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॥ ढाल ३ जी॥ सुणज्योरे नर वारीया मतरा चोरे रमणी रस रंग चे तोरे येतो
प्राणिया ( एदेशी) पेष्या मंडप घर बांगयो रे । वैकारो देव अनूप। संवालो पंच बरसो रे । लता चित्राम लरूपरे ॥ पुन्छ तणा फल जो ज्यो । १॥ भोगि मागे मधि वैक्रव्यो र मोटो चौतरो एक। ध्यान पासा बज रत्न में। दौठाई हर्ष विशेष रे ॥ पु० ॥२॥ मरिश पीठका उपरे है। कियो सिंहासण एक ॥ विविध प्रकार का सूप मे पोतो देखवा जोग विशेष रे ॥ ५ ॥ ३ ॥ रक्त सोना में चाकलो। हठलो तणे रुपा में भाग॥ च्या माधा सोना तणा । मस्तक महि लाग रे । पु० ॥४॥ ईस उपला गातर रे जब सोना में मणि । बज रत्न सोना में जड़ी ॥ मणि रतनां नांवाहे बारह वे ॥ पु०॥ ५ ॥ रूप छै विविध प्रकार कारे । रचिया रूड़ी रौतको । पान पीठ मणि स्थान में। जाब विमाया शैत रे ।
पु०॥६॥ पाठ जोजन लांवो कह्यो । ही इतरो जाय रे ॥ च्यार जोजन ऊंचो को है। सर्व रतनां मांहि बखारा र पु० ॥ ७॥ समुद्या नवां शोभतारे । ढाक्यो सिंहासण एक ॥ राता वस्त्र सुं भौंटियोरे । सुवालो साखरप जेम ॥ पु० ॥ ८॥ लिए