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. ( १८७ ) सिंह समान हो मु० त्यां सिंह जिम संजम हादसो, सिंह जिम पाल्यो चारित्र निधान हो मु० ॥ ८॥ वाल ब्रह्मचारी थेटरा, जिन शासण ग शृङ्गार हो मु० तौजे पोट भगवान रे हुआ, घणा साधारा सिरदार हो म० ॥ ६ ॥ च्योर तीर्थ. माही दोपता, त्यांरी सोम निजर शीतल अंग हो मु० सूरज ज्यं तप तेज आकरो, चन्द कला ज्यं चढते रङ्ग हो मु० ॥ १० ॥ गुण त्यांमें छ भतिषणा, समुद्र जेम प्रथाय हो मु० कोड़ जिह्वा कर वर्ण वे, तोही पूरा कह्या नहीं जाय हो मुं० ॥ ११ ॥ बले गमता लागे तीर्थ में, तिण दौठां पामें पाणन्द हो मु० त्यांरी बाणौ अमृत सारषी, सुणवा पावे नरनार हो मु० ॥ १२ ॥. त्यांने धर्म कथा निरन्तर कहै, कहै मौवादिक ना भेद हो मु० कई सुण २. श्रावक रां प्रत भादरे, केई चारित्र लहे पाण उमेद हो मु० ॥ १३ ॥ से सोलह वरस घरमें रह्या, वर्ष चौसठ चारित्र पाल हो मु० तिण में वौस वर्ष छद्मस्थ रह्या, केवली रवा वर्ष चमाल हो मु० ॥ १४ ॥ सर्ब पाऊखो असी वर्ष नो पाल्यो छै जब स्वाम हो म० घणा जौवां ने प्रतिबोध नं, पहुंता अविचल ठाम हो- मु० ॥ १५ ॥ ते छुटा संसार ना दुख थकी, पाम्या सुख अनन्त हो मु० बले जनम मरण नहौं मुक्त में, त्यांरी कदैई न पावे पन्त