा जोग
छै किगन्याय पोते जीवन भोजन करे अनेरा
Page #131
--------------------------------------------------------------------------
________________
( १२६ ) जीव पर ममत्व भाव न करे। . २ अजीव छांडवा जोगके आदरवा जोग, छांडवा · जोग छै किणन्याय अजीव छै। ३ पुन्य छांडवा जोगके बादरवा जोग, छांडवा
जोग ते किणन्याय पुन्य ते शुभ कर्म पुगल
छै कर्म ते छोडवा ही जोग छै। ४ पाप छोडवा जोगके आदरवा जोग, छांडवा जोग
छै किणन्याय पाप ते अशुभ कर्म छ जीवने दुखदाई छै ते छांडवा जोग छै ! ५' आस्रव छांडवा जोगके आदरवा जोग, छोडवा
जोग छै किणन्याय आस्रव हार जीवरे कर्म लागे छै आस्रव कर्म भावानां बारणा छ ते
छांडवा जोग छ। ६ संबर छांडवा जोगके आदरवा जोग, आदरवा
जोग छै किणन्याय कर्म रोके ते संबर के ते
आदरवा जोग छ । ७ निर्जरा छांडवा जोगके आदरवा जोग, आद. रखा जोग छ किणन्याय देशथी कर्म तोडे देशथी जीव उज्जल थाय ते निर्जरा है ते ओदरवा
जोग छ। ८ बन्ध छोडवा जोगके आदरवा जोग, छांडवा
'
Page #132
--------------------------------------------------------------------------
________________
( १३० .) जोग छ, ते किणन्याय शुभ अशुभ कर्म नो
बन्ध छांडवा जोगही छै। - ६ मोच छांडवा जोगके आदरवा जोग आदरवा
जोग ते किणन्याय सकल मर्म खपावे जीव , निरमल थाय सिद्ध हुवे दूणच्याय - आदरवा
जोग के
.
॥ षटद्रव्यपरलड़ी सालमी रूपी अरूपी की ॥ १ धर्मास्ति काय रूपोक अरूपी, अरूपी किंणन्याय
पांच वर्गा नहीं पाव दून्याय । २ अधर्मास्ति काय रूपीक अरूपी, अरूपी किणन्याय
पांच वर्ण नहीं पावे इशान्याय । . ३ आकाशास्तिकाय रूपोके अरूपी, अरूपी किणा· न्याय पांच बर्ण नहीं प्रावे गन्याय ।। ४ काल रूपौक अरूपी, अरूपी, किणन्याय पांच __ वर्ण नहीं पावै गन्याय । ५ पुद्गल रूपौके यरूपी, रुपौ किगन्याय पांच ... वर्ण पावे हान्योय ।
६ जीव रूपीके अरूपी अरूपी किणन्याय पांच वर्ण . . नहीं पावे इणन्याय ।
...
Page #133
--------------------------------------------------------------------------
________________
( १३१ ) ॥ व द्रव्यपरलड़ी आठमी सावद्य निवद्यकी ॥
१ धर्मास्ति काय सावाके निर्वद्य, दोन नहीं ___ अजीव छ। २. अधर्मास्ति काय सावद्यके निवद्य, दोनूं नहीं , अजीव छै। . ३ आकाशास्ति कार्य सावाको निर्वद्य दोन नहीं
अजीव छै। ४ काल सावद्यक निर्वा, दोनं नहीं अजीव छ। .५ पुद्गलास्ति काय सावद्यकै निर्वदा, दोन नहीं .. अजीव छै। ६ जौवास्तिकाय सावद्यक निर्वा, दोनँ छै खोटा , - परिणामा सावा के चीखा परिणामा निर्वद्य है। ॥वद्रव्यपर लडो नवमी आज्ञामांहिबाहेरको॥ । १ धर्मास्ति काय आज्ञा मांहिके बाहर दोनूँ नहीं
ते कि न्याय आज्ञा सांहि बाहर तो जीब है।
अने ए अजीव छै। - : २ अधर्मास्ति काय आज्ञा माहिक बाहिर दो। ... नहीं किणन्याय अजीव छै। : ३ आकाशास्ति काय आज्ञा मांहिक बाहिर दोनं
नही किणन्याय अजीव के। ..
Page #134
--------------------------------------------------------------------------
________________
( १३२ )
४. काल -शाज्ञा मांहिके बाहिर दोनं नहीं कि
11p
न्याय अजीव है ।
५ पुद्गल आज्ञा मांहिके बाहिर दोन नहीं किणन्याय जीव है
1
६ नौव आज्ञा मांहिके बाहिर दोनं है कि न्याय निर्वद्य करणी आज्ञा मांहि है सावा करणी 'आता बाहर के इणन्याय |
1 A
॥छव द्रव्यपर लड़ी दशमी चोर साहूकारकी ।
१ धर्मास्ति काय चोर के साहूकार दोन नह किणन्याय चोर साहूकार तो जीव है एधर्माि 'काय अनीव है इगन्याय ।
२. अधर्मास्ति काय चोरके साहूकार दोन नहीं ११. अजीव के ।
आकाशास्ति काय चोरके साहूकार दोन नही
नीव है ।
1
धाराओ
४ काल चोरके साहूकार दोन नहीं अजीव ५ पुद्गल चोर के साहूकार दोनू' नहीं अजीव छे नौव चोरके साहूकार, दोन है किणन्याय माठा परिणाम आसरौ चोर छै चोखा परिणा SME
द
+
Page #135
--------------------------------------------------------------------------
________________
( १३३ ) ॥ व द्रव्यपर लडी इग्यारमी जीव अजीवको । १ धर्मास्ति काय जीवके अजीव, अजीव छ ।
२ अधर्मास्ति काय जोवक अजीव, अजीव छै। - ३ आकाशास्ति काय जीवके अजीव, अजीव छ ।
४ काल जीवके अनीव, अजीव छ। ५ पुद्गलास्ति काय जीवके अजीव, अजीव, छै । ६ जौवास्ति काय जीवके अजीव, जीव छै। . ॥ व द्रव्यपर लड़ी बारमी एक अनेक की ॥ १ धर्मास्ति काय एक छै के अनेक, छै एक छ,
किणन्याय, द्रव्यथको एकही द्रव्य छै। २ अधर्मास्ति काय एक छै के अनेक के एक है,
द्रव्यथकी एकही द्रव्य छ। ३ आकाशास्ति काय एकके अनेक, एक छ, लोक
अलोक प्रमाणे एकही द्रव्य छै। ४ काल एक छै के अनेक है, अनेक छै द्रव्यथको
अनन्ता द्रव्य छै इणन्याय । ५ पुगल एक छके अनेक है, अनेक है, द्रव्य थकी
अनन्ता द्रव्य छै इणन्याय । '६ जीव एक छै के अनेक छ, अनेक छै द्रव्यथकी
अनन्त द्रव्य के इणन्याय ।
Page #136
--------------------------------------------------------------------------
________________
१५
"
( १३४ )
॥ लडी तेरमी ॥
छवमें नवमेंकी चरचा |
१ कमी को कर्त्ता छव द्रव्यमें कोण नव तत्वमें
कोण उत्तर कबमें जीव नवमें जीव आसव | २ कमीको उपावता छवमें कोण नवमें कोय उ० छवमें जौव नवमें जीव आसव |
३ कमीको लगावता छवमें कोण नवमें कोण उ० छवमें जीव नवमें जीव चासव |
४ कमीको कता छवसें कोण नवमें कोण उत्तर छवमें जीव नवमें जीव संबर |
५ कर्मको तोड़ता छवमें कोण नवमें कोण छवरें जीव नवमें जीव निर्जरा ।
६ कमीको बान्धता छवमें कोण नवमें कोण छवमें जीव नवमें जीव आक्षव ।
७ कर्माको मुकावता छत्र कोण नवमें कोण छव में जीव नवमें जोब मोक्ष |
॥ लड़ी चौदमी ॥
१ अठारे पाप सेवे ते छवमें कोण नवमें कोण छवमें जीव नवमें जीव आसव |
"
1
+
Page #137
--------------------------------------------------------------------------
________________
( १३५ )
1
२ अठारे पाप सेवाका त्याग करे ते छ्वमें कोण नवमें कोण व नव नवमें जीव संवर निर्जरा ३ सामायक छवसें कोण नवमें कोण छवमें जीव नवमें जौव संवर |
४ ब्रत छवसें कोण नवसें कोणा छवमें जीव नवमें जीव संबर |
५ व्रत छवसें कोण नवमें कोगा छवमें जीव नवमें जौव आसव |
६ अठारे पापको बहरमण छवमें कोण नवसे कोस छवमें जीव नवमें जीव सम्बर |
७ पञ्च महाव्रत छवमें कोण नवमें कोण छवमें जीव, नवमें जीव संवर ।
८ पांच चारित्र छवमें कोण नवमें कोगा छवमें जीव, नवमें जौव संवर |
६ पांच सुमती छवमें कोण नवसें कोण छवमें जौव, नवमें जीव, निर्जरा ।
१० तौन गुप्तौ छवमें कोण नवमें कोण छवमें जौव नवमे जीव, संबर ।
११ वारे व्रत व कोण नवमें कोण छवमें जीव, नवमे जव, संबर |
१२ धर्म छवमे कोण नवमे कोण छवमे जीव, नव
Page #138
--------------------------------------------------------------------------
________________
( १३६ ) में जौव, संबर, निर्जरा। . १३ अधर्म छवमें कोण नवमें कोण छवमें जीव,
नवमें जीव, आस्रव । ' १४ दया छवमें कोण नवमें कोण छवमें जीव, ___ नवमें जीव, संबर, निर्जरा । १५ हिन्सा छवमें कोण नवमें कोण छवम जीव, नवमें जीव, आस्रव।
॥ लडी १५ पंदरमी॥ १ जीव छवमें कोण नवमें कोण छवमें जीव, . नवमें जीव, प्रास्त्रव, संबर, निर्जरा। २ अजीव छवमें कोण नवमें कोण छवमें पांच __ नवमें अजीव, पुन्य, पाप, बंध । ३ पुन्य छवमें' कोण नवमें कोण छवमें पुद्गल, ___ नवमें अजीव, पुन्य, बंध । ४ पाप छवमें कोण ? नवमें कोण ? छवमें पुद्गल,
नवमें अजीव, पाप बंध । ५ आस्रव छवमें कोण नवमे कोण छवमें जीव, • . नवमें नौव, आस्रव ।
६ संवर छवमे' कोण नवम' कोण छवमें जीव, - नवमें जीव, संवर। .
