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(०१ ) जी । तूं जीव काया जूदा मान ॥ मु० ॥ ६ ॥ सांभल राय हर्यो घणो जौ । ए रत्नारी खाण दशमा प्रश्न पूळू वलिजी, मोटा ज्ञानी गुरु जाण ॥ मु० ॥ ७ ॥ थे कही हाथी कंथवोजी, जीव बराबर हाय। गुरु कहै राजा तूं सांभले रे, जीव में फेर न कोय ॥ मु० ॥८॥ तो हाथी थी कंथवा रे, थोडा सा कर्म बंधाय । आकाया पा सर्व अल्प छै रे । बलि छोटौं तिगरी काय ॥ मु० ॥ ॥ सोस उसास तो कंथवार, इतना वा जिनराय आहार निहार ओछो तेहनेजी । जीव बरोबर कहाय ॥ मु० ॥ १० ॥ अोछौ ऋद्ध क्रांत कंथवारे हाथी री मोटी जाण गुरु कहै राजा इमज छै रे, तू' शंका मूल न आण प्रदेशौ तं सरध जदा जीव काय ॥ ११ ॥ आप कहो जीव सोरसा जी, ओछी अधिको क्रांत । गुरु कहै राजा तूं सांभले रे, दीवारो दृष्टान्त ॥ प्र० ॥१२॥ गंभौर मोटौ शाला हुवेरे । काई दीवो म्हेल्यो मांय । आडा जड़ किवाड़ ने रे, वले छेतीन राखे काय ॥ प्र० ॥ १३ ॥ मांहे दीवो उजालियो रे', 'शाला में करे उजास । बारे जोत न निसरै दे, इतरी हो कर प्रकाश । मु० ॥ १४ ॥ दीवा ऊपर डालो दियो रे, जोत दूतरौ हो दूर मझार । शाला में मांही बारणो जो, सगले हुवे अंधार प्र० ॥ १५ ॥ सुडो कुडो ने सिरावलो रे।