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अथ जंबू कुंवर की चोपाई ।
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हिवे परभव मन में चिन्तवे, मुझ में अवगुण अनेक । दुत मैं कोधा घणा, सुकृत नहीं कौधो एक ॥ १ ॥ मैं गुजारे घर नामोलियो, संगत कौधौ खोटी । चोरो कुलंच्छन सिखियो, आपण खामी मोटौ ॥ २ ॥ चोरी करौ धन लेई पारको, ते मैं पोष्या चोर | दाह दोघो पर जीव में, बांध्या कर्म कठोर ॥ ३ ॥ ड्रग नें इत ऋद्ध आई मिलो, पिग धुड़ सम जाणो | ते छोडतां बिलम्ब करे नहीं, एतो उत्तम प्राणौ ॥ ४ ॥ ग् नें पाठ कोमण इसड़ी मिली, अपच्छर ने उगिहार । त्यांने पीजी ने परहरे, विन भोगवियां नार ॥ ५ ॥ आम तरुण तरुणी घरे, वय चढती है यांरी | भर जोबन में व्रत चादरे, मुक्ति हामी दृष्टि भारी ॥ ६ ॥ इसड़ो मानव दुग जगत में, मैं तो नयणा न दौठो । सोम निजर शीतल अङ्ग के मुझ लागे छै मौठो ॥ ७ ॥ हूं जाणतो सुख मो ने घणा । पिग लगा सम जागं । धनोपम एक धर्म विना जीवतव्य अप्रमाणं ॥ ८ ॥ जंबू कुमर तणा सुख देखतां, महारां सुख अल्पमात । ए इसड़ो मुख छोडौ निसरे, आ अचरज वाली बात ॥ ८ ॥ मोनें पिण्य · दूगारो वैराग देखने, खागे सागो संसार | अंबू
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