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(४८ ) भोली साध प्रधारियां, तुरत काहै मुझ आय। . हर्ष वधाइ दियां थकां, देसु दालिद्र गमाय ॥३॥ इम जीतावगा दे करी, आयो चितो राय । सिरपाव लेन गयो, धर्म करे चित लाय ॥४॥ पर उपगारी जाण में, आबा तिहां चलाय। पांच सो मुनि परिवार सु, निरलोभी ऋषगय ॥५॥ बागवान पुशी करी, थानक आगन्यो दोध ।। आई चितजी ने कह्यो, जाणे अमृत पौध ॥६॥ सुण आसण सु उतग्रो, बन्दगा बे कर जोड़। रथ वेसी आयो बागमें, नमः घणो धर कोड ॥७॥ बन्दणा कर बाणी सुणी, आगल बेठो प्राय । सतगुरु दोधी देशना, परषधा सुणे चितलाय ॥८॥ परषधा सुण हरषत हुई, जिण मारग छै धन । धरम दलाली चित करे, ते सुणज्यो एक मन ॥६॥
॥ ढाल ६ मी ॥ हाथ जोड़ी करू बिनती, सांभल ज्यो सुनिराय हो । स्वामी । ओ राय प्रदेशी पापियो। ओणो मारग ठाय हो.. खामी । म्हारा राजा ने धर्म सुगावज्यो॥ १॥ आका डंड लेवे वगा। ओ करे घगा अकाज हो स्वा० । ओ काण न राखै केहनौ। न आगौ किग