Book Title: Gau Vansh par Adharit Swadeshi Krushi
Author(s): Rajiv Dikshit
Publisher: Swadeshi Prakashan
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौ-गौवंश पर आधारित स्वदेशी कृषि खेती और गांव को समृद्ध बनाने के लिए गौबर, गौमुत्र द्वारा स्वदेशी कृषि के तरीके makiscience HINA Awrtideo HOSARDASTURISEANISATIRANA | भाई राजीव टीशित - Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौ-वंश पर आधारित स्वदेशी कृषि राजीव दीक्षित स्वदेशी प्रकाशन सेवाग्राम, वर्धा Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौ-वंश पर आधारित स्वदेशी कृषि लेखक : राजीव दीक्षित प्रकाशक : स्वदेशी प्रकाशन, सेवाग्राम, वर्धा सर्वाधिकार प्रकाशक के पास सुरक्षित प्रथम संस्करण : जनवरी 2013 राजीव भाई के अधूरे सपनों और कार्यों को पूरा करने के लिए राजीव दीक्षित मेमोरियल स्वदेशी उत्थान संस्था ग्राम वरुड़, पोस्ट-सेवाग्राम, वर्धा - 442102 फोन नं० : 07152-284014 मोबाइल : 09422140731 मुद्रणः NBC PRESS x-43,ओखला फेस-II, नई दिल्ली सहयोग राशि : 50 रुपये Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समर्पित पूज्य माँ - पिता जी को जिन्होने राजीव भाई को देश के लिए गढ़ा और समर्पित किया। उन सभी साथियों को जिन्होंने राजीव भाई के साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर लड़ाई लड़ी। उन सभी नये साथियों को जो राजीव भाई के बाद उनके इस स्वदेशी आन्दोलन को अपने कन्धों पर आगे ले जाना चाहते हैं। Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1) प्रकाशकीय विषय सूची 2) स्वदेशी के प्रति राजीव भाई की अगाध श्रद्धा 3) खेती को गुलाम बनाया अंग्रेजों ने 4) किसान की खस्ता हालत सरकारी कानूनों के कारण है 5) खेती को विदेशीकरण से बचाने के उपाय 6) भूमि को स्वस्थ - सशक्त कैसे बनायें 7) वनौषधि 5 13 36 59 77 101 Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ __ -1 प्रकाशकीय राजीव भाई का पूरा जीवन इस आधार को स्थापित करने में लगा रहा कि भारतीय समाज की व्यवस्थाओं को भारतीयता के आधार पर पुनः स्थापित किया जा सके। हमारी जो व्यवस्थायें आज चल रही हैं वे सभी अंग्रेजियत के आधार पर ही चल रही हैं। अंग्रेजो ने भारत की लूट खसोट करने के लिए जो व्यवस्थायें बनायी थीं वही आज भी चल रही हैं। अंग्रेजो ने उन व्यवस्थाओं को चलाने के लिए हजारों कानून-नियम बनाये थे, दुर्भाग्य से वही कानून और नियम आज तक चल रहे हैं। इसके कारण हमारे देश के लोगो की मान्यतायें भी काफी हद तक विदेशी हो गयी हैं। भारत की अर्थव्यवस्था, शिक्षा, स्वास्थ्य, न्याय, प्रशासन आदि सभी युरोपीय प्रभाव के शिकार हैं और ये सभी व्यवस्थायें अंग्रेजी कानून के आधार पर ही संचालित हो रही हैं। इन्ही सारी व्यवस्थाओं को बदलने का भगीरथ कार्य आजादी बचाओ आन्दोलन ने शुरू किया है। भारतीय कृषि व्यवस्था के ऊपर भी काफी हद तक विदेशी प्रभाव आ गया है। रासायनिक खाद और जहरीले कीटनाशकों का अंधाधुंध प्रयोग खेती में हो रहा है जिसके चलते खेत की मिट्टी खराब हो रही है और खेती मेंलागत बढ़ती जा रही है। दूसरी ओर विश्व व्यापार संगठन की शर्तों के कारण और उदारीकरण की नीतियों के चलते भारतीय बाजारों में विदेशी कृषि उत्पादों की भरमार हो गयी है जो कीमत में काफी सस्ते हैं। इससे भारतीय किसानों पर बहुत बुरा असर पड़ रहा है। एक ओर तो भारतीय कृषि - मँहगे बीज, रासायनिक खाद और कीटनाशको के चलते साधारण किसान की पहुँच से दूर होती जा रही है, दूसरी ओर सस्ते विदेशी कृषि उत्पादों के चलते किसानों को अपनी उपज का पूरा दाम भी नहीं मिल रहा है। नतीजा यह है कि सबका पेट भरने वाला किसान भयंकर घाटे में स्वदेशी कृषि - ५ .. - - .- - - . - . n . . . .. - - --. - - - - ... . - . -r e ..... Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खेती कर रहा है। कर्जे में डूबा हआबदहाली का शिकार भारतीय किसान आज आत्महत्या करने के लिए मजबूर है। इन्ही हालात को देखते हुए जरूरी है कि भारतीय किसान एक ऐसी कृषि-पद्धति को अपनाये जो उसे स्वाबलंबी बना सके और कर्जे व बदहाली से मुक्ति दिला सके। हमारा दुर्भाग्य है कि जब तक राजीव भाई सशरीर हमारे साथ थे तब तक हम सेवग्राम, वर्धा में, जो राजीव भाई का केन्द्रीय कार्यालय था, प्रयोग के रूप में कोई खेत का नमूना विकसित नहीं कर पाये। यद्यपिराजीव भाई के खेती विषयक व्याख्यानों को सुनकर हजारो किसानों ने स्वदेशी कृषि (विष मुक्त कृषि या सेंद्रिय कृषि) को अपनाया और आज भी वह सभी किसान राजीव भाई को अपना अग्रज मानते हैं कि उनकी प्रेरण से वे स्वदेशी कृषि की तरफ आ सके। राजीव भाई के जाने के बाद हम सबने मिलकर यह तय किया कि राजीव भाई के चिकित्सा, खेती, स्वदेशी से सम्बंधित विचारों को प्रयोग के स्तर पर उतारा जाय। इसके लिए हम लोगों ने सेवाग्राम, वर्धा में 23 एकड़ में एक स्वदेशी शोधकेन्द्र बनाने का संकल्प लिया है जिसमें आर्गेनिक खेती का मॉडल और उससे जुडी हुई आदर्श गौ-शाला तैयार की जा रही है। इसके अलावा स्वदेशी तकनीकी और स्वदेशी ज्ञान-विज्ञान के आधार पर एक बड़े शोध संस्थान की तैयारी भी चल रही है। स्वदेशी कृषि के मॉडल को विकसित करने में कृषि से जुड़े सभी पहलुओं पर भी शोध होगा जैसे - देशी बीजों का संग्रह और उनका परिवर्धन, खाद बनाने की देशी पद्धतियों का प्रदर्शन और उत्पादन, विविधतापूर्ण खेती करने के तरीकों का प्रदर्शन और प्रयोग, मिट्टी को उपजाऊ बनाने के विविध प्रयोग, खेती में पानी के व्यवस्थापन से सम्बंधित प्रयोग आदि विषयों पर विस्तार पूर्वक कार्य करने की योजना बनाई है। इसके अलावा इन सभी विषयों पर सीखने और सिखाने की कार्यशालायें भी चलेंगी। हम सबको राजीव भाई की कमी का एहसास तो होता है और मन में यह दुःख भी रहता है कि काश वह होते तो कितना अच्छा होता। लेकिन उनके अधूरे सपनों और कार्यों को पूरा करने के लिए हमे तो कमर कसनी ही होगी और यही हमारा उद्देश्य होगा। प्रदीप दीक्षित सेवाग्राम, वर्धा 30.01.2013 स्वदेशी कृषि Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वदेशी के प्रति राजीव भाई की अगाध श्रद्धा और तड़प को शतःशत नमन 29 नवम्बर की मनहूस शाम को करीब 7:30 बजे किसी ने फोन करके बताया कि राजीव भाई की तबियत ठीक नहीं है, उन्हें अस्पाताल में भर्ती कराया है, वे उस समय छत्तीसगढ़ के प्रवास पर थे और उस दिन भिलाई में शाम को भारत स्वाभिमान की सभा को संबोधित करने वाले थे। जैसे ही सूचना मिली तो मैंने तुरन्त राजीव भाई के नम्बर पर सम्पर्क करने की कोशिश की तो दोनों नम्बर बंद थे, सम्पर्क नहीं हो सका। हरिद्वार से छत्तीसगढ़ के साथियों का नम्बर लेकर फोन लगाया तो बात हुई तब यह सुनिश्चित हुआ कि वास्तव में राजीव भाई की तबीयत ठीक नहीं है उन्हें अस्पाताल में भर्ती किया गया है। तुरन्त मैंने पूछा कि स्वामी जी कोखबर कीया नहीं तो उन्होंने बताया कि हाँ-स्वामी जी को सूचना कर दी है और वे खुद इस मामले में डॉक्टर से बात कर रहे हैं और यदि स्थिति ज्यादा खराब हुई तो दिल्ली ले जाने की व्यवस्था भी हो रही है। इसके बाद मैंने कई बार कोशिश की एक बार राजीव भाई बात हो जाये लेकिन किसी भी तरह मेरी उनसे बात न हो सकी। समय खराब न करके तुरन्त गाड़ी से रायपुर के लिए निकल गया यह सोचकर कि यदि संभव हुआ तो सेवाग्राम ले आयेंगे और यही इलाज करवा लेंगे। करीब 9:30 के आसपास नागपुर के आगे कही ढाबे पर ड्राइवर ने चाय पीने के लिए गाड़ी रोकी। तभी स्वामी जी का फोन आया और उन्होंने जानकारी दी कि मैं