Page #139
--------------------------------------------------------------------------
________________
( १३७ )
निर्लग छत्रमें लोग नवमें कोग छबमें जौव नवमें जौव, निर्जरा ।
८ वध छत्र कोण नवमें कोण छत्रमें पुद्गल, नवमें अजीव पुन्य, पाप, बंध |
६ मोक्ष छव में कोण नवमे कोग छवमें जौव, नवमें जीव, मोक्ष |
|| लडी १६ सोलहमी |
१ धर्मास्ति छत्रमे कोण नवसे कोण छवमें धर्मास्ति, नवमें अजीव ।
२ अधर्मास्ति, छवसें कोण नवसें कोणा छवमें अधर्मास्ति, नवमें अजीव |
३ चाकाशास्ति, छवसें कोण नवसे कोगा छवमें चाकाशास्ति, नवमे अजीव ।
४ काल छबसे कोगा नवमे कोण छवमें काल, नवसे अजीव |
५ पुद्गल छवमे कोण नवमे कोण छवमें पुद्गल, नवसे अजीब, पुन्य, पाप बंध |
६ जीव, छबमें कोण नवमे कोण कवमें नौव, नवसे' जीव, आस्तव संबर, निर्जरा मोक्ष ।
શુદ્ધ
Page #140
--------------------------------------------------------------------------
________________
१
( १३८ )
॥ लडी १७ सतरमी ॥
१ लेखण ( कलम ) पूठो, कागद को पानों, लकड़ी को पाटो, छवमें' कोण नवमे कोण छवमें पुल, नवमे अजीव ।
२ पाचो, रजोहरण, चादर चोलपट्टी आदि भण्ड उपगरण, छवसें कोण नवमे कोण छत्रमें पुनल नवमें अजीव |
"
३ धानको दाणों, छवसें कोण नवमें कोण छवमे जीव, नव जीव ।
।
४ रुख ( वृक्ष ) छवमें कोगा नवमे कोण छवमें जीव, नवमें जीव ।
५ तावड़ो छायां छवमें' कोण नवमे कोण छवमें पुद्गल, नवसे अजीव ।
६ दिन रात छवमें कोगा नवमे कोण छवमें काल, नवमे अजीव |
७ श्रीसिद्ध भगवान छवसे' कोण नवमें कोण छवमें जीव, नवमें जीव मोक्ष |
|| लडी १८ अठारमी ॥
१ पुन्य और धर्म एकके दोय, दोय कि न्याय, पुन्य तो अजीव है, धर्म जीव है ।
Page #141
--------------------------------------------------------------------------
________________
२ पुन्य और धर्मास्ति एक के दोय, दोय, कि
न्याय, पुन्य तो रूपी छै धर्मास्ति अरूपो छ। ३ धर्म और धर्मास्ति एक के दोय, दोय, किण
न्याय, धर्म तो जीव छै, धर्मास्ति अजीव छै । ४ अधर्स और अधर्मास्ति एक के दोय दोय, किणन्याय, अधर्म तो जीव छै; अधर्मास्ति
अजीव छै। ५ पुन्य अने पुन्धवाल एक के दोय दोय, किणा
न्याय, पुन्य तो अजीव छै पुन्यवान जीव छै। ६ पाप अने पापी एकके दोय दोय, किणन्याय,
पाप तो अजीव छै, पापी जीव छै। ७ कर्म अने कर्मा को करता एकको दोष दोय, किणन्याय, कर्म तो अजीव है, कारो करता जीव छै।
॥ लडी १९ उन्नीसमी॥ १ कर्म जीव के अजीव अजीव । २ कर्म रूपौक अरूपी रूपी छै ॥ ३ कम सावद्यक निरवद्य, दोन नहीं अजीव छ।
४ कर्म चोरफी साहूकार, दोन नहौं, अजीव छै। ___५ कम आना माहिक बाहर, दोन नहीं अजीव छ। '
Page #142
--------------------------------------------------------------------------
________________
( १४० )
६ कर्म छांडवा जोग के बदरवा जोग, छांडवा
जोग है ।
७ चाट कर्मा से पुन्य कितना पाप कितना ज्ञानावर्णी, दर्शयावर्णो, दर्शणावर्णी, मोहनीय, अन्त
राय, ए च्चार कर्म तो एकान्त माम है, बेदनी, नाम, गोत्र, चालु ए च्यीर का पुज्य पाप दोनू' हौं है ।
॥ लडी २० बीसमी ॥
१
धर्म जीव के अजीव जौव है ।
२ धर्म सावद्य के निरaa free
है 1
३ धर्म श्राज्ञा मांहि से बाहर श्री वितराग देवकी
याज्ञा मांहि है ।
४ धर्म चोर के साहकार साहूकार
५ धर्म रूप के चरूपी
पी है।
६
धर्म छांडवा जोग की चादग्या लोग चादरवा जोग है ।
1
७* धर्म पुन्य के माप दोनू' नहीं किन्वाय धर्म तो जौव है पुण्य पाप जीव है । ॥ लडी २१ इक्कीसभी ॥
१ अधर्म जीव दो जीव जीव के
Page #143
--------------------------------------------------------------------------
________________
१४१ )
1
२ धर्म सावदा के निरवद्य सावध छै ३ अधर्म चोर साहूकार चोर है ।
४ अधर्म आज्ञा मांहि के बाहर, बाहर
५ अधर्म रूपों के अमीरूपी के
६ अधर्म छांडवा जोग के बदरवा जोग छांडवा
नोग है ।
L
|| लड़ी २२ बाइसमी ||
१ सामायक जीव के अजीव जीव है । २ सामायक सावद्य से निरवद्य निरवद्य है 1 ३ सामयिक चोर के साहूकार साहूकार छै
४ सोमायक चाज्ञा मांहि के बाहर आज्ञा मांहि के । ५ सामावक रूप के अरूपी अरूप है |
६ सामायक छांडवा जोग के आदरवा जोग आदरवा जोग है ।
७ सामायिक पुन्यके पाप दोनू' नहीं, किणन्याय पुन्य पाप जीव है, सामायक जीव है
|
॥ लड़ी २३ तेवीसमी ॥
-१ सावद्य त्र के अजीव जीव है । २ सावध गाव के के निरवद्य सावद्य छै
1
16
Page #144
--------------------------------------------------------------------------
________________
( १४२ ) ३ सावध आज्ञा मांहि थी बाहर बाहर छ। ४ सावा चोर के साइनार चोर छ । ५ सावध रूपो के अरूपी अरूपो छ। ६ सावध कांडवा जोग के आदरवा जोग छांडवा
जोग छ। ७ सावद्य पुन्य, के पाप दोन नहीं, पुन्य, पाप
तो अजीव छै, सावद्य जीव है।
॥ लड़ी २४ चोवीसमी॥ १ निरवद्य जीव के अजीव जीव छ । २ निरवद्य सावद्य के निरवद्य निरवद्य है। ३ निरवद्य चोर के साहकार साहूकार छै। ४ निरवद्य आज्ञा मांहि के बाहर मांहि है। ५ निरवद्य रूपी के अरूपी अरूयौ छ। ६ निरवदा छांडवा जोग के पादरवा जोग आदरवा
जोग है। ७ निरवा धर्म के अधर्म धर्म है। ८ निरवा पुन्य के पाप पुन्य पाप दोनू नहीं; किणन्याय पुन्य पाप तो अजीव है, निरवदा जीव छ।
Page #145
--------------------------------------------------------------------------
________________
..
