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________________ वाग सहु म्हारो रुधोजी इत्यादिक श्रवणे सुगों। चित उत्तर दे सुधीजी । ध० ॥ १३ ॥ खामौ ए नर भोटका। केसी नाम कुमारी जो विचरता आया वाग में । पांच सी मुनि भरवारी नौ । ध० ॥ १४॥ साध तथा. ब्रत पादस्यां। सूको ममता ने मायाजौ। श्रदा यांरी एहको। जूदा मान जौव कायाजी ॥ ध० ॥ १५ ॥ जीव काया जूदा जाण ने। तब बोला इम रायोजौ। चिता ए नर जाग छ। तो हूं आबु रे चलाया नौ ॥ ध० १६ ॥ खामी ए नर जोग छै । बचन कान मे घालेजो। राय प्रदेशी चित बेहु । केशी स्वाम पे चालजी ॥ ५० ॥ १७॥ दाजो ओय उभा रह्यो। ऊंचा न कर हाथोजी । आवो पधार म्हांने ना दियो । प्रश्न पूछ नर नाथाजी ॥ ध० ॥ १८॥ अही साक्ष थारौ अवधिका। जदा माना जीव कायोजी। बलता मुनि इसड़ी कहै। डाबरो हेत लगायोजौ ॥ ३० ॥ १६ ॥ भारी बस्त मुलाय में भयो न चाहवे डागोजी ॥ सवलो पन्थ सूझे नहौं । उजड़ पड़े अयामाजी ॥ ३० ॥ २० ॥ इण दृष्टांते राय तें। भांज्यो म्हारो डाणोजौ ॥ बन्दणा भाव करी नहीं। तं उभो ठोडा सा आगाजी । ध० ॥ २१ ॥ म्हाने बाग में देख नें । थारे मन मे दूसड़ी प्राइजी ।
SR No.010206
Book TitleJain Bhajan Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra Kolkatta
PublisherFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra
Publication Year
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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