स्वमंइस मामले को लगातार देख रहा हूँराजीव भाई दवाई लेने से मना कर रहे हैं। वे बार-बार मना कर रहे हैं कि मुझे अंग्रेजी दवाई नहीं लेनी है मुझे तो आर्युवेदिक या होम्योपैथी की दवा भिजवादी जाये मैं उसी से ठीक हो जाऊँगा। चिन्ता की कोई बात नहीं है। फिर भी डॉक्टरों को आवश्यक इलाज के लिए बोल दिया है और संभव हुआ स्वदेशी कृषि Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तो उन्हें दिल्ली ले जाने की तैयारी कर रहा हूँ वहाँ भी डाक्टरों से सम्पर्क चालू है। जैसे ही कुछ होगा मैं तुरन्त बताऊँगा। इसके बाद ड्राइवर ने चाय पीकर दुबारा से गाड़ी चालू की और मैं भिलाई में फोन पर सम्पर्क करने की कोशिश करता रहा। अनूप भाई से बात हुई तो उन्होंने कहा कि आप जल्दी से जल्दी आईये समय बहुत कम है, तब मैंने उनसे कहा कि दिल्ली ले जाने की बात हो रही हैआपदिल्ली लेकर निकलिए, तो उन्होंने कहा कि उनकी हालात ऐसी नहीं है कि दिल्ली ले जाया जा सके। आप तो जल्दी से जल्दी पहुँच जाईये। तब मुझे थोड़ा शक हुआ कि अभी तक मेरी बात नहीं हो पाई राजीव भाई से, चक्कर क्या है। राजीव भाई स्वामी जी से बात कर रहे है तो मुझसे क्यों नहीं कर पा रहे हैया उनके आसपास के लोग मुझे बात क्यों नहीं करवा रहे हैं। करीब 12:15 पर स्वामी जी का फिर से फोन आया उन्होंने तुरन्त गाड़ी रोकने के लिए कहा, और फूट फूटकर रोने लगे, लगातार 5-6 मिनट तक रोते रहे। मैं भी उनके साथ रोता रहा। मैं आवाक होकर सुनता रहा। शुरू में मेरी समझ में कुछ नहीं आया, जब थोड़ा सांस मिली तो स्वामी जी ने कहा कि, अब कुछ नहीं बचा, राजीव भाई हमको छोड़कर चले गये.....मैंने क्या-क्या नहीं सोचा था, सब कुछ खत्म हो गया, मेरे हाथ पैरों में ताकत ही नहीं बची है। मैंने अपने आपको संभालते हुए स्वामी जी से एकही प्रार्थना की कि स्वामी जी राजीव भाई के सपने को अधा नहीं छोड़ना है, किसी भी कीमत पर पूरा करना है। 'भारत स्वाभिमान' के रूप में उन्होंने जो सपना देखा है वह पूरा होना चाहिए आप किसी भी कीमत पर यह लड़ाई नहीं रूकने देना.... फिर उन्होंने पूछा कि आगे क्या करना है तो मैंने उनको कहा कि राजीव भाई वैधनिक रूप से भारत स्वाभिमान के राष्ट्रीय सचिव थे इसलिए उनका अंतिम संस्कार भारत स्वाभिमान के मुख्य कार्यालय, हरिद्वार में ही होना चाहिए, आप तैयारी करवाईये मैं उन्हेंलेकर आता हूँ। उसके बाद स्वामी जी का फोन कट गया,फोन पर बात करते-करते उनकी आवाज एकदम निढाल हो गई थी। मैं भी सुन्न हो गया था कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था क्या करू, शरीर और दिमाग दोनों को जैसे लकवा मार गया हो। काठ जैसा हो गया था। मैंने जब से होश संभला था तब से राजीव भाई को सिर्फ भाई ही नहीं, माँ-बाप मानकर, उनके साथ और उनके सानिध्य में था। अब वो छोड़कर चले गये तो कैसे आगे बढ़ेगें। उनकी हिम्मत से हम हिम्मत पाते थे, उनके जोश से हमें जोश मिलता था, उनकी निडरता से हमें निडरता मिलती थी,जब वो दहाड़ लगाकर विदेशी कम्पनियों के खिलापफ बोलते थे तब हमारे अन्दर हौसला पैदा होता था। अब कहाँ से यह सब ___ स्वदेशी कृषि Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मिलेगा। पूरे रास्ते सभी को सूचना करता रहा कि जिनको भी संभव हो तुरन्त हरिद्वार पहुँचें। जो-जो राजीव भाई को अपना गुरू मानते थे, अपना सखा मानते थे, अपना भाई मानते थे वे सब हरिद्वार पहुँचे। यह संदेश सभी को पहुँचाने के लिए बोलता रहा। सुबह करीब 4 बजे भिलाई पहुँचा, अनूप भाई के साथ उस अस्पताल में पहुँचा जहाँ राजीव भाई चिरनिद्रा में लेटे थे। जब आई.सी.यू में पहुँचा तो वे बिस्तर पर लेटे हुए थे। वेन्टीलेटर चल रहा था। कृत्तिम सांस चालू थी। असली सांस बंद थी। आँखे आधी खुली हुई थीं। जैसे महात्मा बुद्ध की लेटी हुई प्रतिमा की आँखे खुली हुई हैं, ठीक वैसी ही, समाधि जैसी स्थिति थी। पता नहीं किसका इंतजार करते हुए सांस निकली थी या पता नहीं क्या सोचते-सोचते सांस निकली, चेहरा एकदम शांत था। कोई तकलीफया परेशानी जैसा कुछ भी नहीं लगा। चेहरे पर चमक बरकरार थी। डॉक्टर ने आकर कुछ बताया, पता नहीं क्या कहा। बस इतना ही समझ में आया कि राजीव भाई नहीं रहे, केवल वेंटीलेटर चालू है। वेन्टीलेटर निकालने के लिए कहा और उनको शांति से सुला देने के लिए कहा, उनकी खुली हुई आंखें बंद की और चरणों में प्रणाम किया, सिपर्फ एक ही बात मन से निकली इतनी जल्दी क्यों चले गये। अभी तो बहुत काम करना था। बहुत लड़ना था। अपने सपनों का स्वदेशी भारत बनाना था। यह सच है कि अपनी अन्तिम सांस तक राजीव भाई अपनी कर्मभूमि में डटे रहे। देश को स्वदेशी बनाने के अभियान को जन-जन तक पहुँचाने में लगे रहे जैसेएक सैनिक लड़ाई के अन्तिम दौर तक अपनी स्थिति नहीं छोड़ता; चाहे उसके प्राण ही क्यों न चले जाये वैसे ही राजीव भाई अन्तिम समय अपनी समरभूमि में ही थे। उस समय लगभग 5 बज रहे थे। उनका शरीर सुबह 9-10 बजे तक फ्रीजर में रखा गया। उस समय स्वामी जी का शिविर शिकोहाबाद में चल रहा था वहीं से उन्होंने राष्ट्र को राजीव भाई के जाने का संदेश दिया, पूरे देश में राजीव भाई को जानने वाले और चाहने वालों के लिए यह शोकाकुल संदेश सदमा पहुँचाने वाला था। उनके अंतिम संस्कार की खबर दी गई की वह हरिद्वार में होगा। दूर-दूर से लोग हरिद्वार पहुँचने के लिए निकल पड़े। सुबह 9 बजे अस्पताल के नीचे वाले हिस्से में ही उन्हें अंतिम दर्शन के लिए रखा गया, भिलाई शहर के हजारों स्वदेशी प्रेमी भाईयों-बहनों ने उनके दर्शन किए। लोगों के आँसू रूक नहीं रहे थे। मेरे तो आँसूही सूख गये थे। आँखें पत्थर हो गई थी, करीब 11 बजे उनको रायपुर लेकर गये वहाँ पर भी उनको अंतिम दर्शन के लिए रखा गया। छत्तीसगढ़के मुख्यमंत्री डॉ. रमण सिंह जी अपनी श्रद्धांजलि देने आये, और उसके बाद उन्हें एयरपोर्ट लेकर आये जहाँ हजारों भारत स्वाभिमान के कार्यकर्ता उनको अंतिम स्वदेशी कृषि Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विदाई देने के लिए खड़े थे। जैसे ही राजीव भाई वहाँ पहुँचे वैसे ही उनके दर्शन के लिए लोगों में अफरातफरी थी। सब अपने प्रिय राजीव भाई को अंतिम बार एक नज़र देख लेना चाहते थे। फिर तो दुबारा मिलना नहीं होगा। सिर्फ यादें ही रह जायेंगी। वहाँ अंतिम दर्शन के बाद एक छोटे से हवाई जहाज से उन्हें लेकर हम हरिद्वार के लिए निकल पड़े। __रायपुर से हरिद्वार का सफर कोई साढ़े तीन घंटे का था। हमारा हवाई जहाज उड़ा। हवाई जहाज के कुल चार सीटें थी। एक पर मैं था और दो पर छत्तीसगढ़ के दो भाई। राजीव भाई मेरे बगल में लेटे हुये थे। एक 6 फुट के बकसे में उनका शरीर बंद था। सफेद-सफेद बादलों के बीच में जब हम जा रहे थे तब बार-बार ऐसा लग रहा था कि राजीव भाई की आत्मा भी, यहीं कहीं बादलों में बीच में ही होगी। वह हमारे साथ ही चल रही होगी, वह तीन घंटे मेरे जीवन में नया मोड़ लेकर आये। सबसे पहले तो बार-बार यही बात मन में आ रही थी। अब क्या करें, कैसे करे, इस लड़ाई को कैसे आगे बढ़ाये, कैसे राजीव भाई के सपनों को पूरा करें। राजीव भाई के अन्दर भारत को विदेशी संस्कृति और शोषण से मुक्त कराने की और भारत को स्वदेशी,स्वावलंबी ओर स्वाभिमानी बनाने की जो तड़प थी, उसको कैसे बरकरार रखा जाये। उनकी यह तड़प सभी भारतीयों में कैसे प्रदीप्त की जाये। राजीव भाई का पूरा जीवन आँखों के सामने घूम गया। कैसे 20 साल का एक नौजवान, जो इलाहाबाद में इंजीनियर बनने आया, घरवालों ने आई.ए.एस., पी.सी. एस के खव्वाब देखकर इलाहाबाद भेजा, वह देश की गरीबी, भुखमरी और शोषण व अन्याय की लड़ाई में शामिल हो गया।