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ए। मांहो मांही सहु इम भणे ए। आपां रह्या भरो से जढ लणे ए ॥ १५ ॥ इतरा में निपुण छै एक ए। चतुराई बंत विशेष ए। कला जाणे छै जे छतो ए। लकड़ी में लकड़ी घाल मथो ए॥ १६ ॥ अन संदूषो पाड़ ए। निपजाया च्या आहार ए। सनान संपाडो कर बहु ए। परि पक पड़ा ने सहु हुवा सस ए ॥ १७ ॥ भेला हुई भोजन करौ ए। चलु करी में- मुख सुछण धरी ए। जीमो में ताजा होय ए। तिण में कहै मूरख जोय ए॥ १८॥ ते क्रोध कियो घट मांय ए। ते में अकल दिसै न कांय ए । म पाडौ जे आग ए। संसार चतुर रो माग ए ॥ १६ ॥ काठियारो शूट अयाण ए। लकडी सु मांडी ताण ए। आग पड़े नहीं पारखो ए। राजा तू कठियारा सारखो ए ॥ २० ॥ राजा पूछे गुरु भणी ए। खामी परषधी मिली अति घणौ ए। थे चतुर अवसर रा जाण ए। मोने कठण कहो छो बागा ए ॥ २१ ॥ देखे परषधा लोग ए। था ने मृरख कहणो जोग ए। गुरु कहै राजा एतली ए। परषधा चाली केतली ए ॥ २२ ॥ जाणु खामी हूं सही ए। मरषधा च्यारे कही ए। न्यारा न्यारा नांव किसाए । राय कहै हुवे जिसा ए ॥ २३ ॥ क्षत्री गाथा पति ब्राह्मना तगी ए पिशवारी चोथौ भणी-ए। गुरु