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॥ थारी श्रद्धा हो दिल बैसे नहीं ॥ ८॥ उतरोही भार बुढो ग्रहे। दुरबल देह निरधार हो मुनी० जाजरे शरीर लौलर पड़े। मांदी भूख ढषा अपार ही ॥ मु. ॥६॥ दांत पड़या डिग डिग करे । लाहादिक भार ले जाय ही मु० । तो साचौ श्रद्धा तांहरौ। तो जूदा जीव में काय ही मुनौ० ॥ १० ॥ जो बुढा सु भार चालै नहौं । तो किम मानु तुम बोय हो मु० साची मत छोडी मांहरो। कूड़ो मत कम भलाय ही मु० ॥ ११ ॥ गुरु कहै रोजा तू सांभलै काई कावड़ छै प्रधान हो प्र० बांस छाबडो हाय नवा। भार घाल्यो छै उनमान ही प्र० ॥ १२ ॥ वलवन्त पुरुष प्रधान छ। कावड़ ले जाय के न ले जाय हो प्र० । राय कहे ले जाय उठाय नें । तरुणा रे नहौं तमाय हो मु० ॥ १३ ॥ बलवंत पुरुष जवान छ। कावड़ बादौ घाव हो प्र. बाहिज तरुणो पुरुष छै। कावड़ ले जाय के न ले जोय हो प्र० ॥ १४ ॥ राजा कहै भार चालै नहौं । कावड़ जूनी पड़ी एम हो मु० गुरू कहै इशा न्याय देख ले । बुढो भार खांचे कम हो प्र० ॥ १५ ॥ वलवंत सु' भार खंचे नहौं । जनी पडी कावड़ निरवार हो प्र० - ज्यू बुढा सु भार चाले नहीं। तू अन्तर मांहि विचार हो ग्र० ॥ १६ ॥ इगा दृष्टान्त तू देख ले