शायद राजीव भाई में क्रांतिकारियों का ही खून था जो उन्हें इस क्षेत्र में लेकर आया। उनके जीवन के सभी उतार-चढ़ाव आँखों के सामने घूम गये और अन्त में तमाम विरोधों के बावजूद भारत स्वाभिमान के रूप में देश प्रेम के परवान चढ़ाने का समय भी देखा। लेकिन अचानक से यह ब्रेक लगी कि सबकुछ शीशे की तरह टूटा। उनके चरणों पर हाथ रखकर संकल्प लिया कि मैं जीवन भर राजीव भाई के सपनों को पूरा करने का वचन निभाऊँगा, जिस तरह राजीव भाई अंतिम सांस तक देश को स्वदेशी बनाने की लड़ाई लड़ते रहे उसी तरह मैं भी अनकी इस परम्परा को आगे बढ़ाते हुए अपना पूरा जीवन इसी लड़ाई के लिए समर्पित कर दूंगा। अपनी अंतिम सांसों तक देश को स्वदेशी बनाने की लड़ाई को जारी रखूगा और उनकी इस परम्परा को आगे बढ़ाते हुए अपना पूरा जीवन इसी लड़ाई के लिए समर्पित कर दूंगा। मन ही मन यहसंकल्प लिया और मन को मजबूत बनाया। आँसुओं को पौछा और कठोर हृदय करके इस लड़ाई का जुआ अपने कंधे पर डाल १० ..... स्वदेशी कृषि Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लिया। जब तक भारत को पूर्ण स्वदेशी, पूर्ण स्वावलंबी और स्वाभिमानी नहीं बना लेंगे तब तक चैन की सांस नहीं लेनी है, बहुत सारे लोगों ने कहा कि राजीव भाई दुबारा से आयेंगे इस अधूरी लड़ाई को पूरा करने के लिए। यदि ऐसा होता भी है तो भी जब तक वे आयें तब तक इसको जिन्दा रखना और चलाये रखने की जिम्मेदारी अपने कंधे पर उठा ली है। स्वामी जी का तो आशीर्वाद है ही, और राजीव भाई के मानने वाले, चाहने वालों का आशीर्वाद भी रहेगा ही। करीब 5-6 बजे के आसपास हरिद्वार आ गया, वहाँ आचार्य बालकृष्ण जी राजीव भाई को लेने आये थे। राजीव भाई को लेकर सीधे भारत स्वाभिमान के कार्यालय में गये। वहाँ राजीव भाई के अंतिम दर्शन करने वालों का तांता लगना शुरू हो गया। राजीव भाई अमर रहे के नारों के साथ उनका पर्थिव शरीर,श्रद्धालयम के उसी विशाल हॉल में रखा गया जहाँ उन्होंने अपने ऐतिहासिक व्याख्यान दिये थे। सामने वही मंच था। जहाँ राजीव भाई ने स्वामी जी के सनिध्य में देश के नौजवानों को ललकारा था और उनकी आवाज पर सैकड़ों जीवन दानी अपना सबकुछ छोड़कर 'भारत स्वाभिमान की इस लड़ाई में कूदे थे। उनमें से काफी जीवनदानी भाई वहाँ थे। वेसभी हतप्रभ थे, उन्हें समझ में नहीं आ रहा था। क्या करें। राजीव भाई को बर्फ की सिल्लियों पर लिटाया गया, उनको गर्मी बहुत लगती थी इसलिए शायद अपने अंतिम समय में वे बर्फ पर लेटे थे। तब तक माँ-पिताजी भी आ गये। उनको अभी तक नहीं बताया गया था कि राजीव भाई नहीं रहे। हरिद्वार में हॉल में प्रवेश से पहले ही उन्हें बताया, हॉल में प्रवेश करते ही पिताजी ने विलाप करते हुए पूछा कि भैया को कहाँ छोड़ आये, मैं क्या जवाब देता, मेरे पास कोई उत्तर नहीं था, एक बाप अपने बेटे के अंतिम दर्शन के लिए आया था, वह बेटा जिसने देश सेवा का व्रतलेकर भारत माँ को विदेशी कंपनियों से मुक्त कराने और खुशहाल भारत बनाने की लड़ाई छेड़ी थी, उसके अंतिम दर्शन के लिए आये थे। माँ बार-बार राजीव भाई के चेहरे को प्यार से छू-छूकर बोल रही थी कि आज ही तेरा जन्मदिन था। एक बार तो उठ जा लेकिन राजीव भाई तो शांत सो रहे थे। स्वामी जी ने सभी को ढांढस बंधाया और कहा कि हम सब आपके बेटे हैं। आप तो हजार बेटे वाली माँ हो । दूर-दूर से सभी साथियों का आना जारी था। पुराने-पुराने साथी आ रहे थे अंतिम दर्शन के लिए। रात भर यह सब चलता रहा। सुबह 8 बजे कनखल के घाट पर अंतिम संस्कार के लिए ले जाने की तैयारी शुरू हो गई। अंतिम संस्कार के लिए ठाठारी पर लिटाने से पूर्व राजीव भाई को स्नान कराया गया। सभी प्रेमी साथियों ने अपने-अपने हाथों से निहलाया, घी स्वदेशी कृषि ११ Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदन लगाया और खादी के कपड़े में लपेट कर उन्हें ठठरी पर लिटाया गया, उसके बाद वंदेमातरम् के नारों के साथ राजीव भाई को स्वर्गरथ में बिठाया गया। 'वंदेमातरम्' और 'राजीव भाई अमर रहे' के नारों के साथ राजीव भाई को कनखल आश्रम में अंतिम दर्शन के लिए रखा गया, स्वामी जी की माताजी के आँसू रूक ही नहीं रहे थे। वहाँ पर हरिद्वार के हजारों लोगों ने राजीव भाई के दर्शन किये। वहाँ से घाट तक राजीव भाई को कंधे पर ले जाया गया। कनखल घाट पर उनकी चिता सजाई गई। मैने स्वामी जी से आग्रह किया कि स्वामी जी आप राजीव भाई को वर्धा से गंडा बांधकर लाये थे और अपने शिष्य के रूप में स्वीकार किया था। इसलिए आप अपनी सन्यास परम्परा को छोड़कर मुखाग्नि अवश्य दें। स्वामी जी ने,आचार्य जी ने और मैंने तीनों ने मिलकर मुखाग्नि दी। सभी उपस्थित कार्यकर्ताओं ने समिधा डाली और राजीव भाई पंचतत्व में विलीन हो गये। अब उनका शरीर हमारे साथ नहीं है लेकिन उनका विचार, उनके संकल्प हमारे साथ हैं उन्हें ही पूरा करना है। गंगा में उनकी अस्थियों को इस संकल्प के साथ प्रवाहित किया कि राजीव भाई के विचार पूरे देश में फैलाने हैं। गंगा जहाँ-जहाँ जाती है वहाँ-वहाँ राजीव भाई के विचार फैलेंगे और उन्हीं किनारों पर फिर से वे पैदा होंगे। राजीव भाई की जन्मभूमि गंगा के किनारे ही रही और वे फिर से उन्हीं किनारों पर पैदा होंगे। स्वदेशी के प्रति राजीव भाई की अगाध श्रद्धा और तड़प को शतःशतः नमन, इस तड़प और श्रृद्धा को लेकर हम सब इस लड़ाई को जारी रखेगें..... प्रदीप दीक्षित (सेवाग्राम वर्धा 13-2-2012) 0000 : १२ ......................... ____ स्वदेशी कृषि Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खेती को गुलाम बनाया अंग्रेजो ने (पुसद, यवतमाल में राजीव भाई द्वारा दिया गया व्याख्यान - भाग 1) देश के सभी सम्मानित किसानों - आज के इस व्याख्यान में मैं खेती और किसानों के बारे में जो स्थिति है भारत की, उसके बारे में कुछ कहूँगा। भारत की खेती,भारत के किसान आज जिस स्थिति में हैं। आज से 150 साल पहले भारत के किसान, भारत की खेती किस हाल में थी। उन दोनों का तुलनात्मक विश्लेषण आज के इस व्याख्यान में मैं करने की कोशिश करूँगा और यहतुलनात्मक विश्लेषण इस दृष्टि से होगा कि 200 साल पहले खेती और किसान की स्थिति बहुत अच्छी थीतो आज उसकी समस्या क्या हो गई और उसको फिर सुधारने के लिए कौन सा रास्ता हो सकता है। वो रास्ता हम सारे देश के लोगों को ढुंढना होगा। उस दृष्टि से आज के पूरे व्याख्यान में खेती और किसानों के विषय को मैंने शामिल करने की कोशिश की है। आप सब जानते हैं कि भारत में खेती और कृषि कर्म बहुत ही उच्च दर्जे का व्यवसाय माना गया है और भारतीय समाज में कृषि कर्म और किसानों के लिए खेती करना केन्द्र बिन्दु रहा है। ऐसा कहा जाए कि भारतीय समाज कृषि आधारित अर्थव्यवस्था पर टिका हुआ है तो यह ठीक ही है। और जो समाज कृषि आधारित अर्थव्यवस्था पर टिका हुआ होता है। उस समाज की अपनी कुछ खास तरह की प्राथमिकताएं होती हैं। खास तरह की जरुरतें होती हैं। भारत का समाज पिछले हजारों सालों से कृषि कर्म को केन्द्र में मानकर चलता रहा, तो इसलिए भारत का समाज कुछ विशिष्ट तरह का समाज है। हमारे यहाँ कृषि की जो प्रधानता रही है। उसके पीछे एक तथ्य यह भी है कि भारतीय मौसम स्वदेशी कृषि १३ Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ और जलवायु कृषि के काफी अनुकूल है। खेती के बहुत अनुकूल है। यहाँ जो मौसम है बहुत सातत्य वाला है जैसे उदाहरण के लिए आज सूरज निकला है तो कल भी निकलेगा, परसों भी निकलेगा, तीन महीने बाद भी निकलेगा, तीन साल बाद भी निकलेगा, बीस साल बाद भी निकलेगा, तीन सौ साल बाद भी निकलेगा, तीन हजार साल भी हो जायेगें तो भी