________________
. ( ४५ ) कुल तणा जौ । किणरी महोछब काज ॥ सेवक हाथ जोड़ी ने इम कहै रे । साध पधाख्या आज ॥ भ० ॥ ६ ॥ बचन मुणों में चित हर्षित हुवोजी । गुड़वेल बैठ बांदा जाय ।। बन्दणा कर बाणी सांभलो जी देशना दिधौ मुनिराय ।। भ०॥ १० ॥ लोकालोक नव तत्व तणाजी आख्या भिन्न २१ भेद । काचा सुख संसार नां रे। मतकरो कूड़ी खेद ॥ अ० ॥ ११॥ काम भोग दोनं कर्म छै रे । बिलसंतां विगड़न्त । सुख थोड़ा ने दुःख छै अति घणा जी। रोम कूड़ कर खन्त ॥ भ० ॥ १२ ॥ दोय धर्म उज्जल दिखाड़िया जी । आगार में अणगार । पांच महाबत चोखा साधना जी। श्रावक ना ब्रत वार ॥ भ० ॥ १३ ॥
॥दोहा॥ चित सुण में रिझ्यो घणो, सरध्या तुमना बैण । थे तारक भव जीवना, मिलिया साचा सेण ॥१॥ सेठ सन्यापति राजवी, धन्य ते हुवे अणगार । इसी सगत सो में नहीं द्यो श्रावक ना बत बार ॥२॥ श्रावक ना व्रत श्रादया, भाव सहित कर सेव । डिगायो डिगे नहौं, जो चलावे नर देव ॥३॥ . . पोसा पडिकमणा करे, देय सृपाले दान। स्वेतस्वीकारी विनती, करिवा सं छै ध्यान ॥४॥