( .१४३ ) ॥ लडी २५ पचीसमो॥
१ नव पदार्थ में जीव कितना पदार्थ अने अजीव कितना पदार्थ । जीव, बास्सव, संबर निर्जरा, मोक्ष, ए पांच तो जीव छै अनें अजीव पुन्य, पाप, बंध, ए च्यार पदार्थ अजीव छ। २ नव पदार्थ में सावध कितना निरवदा कितना।
जीव अनें आस्रव ए दोय तो सावदा निरवा दोनू छै, अजीव, पुन्य पाप, बंध, ए सावदा निरवा दोन नहौं । संबर, निजरा, मोक्ष ए तीन पदार्थ निरवा छै। नव पदार्थ में आना मांहि कितना आज्ञा बाहर कितना । जोव, आस्रव, ए दोय तो आज्ञा मांहि पण छै, अने आज्ञा बाहर पण छै । अजीव, पुन्य, पाप, बंध, ए च्यार आज्ञा मांहि बाहर दोनू ही नहौं । संबर, निर्जरा मोक्ष, ए आज्ञा
मांहि छै। ४ नव पदार्थ में चोर कितना साहूकार कितनां। जौव, आस्रव, तो चोर साहूकार दोनू' हौं है। अजीव, पुन्य, पाप, बंध ए चोर साहकार दोनू
Page #146
--------------------------------------------------------------------------
________________
( १४४ )
नहीं, संबर, निर्डग, मोच, ए तीन साहूकार
छै
५ नव पदर्थ में छांडवा जोग कितना चादरखा जोग कितना । जीव, जीव, पन्य, पाप, आाखव, बंध, ए कब तो कांड़वा जोग के, संवर, निर्जग, मोक्ष ए तीन चादरवा जोग है अने जाणवा जोग नवहीँ पदार्थ है ।
६ नव पदार्थ में रूपी कितना रुपी कितनां । जीव, चव, संबर, निर्जरा, मोक्ष ए, पांच तो अरूपी हैः चजीव रूपी अरूपौ दोनू छे पुन्य, पाप, बंध रूपी है ।
७ नव पदार्थ से एक कितनां अनेक कितना । उ० अजीव टाली आठ पदार्थ तो अनेक है, अने अजीव एक अनेक दोनू' है, किन्याय धर्मास्ति धर्मास्ति श्राकाशास्ति ये तीन द्रव्य थको एक एक हो द्रव्य है
॥ लडी २६ छवीसमी ॥
१ छव द्रव्य में जीव कितना चञ्जीव कितना एक
Page #147
--------------------------------------------------------------------------
________________
( १४५ ) २ छव द्रव्य में रूपो कितना अरूपी कितना जीव, धर्मास्ति, अधर्मास्ति आकाशास्ति, काल,ए पांच
तो अरूपी छै, पुद्गल रूपो छ । ३ छव द्रव्य में आज्ञा मांहि कितना ओज्ञा बाहर कितना जीव तो आज्ञा मांहि बाहर दोन छै,
बाको पांच आज्ञा मांहि बाहर दोनं नहीं। ४ छव द्रव्य में चोर कितना साहकार कितना जीव तो चोर साहूकार दोनं है, बाकी पांच
द्रव्य चोर साहूकार दोनं नहौं, अजीव छ। ५ छब द्रव्य मं सावध कितना निरवद्य कितना
एक जीव द्रव्यतो सावद्य निरवद्य दोन है, बाको पांच द्रव्य सावद्य निरवद्य दोन नहौं । ६ छव द्रव्य में एक कितना अनेक कितना धर्मा-- स्ति, अधर्मास्ति, आकाशास्ति,ए तीनों तो एक ही द्रव्य छै , काल, जीव, पुद्गलास्ति ए तीन अनेक छै, इणांका अनन्ताद्रव्य छ । ७ छव द्रव्यमें सप्रदेशी कितना अप्रदेशी कितना एक काल तो अप्रदेशौ है, बाकी पांच सप्रदेशी छै,।
Page #148
--------------------------------------------------------------------------
________________
। १०५ ।। . ॥ लड़ी २७ सत्ताइसमी॥
१ पुन्य धर्म के अधम दोनू नहीं,किणन्याय धर्म
अधर्म जीव है, पुन्य अजीव है। . २ पाप धर्म के अधर्म दोन नहौं, किणन्याय धर्म
अधम तो जीव के पाप अजीव छै। । ३ बध धर्म के अधर्म दोन नहौं, किणन्याय धर्म
अधर्म तो जीव छै बध अजीव है। ४ कर्म अने धर्म एक के दोय दोय छै; किणन्याय
कर्म तो अजीव के धर्म जीव छै। ५ पाप अने धर्म एक के दोय दोय छै; किणन्याय
पाप तो अजीव छै; धर्म जीव छै। ६ अधर्म अने अधर्मास्ति एक के दोय दोय; किण-'
न्याय अधर्म तो जीव के अधर्मास्ति अनौंव है। ७ धर्म अने धर्मास्ति एक के दोय दोय; किणन्याय ___धर्म तो जीव छै; धर्मास्ति अजीव छै।
८ धर्म अनें अधर्मास्ति एक के दोय दोय; किण__ न्याय धर्म तो जीव; अधर्मास्ति अजीव छै। ६ अधर्म अने धर्मास्ति एक के दोय दोय; किगा
न्याय अधर्म तो जीव के धर्मास्ति अजीव के।
Page #149
--------------------------------------------------------------------------
________________
।- ( १४७ ) १० धर्मास्ति अनें अधर्मास्ति एक के दोय दोय; किण
न्याय धर्मास्ति को तो चालवा नो सहाय छै।
अनें अधर्मास्तिनो थिर रहवानों सहाय छै। ११ धर्म अने धर्मी एक को दोय एक छै; किणन्याय
धर्म जीवका चोखा परिणाम है। १२ अधर्म अने अधर्मी एक के दोय एक छै; किण
न्याय अधर्म जीव का खोटा परिणाम है।
TAY
M
OCID
Page #150
--------------------------------------------------------------------------
________________
ta
प्रश्नोत्तर |
१ घारी गति कांई - मनुष्य गति ।
२ थारी जाती कांई - पंचेन्द्रौ ।
३ थारी काय कांई - वसकाय ।
४ इन्द्रीयां कितनी पावे -५ पांच
५ पर्याय कितना पावे - छव
६ प्राण कितना पावे - १० दश पावे |
७ शरीर कितना पावे - ३ तीन- ओदारिक; तेजस; कार्मण ।
८ जोग कितना पावै -- नव पावे च्यार मन का; च्चार बचनका; एक काया को; श्रदारिकः । ट उपयोग कितना पावे ४ चार पावै मतिज्ञान १ श्रुतिज्ञान २ चक्षु दर्शन ३ अचक्षु दर्शन ४ । १० घारे कर्म कितना ८ आठ ।
६
3
Page #151
--------------------------------------------------------------------------
________________
११ गुणस्थान किसो पाव-व्यवहारथी पांचल ___ साधु ने पृ? तो छट्टो। १२ विषय कितनी पावे २३–तेबौस ।। १३ मिथ्यात्वनां दश बोल पावै के नहीं, व्यवहारथी
नहीं पावै । १४ जौवका चवदा भेदामें से किसो भेदपावे, १
येक चवदम् पर्याप्तो सन्नी पञ्च न्द्री को पावै । १५ आतमां कितनी पावै श्रावकमें तो ७ सात पावै, ___ अनें साधु में आठ पावै । १६ दण्डक किसोपावै-येक इकबीसम् । १७ लेण्या कितनी पावै–६ छव । १८ दृष्टी कितनी पावै- व्यवहारथी एक, सम्बक
दृष्टि पावै। १६ ध्यान कितना पावै--३ तीन, सुक्ल ध्यान टालके। २० छवद्रव्यमें किसा द्रव्य पावै १--एक जीव
द्रव्य। २१ राशि किसी पावें—एक जीव राशि ।
२२ श्रावक का बारा ब्रत श्रावक में पावै । ___ २३ साधुका पञ्च महा ब्रत पावै के नहौं—साधु में ... पावें श्रावक में पावै नहौं । .
Page #152
--------------------------------------------------------------------------
________________
( १५० ) २४ पांच चारित्र श्रावक में पावै कै नहीं, नहीं पावै,
एक देश चारित्र पावै। १ एकेन्द्री की गति काई-तियेच गति। २ एकन्द्री को जाति काई-एकोन्द्री । ३ एकेन्द्री में कोया किसी पावै पांच थावरको । ४ एकेन्द्रीमें इन्द्रियां कितनी पावै–एक स्पर्श
इन्द्री। ५ एकेन्द्री में पर्याय कितनी पावै–४च्यार मन
भाषा एदोय टली। ६ एकेन्द्री में प्राण कितना पावै ४-च्यार पावै
स्पर्श इन्द्रीय वलप्राण १ कायबलप्राण २ श्वासोश्वासबलप्राण ३ आयुषोबलप्राण ४ ७ सूरड माटो मुलतानी पत्थर सोनो चांदी रत___ नादिक पृथ्वौकाय का प्रश्नोत्तर।
प्रश्न
उत्तर
गति कांई जाति कोई काय किसी इन्द्रियां कितनी पाव पर्याय कितनी पावै
तिर्यंच गति एकेन्द्री पृथ्वीकाय एक स्पर्श इन्द्री ४ च्यार, मन भाषा टली.
Page #153
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्राण कितना
( १५१ )
४ च्यार पावै, स्पर्श इन्द्रीवल प्राण १ काय वल २ श्वासोश्वास वल ३ आयु बलप्राण ४
८ पाणी ओसादि अप्पकायको प्रश्न
उत्तर गति काई
तिर्यंच गति जाति काई
एकेन्द्री काय किसी
अप्पकाय इन्द्रियां कितनी
एक स्पर्श इन्द्री पर्याव कितनी
४ च्यार, मन भाषाटली प्राण कितना
४ च्यार, ऊपर प्रमाणे ६ अग्नी तेउकायनी
गति कांई जाति कांई काय किसी इन्द्रियां कितनी पर्याय कितनी प्राण कितना
लत्तर तिर्यंच गति एकेन्द्री तेउकाय एक स्पर्श इन्द्री ४ च्यार, मन भाषाटली ४ च्यार, ऊपर प्रमाणे
१० बायु कायको
प्रश्न
लत्तर 'तिर्यंच गति
गति काई
-
Page #154
--------------------------------------------------------------------------
________________
जाति-काई काय कांई इन्द्रियां कितनी पर्याय कितनी प्राण कितना
( १५२ )
एकेन्द्री। वायुकाय एक स्पर्श इन्द्री ४ च्यार ऊपर प्रमाणे ४ च्यार ऊपर प्रमाणे
११ वृक्ष, लता, पान, फूल, फल, लौलण, फूलन
आदि वनस्पतिकायनी प्रश्न
उत्तर गति काई
तिर्यच गति जाति काई
एकेन्द्री काय काई
बनस्पतिकाय इन्द्रियां कितनी
एक स्पर्श इन्द्री पर्याय कितनी
च्यार ऊपर प्रमाणे प्राण कितना
च्यार ऊपर प्रमाणे १२ लट गिंडोला आदि बेन्द्रीको
प्रश्न
गति कांई जाति कांई काय काई इन्द्रियां किरनी - पर्याय कितनी प्राण कितना
उत्तर तिर्यंच गति बेइन्द्री त्रस काय २ दोय, स्पर्श, रस, इन्द्री ५ पांच मन पर्याय टली ६ छव, रस इन्द्री बल प्राण १ स्पर्श इन्द्रो वलाप्राण २ काय वल प्राण
,
Page #155
--------------------------------------------------------------------------
________________
( १५३ )
श्वासोश्वासबल प्राण आउखो बल प्राण
भाषा बल प्राण १३ कौड़ी मझोड़ी आदि तेन्द्रीका। प्रश्न
उत्तर
गति कोई
तिथंच गति जाति कोई
तेइन्द्री काय काई
लस काय इन्द्रियां कितनी
३ तीन स्पर्श १ रस २ घ्राण ३ पर्याय कितनी
५ पांच, मन टली प्राण कितना
७ सात, छव तो उपर प्रमाणे
घ्राण इन्द्री वल प्राण वध्यो १४ माखौ कच्छर टीडी पतंगिया बिच्छु आदि
चोइन्द्री का।
उत्तर
गति कोई जाति काई काय काई इन्द्रियां कितनी पर्याय कितनी प्राण कितना
तिर्यच गति चोइन्द्री अस काय ४ च्यार, श्रुत इन्द्री टली ५ पांच, मन टली . ८ आठ, सात तो ऊपर प्रमाणे एक चक्ष इन्द्री वल प्राण और ध्यो
Page #156
--------------------------------------------------------------------------
________________
( १५४ )
१५ पंचेन्द्री की।
प्रश्न
गति कितनी पावै जाति काई काय काई इन्द्रिया कितनी पर्याय कितनी
उत्तर ४ च्यारू ही पावै पंचेन्द्री त्रस काय पांचोंहीं ६ छचों ही पावै सन्नीमें, और असन्नी मे ५ पांच, मन टल्यो, सन्नीमे तो १० दशं ही पावै, असली में : पावै मन टल्यो
प्राण कितना पावै
१६ नारको को पछा।