निकलेगा। माने सूरज के निकलने में कही कोई कमी नहीं आने वाली भारतीय जलवायु में, लेकिन युरोप में यह बात सच नहीं है। युरोप में आज सूरज निकला है। कल नहीं भी निकलेगा। युरोप में कल सूरज निकला है, हो सकता है नौ महीने तक लगातार सूरज नहीं निकलेगा। क्योंकि युरोप के देशों में सामान्य रुप से साल में सिर्फ तीन महीने ही धूप निकलती है। बाकी नौ महीने तो वहाँ धूप निकलती ही नहीं है। सूर्य के दर्शन ही नहीं होते। तो जितना सातत्य भारत की जलवायू में है। भारत के मौसम में है। उतना सातत्य युरोप में नहीं है। उसी के साथ-साथ भारत की जो भूमि है, भारत की जो मिट्टी है खेत की वो बहुत नरम है। युरोप के खेतों की मिट्टी नरम नहीं है बहुत कठोर है। तो जिन देशों के खेत की मिट्टी बहुत कठोर होती है। वहाँ कृषि प्रधान व्यवस्था संभव नहीं होती है। और आपजानते हैं कि खेती के लिए मिट्टी का नरम होना बहुत जरुरी है। इसलिए भारत में कृषि कर्म बहुत प्रधान रहा। भारत का कृषि कर्म केन्द्र बिन्दू रहा पूरे समाज का। तो उसका सबसे बड़ा कारण है कि यहाँ की जलवायू बहुत अच्छी है। यहाँ की खेती की मिट्टी बहुत अच्छी है। दूसरा, यहाँ के लोगों को मौसम, जलवायू और मिट्टी से जुड़े हुए जितने कारक हैं। उनका बहुत अच्छा ज्ञान है। अगर यह कहा जाए कि भारत के किसान बहुत विद्वान आदमी हैं तो इसमें कोई शक नहीं है। वो जानता है कि बारिश कब आने वाली है। किसान को मालूम होता है गर्मी कब पड़ने वाली है। किसान को यह भी मालूम होता है कि सर्दी का समय जो आने वाला है वो कब आने वाला है और किसान उसके हिसाब से अपनी खेती की चर्या को बदल लेता है। बारिश में क्या करना है। गर्मी में क्या करना है। सर्दीयों में क्या करना है। यह सब बातें सामान्य रुपसे इस देश का हर किसान जानता है और इसलिए मैं उसको कहता हूँ कि उसको अपने जीवन को चलाए रखने के लिए जो जरुरी कारक हैं उनका बहुत अच्छा ज्ञान ____ तो एक तो जीवन का ज्ञान है। दूसरा, मौसम और जलवायू का ज्ञान है। तीसरा, मिट्टी बहुत अच्छी है। चौथा, यहाँ की जो जलवायु है समसीतोष्ण है। ना तो बहुत गर्मी है ना तो बहुत बारिश है। युरोप के देशों में कभी-कभी तो बहुत सर्दी पडती है। माइनस 40 डिग्री सेंटिग्रेट टेम्प्रेचर हो जाता है। माइनस 20 डिग्री सेंटिग्रेट टेम्प्रेचर १४ स्वदेशी कृषि Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हो जाता है। भारत में इस तरहसे कभी टेम्प्रेचर बहुत नीचे भी नहीं जाता और कभी ऊपर भी नहीं जाता। तो भारत की जलवायू समसीतोष्ण है। जो खेती के लिए बहुत अच्छी मानी जाती है और पानी की व्यवस्था इस देश में बहुत प्रचुरता में है। हजारों सालों से इस देश में पानी की मात्रा काफी रही है। बारिश का होने वाला पानी, बारिश से मिलने वाला पानी, जमीन के अंदर मिलने वाला पानी और जमीन के ऊपर तालाबों के माध्यम से मिलने वाला पानी। इन सभी की प्रचुरता भारतीय समाज में काफी लम्बे समय से रही है। इसलिए भारत की खेती बहुत उन्नत रही है और भारत का किसान बहुत उन्नत रहा। तो भारत की खेती और भारत के किसान के उन्नत होने के पीछे जो सबसे प्रमुख कारणों में से एक कारण है। एक तो जलवायूका सातत्य। मौसम का सातत्य। मौसम का लगातार निरन्तर रुप से प्रवाहित होना, पानी की उपलब्धता बहुत अच्छी मात्रा में होना और खेती की जमीन बहुत अच्छी नरम होना, यह तीन बड़े कारक हैं। जिसके लिए भारतीय खेती और भारतीय कृषि कर्म बहुत उन्नत रहा और इतने उन्नत कृषि कर्म के बारे में अगर कभी अंदाजा लगाना हो कि किस तरह की खेती हमारे यहाँ होती रही है 200 साल पहले, 300 साल पहले के मेरे पास कुछ दस्तावेज हैं। हमारे यहाँ एक बहुत बड़े इतिहासकार हैं प्रोफेसर धर्मपाल उनकी मदद से हम लोगों ने कुछ दस्तावेज देखें हैं। वो दस्तावेज यह बताते हैं कि करीब आज से 300 साल पहले भारत की खेती युरोप के किसी भी देश की खेती से बहुत अच्छी मानी जाती थी। उदाहरण ले-ले इंग्लैंड का। आज से 300 साल पहले इंग्लैंड के एक एकड़ खेत में जितना अनाज पैदा होता था उसकी तुलना में आज से 300 साल पहले भारत के एक एकड़ खेत में उसका तीन गुना ज्यादा अनाज पैदा होता था। उदाहरण से अगर समझना चाहें तो ऐसे समझो कि भारत के एक एकड़ खेत में अगर 50 क्विन्टल अनाज पैदा होता था। तो इंग्लैंड के एक एकड़ खेत में मुश्किल से पंद्रह-सोलह क्विन्टल अनाज पैदा होता था। तो इंग्लैंड से तीन गुणा ज्यादा उत्पादन भारत के खेतों का रहा है आज से 300 साल पहले और भारत की उन्नत जिस तरह से खेती रही है ठीक उसी तरह की उन्नत खेती चीन की भी रही। चीन की खेती का उत्पादन भी लगभग इसी तरह का रहा है। जो भारत की खेती में रहा है। दुनिया में दो ही ऐसे देश माने जाते हैं जिनकी खेती पिछले हजारों साल से बहुत उन्नत रही है। जिनके किसान पिछले हजारों साल से उन्नत रहें हैं। चीन और भारत की खेती के उन्नत होने का एक दस्तावेज है और एक प्रमाण है। जो यह बताता है कि लगभग 1750 AD के करीब भारत और चीन का दोनों देशों का मिलाकर कुल उत्पादन सारी दुनिया के कुल उत्पादन का सत्तर प्रतिशत होता था। स्वदेशी कृषि Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माने पूरी दुनिया में जितना अनाज पैदा हो रहा हैं। पूरी दुनिया में जितना अनाज के साथ-साथ दुसरे सामान पैदा हो रहे हैं। उद्योगों की मदद से जो सामान पैदा हो रहे हैं खेती की मदद से जो सामान पैदा हो रहे हैं। उनका कुल उत्पादन पूरी दुनिया में जितना था उसका कुल सत्तर प्रतिशत उत्पादन सिर्फ भारत और चीन का होता था। तो आप अंदाजा लगा सकते हैं कि पूरी दुनिया के सकल उत्पादन का सत्तर प्रतिशत उत्पादन आज से करीब ढाई सौ तीन सौ साल पहले भारत और चीन का होता था। तो इन दोनों की खेती और खेती से जुडे हुए उद्योगों की कितनी उन्नती रही होगी। 1760 से अंग्रेजों का शासन भारत में शुरु माना जाता है। तो 1760 के बाद लगातार अंग्रेजों ने भारत की खेती पर ऐसे कानून लगाये, ऐसे अंकुश लगाए कि लगातार भारत की खेती बरबाद होती चली गई। 1760 के बाद 1820 के साल तक अंग्रेजों ने भारत की खेती को काफी नुकसान की स्थिति में पहुँचा दिया अपने कानूनों की मदद से। तो भी पूरी दुनिया में भारत और चीन की खेती का कुल उत्पादन और खेती से जुडे हुए उद्योगों का उत्पादन लगभग 60 प्रतिशत के आस-पास रहा। तो इस बात से अंदाजा लगता है कि कितनी उन्नत खेती और खेती से जुडे हुए उद्योग रहेहोंगे इस देश में। इसके अलावा खेती और किसानों से जुडे हुए लोगों की समृद्धि बहुत रही है इस देश में। आज से 200-300 साल पहले तक सबसे ज्यादा समृद्धिशाली वर्ग इस देश का किसान ही माना जाता रहा। आज से 200-300 साल पहले तक की स्थिति यह है कि समाज का सबसे ज्यादा पैसे वाला वर्ग किसान ही माना जाता रहा और समाज में सबसे अच्छा कर्म खेती का माना जाता रहा। एक कहावत इस देश में कही जाती है उत्तम खेती, मध्यम वान' करे चाकरी कुकर निदान'। उत्तम खेती माने खेती सबसे महत्वपूर्ण व्यवसाय है। मध्यम वान माने बिजनेस है जो व्यापार है वो दूसरे नम्बर पर है। और करे चाकरी कुकर निदान माने नोकरी करना तो कुत्ते के जीवन बिताने जैसा माना जाता है। भारतीय समाज में तो खेती सबसे उन्नत व्यवसाय रहा। दूसरे नम्बर पर व्यापार और तीसरे नम्बर पर नौकरी-चाकरी मानी जाती है। यह स्थिति इस देश में आज से 200, 250, 300 साल पहले तक की है। जब अंग्रेज भारत में आए हैं और सरकार बनाकर उन्होंने भारत में राज्य करना शुरु किया है। तब तक इस देश में खेती की उन्नति और खेती की स्थिति बहुत अच्छी है। भारत के किसानों के और खेती की स्थिति अच्छी होने के