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( ८५ ) लाख र ॥ बै० ॥ ३ ॥ देव गुरु. धर्म परख में, सेंठो समकित धार रे । शंका कंखा मिट गई, कचिया प्रबचन सारर । बै० ॥ ४ ॥ तिणदिन नुब्रत आदस्या राज देश भण्डार रे बल बाहण राण्यां तयौ, न करे सार संभाल रे ॥ बै० ॥ ५ ॥ चाकर नझार परिवार सु उतरियो मन राग रे । पर अव की खरची भणी, वगत दिवस रयो लोग रे ॥ बै० ॥ ६ ॥ बेले बेले पारयोग, तपस्या कर अभङ्गरे । सोक्ष भगी उठ्यो सही, करता कर्मा सुजङ्गद ॥ वै० ॥ ७ ॥ करजे हूंता राजवी, सचिवो जिन धर्म रे । लाग्यो रसायण एहवी भाज गयो मन अल रे ॥ वै० ॥ ८॥
॥दोहा॥ जयां लग धर्म पायी नहीं, करतो माठा पाप । भासमा रेसन आवतो, पड़ती लोकां में छाम ॥१॥
सृरिकन्ता उपर, हुंता घणोज · प्यार । -तिण नामें सुत ना दिया, सूरिकन्त 'कुवार ॥२॥ कुगा बेटो कुण पतिरो, कुण नारी कुण भाय । खार्थ लग सहु को सगा, परमार्थ मुनिराय ॥३॥ राणी मन में जाणिया, दूना सुन सरे काज । सूरिकन्त कुमार ने, लेई बेसाणु राज ॥४॥