प्रश्न गति काई जाति काई काय काई इन्द्रियां कितनी पर्याय कितनी प्राण कितना १७ देवताको पुछा।
उत्तर नरक गति पश्चन्द्री त्रस काय ५ पांचोही ५ पाँच, मन भाषा भेली लेखवी १० दशोंही
प्रश्न
उत्तर
गति काई जोति कार्ड काय काई
देव गति पंचेन्द्री बस काय
Page #157
--------------------------------------------------------------------------
________________
इन्द्रियां कितनी पर्याय कितनी प्राण कितना
५ पांचोही ५ मन भाषा भेली लेखवी १० दशोंही
१८ मनुष्य को पूछा असन्नी को ।
प्रश्न
उत्तर
गति कांई जाति कार्ड काय काई इन्द्रियां कितनी पर्याय कितनी प्राण कितना
मनुष्य गति पंचेन्द्री उस काय ५पांच ३॥ श्वास लेवे तो उश्वास नहीं ॥ श्वास लेवेतो उश्वास नहीं
१६ सनी मनुष्य को पूछा।
प्रश्न - उत्तर गति कांई
मनुष्य गति जाति काई
पंचेन्द्री काय कांई
त्रस काय इन्द्रियाँ कितनी
५ पांच पर्याय कितना प्राण कितना
१० दश १ तुमे सन्नीक असन्नी ? सन्नी, किणन्याय मन छै २ तुमे सूक्षमक बादर? बादर, किण ? दौखूछू। ३ तुमे त्रसके स्थावर? बस, किया ०? हालू चालू ।
छव
Page #158
--------------------------------------------------------------------------
________________
( १५६ ) ४ एकेन्द्री सन्नी के प्रसन्नी---असन्नौ, किण. मन
नहीं ५ एकेन्द्री सुक्ष्म के बादर-दोन हौं छै किण. एकेन्द्रौ दोय प्रकार की है, दौखै ते बादर है,
नहौं दोखे ते सुक्ष्म? ६ एकेन्द्री बस के स्थावर-स्थावर छै, हाले
चाले नहौं ७ एकोन्द्री में इन्द्रियां कितनी-एकस्पर्श इन्द्री
(शरीर) ८ पृथ्वीकाय अध्यकाय तेउकाय वायुकाय
वनस्पतिकाय
उत्तर
प्रश्न
असन्नी छै मन नहीं दोन ही प्रकार की छ
सन्नी के असन्नी सूक्ष्म के वादर बस के स्थावर
स्थावर छै
६ बेइन्द्रौ तेहून्द्री चौडन्द्रीको पुछा ।
उत्तर
प्रश
असन्नी छै मन नहीं वादर छ
सन्नी के असन्नो सूक्ष्म के वादर
बस छै
77 के स्थावर
Page #159
--------------------------------------------------------------------------
________________
। १५७ ) १० तिर्यंच पंचेन्द्री की पूछा।
प्रश्न
उत्तर
सन्नी के असन्नी सूक्ष्म के आदर त्रस के स्थावर
दोनं ही छ बादर छै अस छै
११ सन्नौ मनुष्य चौदे स्थानक में नौपजै ।
प्रश्न सन्नी के असन्नी सूक्ष्म के बादर प्रल के स्थावर
उत्तर असन्नी छै बादर छै त्रस छै
१२ सन्नौ मनुष्य ते गर्भ में उमजै जिणारी पूछा ।
प्रश्न
उत्तर
सन्नी
छै
सन्नी के असन्त्री बस के स्थावर सूक्ष्म के बादर
बस छै बादर छ
१३ नारकी का नेरीया को पुछा ।
प्रश्न
सन्नी के असन्नी सूक्ष्म के आदर प्रस के स्थावर
उत्तर सन्नी छै वादर छै बस छै
Page #160
--------------------------------------------------------------------------
________________
१५८ )
।
( १४ देवता की पूछा।
| সুস্ব
उत्तर
सन्नी के असन्नी सूक्ष्म के बादर त्रस के स्थावर
_सन्नो छै
वादर छै बस छ
१५ गाय भैंस हाथी घोड़ा बलद पक्षी आदि पशु
जानवर की पूछा।
प्रश
उत्तर सन्नी के सन्नी
दोन ही प्रकार का छै छिमो
छिमके मन नहीं, गर्भेजके मन छै ' सूक्ष्म के वादर
वादर छै, नेत्र से देखया में
आवै छै वस के स्थावर
बस छै हालै चाल छै १ एकेन्द्री में बेद कितना पावै एक नपुंसक
बद पावै '२ पृथ्वी पाणी वनस्पति अग्नी बायरो यां पांचां में ।
बेद कितनां मावे-१ एक नपुंसक ही छै ३ बेइन्द्री तें इन्द्री चोइन्द्रों में बेद कितनां पावै
एक नांसक बेदही पावे के ४ पंचेन्द्रौमें वेद कितना पावै–सन्नी में तो तीनों
हो बेद पावे है, असन्नौसें एक नपुंसक बेदहीछे
Page #161
--------------------------------------------------------------------------
________________
( १५६ ) - ५ मनुष्य में बेद कितनां पावै-असन्नी मनुष्य चौदे
धानक में उपजै जोगां मे तो वेद ऐक नपुसक हो पावै छ, सन्नी मनुष्य गर्भ में उपजे जिणांमें बेद तीनोंही पावै । ६ नारको में बेद कितना पावै-ऐक नपुसक बेद
हो पावै छ। ७ जलचर थलचर उरपर भुजपर खेचर यां पांच प्रकार का तिर्थचा में वेद कितना पावै-छिमोछिम उपजे ते असन्नी है जिणांमे तो बेद नपुसकही पावै छै, अनें गर्भ में उपजे ते सन्नी के जिणां में बेद तीनों ही पावैछ। ८ देवतामें बेद कितनां पावै-उत्तर-भवनपती, वाणव्यन्तर, जोतिषी, पहिला दूजा देव लोक ताई तो बेद दोय स्त्री १ पुरुष २ पावै छै, और तौजा देवलोक से खार्थ सिद्ध ताई बेद एक
पुरुषही छै। ६ चौबीस दण्डक का जौवां के कर्म कितना
उगणीस दण्डकका जौवांमें तो कर्म आठही पावै छै, अने मनुष्य में सात आठ तथो च्यार
पावै ।
Page #162
--------------------------------------------------------------------------
________________
( १६० ) १ धर्म ब्रत में की अबत में ब्रत में । २ धर्म आज्ञा मांहि के बाहर श्रीबीतरागदेव को . ___ आना मांहि छै। ३ धर्म हिंसा में के दया में—दया में ४ धर्म मोल मिले से नहीं मिले नहीं मिले,
धर्म तो अचूल्य छै। . ५ देव मोल मिले के नहीं मिले- नहीं मिले, ___ अमूल्य है। ६ गुरु मोल लियां मिलै के नहीं मिलै---नहीं मिले,
अमूल्य छै। ७ साधुजी तपस्या करै ते ब्रत में के अब्रत में
ब्रत पुष्टको कारण छै, अधिक निर्जरा धर्म है। ८ साधजी पारणो करे ते ब्रत में के अब्रत में
अब्रतमें नहीं, किणन्याय ? साधुके कोई प्रकार अब्रतरही नहीं सब सावद्य जोगका त्याग छ । तिणसं निरजराथाय छै तथा ब्रत पुष्टको कारण
छ। . ६ श्रावक उपवास आदि तप करै ते ब्रत में के
अब्रत में---ब्रत में। १० श्रावक पारण करे ते ब्रत में के अब्रत में---
अबत में किणन्याय ? श्रावक को खाणों पीणों
Page #163
--------------------------------------------------------------------------
________________
( १६१ ) । पहरणों ए सर्व अव्रत में है श्रीउववाई तथा
सूयगडांग सूत्र में बिसतार कर लिख्या छ । ११ साधुजी ने सूजतो निर्दीष पाहार पाणी
दियां काई होवे, ब्रतमें के अब्रतमें-अशुभ
कर्म क्षय थाय तथा पुन्य बंधे छै, १२ मं ब्रत छै। १२ साधुजी ने असूजतो दोष सहित आहार पाणी
दियां काई होवै तथा ब्रत से के अब्रत मेंश्री भगवती सूत्र में कह्यो छै, तथा श्री ठाणांग सुत्र के तौजे ठानों में कह्यो छै अल्प आयुबंधै अकल्याणकारी कर्म बंधै तथा असूजतो दौधोते
बत में नहौं । पाप कर्म बंधै छै। १३ अरिहंत देव देवता के मनुष्य-मनुष्य छै। १४ साधु देवता के मनुष्य-मनुष्य छ। १५ देवता साधुनौं बंछा करै के नहीं कर-कर साधु __तो सबका पूजनीक है। १६ साधु देवताको बंछा कार के नहीं करै-नहीं करे। १७ सिद्ध भगवान देवता के मनुष्य-दोनं नहौं । १८ सिद्ध भगवान सुक्ष्म के बादर-दोन नहौं । १६ सिद्ध भगवान उसके स्थावर-दोनं नहौं । २० सिद्ध भगवान सन्नी के असन्नी-दोन नहौं । २१ सिद्ध भगवान पर्याप्ता के अपर्याप्ता-दोनूं नहीं।
११. इति पाना फी भरमा
Page #164
--------------------------------------------------------------------------
________________
( १६२ )
१ असंयतौ अबूती ने दीयां कांई होवै श्री भगवती सूत्र के आठ में शतक कट्ठ उपदेशे कह्यो असंयतो अबती ने सूजतो असूजतो सचित अचित च्यार प्रकार को आहार दियां एकान्त पाप होय निर्जरा नहीं होय । २ असंयतो अती जीवां को जौवणो बांछणो के मरणो बांछणो असंयतो को जीवणो वांछणो नहीं; मरणो बांऋणो नहीं, संसार समुद्र से तिरणो बांगो ते श्रीबीतरागदेव को धर्म है ।
३ कसाई नौवां ने मारे तिण वेल्यां साधु कसाई ने उपदेश देवे के नहीं देवे - अवसर देखे तो उपदेश देवै हिन्साका खोटा फल कहै ।
प्रश्न- जौवां को जीवणो बांककर उपदेश देवै के कसाई ने तारखा निमित्त उपदेश देव - उत्तर - कसाई ने तारखा निमित्त उपदेश देवै ते बीतरागको धर्म है ।
४ कोई बाड़ा में पशु जानवर दुखिया है अनें सांधु जिगा रसते जाय रह्या है तो जीवांको अनुकम्पा आणौ छोड़ के नहीं छोड़ नहीं
-
Page #165
--------------------------------------------------------------------------
________________
( १६३ ) छोड़े, किणन्याय, उ० श्रीनिशीथ सूत्रके १२ बारमें उद्देशामें कह्यो छै अनुकम्पा करे त्रस जीव बांधे बंधावै अनुमोदै तो चौमासी प्रायश्चित आवै, तथा साधु संसारौ जीवांको सार संभार करै नहौं साधु तो संसारी कर्तव्य त्यागदिया ।
an
Page #166
--------------------------------------------------------------------------
________________
* अथ अल्पा बोहत *
mr w+
२७
१ सर्व थोड़ा गर्भज मनुष्य । २ तेहथौ मनुष्यणौ २७ गुणो। . ३ , बादर तेज काय का पर्याप्ता असंख्यात गुणां । ४ , पांच अनुत्तरका देवता असंख्यात गुणां ।
,, उपरला त्रिक का देवता संख्यात गुणां । ,, विचला त्रिक का देवता संख्यात गुणां । .. नीचला विश का संख्यात गुगां ।
१२ मां देवलोकका संख्यात गुणां। ,, ११ मां देव लोकका संख्यात गुणां। १० , १० मां का सख्यात गुगां । ११ ,, ६ मां का संख्यात गुणां । १२ ., सातमी नरक का नैग्यिा असंख्यात गुणां । १३ ,, कट्ठी नारकी का नैरिया असंख्यात गुणां । १४ ,, आठमां देवलोकका देवता असंख्यात गुगणां । १५ ,, सातमां देवलोकका देवता असंख्यात गुणां ।
.. ५ मौ नारकौ का नैरिया असंख्यात गुणां । १७ ,, छट्ठा देवलोक का देवता असंख्यात गुणां । १८ ,, चोथो नारको का नैरिया असंख्यात गुणां ।
Page #167
--------------------------------------------------------------------------
________________
}
१६
२० १
२१
२२
तीजा देवलोकका देवता असंख्यात गुणां ।
२३, दूजी नारकी का नैरिया असंखांत गुणां । छिमोहिम मनुष्य असंखात गुणां ।
२४
२८
२६
३०
३१
: ३२
३३
३४
>>
"
"
35
२५
२६,, दूजांकी देव्यां संख्यात गुणो ।
२७
35
335
335
19
""
13
"
""
35
( १६५ )
पांचवां देवलोक का देवता असंख्यात गुणां । तोजी नारकौ का नैरिया असंख्यात गुणां । चौथा देवलोकका देवता असंख्यात गुणां ।
३५. ११.
