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तणा। शिखर बंध शोभे अतिघणा ॥ १२ ॥ मध्य भाग एक प्रसाद भण्डो। पांच से जोजन रो अंच पयो । तिण पाखतौ च्यार प्रसाद कह्या । अढाइ से जोजन उई रह्या ॥ १३ ॥ तिण चिहुँ दिश सोलै प्रसाद तशो। सवा से जोजनच पळो । बले चोसठ प्रसाद कद्या देह । साढा बासठ जोजन ऊंचा जह ॥ १४॥ सर्व पच्चासौ तणो । ऊंचा सं आधी पहुल पणो । ओम अपर पंछट भोम कहौ । सूरियाम बिसाण में शोभ रहौ ॥ १५ ॥
॥ दोहा ॥ कुण हुँतो पुरन भव, बसतो कुपसे गाम । कुणा करणी इण वारी, कृपा करौ कहो खाम ॥१॥ बौर जियोश्वर इम कहै, सुण गोतम करी खंत । कही दिखालु तो कन्है, पुरव भव विरतंत ॥२॥
॥ ढाल ६ठी॥
. तिण काल ने तिण समेंरे। जंबूद्वीप मझार ॥ भरत क्षेत्रर स्वेतंबिकार ! नगरी हुंती ऋच दार रे ॥ गोतम सुण पूरख भव एह ॥ १ ॥ मृघबन नांवे बाग थोरे ईशाण कूणरे मांय । फल फूल कर शोभतोरे'