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(७०) राख ए । सूत्र राय प्रसंगी में साख ए:॥ ४२ ॥
॥दोहा॥ . गुरु प्रते राजा कहै, थे चतुर अवसर रा जाण । आप उपदेश भला कह्या, निपुण गुगारी खांण ॥१॥ शरीर में सुजीव काढबा, थे समरथ छो अतीव । आंवला प्रमाण हाथसे, माने काढ दिखालो जीव ॥२॥
॥ ढाल १६ मी॥ . तिण काले में तिण समेंजी, राय प्रदेशी पास । वृक्ष तणा जे पानडाजी। वाय हलवि.तास ॥ मुनिश्वर उत्तर दे छै जी एम ॥ १ ॥ गुरु कहै राजा प्रतेजो, वृक्ष तणा जे पान। देव नाग वे किन्नराजी, जाव गंधव राजान ॥ मुनि० ॥ २॥ राय कहै नहीं देवताजी, गंधव नहौं ए हिलाय । वृक्ष तणा जे पानडाजी, हला वे वाजकाय ॥ मु० ॥ ३॥ गुरु कहै तू देख अजी। रूप सहित वाजकाय । कर्म वेद लेश्या तेहनें जी । माह शरीर कषाय ॥ स० ॥४॥ गय कह देखं नहीं जो । नब गुरु बोला एम । तं वायु रूप देखे नहीं रे तो जीव देखालुकम ॥ मु० ॥ ५ ॥ छमस्थ तो देख नहौं रे, दश स्थानक रा जान । देख तो श्री केवली