कुछ प्रमाण हैं दस्तावेज में । जो यह बताते हैं कि हमारे देश में करीब-करीब 1750 के स्वदेशी कृषि Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आस-पास मैसूर नाम के राज्य में एक लाख से ज्यादा तालाब हुआ करते थे। हिन्दुस्तान में आजादी के पहले करीब साढ़े सात लाख गाँव होते थे और आश्चर्य इस बात का निकलता है कि दस्तावेजों के आँकड़ों के अनुसार कि इस देश का कोई भी गाँव ऐसा नहीं कि जिसमें तालाब न बना होता और आँकड़े तो यह बताते हैं कि बहुत सारे गाँव इस देश में ऐसे रहे हैं जहाँ एक से ज्यादा तालाब एक ही गाँव में रहे हैं। तो साड़े सात लाख गाँव का देश था भारत आजादी के पहले और करीब-करीब हर गाँव में एक तालाब की व्यवस्था थी तो लगभग साढ़े सात लाख तालाब पूरे देश में रहे होंगे। इससे ज्यादा भी हो सकते हैं क्योंकि कुछ गाँव में एक से ज्यादा तालाब होने की व्यवस्था थी। तोतालाब बहुत बड़ी संख्या में रहेहैं। कुएं बहुत बड़ी संख्या में रहे हैं। बावडियां बहुत बड़ी संख्या में रही हैं। बारिश की होने वाली एक-एक बूंद को हिन्दुस्तान में पूँजी की तरह से बचाने की परंपरा रही है। जिस राजस्थान को आज हम जानते हैं और हम राजस्थान के बारे में ऐसा मानते हैं कि बहुत मरुभूमि हैराजस्थान की जहाँ पानी की बहुत कमी है। जहाँ पानी की बहुत किल्लत है। उस राजस्थान में ऐसी परम्परा पिछले हजारों साल से है कि बारिश की गिरने वाली एक-एक बूंद को संचित रखने की सबसे बड़ी परम्परा अगर इस देश में कहीं है तो राजस्थान में। आपराजस्थान मेंजाईए जैसलमेर के इलाके में जहाँ पर यह माना जाता है कि सबसे ज्यादा सुखा पडता है। उस जैसलमेर के इलाके में आप आजू-बाजू के गाँव में घूमिए, हर गाँव में आपको तालाब मिल जायेगा और जैसलमेर शहर के नजदीक ही सबसे बड़ा तालाब मौजूद है। जो करीब चार-पाँच सौ साल पुराना है और आज भी उसमें पानी है। कभी वहाँ लहराते तालाब हुआ करते थे। बड़े-बड़े तालाब हुआ करते थे। यह तो अंग्रेजों के कुछ कानून थे और अंग्रेजों की कुछ व्यवस्थायें थी। जिन्होंने भारत के तालाबों को सुखा दिया और भारत के तालाबों को बर्बाद कर दिया। तालाबों की बड़ी गहरी परम्परा रही है इस देश में और कृषि का उत्पादन उसी के आधार पर है। पानी जितनी प्रचुर मात्रा में है उतना ही उत्पादन अधिक होता रहा है इस देश में इसलिए खेती का उत्पादन इस देश में बहुत रहा है और खेती के उत्पादन में एक महत्वपूर्ण कारक और है। भारत में खेती के साथ-साथ पशुधन भी बहुत बड़ी मात्रा में रहा है। पशु की संख्या भी इस देश में बहुत बड़ी मात्रा में रही है और कृषि कर्म को टिकाए रखने के लिए पशुओं की संख्या इस देश में बड़ी जबरदस्त मात्रा में रही है। करोड़ों-करोड़ों की संख्या में जानवरों को पालने की परम्परा इस देश के लोगों में बहुत गहरे से बैठी हुई है। तो कृषि है। कृषि के लिए केन्द्र जो बन सकती है। वो गाय इस देश में रही है। बैल रहे हैं इस देश में, उनका गोबर है। गोबर स्वदेशी कृषि Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ से होने वाली खाद है। गाय का मूत्र है। उससे बनने वाले जो कीटनाशक बन सकते हैं इस देश में उनकी परम्परा रही है। तो भारतीय कृषि इस तरीके से बहुत उन्नति के रास्ते पर जाती रही है। क्योंकि पशुओं की संख्या बहुत, तालाबों की संख्या बहुत, जमीन की अच्छाई बहुत है। मिट्टी बहुत नरम है। किसानों को जल वायू का बहुत अच्छा ज्ञान है। यहाँ पर बीजों की संख्या भी बहुत अच्छी रही है। हमारे देश में आज से 150-200 साल पहले तक चावल की, धान की, एक लाख से ज्यादा प्रजातियां होती थी। जो दस्तावेज उपलब्ध हैं वो बताते हैं कि भारत के किसानों के पास एक लाख से ज्यादा चावलों की किस्में होती थी। इस देश में सैकड़ों किस्म के बाजरे के बीज थे। सैकड़ों किस्म के मक्के के बीज थे। सैकड़ों किस्म के ज्वारी के बीज थे। सैकड़ों किस्म की प्रजातियाँ इस देश में रही हैं अनाजों की और यहाँ की सम्पन्नता बहुत ज्यादा रही है। बायोडायवर सिटी यहाँ की बहुत ऊँची रही है। तो इसलिए कृषि कर्म भी ऊँचा रहा है इस देश का। आज करीब हमारे देश में 300 साल पहले के आँकड़े हैं जो बताते हैं कि ब्रिटेन से तीन गुणा ज्यादा उत्पादन हमारे खेतों का है। आँकड़े यह बताते हैं कि कृषि कर्म इस देश का बहुत उन्नत रहा है। पशुओं के पालन के काम भी बहुत उन्नत रहे हैं। तो अचानक से क्या हो गया इस देश में जो आज इस देश का किसान सब से गरीब दिखाई देता है ? अचानक से क्या हो गया इस देश में कि आज इस देश की खेती ही सबसे ज्यादा बर्बादी के रास्ते पे जाती हुई दिखाई देती है ?अचानक से क्या हो गया इस देश में जो आज इस देश के खेती और किसानों की बर्बादी की स्थिति हमको चारों तरफ दिखाई देती है ? उसके पीछे एक गंभीर कारण हैं। अंग्रेजों का भारत में आना और अंग्रेजों द्वारा भारत में अपनी सरकार का चलाना। अंग्रेजों की सरकार जब भारत में चलना शुरु हुई है तो अंग्रेजों की सरकार ने बहुत ही व्यवस्थित तरीके से भारतीय समाज को तोड़ने का काम किया। मैंने कल के व्याख्यान में आपको बताया था कि अंग्रेजों की सरकार ने भारत को व्यवस्थित तरीके से तोड़ने का जो काम किया उसके लिए उन्होंने जो नीतियां बनायी थी उसमें सबसे पहली नीति यह थी कि भारतीय समाज को आर्थिक रुप से पूरी तरहसे तोड़ दिया जाए और जब भारतीय समाज आर्थिक रुपसे बर्बाद हो जाएगा तो फिर भारतीय समाज को राजनैतिक रुप से तोड़ दिया जाए और जब भारतीय समाज राजनैतिक रुप से टूट जायेगा। तो फिर भारतीय समाज को सांस्कृतिक और सामाजिक रुप से तोड़ दिया जाए। १८ स्वदेशी कृषि Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अब अंग्रेजों ने अपनी पहली नीति का पालन करते हुए भारतीय समाज को आर्थिकरुप से जो तोड़ा। उसमें कल के व्याख्यान में मैंने आपको विस्तार से बताया था कि उद्योगों को किस तरह से तोड़ा गया। व्यापार को किस तरह से तोड़ा गया और आज के व्याख्यान में मैं बताऊँगा कि कृषि को किस तरह से तोड़ा गया। किसानों को कैसे बर्बाद किया गया। क्योंकि कृषि हमारे समाज का मुख्य केन्द्र थी और कृषि हमारे देश के व्यवसाय का मुख्य आधार होती थी। तो अंग्रेजों ने भारतीय कृषि को बर्बाद करने के लिए तीन-चार तरह के कानून बनाये। सबसे पहला कानून जो अंग्रेजों ने भारत की कृषि को बर्बाद करने के लिए बनाया वो किसानों के ऊपर लगान लगाने का कानून था। किसानों के ऊपर टॅक्स लगाने का कानून था। 1760 के पहले इस देश में एक बड़े इलाके में किसानों के ऊपर कभी-भी लगान नहीं लिया गया। अंग्रेजों के पहले इस देश में कुछ ही राज्यों को छोड़ दिया जाए तो बाकी किसी भी राज्य में किसानों पर लगान नहीं लिया जाता था। जैसे मालाबार का एक बहुत बड़ा इलाका होता था। जिसको आज हम दक्षिण भारत के रुप में जानते हैं। उस मालाबार के इलाके में 1760 के पहले कभी-भी किसानों पर लगान नहीं लिया गया। मैसूर राज्य के इलाके में 1760 के पहले किसानों पर कभी लगान नहीं लगाया गया। इसी तरह से भारत के और दूसरे इलाके भी थे। जिन इलाकों में अंग्रेजों के आने के पहले तक कभी-भी लगान की वसूली की बात ही नहीं हुई। लेकिन अंग्रेजों की सरकार ने क्या किया भारत में जब उनका साम्राज्य स्थापित हुआ और उनकी सरकार चलना शुरु हुई उसी समय उन्होंने भारत के किसानों पर लगान लगाना शुरु किया और आप कल्पना कर सकते हैं के कितना लगान वसुलती थी अंग्रेजों की सरकार, कितना टॅक्स वसूलती थी भारत के किसानों से। भारत के किसानों पर अंग्रेजों की सरकार ने किसानों के कुल उत्पादन का पचास प्रतिशत तक टॅक्स लगा दिया था। मैंने जैसे कल