________________
कितरोएक कहूं, पाज्ञा दया एक जाणो । मिण आज्ञा रो निरणो करे न्याय वादी, तो पामें पद निरवाणोरे । कु० ॥ ४३ ॥ श्राजा बारे कहे धर्म पत्नानी, आजा मांही पाप मन भ्रान्त । द्रव्य लिङ्गो साधां रे भेष माहौं, ते मिण हिंसा धर्मी री पांतर ॥ कु० ॥ ४४ ॥ मुख तूं कहे म्हे दया धर्मों छां, चाले हिंसा धर्म रौ चाल । जीव खवायां में धर्म प्ररूपे, तो मोह मिथ्यात में लालरे ॥ कु० ॥ ४५ ॥ ब्रत सेवायां में धर्म प्ररूपे पाप सेव्यां कहे पुण्य । त्यां ने ही हिंसा धर्मों जाणो, त्यांरी श्रद्धा आचार नबनरे । कु० ॥ ४६॥ इम: सांभल उत्तम नर नारी, हिंसाधर्मों नो संग न कीजे। दया धर्मों जिन पाना में चाले, त्यांरो सिको शिर पर धर लौजेरे । कु० ॥ ४७॥ सम्वत अठारह से नब्वे वर्षे, द्वितीय भाद्रवा सुद पांचम बुधवारी । हिंसा धर्मी ओलखावण काजे, जोड़ कौधौ बालोतरे शहर मझारो रे ॥ १० ॥४८॥