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( ७४ ) ॥ ४ ॥ कह्यो मान लोह दौना राल, तरवो बांध लियो । तत्काल । इतरा मांही बाणिया एक, लोह ने सांगे किया विशेष ॥ ५ ॥ सगला साथी बोलना एम, तं लोह ड़ो छाउ नहीं कम । तरवा थी लोह आवे घसा, भार, छोड दे लोहड़ा तमो ॥ ६ ॥ तब पाठो बोलियो तिम वार, मैं दर थको उपाइयो आर । खप कोनी म्हारी आ जाय, तिच कारण छोड़ नहीं भाय ॥ ७॥ तिहां थौं चाल आधेरा गया, तब ते खान तांबा दो लया। लोह न्हाख तांबा दिया घात, उण सुरख रे वाहिन बाल ॥ ८॥ आगे आई रूपा सानारौ खान, महिम होरा रतन बखाण। मणि माणिक माती आविया, सगला रे मन भाविया ॥ ६॥ न्हाखदिया सह पिछलो भार, बजहीरा बांध्या सार। उसो देखे लोह बागियो। लोह भार रो माह आणियो ॥ १० ॥ सगला कदै छोड दे लोह, लोह थकी उतार दे माह । बज़ हीरा रोलोह आवे वह, आपां सारीसा हुस्यां सक्षु ॥ ११ ॥ लाह बाणियो बालो बाय, छेडा मेलो कर बलाय। मैं तो भार लौयो साही लीयो, थे छोड मेल में का सु कियो ॥ १२ ॥ तब सगला मन में जाणियो, ए सूरख् दिस लोह बाणियो। साथ्यां सौख दोधी है घणी, पिण मत न उपनी शूरख भणी ॥ १३ ॥ सगला पाच