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- ढाल पाश्चन्द्र सूरि कृत
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- दुलहो नर 'भव पामणों जीवने, टुलहो श्रावका कुल अवतारो। गुणवन्त गुलनों संग छै दोहिलो ते आमौने मत हारोरे ॥ प्राणी जीव दया व्रत पालो ॥ गुरु सम सांभल आगम बाणी। थे परमार्थ संभालोरे. प्राणी जीव दया वत पालो ॥ १ ॥ आखव प्रति पक्ष संवर बोल्यो, तेहनौ रहस्य बिचारो, आरम्भ प्रास्रव संजम सम्बर, इमजागी जीव म मारोरे ॥ प्राणी जी० ॥ २ ॥ जीव सहुने नौवगो वंछे, मरमो न वंछे कोई
आपणे दुख के जिम छै परने, हिये विमासौ जोईर ॥ प्राणी जी० ॥ ३ ॥ अंग उपाङ्ग शस्त्र धारा अणी सं, नख चख छेद मेदे कोई । जेहवी बेदनां मनुष्यने होवे तेहवी एकेन्द्रीने होईरे ॥ प्रागी,जी० ॥ ४ ॥ जोजरा पुरुषने बलवन्त तरुणो, देवे मुष्ठि ग्रहारो। जेटःख वेटे तेहवो एकट्रिने, लोधां हाथ मझारोरे । प्रागी जो० ॥ ५ ॥ समकित बिन गज भव सुसला रौ, दया चोखे चित पालौ। प्रति संसार कियो तिठामें, मेघडंसर हुयो दुखटालौरे ॥ प्राणी जी० ॥ ६ ॥ अभयदान दानां