आपको बताया था कि भारत के उद्योगों को बर्बाद करने के लिए अंग्रेजों ने भारत के उद्योगों पर 10-12 तरह के टॅक्स लगाए थे। इसी तरह से भारत के किसानों को बर्बाद करने के लिए अंग्रेजों ने भारत के किसानों पर टॅक्स लगाए थे और जो सबसे पहला टॅक्स भारत के किसानों पर लगाया गया। जिसको लगान के रुप में आप जानते हैं वो पचास प्रतिशत होता था। माने किसान जितना कुल उत्पादन करता था अपनी खेती में, उसका पचास प्रतिशत उत्पादन अंग्रेजों की सरकार छीन लेती थी। जो किसान अंग्रेजों की सरकार को अपने उत्पादन का पचास प्रतिशत हिस्सा नहीं देता था। उस किसान की हत्या करवा देना, उस किसान की झोपड़ी जला देना। उस किसान की स्वदेशी कृषि Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संपत्ति को नीलाम करवा देना, उस किसान के गाय, बैल खोल के ले जाना, उस किसान को कोडे से मारना, उस किसान को गाँव की जाति से बहिष्कृत करवा देना। यह सब अंग्रेजों की सरकार उनको दंड के स्वरुप में दिया करती थी। तो किसान को मजबूरी में अपने उत्पादनका पचास प्रतिशत हिस्सा अंग्रेजों की सरकार को देना पड़ता था। और मैंने आपको यह बताया कि जो किसान नहीं देते थे उनको गोली मार दी जाती थी। जो किसान नहीं देते थे उनको कोडे मारे जाते थे। जो किसान नहीं देते थे उनके घर जला दिये जाते थे। जो किसान इस तरह से लगान नहीं देते थे अंग्रेजों को, उनको गाँव से बहिष्कृत करवाया जाता था। इस तरह के अत्याचार अंग्रेजों की सरकार किसानों पर करती थी। तो, एक तो अंग्रेजों की सरकार ने भारत के किसानों को जो बर्बाद किया उसमें सबसे पहला जो कारण था वह यह कि उन्होंने भारत के किसानों पर टॅक्स लगा दिया। लगान वसुलना शुरु कर दिया। 1760 से लेकर लगातार 1890 तक, 1900 तक इस तरह का लगान किसानों से वसूला जाता था। तो आप सोच सकते हैं कि लगातार 100-150 वर्षों तक अगर किसानों से पचास प्रतिशत उत्पादन छीन लिया जाए हर साल उनकी खेती का, तो किसान तो बर्बाद होते ही चले जायेंगे। दूसरा क्या काम किया अंग्रेजों की सरकार ने - किसानों को बर्बाद करने के लिए दुसरा काम अंग्रेजों की सरकार ने यह किया कि किसानों की जो जमीनें होती थी। खेत होते थे। उनको बेचने का एक सिलसिला शुरु करवा दिया इस देश में। आप जानते हैं कि अंग्रेजों के आने के पहले तक भारत में जमीन बेची नहीं जाती थी। खेत इस देश में कभी बेचने की वस्तु नहीं रहा। किसान की जमीन - उसको अपनी माँ की तरह से मानता है किसान। और किसान इस देश में कहते रहे हैं कि जिस तरह से माँ का सौदा नहीं हो सकता। उसी तरह से जमीन कभी खरीदी-बेची नहीं जाती और भारत का किसान जो खेती करता रहा है। उस खेती को करने के पीछे उसके मन में जो धारणा रही है। वो यह कि यह खेती तो ईश्वर की दी हुई है। यह जमीन तो ईश्वर की दी हुई है। ईश्वर की बनाई हुई प्रकृति से यह जमीन मुझको मिली है। इसलिए इस जमीन को बेचने का अधिकार मुझको नहीं है। तो किसान कभी जमीन को बेचता नहीं था इस देश में। इस देश में जमीन नहीं बेची जाती थी। कभी-भी इस देश में दूध नहीं बेचा जाता था। कभी-भी इस देश में दुध से उत्पन्न होने वाली तमाम दूसरी चीजें नहीं बेची जाती थी। उसको पाप माना जाता था भारतीय समाज में भारतीय सभ्यता में। तो अंग्रेजों ने क्या किया कि कानून बनाया एक ऐसा जिससे जमीनों को खरीदा और बेचा जा सके। और अंग्रेजों ने पहली बार इस देश में जमीन को खरीदने और बेचने की परम्परा शुरु करवा दी और बाद में । २० स्वदेशी कृषि Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जब जमीने बिकने लगीं तो अंग्रेजों की सरकार ने किसानों से जमीनें जबरदस्ती खरीदना शुरु कर दिया । हमारे देश में अंग्रेजों की सरकार ने भारत के किसानों की जमीन छीनने के लिए जो सबसे पहला कानून बनाया उस कानून का नाम है 'लेण्ड एक्यूजीशनस एक्ट' । उसको अगर हिन्दी में कहा जाए तो 'जमीन हड़पने का कानून' जो आज भी चलता है इस देश में । यह कानून अंग्रेजों ने बनाया था। करीब 150-200 साल पहले। यह जो लेण्ड एक्यूजीशनस एक्ट था। वो अंग्रेजों की सरकार ने क्यूँ बनाया ताकि भारत के किसानों से जमीन छीन ली जाए और भारत के किसानों को बर्बाद कर दिया जाए। अंग्रेजों की एक पद्धति थी काम करने की । वो जिसको भी बर्बाद करते थे उसके लिए पहले कानून बनाते थे। जैसे मान लीजिए अगर अंग्रेजों को आपकी जेब काटनी है तो वो जेब नहीं काटेंगे। पहले जेब काटने का कानून बनायेंगे और उस कानून के बाद जब आपकी जेब कटना शुरु हो जाएगी तो अंग्रेज कहेगें कि हम तो कानून का पालन कर रहे हैं। अब आपकी जेब कटती है। तो कट जाये । माने - सीधे जेब नहीं काटेंगे। लेकिन जेब काटने का कानून बनायेंगे और फिर कहेगें हम कानून का पालन कर रहे हैं। इसमें आपकी जेब कटती है तो कट जाए। तो उन्होंने किसानों को बर्बाद करने के लिए सीधे कुछ नहीं कहा। उन्होंने यह नहीं कहा कि हम किसानों को बर्बाद करेंगे बल्कि किसानों को बर्बाद करने के लिए कानून बना दिया । फिर उन कानूनों का पालन करवाना शुरु किया उन्होंने और किसान उसमें बर्बाद होना शुरु हो गए। तो पहला कानून लगा दिया टॅक्स के रुप में। लगान के रूप में। और दूसरा कानून लगा दिया अंग्रेजों ने भारत में किसानों की जमीन हडपने के लिए जिसका नाम रखा गया 'लेण्ड एक्यूजीशन एक्ट ' । अंग्रेजों के बड़े-बड़े बेईमान और भ्रष्ट अधिकारी इस देश में हुए। एक अंग्रेज ऑफीसर था । जिसका नाम था डलहौजी । बहुत ही बेईमान और भ्रष्टाचारी ऑफीसर था उस जमाने का । डलहौजी क्या करता था कि जिस गाँव में जाता था । उस गाँव के किसानों की जमीनें छीनता था। गाँव-गाँव के किसानों की जमीनें छीन-छीन कर उन जमीनों को 'लेण्ड एक्यूजीशन एक्ट' के नाम पर अंग्रेजों की सम्पत्ति के रूप में घोषित किया जाता था । डलहौजी ने किस तरह से इस देश के किसानों की जमीनें छिनी हैं और किस तरह से वो अंग्रेजी सम्पत्ति बनायी गयी है वो जमीनें उसका एक जीता जागता उदाहरण मैंने मेरे जीवन में देखा । मैं जिस प्रदेश का रहने वाला हूँ उत्तर प्रदेश । और ऐसा ही एक प्रदेश है जिसका स्वदेशी कृषि २१ Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाम है हिमाचल प्रदेश। मेरे उत्तर प्रदेश और हिमाचल प्रदेश के बोर्डर पर एक गाँव है। उस गाँव का नाम है डलहौजी। आज भी वो गाँव है। एक बार में घूमते-घूमते उस गाँव में पहुँचा। उस गाँव का जो प्रमुख है सरंपच है। उसको मैंने पूछा कि आपने अपने गाँव का नाम डलहौजी क्यूँ रखा। यह तो हिन्दुस्तानी नाम नहीं है। यह तो अंग्रेजी नाम है। आपको क्या बहुत शोक है अंग्रेजी नाम रखने का अपने गाँव का। तो उस किसान ने कहा कि राजीव भाई हमने यह नाम नहीं रखा अपने गाँव का। एक अंग्रेज ऑफिसर कभी आया था। जिसने हमारे गाँव का नाम बदलके डलहौजी रख दिया। तो मैं समझ गया कि वो जो डलहौजी ऑफीसर हुआ करता था एक जमाने में, वो गया होगा उस गाँव में। गाँव के लोगों को मारा होगा, पीटा होगा। किसानों को गाँव से भगा दिया होगा। गाँव की जितनी जमीन आयी होगी। जितनी सम्पत्ति आयी होगी। सब कुछ उसने अपने कन्ट्रोल में लेली होगी। और गाँव का नाम उसने घोषित कर दिया डलहौजी ने। तो मैंने उस गाँव के सरपंच से पछा-कि भाई डलहौजी तो मर गया। अंग्रेज भी चले गए हैं। अंग्रेजों की सरकार भी चली गई है अब तो इस गाँव का नाम बदल दो। तो उस सरपंच ने क्या कहा- उसने कहा - राजीव भाई हम तो बहुत बार सरकार को कह चुके हैं कि इस गाँव का नाम बदल दिया जाए। हमारा जो पुराना गाँव का नाम था। वही रख दिया जाए। लेकिन सरकार सुनती ही नहीं है। मैंने कहा- क्यूँ नहीं सुनती है सरकार। तो गाँव