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( १७८ ) गुलाबचायजी लुणिया कृत
॥ ढाल ॥
॥ राग आसावरी॥ खाम जयपुर चौसास करावो। अब हुकम जलदी फुरमावो ॥ स्वा० ॥ ए अांकड़ी ॥ बहु बर्षों से भरम हमारो, ता पे हुकम चढावो। नतन अर्ज पन्च सुन २ के, मत पूरातन विसरावो । खा० ॥ १ ॥ भव. सर क्षेत्र फर्शना कहोनें, इम किम नित ललचायो । क्षेत्र न अावे इत फर्शवन, भापही महर करावो ॥२॥ आवत धावत धावे बारौ, क्यू टाबर बहलायो। थल्य बुद्धि हम बेंत न जाने, भामही बेत बतावो ॥३॥ अपलं सौंच्यो जान कृपानिधि, जलदी सार करावो। रढ नहीं छोडें अपर न मानें। मानौ मुक बकसावो ॥ ४ ॥ कर जोड़ी कहै गुलाबचन्द मुझ, प्रविनय माफ सावो। जयपुरको चौमासो अबधी, श्री मुख हुकम दिरावो ॥ ५ ॥
श्री भिक्षु गणिराज के गुणा की ढाल । भाचारज जबर आप जानी, वुई उत्पतिथा अतिठानी । समय रस पेख वीर वाणी, प्रगट मग कियो न पै छायौ ।