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॥ ढाल ७ मी॥
तिण काले में वि समैरे । पारस संतानिक साध कसो कुमर समगुण शोभताजी । संजम तपरी समाध। भलाई पधायाहो पास सन्तानियांजौ ॥ भव जौवारे आग। मर्ग वतावे हो मुनिवर मोखरो रे । उपजावे बैराग ॥ अला० ॥ २ ॥ विनयवन्त गुरु ना छै घणाजी लज्या में दयावन्त ।। ज्ञान दर्शा च्यार निरमलाजी। जशवन्त वचन महंत ॥ भ० ॥३॥ जौल्या कषाय इन्द्रा निन्द्राजी। जीता परिसाह जाग । जामण भरण तणो भय सेटने जौ। तप करी में प्रधान ॥ भ० ॥ ४ ॥ गुमा घया त्यां में छै सहो जो । कहिये आगम जोय । मोटा मुनीश्वर दो पख निरमलाजी। बलवन्त रूपवन्त होय ॥ भ० ॥ ५ क्षमावन्त लुनि सत्यवंत छै जी। जबदे पूरब धार ।। त्यागी वैरागी साग तेहनेजी। पांच से हो अनागार ॥ भ० ॥ ६ ॥ आय उतरिया कोटग वागमे जौ। टाली मिध्या जोड़ । सावधौ नगरी ना लोकां मके जौ। खबर हुई ठोड़ टोड़ ॥ भ० १॥ ७॥ लोक बान्दण ने जावे छ घणा जी । मज धर अधिक उल्लास ।। चितली सवग तेड़ी आप रो जी। पृछा कौधौ तास ।। भ० ॥८॥ लोक जावे के मोटा