के एक किसान ने देखिए क्या जवाब दिया मुझको, कितना इन्टेलीजेन्ट आदमी था। वो कितना बुद्धिशाली था उसने कहा - मुझे ऐसा लगता है कि भारत सरकार में डलहौजी की आत्मा प्रवेश कर गई है। इसलिए यह गाँव का नाम नहीं बदल रही है। अंग्रेजों के जमाने का गाँव आज भी इस देश में चलता आ रहा है। तो उस गाँव के किसान ने मुझको पूरा किस्सा सुनाया कि किस तरह से उसके पुरखों से उसने वो किस्सा सुना है कि कभी डलहौजी नाम का ऑफीसर आया था। गाँव के किसानों को मारा था। पीटा था। उनके झोपडे जला दिये थे। सबको गाँव से बाहर भगा दिया था। गाँव के सारे खेतों पर अंग्रेजों का कब्जा हो गया था। और वो अंग्रेजों की संपत्ति घोषित कर दिया गया था पूरा का पूरा गाँव और इसलिए उस गाँव का नाम बदल कर उन्होंने डलहौजी रख दिया। इस तरह से भारत के किसानों को अंग्रेजों ने बर्बाद किया। जमीन हडपकर और जमीन हडपने का कानून बनाकर। एक तीसरा तरीका और अपनाया भारत के किसानों को अंग्रेजों ने बर्बाद करने के लिए। अंग्रेजों ने भारत के समाज का सर्वे कराया था। सर्वेक्षण कराया था। और भारतीय समाज का सर्वेक्षण कराके अंग्रेजों की सरकार ने इस बात का अंदाजा लगवाया कि यहाँ की खेती मूलतः किस २२ . .. _स्वदेशी कृषि Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आधार पर टिकी हुई है। अगर भारत की आर्थिक स्थिति को पूरी तरह से चौपट करना है, बर्बाद करना है। तो भारत की खेती को बर्बाद करना ही पडेगा। भारत के उद्योगों को भी बर्बाद करना पडेगा। __तो भारत की खेती को बर्बाद करने के लिए अंग्रेजों ने पहले सर्वे कराया कि भारत की खेती को कैसे बर्बाद किया जाए। अंग्रेजों ने जब सर्वेक्षण करा लिया तो उनको एक बात यह पता चली कि भारत का किसान जो खेती करता है। उसका केन्द्र बिंदू है गाय। और उसका केन्द्र बिंदु है बैल। बैल गाय के बछड़े होते हैं। बछड़े बैल बनते हैं। बैलों से खेत जोता जाता है। फिर गाय दूध देती है। किसान दूध पीता है। उसमें से शक्ति आती है तो खेत में मेहनत करता है। गाय गोबर देती है। उस गोबर का खाद बनाता है। खाद को खेत में डालता है और खेत की शक्ति बढ़ाता है। गाय मूत्र देती है। मूत्र को किसान कीटनाशक के रुप में प्रयोग में लाता है। तो गाय जो है वो भारतीय कृषि व्यवस्था के केन्द्र में है। यह अंग्रेजों की सरकार को पता चल गया सर्वेक्षण करा के। तो अंग्रेजों ने एक कानून और बना दिया कि भारत में गाय का कत्ल करवाओ। तो 1760 में इस देश में अंग्रेजों के आदेश पर गाय का कत्ल होना शुरु हो गया। कुछ लोगों को ऐसा लगता है और वो लोग कहते भी हैं कि राजीव भाई अंग्रेजों से पहले भी तो जो मुसलमान राजा थे। वो भी तो गाय का कत्ल करवाते थे। मैं आपको जानकारी देना चाहता हूँकिएक-दो मुसलमान राजाओं को छोडकर, भारत में किसी भी राजा ने गाय का कत्ल नहीं करवाया। मुसलमानों के राजाओं के जमाने में तो भारत में ऐसा कानून रहा है कि जो गाय का कत्ल करे उसको फाँसी की सजा दी जाए। यह अंग्रेज थे जिन्होंने गाय का कत्ल करवाने के लिए व्यवस्थित रुप से एक कानून बनवा दिया और सन 1760 से भारत में गाय का कत्ल करवाना अंग्रेजों ने शुरु किया। गाय का कत्ल करवाते तो अंग्रेजों को दो फायदे होते थे। एक तो भारत के किसान का जो सबसे बड़ा पशुधन था गाय। वो खत्म होता था। गाय मरती थी तो दूध कम होता था। गाय मरती थी तो गोबर कम होता था। गोबर कम होता था तो खाद कम होती थी। गाय मरती थी तो मूत्र नहीं मिलता था। किसानों के लिए जो किटनाशक दवायें बनती थीं उसमें कमी आती थी। गाय का दूध नहीं मिलता था तो किसानों की शक्ति कम होती थी। तो लगातार गाय के कत्ल होते चले जाने के कारण भारत की खेती का भी नाश होना शुरु हो गया और अंग्रेजों ने बहुत ही व्यवस्थित तरीके से इस देश में कत्ल कारखाने खुलवा दिए। अंग्रेजों की सरकार ने पूरे देश में लगभग 300 से ज्यादा कत्ल कारखाने खुलवाये। जिनमें गाय और गौवंश का कत्ल किया जाता था। हजारों की संख्या में लाखों की संख्या में गाय स्वदेशी कृषि Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ और गौवंश का कत्ल होता था। गाय का मांस यहाँ से भेज दिया जाता था, इंग्लैंड में जाता था। अंग्रेजों की सरकार के जो सिपाई होते थे वो जो गाय का मांस खाते थे। आप जानते हैं युरोप के देश की जो प्रजा है यह जो गोरी प्रजा है। यह गाय का मांस सबसे ज्यादा खाती है। जितनी गोरी प्रजा है पूरी दुनिया में इसको गाय का मांस सबसे अच्छा लगता है। तो गाय कत्ल होता था भारत में। उसका मांस इंग्लैंड जाता था। और गाय का कत्ल कर के अंग्रेजों की फौज जो भारत में रहती थी। उसको मांस बेचा जाता था। उसको मांस दिया जाता था। तो भारत के किसानों को बर्बाद करने के लिए जो तीसरा काम अंग्रेजों ने किया वो गाय के कत्ल करवाने के बाद में अंग्रेजों को ऐसा लगा कि सिर्फ गाय के कत्ल करवाने से बात नहीं बनेगी। गाय जहाँ से पैदा होती है। उस नंदी का कत्ल पहले करो, तो अंग्रेजों ने पहले नंदी का कत्ल करवाना शुरु किया और बहुत ही व्यवस्थित पैमाने पर गाय और नंदी का कत्ल अंग्रेजों ने करवाया। हम लोगों ने जो दस्तावेज इकठे किये हैं उनसे पता चलता है कि 1760 से लेकर 1947 के साल तक अंग्रेजों ने करीब 48 करोड़ से ज्यादा गाय और बैल का कत्ल करवाया। और यह जो 48 करोड़ गाय और नंदियो के कत्ल करवा दिये। मैं कभी-कभी कल्पना करता हूँकि वो गाय नहीं काटी गई होती। वो नंदी नहीं काटे गए होते तो आज हिन्दुस्तान में गाय की संख्या हमारी आबादी से तीन गुनी ज्यादा होती। कम से कम इस देश में देड़ सौ करोड़ से ज्यादा गाय और बैल होते लेकिन अंग्रेजों ने बहुत ही व्यवस्थित तरीके से यह कत्ल करवा कर हिन्दुस्तान के किसानों का सत्यानाश करवाया। फिर उसके बाद अंग्रेजों ने हिन्दुस्तान के किसानों का सत्यानाश करने के लिए एक चौथा काम किया और चौथा काम उन्होंने क्या किया कि इस देश के किसानों की जो क्रय शक्ति थी। उसको कम करवाओ - माने किसान जो खेती करता है। खेती के साथ-साथ कुछ और भी उद्योग कर सकता है। पशुपालन का काम कर सकता है। दूसरे कई काम कर सकता है और उससे जो उसकी क्रय शक्ति बढ़ती है, उसकी समृद्धि बढ़ती है, उसकी संपत्ति बढ़ती है। उसको कम करवाओ। तो अंग्रेजों ने कृषि और पशुपालन दोनों को अलग-अलग करवा दिया। पहले खेती के साथ पशुपालन बिलकुल जुड़ा हुआ था। लेकिन फिर अंग्रेजों ने नीति ऐसी बनाई कि कृषि अलग हो गई और पशुपालन बिलकुल एक अलग तरह के बात हो गई। अंग्रेजों ने फिर भारतीय समाज में एक-एक करके उन जातियों पर अत्याचार करने शुरु किये जो जातियां सबसे ज्यादा पशुपालन करती थी। हमारे समाज में जिन जातियों को हम पिछड़ी जातियां कहते हैं। नीचे दर्जे के जातियां कहते हैं। वास्तव में यह भारत के समाज की रीड़ की हड्डी रही हैं। यहीं जातियां रही हैं जिनके पास ___ स्वदेशी कृषि - २४ ...... ... ... ... ... Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सबसे ज्यादा हुनर रहा है। सबसे ज्यादा कौशल रहा है। यही जातियां रही हैं जिनके पास सबसे बड़ी टेक्नोलॉजी रही है। और यहीं जातियां रही हैं जिनके पास सबसे ज्यादा हुनर और कौशल इस बात का रहा है कि पशुओं की समृद्धि कैसे करायी जाए और पशुओं की संख्या कैसे बढ़ायी जाए। - तो अंग्रेजों ने हमारे देश की ऐसी जातियों पर अत्याचार करने शुरु किये जो जातियां हमारे देश में पशुपालन के काम में लगी हुई थी और धीरे-धीरे पशुओं की संख्या - एक तरफ तो गाय का कत्ल करवा के कम कर दी। दूसरी तरफ हमारे देश मेंजो पशुपालन करने वाली जातियां थीं उनको अंग्रेजों ने इतना बुरी तरहसे प्रताडित किया, अत्याचार किये उन सबके ऊपर कानून बनाकर कि धीरे-धीरे पशुपालन का काम वो लोग छोड़ते चले गए और विस्थापित होते चले गए। इस तरह से अंग्रेजों ने भारत के किसानों को व्यवस्थित रुप से बर्बाद करने का काम शुरु किया। और यह बर्बादी कितनी आयी। 