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जोव काया नहीं एक हो प्र० संधी पंथ बताविया तू छोड दे कुड़ी टेक हो प्र० ॥ १७ ॥ राय कहै बुध थारो निरमली । थे तो मेल्या हेत अनेक हो मु० नॅ अचरज हवा | म्हारे तो हि दे बेसे नहीं एक
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सुग
हो सु० ॥ १८ ॥
॥ दोहा ॥
प्रश्न पूछे सातमा, गुरु प्रवे राजान |
गुरु उत्तर दे कि विधे, सुग ज्यो सूरत दे कान ॥ १ ॥ एक दिवस सभा मझे, हं बेठा करो मंडाण | कोटवाल इक चोरटो, मोनें सूप्यो आण ॥ २ ॥
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॥ ढाल १४ मी ॥
जीवता चोर ने तोलियोजी । करौ मसोसी ने घात । पारख्या करवा जीवनौनी । मैं खैरु कियो तोलमान || मुनीश्वर किम सरधु तुम बात ॥ १ ॥ मारो ने वले तोलियोजौ । न घट्यो मूल लिगार | म्हारे तो वैसे नहीं जो । थे मेलो भेद अपार ॥ मु० ॥ २ ॥ दूण न्याय मत म्हांरो खरोजी । जीव काया है एक । साची श्रद्धा मांहरौ जौ । थे तो मेलो हेत अनेक मु० ॥ ३ ॥ चोर मुवे में नौवतो नौ । फेर पड़त तिलमात तो न्यारा कर जाणतो जो । मानतो थारौ बात ॥ मु०
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