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चायr faare, आय पोहता अपणे घर बार । भारी माल लाया बहु घरे, एक हीरा रा दमड़ा करे ॥ १४ है ति रा श्राव्या बहुला दाम, दाम घको सिके बहु काम संत भोम्या बणाया आवास, तरुणी नोर मिली त्यां पास ॥ १५ ॥ मादल बान रह्या धू कार, बतीस विध नाटक विस्तार | सेवक नोड़ खड़ा रहे हाथ, कोई न लोप हनी बात || १६ || बिलस रह्या मन गमता 2. भोग, पुन्य घको आय मिला संयोग । लोह वाणिये मन में पाम्यो साग, हड़ हड़ हांसे सगला लोग ॥ १७ ॥ लोह में बेच्यो गंठड़ी खोल, तिग रो मिलो अल्पसा मोल | थोड़ा दिन में दियो निठाय । क्यु हो नाही लारे गई खाय ॥ १८ ॥ घर में आई दलित भूख, भूख को देहो गई लूक । साध्यां तथौ मेहला - यत देख नाटक क्रिया सुख विशेष ॥ १८ ॥ ज्यू देखे ज्य' सोच करे, पछे गरज कहो. कुणसौ, सरे । अधन्य
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अपुन्य अकृत पुन्य तो, तूटती अमावस रो जख्यो | २० || दूरपन्त लखण नौ वाय: लज्या दया रही, नहीं काय । को न कस्यो साध्यां सगो, पछे पिसावो थयो घणो ॥ २१ ॥ तेह तणी पर सांभल राय, रखे तोने पिकता वो थाय । पहिलो क्यु' तू कर्म बंधाय, म हुवेली धर्मगे चाय ॥ २२ ॥