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बला है पिग्य अबला नाहौं । वोर बखाणज इसड़ो नांच्यो । यी देव तथा थर् नाचयो ॥ ४ ॥ लुल लुल सूरियास पाये लागो। भगवंत कन्हें चायो सांसो आगो। बन्दणा करी ने बोले बासा । प्रभुजी तीन काल - रा जाण ॥ ५ ॥ हुवो हुवेलो होसौ स्वामी। आप से - बात नहौं काई छानी। द्रवादिका जाणो ने देखो। मैं ऋद्ध लोगी पामे विशेषो ॥६॥ गोतमादिका श्रमण ने दिखाई। बतीस विध से नाटक पाडू। वौर सुणी सूरियाम नौ बाण । नो अखै नो पर जाण ॥७॥ हां कह्यां तो सावध लागे। ना कयां भोगी रा भोगज भागे । मुनीश्वर नौ छै एही वाणी । देव तणो ए छान्दो जाणौ ॥८॥ साध बचन सावद्य नहीं भारदै । पाप ठिकाणे चुपज राखे। साधारी तो एहिज बायो। जद सृरियाभ वात मन जाणो ॥६॥ सूरियाभ मन में सड़ी धारौ नाटक पाइयो ऋद्ध विस्तारी। लुल लुल सूरियाभ लागो माइ । आयो जिण दिश पालो जाई ॥ १०॥
॥दोहा॥ देव तगौ ऋद्ध देख नें, पूछ गोतम स्वाम। इतनी ऋद्ध विस्तार में, घाली कुण से ठास ॥ १ गाला सनर नीसगै, बारै कर फलाव ।