३६
दूजा देवलोकका देवता असंख्यात गुणां ।
11
पहला देवलोकका देवता संख्यात गुणां । पहलांकी देव्यां संखात गुणौ । भवनपति देवतां असंख्यात गुणां । भवनपति की देव्यां संखात गुणी । पहली नारको को नेरिया असंखात गुणां ।
खेचर पुरुष असंख्यात गुणां ।
खेचरणी संख्यात गुणौ ।
थलचर पुरुष संखात गुणां । थलचरणौ संख्यात गुणौं ।
जलचरण पुरुष संख्यात गुणां ।
33
३७,, जलचरणौ संख्यात गुणों ।
वानव्यंतर देवता संखात दुर्गा |
१,३८ ” ३६ वानत्र्यंतर देवो संगत गुणीं ।
Page #168
--------------------------------------------------------------------------
________________
४०
४ १
४२
४३
४४
४५
४६
४७
४८
४६
25
"3
"
""
33
""
33
"
""
"
35
"
99
५०
५१
५२
५३
५४
५५ बादर पृथ्वीकाय पर्याप्ता असंखात गुणां । ५६, वादर अप्पाकाय पर्याप्ता असंख्यात गुणां । ५७ बादर बायुकाय पर्याप्ता असंख्यात गुणां । बादर तेऊकाय अपर्याप्ता असंख्यात गुणां ।
५८
चूह
बादर प्रत्येक शरीरौ वनस्पति अपर्याप्ता असंख्यात गुणां ।
""
"
53
53
33
"
( १६६ )
जोतषी देवता संख्यात गुणां ।
जोतीषौनो देवो संख्यात गुणौं । खैचर नपुंसक संख्यात गुणां ।
थलचर नपुंसक संख्यात गुणां ।
जलचर नपुंसक संखात गुणां । चोsन्द्रीका पर्याप्ता संख्यात गुणां ।
पंचेन्द्रका पर्याप्ता विशेषाईया ।
बेन्द्री पर्याप्ता विशेषाईया |
तेइन्द्री पर्याप्ता विशेषाईया |
पंचेन्द्रौ अपर्याप्त संख्यात गुणां ।
"3
"
चौइन्द्रो अपर्याप्ता विशेषाईया |
इन्द्रो अपर्याप्ता विशेषाईया ।
बेन्द्र पर्याप्ता विशेषाईया |
बादर प्रत्येक वनस्पती पर्याप्ता श्रसंख्यात गुणां ।
बादर निगोद पर्याप्ता असंख्यात गुणां ।
Page #169
--------------------------------------------------------------------------
________________
( १६७ ) ६० ,, बादर निगोद अपर्याप्ता असंखयात गुणां। ६१ ,, बादर पृथ्वौकाय का अपर्याप्ता असंखात । . - गणां ।
। ६२ ,, बादर अप्पकाय अपर्याप्ता असंखघात ग णां। ६३ ,, बादर वायुकाम अपर्याप्ता असंखयात गणां । , सूक्ष्म तेउकाय अपर्याप्ता असंखशात गुणां।
सूक्ष्म पृथ्वी अपर्याप्ता विशेषईया। ,, सूक्ष्म अप्य अपर्याप्ता विशेषाईया। ६७ ,, सूक्ष्म वायु अपर्याप्ता विशेषाईया ।
,, सूक्ष्म तेउ पर्याप्ता संखयात गणां । ,, सूक्ष्म पृथ्वी पर्याप्ता विशेषाईया।
सूक्ष्म अप्प पर्याप्ता विशेषाईया। , सूक्ष्म वायु पर्याप्ता विशेषाईया। ,, सूक्ष्म निगोद अपर्याप्ता असंखशात गुणां।
,, सूक्ष्म निगोद पर्याप्त संखाात गुणां। .. ७४ ,, अभव्य जीव अनन्त गगां ।
, पड़वाई समदृष्टी अनन्त गुणां। ७६ ,, सिद्ध भगवंत अनन्त गुणां । ७७ ,, बादर बनस्पति पर्याप्ता अनन्त गुणां । ।
,, बादर पर्याप्ता विशेषाईया। 9. ,, बादर वनस्पति अपर्याप्ता असंखोत गुणां
Page #170
--------------------------------------------------------------------------
________________
०
.
c
m,
( १६८ ) ८० ,, बादर अपर्याप्ता विशेषाईया। ८१ ,, सर्व बादर विशेषाईया। ८२ ,, सूक्ष्म वनस्पति अपर्याप्ता असंखात ग णां । ८३ ,, सूक्ष्म अपर्याप्ता विशेषाईया। ८४ ,, सूक्ष्म वनस्पति पर्याप्ता संखशात गुगां । ८५ ,, सूक्ष्म पर्याप्ता विशेषाड्या। ८६ ,, सर्व सूक्ष्म विशेषाईया। ८७ ,, भव्य जीव विशेषाईया। ८८, निगोदिया विशेषाईया। ८६ ,, वनस्पति विशेषाईया। ६० ,, एवीन्द्री विशेषाईया। ६१ ,, तिथंच विश पाईया। ८२ ,, मित्थााती विश पाईया । ६३. ,, अबती विशेषाईया। ६४ ,, सकषाई विश षाईया। ४५ ,, छद्मस्थ विश पाईयो । ६६ ,, सजोगी विशेषाईया। ६७ ,, संसारी जीव विशेषाईया। । ६८ ,, सर्व जीव विशेषाईया।
تا
له له له له له
به
له له
الله
Page #171
--------------------------------------------------------------------------
________________
अथ गतागतकी थोकड़ो।
जीवका ५६३ भेदकौ बिगत | १४ सात नारकों का पर्याप्ता अपर्याप्ता । ४८ तिर्यंचका ।
४ सूक्ष्म बादर पृथ्यांकायका पर्याप्ता अपर्याप्ता । ४ सूक्ष्म वादर अपकायका पर्याप्ता अपर्याप्ता 1 ४ सूक्ष्म वादर वाउकायका पर्याप्ता अपर्याप्ता ।
४ सूक्ष्म बादर ते कायका पर्याप्ता अपर्याप्ता 1
६ सूक्ष्म (वादर प्रत्येक साधारण वनस्पति कार्यका पर्याप्ता अपर्याप्ता ।
६ तीन विकले का पर्याप्ता अपर्याप्ता ।
२० जलचर थलचर उरपर भुजपर खेचर ए पांच प्रकार का तिर्यञ्च सन्नी असन्नी का पर्याप्ता अपर्याप्ता
३०३ मनुष्यका -
२०२ सन्नो मनुष्य, १५ कर्म भूमि, ३० अकर्म भूमि, ५६ अन्तर द्वीप ए १०१ का पर्याप्ता अपर्याप्ता । १०१ असन्तो मनुष्य ते सन्नी मनुष्यका मल मूत्रादि
चवदे स्थानक में उपजै ते अपर्याप्ता, अपर्याप्ता अवस्था में मरे । १९८ देवताका
भुवन रति १७, परमाधा मी १५, बानत्र्यंतर १६, त्रिभू - मका १०, जोतषी कल्वित्रिक ३, लोकान्तिक ६, देवलोक १२, प्रवेयक, अनुत्तर विमान ५, एह ६६ जातिका
पर्याप्ता अपर्याप्ता
1
|| इति ||
२२
Page #172
--------------------------------------------------------------------------
________________
( १७० ) भरतक्षेत्रमे ५१ पावैतिर्यश्चका ४८ मनुष्य ३। जम्बूद्वीप में ७५ पावै-- २७ भरतक्षेत्र १ एरभरत १, देव कुरु १, उत्तरकुल १, हरिवास १, रम्पकवान १, हेमवर १, महगवर १, महविदेह १, यह नव क्षेत्र का सन्नो मनुष्प पर्याप्ता अपर्याप्ता १८, तथा असन्नी मनुष्य ४८ तिर्यञ्चका। लवणा समुद्र में पावै २१६-- अन्तरद्वीप ५६ का तो १६८, ४८ तिर्यञ्चका । धातको खंड में पाये १०२-~
५४ मनुष्य का अठारह क्षत्रों का त्रिगुण, ४८ तिर्यञ्च का कालोदधि से पाये ४६.-- तिर्यञ्चका ४८ में से चादर तेउका २ टल्या। अर्ध पुष्कर वर होप में पावै १०२धातको खंडवत् जाणवो। . ऊंचा लोक में पाथै १२२-- ७६ देवताका। ४६ तिर्यञ्चका। नौचालोक में पावै ११५---- भवनपति २०, पर्भाधामी ३०, नारकी १४, तिर्यञ्चका ४८, मनुष्यका ३ सर्व १६५
Page #173
--------------------------------------------------------------------------
________________
( १७१ ) तिळ लोक में पावै ४२३ -
