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________________ ( १७३ ) आगति १५ कर्म भूमि, १ जलचर सन्नी तियंच १६ का पर्याप्ता स्त्री विना सातमी नारकी मे | गति ५ सन्नी तिर्यंच का पर्याप्ता अपर्याप्ता १० १० भवनपति अगति १०१ सन्नो मनुष्य, ५ सन्नी, ५ असन्नी १५ पर्मा धामी १११ तिर्यंच का पर्याप्ता १११ १६ वानव्यंतर गति । १५ कर्म भूमि, मनुष्य, ५ सन्नी तिर्यंच १० त्रिझूमका ए, जातिका ४६१ पृथ्वा १ अप्प, १ वनस्पति का पर्याप्ता अपर्याप्ता सूक्षम साधारण विना आगति १५ कर्म भूमि, ३० अकर्म भूमि ५ सन्नी जोतपी पहिला ५० तिर्यंच का पर्याप्ता देवलोक में गति उपरवत् ४६ दूजा देवलोक मे आगति १५ कर्म भूमि, ५ सन्नी तिर्यंच, अकर्म ४० । भूमि, का पर्याप्ता २० (५ हेमवय, अरु. णवय, टल्या) गति उपरवत् पहिला आगति | १५ कर्म भूमि, ५ सन्नी तिर्यंच ५ देव. ३० कुरु ५ उत्तरकुरु का पर्याप्ता गति उपरवत् २६ करिवषिक में आगति दूजा तीजा ". १५ कर्म भूमि, ५ सन्नी तिर्यंच पर्याप्ता कल्बिषिकतीजा आठवा ताई गति । १५ कर्म भूमि ५ सन्नी तिर्यंच पर्याप्ता । का देवना मे. अपर्याप्ता - न
SR No.010206
Book TitleJain Bhajan Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra Kolkatta
PublisherFatehchand Chauthmal Karamchand Bothra
Publication Year
Total Pages193
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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