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________________ ( १२४ ) ७ निर्जरा रूमौके अरुपी अरूपी के ते. किगन्याय निर्जरा जीवका परिणाम के पांच वर्ण पावे नहीं . इश न्याय। ८ बंध रुपीके अरुपी, रूपो किणन्याय बंध ते शुभः ।। अशुभ कर्म है, कर्म ते पुद्गल छ। पृङ्गल ते रुमो छ। ८ मोक्षरुपी के अरूपी अरुपी छै ते किणन्याय समस्त । कर्मासे मुकावे ते मोक्ष अरुपीते जीव सिद्ध थया । ते मां पांच वर्ण पावे नहीं इणन्याय । ॥ लड़ी दूजी सावध निरवद्यकी ॥ १ लीव सावद्यक निर्वद्य दोन ही छै ते किणन्याय चोखा परिणामां निर्वद्य खोटा परिणामा सावदा । छ। p २ अजीव सावद्य निर्वद्य दोनू नहीं अजीव है। ३ पुन्य सावद्य निर्वा, दोन नहीं अजीव है। ४ पाप सावध निर्वद्य, दोन नहीं अजीव छ। । ५ आस्रव सावद्यके निवा, दोनू ही छ किण, न्याय मिथ्यात्व आस्रव अव्रत आस्रव प्रमाद । आसव, कषाय आसव, ए च्चार तो एकान्त । मावटा के. पाभ जोगां में निरजरा होय निण... 5 :11 .
SR No.010206
Book TitleJain Bhajan Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra Kolkatta
PublisherFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra
Publication Year
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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