३०३ मनुष्यका। ४८ तिर्यञ्चका। ३२ वानव्यन्तरका। २० त्रिभूमका। २० जोतिष्यांका।
Page #174
--------------------------------------------------------------------------
________________
( १७२ )
आगति | १५ कर्म भूमि मनुष्य, तिर्यंच पंचेन्द्री पहिली २५ । ५ सन्नी ५ असन्नी पर्याप्ता नारकी में गति १५ कर्म भूमि मनुष्य, तिर्यच पंचेन्द्री
४० ५ सन्नी का पर्याप्ता अपर्याप्ता ४०
| आगति | १५ कर्म भूमि मनुष्य, ५ सन्नी तिर्यव का दूजी
। २० पर्याप्ता नारकी मे गति
उपरवत् ४०
आगति १५ कर्म भूमि मनुष्य, ४ सन्नी तिर्यंच का तीजी १६ पर्याप्ता भुज पर टल्यो नारकी मे । गति
उपरवत्
'आगति' १५ कर्म भूमि मनुष्य, ३ सन्नी नियंच चौथी १८ । पर्याप्ता ( भुजपर १ खेबर २ टल्यो) नारकी मे । गति ।
उपरवत्
oc
'आगति: १५ कर्म भूमि मनुष्य, १ जलचर, १ उरपांचवी । १७ पुर का पर्याप्ता
नारकी में
गति
उपरवत्
आगत ६५ कर्म भूमि १ जलचर सन्नी का
६ पर्याप्तो
छट्ठी
नारकी मे
गति
उपरवत्
Page #175
--------------------------------------------------------------------------
________________
( १७३ )
आगति १५ कर्म भूमि, १ जलचर सन्नी तियंच १६ का पर्याप्ता स्त्री विना
सातमी नारकी मे
| गति
५ सन्नी तिर्यंच का पर्याप्ता अपर्याप्ता १०
१० भवनपति अगति १०१ सन्नो मनुष्य, ५ सन्नी, ५ असन्नी १५ पर्मा धामी १११ तिर्यंच का पर्याप्ता १११ १६ वानव्यंतर
गति । १५ कर्म भूमि, मनुष्य, ५ सन्नी तिर्यंच १० त्रिझूमका ए, जातिका ४६१ पृथ्वा १ अप्प, १ वनस्पति का पर्याप्ता
अपर्याप्ता सूक्षम साधारण विना आगति
१५ कर्म भूमि, ३० अकर्म भूमि ५ सन्नी जोतपी पहिला ५०
तिर्यंच का पर्याप्ता देवलोक में गति
उपरवत्
४६
दूजा देवलोक मे
आगति १५ कर्म भूमि, ५ सन्नी तिर्यंच, अकर्म ४० । भूमि, का पर्याप्ता २० (५ हेमवय, अरु.
णवय, टल्या) गति
उपरवत्
पहिला
आगति | १५ कर्म भूमि, ५ सन्नी तिर्यंच ५ देव. ३० कुरु ५ उत्तरकुरु का पर्याप्ता गति
उपरवत् २६
करिवषिक में
आगति
दूजा तीजा ". १५ कर्म भूमि, ५ सन्नी तिर्यंच पर्याप्ता कल्बिषिकतीजा
आठवा ताई गति । १५ कर्म भूमि ५ सन्नी तिर्यंच पर्याप्ता । का देवना मे. अपर्याप्ता
-
न
Page #176
--------------------------------------------------------------------------
________________
आगति
१५ कर्म भूमि मनुष्य का पर्याप्ता
२३ नवमांसे सर्वार्थ १५
सिद्धिताई
गति
१५ कर्म भूमि, का पर्याप्ता अपर्याप्ता
आगति पृथ्वीपाणी । २४३ वनस्पति में
गति १७६
१०१ असन्नी मनुष्य, ४८ तिर्यंच १५ कर्म भूमि, का, पर्याप्ता अपर्याप्ता ३० एवं १७६ लड़ी का और ६४ जाति का देवता एवं सर्व-२४३ थया
लड़ीका
आगति | १७६.
गति
लड़ीका
तेऊ वाउ काय में
तिर्य चका
४८
लड़ीका
आगत तीन विकलेंन्द्री १७६
| गति
लड़ीका
पंचेन्द्री में | गति
ओगति
लड़ीका १७ असन्नी तिर्यञ्च १७६
१७६ तो लड़ीका, ५६ अन्तरद्वीप ५१
जानिका देवता, १ पहली नारकी १०८ ३६५ का पर्याप्ता अपर्याप्ता २१६ सर्वमिली ३६५ आर्गात १७६ तो लड़ी का, ८१ देवता ७ नारकी
। पर्याप्ता (नवमांसे सर्वार्थसिद्ध ताई १८ सन्नी तिर्यञ्च २६७
टल्या) মারি।
(नवमांसे सर्वार्थ सिद्धताईका टल्या
Page #177
--------------------------------------------------------------------------
________________
( १७५ )
आगति
लड़ीका में से तेउ वाउका ८ टल्या
। १५१ / लड़ीका
१६
असन्नी मनुष्य में
गति
लड़ीका
-
आगति १७१ तो लड़ीका में से, ६६ देवता ६
२० सन्नी मनुष्य २७६ | नारकी
गति
सर्व
२०
२१
२२
आगति १५ कर्म भूमि, ५ सन्नी तिर्यंच देवकुरु उत्तर १० भवनपति, १५ पर्माधामी, १६ वाणकुरु का युग- गति | व्यंतर, १० विझूमका, १० जोतषी, लिया में ) १२८ २ पहिलो दूजो देवलोक, १ पहलो कल्वि
षिक एवं ६४ का पर्याप्ता अपर्याप्ता हरीवास आनति
उपरवत् रम्यकवास। २० का युगलिया गति ६४ जातिका देवता में से १ पहिलो
। १२६ । कल्विपिक टल्यो हेमचय अरु
उपरवत् णवय का युगलियां में
गति । ६४ जातिका देवां मे करिवषिक १ और
१२४ दूजो देवलोक टल्यो ५६ अन्तर
| आगति १५ कर्म भूमि ५ सन्नी ५ असन्नी, २४ द्वीप युगलियां तिर्यंच
गति
५१ जातिका देवांका पर्याप्ता अपर्याप्ता
आगति
२५
Page #178
--------------------------------------------------------------------------
________________
२५
२६ तीर्थङ्करा में
२७
२८
केवल्यां में
२६
चक्रवर्त
वासुदेव मे
वलदेव में
३० सम्यक दृष्टि में
आगति
१०८
गति
मोक्षकी
आगति | ३५ देवता वैमानिक, ३ नरक पहली से
३८
गति
( १७६ )
८१ देवता ( पर्मा धर्म १५ कल्त्रिगिक ३ टल्या १५ कर्म भूमि, ४ पहली से चोथी सन्नी तिर्यच १ पृथ्वी १ अप
नर्क,
वनस्पति
मोक्ष
आगति ८१ जाति का देवता उपरवत्, १ पहली
८२
नरक
o
गति
७ सात नारकी से जाय पदवी में मरेतो
१४
आगति | १२ देवलोक, ६ नव वैयक, ६ लोकान्तिक तथा २ नारकी पहली दूजी
३२
७ नारकी मे जाय
गत
१४
आगति | ८६ जातिका देवता उपरवत् २, नारकी
•
८३
पहली दूजी
गति
पदवी अमर छै
आगति | १७१ लड़ीका ( उ वाउका टल्या ) ६६ ३६३ | देवता, ८६ युगलिया, ७ नारकी
गनि
२५८
०
६६ देवता, १५ कर्म भूमि, ६ नारकी ५ सन्नी तिर्यंच का पर्याप्ता अपर्याप्ता, ५ असन्नी, ३ विकलेन्द्री का अपर्याप्ता एवं २५८
Page #179
--------------------------------------------------------------------------
________________
-
भागति १७६ लड़ोका, ६६ देवता, ८६ युगलिया, ३१ मित्थ्या दृष्टि मे ३७१ / नारकी ७ एवं
गति
५ अनुत्तर का पर्याप्ता अपर्याप्ता टल्या ५५३
आगति सममित्थ्या ] ३६३
समदृष्टि जिम ' दृष्टिमे । गति
तिजे गुणठाणे मरे नहीं
३४
आगति
१७१ लड़ीका, ६६ देवता, ५ नारकी साधु में
२७५ गति १२ देवलोक, ६ लोकान्तिक, प्रेवेयक
७०५ अनुत्तरका पर्याप्ता अपर्याप्ता { आगति
१७१ लड़ीका ६६ देवता, ६ नारकी एवं श्रावक में
गति । १२ देवलोक, ६ लोकान्तिक, पर्याप्ता - ४२ अपर्याप्ता । आगति
मित्थ्याती जिमजाणवो ' पुरुष वेद में
३७१ गति ५६३ आगति
उपरवत् स्त्री वेद में
गति
सातमी नरक में नहीं जाय
सर्प
३.
