________________
( ६३ ' )
पालो ।
·
१० ॥ धर्म ठिकाणे जीव हो तो, दया किसी ठोड़ कुगुरां ना बहकाया आतमने, कांय लगावा कालो रे || कु० ॥ ११ ॥ उतराध्ययनरे बारमें अध्ययन, तोर्थ शौल बतायो । घ शत्रुंजादिक तौरथ थापो, आई पण झूठ चलायार े ॥ कु० ॥ १२ ॥ ज्ञान दरशण रा जतन करते, यात्रा कही सुखदायो । ज्ञाता सूत्र पांच में अध्ययने तो थाने तो खवर न कायो रे || कु० ॥ १३ ॥ इम ही महाबीर सोमल ने, यात्रा भगवती में भाखौ । शतक अठार में दशमें उदेशे, चारित्र जतन ते यात्रा दाखोरे || कु० ॥ १४ ॥ ठाम ठाम तीर्थ यात्रा अमोलक जिन को आगम माहिं । ते तीर्थ यात्रा •थांयूँ करनो `न द्यावे, तिण सू मांडी वोकलाईरे ॥ कु० ॥ १५ ॥ शतुंजय ने पर्वत को जिनेश्वर, पिण तौ न कह्यो लिगारो । अन्तगढ़ ज्ञाता सूत्र माहौं, देखो पाठ उघाड़ोर े ॥ कु० ॥ १६ ॥ तीर्थ कहे ति 'माथे पग देवो, तिण पर चढ़ो ज तो सुधा । वले मल मूत्र तिण ऊपर न्हाखी, त्यांरे लेखे ते पूरा अंधारे ॥ कु॰ ॥ १० ॥ मुख सू ं कहे मैं चूर्णी टोका मानां, वले माना आगम पेताली । तेपिय बोल्यां रो नहीं ठिकाणो त्यारे कर्म तणो रख कालौर ॥ कु० ॥ १८ ॥ महा
,
निशौष र अध्ययन पांच में, कमलप्रभा को साय ।
›
}
2
;