________________
चरन कमल चित नित नमु, प्रणम् शिर नामौ । सावथौ नगरी पिता मात लक्षण अवगाहना । वर्ण त्राजखे कुंवर पदे, तपस्या प्रमाणा। चारित्र तप प्रभु गुणनिला है, छमस्थ केवल नाण । तीर्थ गणधर क्षेवली जिन शासण प्रमाण ॥१॥ देव लोक दशमें बीस सागर पुरगा थिती पाये । कुण्डलपुर नगरी चवी, श्रीजिनवर
आये। पिता सिद्धार्थ पुत्र, माता सलादे नंदा । ज्यांरौ कुचे अवतस्या, श्री वीर जिगन्दा । ज्यार चरणे लंछन सिंहनो हे, अबगाहना कर सात। तन कञ्चन कर शोमता, तें प्रणम् जगनाथ ॥२॥ बहोतर वर्ष नो भाउखो, पायो सुखकारी। चौस बर्ष लग कुवर पदे रह्या अभिग्रह धारी। सुमेर गिरि पर इन्द्र चौछ मिल मोझव कौधा । अनन्त वली अरिहन्त जागा, नाम प्रभु वीरज दीधर । ज्यांरी मात पिता शुद्ध गत लह्या हे, पछे लियो संयम भार। तपस्यो कौधौ निरमलौ, साडी दार वर्ष मझार ॥३॥ नव चौमामौ तपकियो एका कियो छमासौ। पांच दिन अगो अभिग्रहो, छमास चौमासौ। एक एक मासे तप कियो, प्रभु हादश विरियां । बोहतर पख छमास दोय विरिया कौधा तीन अढाइ दोय तीन हे डेड दोय मासौ दोय । भव सोभद्र महाभद्र तपकियो, इम सोला दिन होय ॥ ४ ॥