। ३७१
__ ३७ नपुंसक वेद में
आगति
186 देवता, १७९ लड़ीका, ७ मारकी गति
सर्व इति गतागत सम्पूर्णम् ।
Page #180
--------------------------------------------------------------------------
________________
( १७८ ) गुलाबचायजी लुणिया कृत
॥ ढाल ॥
॥ राग आसावरी॥ खाम जयपुर चौसास करावो। अब हुकम जलदी फुरमावो ॥ स्वा० ॥ ए अांकड़ी ॥ बहु बर्षों से भरम हमारो, ता पे हुकम चढावो। नतन अर्ज पन्च सुन २ के, मत पूरातन विसरावो । खा० ॥ १ ॥ भव. सर क्षेत्र फर्शना कहोनें, इम किम नित ललचायो । क्षेत्र न अावे इत फर्शवन, भापही महर करावो ॥२॥ आवत धावत धावे बारौ, क्यू टाबर बहलायो। थल्य बुद्धि हम बेंत न जाने, भामही बेत बतावो ॥३॥ अपलं सौंच्यो जान कृपानिधि, जलदी सार करावो। रढ नहीं छोडें अपर न मानें। मानौ मुक बकसावो ॥ ४ ॥ कर जोड़ी कहै गुलाबचन्द मुझ, प्रविनय माफ सावो। जयपुरको चौमासो अबधी, श्री मुख हुकम दिरावो ॥ ५ ॥
श्री भिक्षु गणिराज के गुणा की ढाल । भाचारज जबर आप जानी, वुई उत्पतिथा अतिठानी । समय रस पेख वीर वाणी, प्रगट मग कियो न पै छायौ ।
Page #181
--------------------------------------------------------------------------
________________
( १७६ ) अष्टादश सौलह समय; सुदि पूनम पाषाढ़।। संयम खाम समाचस्यो स काई,
गुण गिरवो दिल गाढ। पूज्यने सुमत अधिक भाई,
___ खाम भिक्षु भजले भाई। निर्मल रस समय तणा शोधी,
विमल मति आप अधिक बोधौ । युगक्ष युतसे पाखण्ड जोधी, रमल दुर्गतिनो पन्थ रोधौ। दान दयादिक ऊपरे, ग्रन्थ हजारां कौध । जीव घणा ससमाविया स काई, देश देश प्रसिद्ध । पूज्यनौ दशाज अधिकाई । स्वाम० ॥ २ ॥ शिष्य गणपति नामे करणा, बत्तीसा लिखत माह निर्णा । माण बिन पगला नहीं भरणा, मज गुणसाठे उच्चरणा । गण बाहिर अवनीतड़ा, तीर्थ में न गिणाय । तसु वन्द ते जिन कह्या स कांई, आज्ञा बाहिर ताय । एह मर्यादा सुखदाई ॥ स्वाम० ॥ ३ ॥ मुनि गया मांही जे स्थाना, तथा बाहिर ते गलखाना । विहंने मिण गाना जाणो, अवगुण बोलणरा पचखायो। __ साथ नहीं लेजावणा, ते पिणछे पचखाण । ___ मन फटे जिम नहीं बोलनो स काई, यह खामनी वाण।
लिखत मैंतालीसा मांहो । वाम० ॥ ४ ॥
Page #182
--------------------------------------------------------------------------
________________
( १७८ ) गुलाबचपजी लुणिया हत्त
॥ ढाल ॥
॥ राग आसावरी ॥ खाम जयपुर चौसास करावो। अब हुकम जलदो फुरमावो । स्वा० ॥ ए कड़ी। बहु बर्षों से अरज हमारी, ता पे हुकम चढावो। नूतन अर्ज पन्य सुन २ के, मत पूरातन विसरावो । स्वा० ॥ १ ॥ अवसर क्षेत्र फर्श ना कहोनें, ड्रम किम नित ललचावो । क्षेत्र न घावे इत फाईवन, भापही सहर करावो ॥२॥ आवत आवत भावे बारौ, क्यु डाबर बहलायो। बल्य बुद्धि हम बेंत न जानें, आपही बेंत बतावो ॥ ३ ॥ अपलं सौंच्यो जान कृपानिधि, बलदी सार करावो । रढ नहीं छोडें अपर न मानें। मानौ मुझ बकसावो ॥ ४ । कार जोड़ी कहै गुलावचन्द मुझ, प्रविनय माफ झाावो। जयपुरको चौमासो अबधी, श्री मुख हुकम दिरावो ॥ ५॥
श्री भिक्षु गणिराज के गुणा की ढाल । भाचारज जवर पाप जानी, वुद्ध उत्पतिया अतिठानी । समय रस पेख वीर वाणी, प्रगट मग कियो ज पहागौं ।
Page #183
--------------------------------------------------------------------------
________________
( १७६ ) अष्टादश सौलह समय, सुदि पूनम पोषाढ़। संयम खाम समाचयो स कांई, .
गुण गिरवो दिल गाढ। पूज्यने सुमत अधिक आई,
__ खाम भिक्षु भजले भाई। निर्मल रस समय तणा शोधी,
विमल मति आप अधिक बोधौ । युगत युतसे पाखण्ड जोधौ, रमल दुर्गतिनो पन्थ रोधौ। दान दयादिक ऊपरे, ग्रन्थ हजारां कौध। जीव घणा समझाविया स काई, देश देश प्रसिद्ध । पूज्यनी दशाज अधिकाई । स्वाम० ॥२॥ शिष्य गणपति नामे करणा, बत्तौसा लिखत माह निर्णा । पाण बिन पगला नहौं भरणा, मज गुणसाठे उच्चरणा । गण बाहिर अवनीतड़ा, तीर्थमें न गिणाय । तसु बन्द ते जिन कह्या स काई, आज्ञा बाहिर ताय । एह मर्यादा सुखदाई ॥ खाम० ॥ ३ ॥ मुनि गया मांही जे स्थाना, तथा बाहिर ते भलखाना। विहंने पिण गद्यना जाणो, अवगुण बोलणरा पचखायो। साथे नहीं लेजावणा, ते पिणछे पचखाण । मन फटे जिम नहीं बोलनोस कांई, यह खामनी वाण। .. लिखत मैंतालीसा मांही । स्वाम० ॥ ४ ॥
Page #184
--------------------------------------------------------------------------
________________
( १८० ) . पाना लिख जाचे गा मांही, बाहिर ते ले जाणा नाहौं। खेनामें पिमा नहीं रहणो, लिखत गुमासठे इम बैगो । उगशीस पन्द्रह समय, कार्तिक पुनम पेख । पैंसठ ठाणा लाडवं स काई, जयजश हर्ष विशेष । परम सम्पत गणपति पाई । खाम० ॥ ५ ॥
श्री भिक्षु गणिराज के गुणा की ढाल।
भेट भव चरण ले शरण भिक्षु तणा मरणरा डरक सब दूर भागे । करण जोगां तशी खबर पडियां पछे, स्वाम भिक्षु तगी छाप लागे । भे० ॥ १ ॥ बुद्ध की पच्च भाजन भये भरत में, पंच में काल घसराल आरे । सूत्र में बांचिया ज्ञान में गचिया, तरण तारण भविक नौव तारे ॥ भे० ॥ २ ॥ पुज्य भिक्षु तणा साध वर साधवी वीर गणधर जेहवी चाल चाले। मंच में काल में चीज चौथा तगो, भागलारे मन मांय साले ॥ भे० ॥ ३ ॥ पूज्य भिक्षु तगो, बौर गा घर तो, एक श्रद्धा कछु फर नाहौं । दूसरी मोय बताय भविक जन शुद्ध साधु इण भरत मांहो ॥ भे० ॥ ४ ॥ काम करड़ो घमो खास श्रद्धा तणो । हिवड़े बैसवो दीहिलो जान भाई। हिस्मत वावजो बात विचारज्यो मदमी राखज्यो मन आहौ ॥ मे० ॥ ५॥
Page #185
--------------------------------------------------------------------------
________________
( 1228 )
अथ जंबू कुंवर की चोपाई ।
1
हिवे परभव मन में चिन्तवे, मुझ में अवगुण अनेक । दुत मैं कोधा घणा, सुकृत नहीं कौधो एक ॥ १ ॥ मैं गुजारे घर नामोलियो, संगत कौधौ खोटी । चोरो कुलंच्छन सिखियो, आपण खामी मोटौ ॥ २ ॥ चोरी करौ धन लेई पारको, ते मैं पोष्या चोर | दाह दोघो पर जीव में, बांध्या कर्म कठोर ॥ ३ ॥ ड्रग नें इत ऋद्ध आई मिलो, पिग धुड़ सम जाणो | ते छोडतां बिलम्ब करे नहीं, एतो उत्तम प्राणौ ॥ ४ ॥ ग् नें पाठ कोमण इसड़ी मिली, अपच्छर ने उगिहार । त्यांने पीजी ने परहरे, विन भोगवियां नार ॥ ५ ॥ आम तरुण तरुणी घरे, वय चढती है यांरी | भर जोबन में व्रत चादरे, मुक्ति हामी दृष्टि भारी ॥ ६ ॥ इसड़ो मानव दुग जगत में, मैं तो नयणा न दौठो । सोम निजर शीतल अङ्ग के मुझ लागे छै मौठो ॥ ७ ॥ हूं जाणतो सुख मो ने घणा । पिग लगा सम जागं । धनोपम एक धर्म विना जीवतव्य अप्रमाणं ॥ ८ ॥ जंबू कुमर तणा सुख देखतां, महारां सुख अल्पमात । ए इसड़ो मुख छोडौ निसरे, आ अचरज वाली बात ॥ ८ ॥ मोनें पिण्य · दूगारो वैराग देखने, खागे सागो संसार | अंबू
a
Page #186
--------------------------------------------------------------------------
________________
( १८२ ) कुवर साथै लगे, लेव संजम भार ॥ १० ॥षो साह जिम संयम आदरे, हूँ पिण दूगरी लार। काम भोग सर्व छोड ने कर देवू खेवो पार ॥ ११ ॥
* ढाल २ * ह जंबू कुवर ना. वचन सुणी ने, अन्तरङ्ग माही भिनोरे । मुक्त तणा सुख जाण्या अनोपम, संसार सुखां सं विहनो रे ॥ परमव चोर चोरा ने समझावे ॥ १ ॥ जंबू कुंवर दौख्या लेसी परभाते, तिग में संसार लाग्यो छै खारो रे । हं पिण दौख्या लेसं तिण लारे, थे ढौल म आणो लिगारो रे ॥ पर० ॥ २ ॥ ओमां चोरी कर के पर धन मेलियो, दाइ घणा रे दोधी रे । ते धन तो सगला न्यातिला मिल खादो, पापरी पांती किण हो न लौधौर ॥ ५० ॥ ३ ॥ मोह अंध जीव हुवो मतवालो, त्यांने ब्यातिला मोठा लागेरे । अनन्त जन्म मरण दुःख दायक, सुशिया में जंबू कुवर आगेरे ॥ ५० ॥ ४ ॥ ए मेलो -मिल्यो ते विछड़ जासौ, संसार नौ कोची मावारे । हाथ घसंता रहा न्यातिला, त्यां रोय रोय नयम गमायारे ॥ ५० ॥ ५ ॥ नित २ उठ रोवे प्रभाते, याद पावै ज्यू फाटे छातौरे । त्यांने सुपने माहे पिल्य मेनो न दौठो, सुख दुःखरी नही पूरी बातौरे । प० ।
