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( १८३ ) ६॥ देव गुरु धर्म रत्न तीनुई, रूड़ौरोत ओलखायारे । बले जीवादिक पदारथ नवांरा, भौन २ भेद बतायारे ॥ प० ॥ ७ ॥ पांच सो चोर परभव ग बचन सुणी में, वैराग्य सगलार आयोरे । दीक्षा ले वारी सगला मन धारी, ज्ञान अपूरब पायोरे ॥ ५० ॥ ८॥ पांच से चोर परभव चोर आगे, सगला बोले जोड़ी हाथोर । जोथे जंबू कुंवर साथै घर छोडो तो, म्हे पिण घर छोडां रहवां थारी साथोरे ॥ ५० ॥ ६॥ थे ठाकर म्हे चाकर हता, म्हे रहता थां तूं भेलारे। थे चारित्र ल्यो तो म्हे पिण ले स्यां, रहे किम चकां एवेलारे । प० ॥१०॥ परभव चोर पांच से चोरां तूं, हुवा संजम ने त्यारोरे । भां मुक्त तणों सुख साश्वता जाण्या अथिर जाण्यो संसारो रे ॥म० ॥ ११ ॥
. ॥ ढाल ३ जी॥ ___ए आठुई कामणी, दौखे अपच्छर में उणिहार। इण परशिजी परहर, एकिम काटे जमवार ॥ जंबू काल्यो मानरे जाया इस किम दिने छह ॥ १ ॥ ए दुःखणो होसी घणी जाया तो विन सारी दुःखणी थाय । रवि प्रथमतां ज्यूं हुवे जंबू बदन कमल ज्यूँ कुमलाय ॥ २ ॥ ए भाळुई स्त्री तेह तूं सुख भोग