________________
अथ हुण्डी लूंकारि लिख्यते ।
शहर नेता मध्ये लंका गुजराती सरूपचन्दजी रामचदजौरा उपासरा थी हुण्डी आयो ति में शुद्ध प्ररूपणा जाणो ने उपरे देखा देख लिखी है ।
ܘ
( १ ) तीन ही काल का भाव केवल ज्ञानी देख्या कोई जौवने नव तत्वरे जाणपणा बिना संसार समुद्र संतिरतो देख्यो नहीं । साख सूत्र प्रथम सूयगडांग, अध्ययन १२, गाथा १६ ।
( २ ) जौव ने अजीव रास दो कही तीसरी रास कहवे तिने त्रिरासियो निन्हव कहोजे । सा० सू० उववाई, प्र० १६,
( ३ ) जीव अजीव चम थावर जाणे नहीं तिगरा पचक्खाण दुपचक्खाण कया । सा० सू० भगवती,
ܟ
श. ७, उ० २.
( ४ ) जीव अजीव ने जागे नहीं जीव अजीव दोनां ने जागे नहीं तिगने संगमरी ओलखना नहीं । सा० सू० दशवेकालिक, अ० ४, गा० १२.
( ५ ) सभ्यता बिना चारित नहीं समयक्त बिना व्रत नहीं । मा० सू० उत्तराध्ययन, अ० २८, गा० २६,