Page #187
--------------------------------------------------------------------------
________________
:
( १८३ ) ६॥ देव गुरु धर्म रत्न तीनुई, रूड़ौरोत ओलखायारे । बले जीवादिक पदारथ नवांरा, भौन २ भेद बतायारे ॥ प० ॥ ७ ॥ पांच सो चोर परभव ग बचन सुणी में, वैराग्य सगलार आयोरे । दीक्षा ले वारी सगला मन धारी, ज्ञान अपूरब पायोरे ॥ ५० ॥ ८॥ पांच से चोर परभव चोर आगे, सगला बोले जोड़ी हाथोर । जोथे जंबू कुंवर साथै घर छोडो तो, म्हे पिण घर छोडां रहवां थारी साथोरे ॥ ५० ॥ ६॥ थे ठाकर म्हे चाकर हता, म्हे रहता थां तूं भेलारे। थे चारित्र ल्यो तो म्हे पिण ले स्यां, रहे किम चकां एवेलारे । प० ॥१०॥ परभव चोर पांच से चोरां तूं, हुवा संजम ने त्यारोरे । भां मुक्त तणों सुख साश्वता जाण्या अथिर जाण्यो संसारो रे ॥म० ॥ ११ ॥
. ॥ ढाल ३ जी॥ ___ए आठुई कामणी, दौखे अपच्छर में उणिहार। इण परशिजी परहर, एकिम काटे जमवार ॥ जंबू काल्यो मानरे जाया इस किम दिने छह ॥ १ ॥ ए दुःखणो होसी घणी जाया तो विन सारी दुःखणी थाय । रवि प्रथमतां ज्यूं हुवे जंबू बदन कमल ज्यूँ कुमलाय ॥ २ ॥ ए भाळुई स्त्री तेह तूं सुख भोग
Page #188
--------------------------------------------------------------------------
________________
( १८४ ) वले संसार । दिन पाछा रड़ियां पछे तूं लौजे संयम भार ॥ जं० ॥ ३ ॥ जे भामण तूं भौनो रहे माता न कर धर्म बिचार । पिसतावो ज्यां में पड़े, ते यँही हारे जमवार ॥ माता तुम्हे मानलो माता ले स्यू संजम भार ॥ ४ ॥ मतहिणा जे मानवौ माता, ते मिथ्या मत में भरपूर । रमणौ रूप में ते रमे, त्यांमु दुर्गत नहीं है दूर ॥ माता• ॥ ५ ॥ ए आई स्त्री त्यांने समझाई मैं इण रात। त्यां श्री जिन धर्म में श्रीलख्यो दीक्षा ले सौ मुझ साथ ॥ माता०॥ ६ ॥ तूं मुझ आंधा लाकड़ी जाया तं मुझ जीवगा प्राण । तुझ बिन नग सुनो अछे तू भाय जाण म जाण ॥ ज० ॥ ७ ॥तोने । पाल पोष मोटो कियो त्यांने दून किम दीजै छह । हिवे माता पिता मेले रोवता, त्यांरी दया न आणे तेह ॥ ज०॥८॥ एक लोटो पाणी पिऊ त्यांमें मात पिता छै अनन्त । हिवे दया सगलांरी पालसं सारां पातम सम गोणंत ॥ माता० ॥ ६ ॥ श्वाश रो विश्वास मोनें नहीं माता खिण मांही रङ्ग विरङ्ग । तो रती किम पाएँ संसार में माता तिण हुँ गयो मन भंग ॥ माता. ॥ १० ॥ हिवे मोह न कौजे माताजी मांहरी माता मोह तूं बंधे पाप कर्म । थे आड डोड में क्युं पड़ो थे पिण पालो साधुरो धर्म ॥ मा० ॥ ११ ॥ साध
Page #189
--------------------------------------------------------------------------
________________
पणो सुध पालस्यां माता की छे कर्मारा नाल । शिव रमणी बेगो बरे वलि मिट जावे सर्व जंजाल मा० ॥ १२॥ ए काचो सगपण के संसार नो माता, काचो स्नेह छ एह । मो साथ ही संजम पादरी कसे अविचल धर्म स्नेह ॥ मा० ॥ १३॥ . . . . .
॥दोहा॥. . __ मात पिता जवू कुवरना, सांभलियो जिनवर धर्म सार
बैगग घायो घट भौंतरे, जाण्यो अथिर संसार ॥ १ ॥ मोरो नंबू कुवर दौख्या लिये, म्हे पिण "लेस्यां लार । काल कितोएक जीवणो, हिव कर देवां खेलो पार ॥२॥ इम हिज आठ स्त्री तणा, मात पिता . तिणवार । पुत्री नवाई होख्या लिए, म्हे पिण ले स्यां संजम भार ॥ ३ ॥ आठ स्त्रीने जंबू कंवर ना, मा बाप सहित सतावीस । वलि पांच सो चोरने परभव; ए पांच सो अठाइस ॥ ४ ॥ ए पांच, सी अठावीस तणा, किया दौख्या महोछब-पुर । धन खरचे तिहां अतिघगो बाजंत्र बोज, रह्या रमातूर ॥ ५॥ पाय उभा सुधर्मा खामौ कन्हे, हिवे बोले जोड़ी हाथ। काढो जन्म मरण रौ लाय थी, दीक्षा दो स्वामी नाथ ॥ ६ ॥. पांच सो पठाईस जणाने, दौना दी तिण ठाम।-पाचोर, सिखाय परिपक किया, त्यां सगला रा शुद्ध परिणाम ॥ ७ ॥
२४
Page #190
--------------------------------------------------------------------------
________________
* ढाल ४ *
"
- जंबू कुमार चारित्र लियो, पांच सौ ने सतावौस
लार हो । मुणिन्दा । त्यां सिंह जिम संजम आदयो, ते पाले है निरतौचारही मुं० धन्य धन्य जंबू खाम नॅ ॥ १ ॥ एक जंबू कुँवर नं समझावियां, हुश्श्रो घणो उपगार हो मु० हुइ बधोतर जिन धर्म रौ, वले हवो घणारो उपगार हो मु० ॥ धन्य० ॥ २ ॥ किय हो भारी कर्मा ने संजम दियां, हुवे घणा रो विगाड़ हो मु० वले हेला निन्दा हवे जिन धर्मगे, घणारे बधे अनन्त संसार हो मु० || ३ || पांच से चोरां में प्रति बोधिया, ते हुंता प्रकृत रा फणिन्द हो मु० त्यांनें समझाय नें मारग आणिया, ते पिग पाम्या परमान्द हो मु० ॥ ४ ॥ केई काछ लपटी कुशौलिया, ते हँता घाड़ा फाड़ हो मु० त्यांनें उपदेश देई ठाय आणिया, किया मोटे। अणगार हो सु० ॥ ५ ॥ चोर हुंता सगलाई पापीया, ते करता अनेक अकाज हो मु० त्यांनें सगला नें धर्म पमाय में, दियो मुक्त पुरौनो राज हो मु० ॥ ६ ॥ भगवत श्रीवद्ध मानजी, पाटवी सुधर्म खाम हो मु० त्यां सुधर्म स्वाम रा पाटवौ, नवू खामी त्यांरो नाम हो मु० ॥ ७ ॥ गंध हस्तींनी त्यांने श्रोपमां, पुरुषां मांही
1
20
Page #191
--------------------------------------------------------------------------
________________
. ( १८७ ) सिंह समान हो मु० त्यां सिंह जिम संजम हादसो, सिंह जिम पाल्यो चारित्र निधान हो मु० ॥ ८॥ वाल ब्रह्मचारी थेटरा, जिन शासण ग शृङ्गार हो मु० तौजे पोट भगवान रे हुआ, घणा साधारा सिरदार हो म० ॥ ६ ॥ च्योर तीर्थ. माही दोपता, त्यांरी सोम निजर शीतल अंग हो मु० सूरज ज्यं तप तेज आकरो, चन्द कला ज्यं चढते रङ्ग हो मु० ॥ १० ॥ गुण त्यांमें छ भतिषणा, समुद्र जेम प्रथाय हो मु० कोड़ जिह्वा कर वर्ण वे, तोही पूरा कह्या नहीं जाय हो मुं० ॥ ११ ॥ बले गमता लागे तीर्थ में, तिण दौठां पामें पाणन्द हो मु० त्यांरी बाणौ अमृत सारषी, सुणवा पावे नरनार हो मु० ॥ १२ ॥. त्यांने धर्म कथा निरन्तर कहै, कहै मौवादिक ना भेद हो मु० कई सुण २. श्रावक रां प्रत भादरे, केई चारित्र लहे पाण उमेद हो मु० ॥ १३ ॥ से सोलह वरस घरमें रह्या, वर्ष चौसठ चारित्र पाल हो मु० तिण में वौस वर्ष छद्मस्थ रह्या, केवली रवा वर्ष चमाल हो मु० ॥ १४ ॥ सर्ब पाऊखो असी वर्ष नो पाल्यो छै जब स्वाम हो म० घणा जौवां ने प्रतिबोध नं, पहुंता अविचल ठाम हो- मु० ॥ १५ ॥ ते छुटा संसार ना दुख थकी, पाम्या सुख अनन्त हो मु० बले जनम मरण नहौं मुक्त में, त्यांरी कदैई न पावे पन्त
Page #192
--------------------------------------------------------------------------
________________
( १८८ .) हो मु० ॥ १६ ॥ और साधनें साधदौ, गया छै देवलोक मांय हो मु. ते पिश मुक्ति, सिधावसी, आहुई कर्म खपाय हो म० ॥ १७ ॥ शासण श्री वृद्ध मान री, पाको दोपायो जीबू खाम हो मु० आप तौस्या : औरां में त्यारीया, त्यांरो लौजे नित्य प्रति नाम हो मु० ॥१८॥ शीश नमौजे नित तेहनें, बं दौजे बार बार हो मु० ज्यूँ कर्म कटे निर्जरा हुवे, पाने भवजल पार हो मु०॥ १६ ॥ जंबू स्वामी छहला. केवली, श्रीबीरना शासण मझार हो मु० ते मुक्त गया ारे पांच में, त्यांरो नाम लिया निस्तार हो मु० ॥ २० ॥ ए चौपी जोड़ी जंबू. खामी नौ जंबू पईना कथा रे अनुसार हो मु० दूण में अधिको ओछो कह्यो हुवे, ते ज्ञानी वदे ते तंतसार हो मु० ॥ २१ ॥ सम्बत अठारे चालौस में, जेठ सुदी वारस सोमवार हो मु० चौपी पूरी कौधौ विठारा मध्ये ते-समझावण नरनार हो म० ॥ २२॥
*॥ इति शुभम् ॥३॥
Page #193
--------------------------------------------------------------------------
_