1760 से लेकर 1850 के साल तक या 1860 के साल तक हिन्दुस्तान की खेती बुरी तरह से चौपट हो गयी। किसान बुरी तरह से बर्बाद हो गए और मात्र सौ साल के अंदर में हिन्दुस्तान के किसानों की गरीबी दिखाई देने लगी। दारिद्रय इस देश में दिखाई देने लगा और जिस तरह से किसानों की बर्बादी की अंग्रेजों ने, उसी बर्बादी के कारण फिर इस देश में भुखमरी आयी और अकाल पड़ना शुरु हुए। हमारे देश में अंग्रेजों के जमाने में जितने अकाल पड़े हैं उनमें से एक या दो अकाल को छोड़ दिया जाए तो बाकी सब अकाल अंग्रेजों की नीतियों के कारण पड़े। मौसम के कारण नहीं पड़े। हम लोगों को कई बार यहगलत फहमी हो जाती है कि बारिश नहीं हुई होगी। सुखा पड़ गया होगा इसलिए अकाल पड़ गया होगा। हम लोगों को कई बार यह गलत फहमी हो जाती है कि मौसम का दुष्चक्र होगा। कुछ मौसम में परिवर्तन आया होगा भयंकर तरीके से। इसलिए भारत में अकाल पड़े होंगे। भारत में अकाल मौसम की मार से नहीं पड़े। भारत में जितने भी अकाल पड़े वो अंग्रेजों की गलत नीतियों के कारण पड़े। ___ मैंने बताया खेती को बर्बाद करना। किसानों को बर्बाद करना। किसानों से लगान वसूलना। पचास प्रतिशत किसानों से उत्पादन टॅक्स के रुप में ले लेना। किसान जो पशुपालन कर रहे हैं। उन पशुपालन करने वाले किसानों पर अत्याचार करना। किसान जो अपने गाँव के बावड़ी और कुओं की व्यवस्था बना सकते हैं। उन सब व्यवस्थाओं को किसानों के हाथ से छीन लेना और अंग्रेजों की सरकार के हाथ में चला जाना। जो जंगल किसानों की संपत्ति माने जाते थे, जो जंगल गाँव की स्वदेशी कृषि - २५ Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1 संपत्ति माने जाते थे और जिन जंगलों से किसानों को अपनी खेती करने के लिए मदद में आने वाली तमाम तरह की चीजें मिलती थी। उन जंगलों का अंग्रेजों की सरकार ने सत्यानाश करवाया। एक और तरीका अंग्रेजों ने अपनाया इस देश के किसानों को खेती को बर्बाद करने के लिए। 1865 के साल में अंग्रेजों ने एक कानून बनाया इस देश में । उस कानून का नाम था 'इंन्डियन फॉरेस्ट एक्ट' और यह कानून लागू हुआ 1872 और आज भी यह कानून सारे देश में चलता है। इंन्डियन फॉरेस्ट एक्ट का कानून अंग्रेजों की सरकार ने इसलिए बनाया था कि इस कानून के बनने से पहले जो जंगल होते थे वो गाँव की संपत्ति माने जाते थे। तो गाँव के किसानों की सामुदायिक हिस्सेदारी जंगलों पर होती थी। अंग्रेजों ने क्या किया कि जो जंगल गाँव समाज की संपत्ति होते थे । जो जंगल गाँव के किसानों की संपत्ति होते थे । उन जंगलों को अंग्रेजी सरकार की संपत्ति घोषित करवा दिया। कानून बना के और उसी कानून का नाम 'है' इंन्डियन फॉरेस्ट अॅक्ट'। फिर अंग्रेजों ने उस कानून को कितनी सख्ती से लागू करवाया कि अंग्रेजों की सरकार के जो ठेकेदार होते थे वो जंगल कटवाते थे । जंगल से लकड़िया लेके जाते थे । और भारत का कोई भी किसान अगर जंगल में जाकर लकड़ी काट लाए तो उसको सजा दी जाती थी। तो भारत का किसान, भारत का आदमी जंगल से लकड़ी काट नहीं सकता। अंग्रेजों ने कानून बना दिया और अंग्रेजों की सरकार जो थी उनके जो ठेकेदार होते थे वो जंगल से लकड़ी कटवाते थे। 1 तो जंगल के जंगल साफ करवाना शुरु किया अंग्रेजों की सरकार ने इस कानून के आधार पर और जंगल खत्म होते गए तो फिर किसानों का क्या नुकसान हुआ । आप जानते हैं जंगल खत्म होते चले जाने के कारण जो मिट्टी का जमाव होता है पेड़ों के आस-पास वो मिट्टी का जमाव छूटने लगता है। अब मिट्टी का जमाव जब छुटने लगता है तो वो मिट्टी बहने लगती है । और मिट्टी बहने लगती है तो नदियों में जाती है। नालों में जाती है । लहरो में चली जाती है । और मिट्टी बह - बहकर जब नदियों में बढ़ती चली जाती है तो नदियों का स्थर ऊँचा होता चला जाता है। नदियों की गहराई कम होती चली जाती है। लगातार मिट्टी बह बहकर अगर पानी के साथ आयेगी। पहले जंगल होते थे। पेड़ होते थे। तो पेड़ मिट्टी को बांध के रखता तो बारीश के समय मिट्टी बह नहीं सकती जंगल से । लेकिन पेड़ काट लिए जायेंगे। तो पेड़ों के आस-पास जो जमा की गयी जो मिट्टी है। वो बहना शुरू हो जायेगी और वो मिट्टी पानी के साथ बहकर नदी में जायेगी । और नदियों में जायेगी तो नदियों का । स्वदेशी कृषि २६ Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जो स्तर है। नदियों की गहराई है वो कम होती चली जाएगी। नदियों में मिट्टी बढ़ती चली जाएगी तो पानी कम आयेगा नदियों में। और पानी कम आयेगा तो बाढ़ आयेगी और बाढ़ आयेगी तो किसानों की फसल चौपट हो जायेगी। अंग्रेजों ने इस तरह से कानून बना दिया 'इंन्डियन फॉरेस्ट एक्ट'का और फिर उसका सत्यानाश किसानों को झेलना पड़ा। एक तो जंगलों से मिलने वाली संपत्ति किसानों के लिए बंद हो गई। दूसरा जंगल जो किसानों की सुरक्षा व्यवस्था कर सकते थे वो जंगल फिर धीरे-धीरे खत्म होते चले गए। एक काम और किया अंग्रेजों ने, उनकी सरकार ने कि किसान जो कुछ भी अनाज पैदा करता था अपने खेत में उसका मूल्य अंग्रेजों की सरकार तय करती थी। माने पैदा करता था किसान और मूल्य तय करती थी अंग्रेजों की सरकार। तो बड़ी मंडीया होती थी,बड़े हाट लगते थे, बड़ी पेठलगती थी, जिसमें किसान अपना अनाज बेचने के लिए इकट्ठे होते थे तो अंग्रेजों का बड़ा ऑफीसर जाता था और उस मंडी में जाकर अनाज का दाम तय कर आता था। यह अनाज इस दाम पर बिकेगा। यह अनाज इस दाम पर बिकेगा। माने मेहनत किसान करता था और अनाज का दाम अंग्रेज तय करते थे और जानबुझकर अंग्रेजों की सरकार किसानों की मेहनत से पैदा किए गये अनाज का दाम इस तरीके से तय करती थीं कि किसानों को ज्यादा कुछ मिलने ना पाए। उनको लगातार नुकसान होता चला जाये। उनको लगातार घाटा होता चला जाये। इस तरह का कानून अंग्रेजों ने बना रखा था इस देश में। बाद में अंग्रेजों ने क्या किया कि किसान अपने अनाज को एक गाँव से लेकर दूसरे गाँव में जाये बेचने के लिए तो उसपर भी बंदी लगा दी। एक गाँव का किसान अपने अनाज को लेकर दूसरी जगहजाकर बेच नहीं सकता। एक जिले का किसान अपने अनाज को लेकर दूसरे जिले में जाकर बेच नहीं सकता। इस तरह की सक्त पांबदी अंग्रेजों ने, उसकी सरकार ने लगा दी और इस तरहसे किसानों को बिलकुल घेर के रख दिया। अंग्रेजों की सरकार ने कानून बना-बनाकर और यह हर तरह का कानून बनता था और जो किसान उनका पालन नहीं करते थे तो उनको फाँसी दी जाती थी। उनको कोडे लगाये जाते थे। कई बार अंग्रेजों की सरकार किसानों को बर्बाद करने के लिए कुछ इस तरह के भी काम करती थी। जैसे जबरदस्ती किसानों से कुछ खास तरह की फसल पैदा करवायी जाती थी। आप जानते है बिहार के किसानों को अंग्रेज जबरदस्ती नील की खेती करवाते थे। जिस जमीन पर सबसे ज्यादा धान पैदा हो सकता है बिहार स्वदेशी कृषि - २७ Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ में और होता था । उस जमीन पर अंग्रेजों की सरकार जबरदस्ती नील की खेती करवाती थी और किसान जब नील की खेती करने से मना करते थे तो उनके ऊपर अत्याचार किया जाता था। अंग्रेजों की सरकार को क्या रस था नील की खेती करवाने में । अंग्रेजों को नील की जरुरत थी । युरोप में नील बहुत बिकता था । अंग्रेजों के अपने बाजार में नील बहुत बिकता था । और दूसरी मुश्किल यह थी कि नील की खेती करने से खेती बहुत बर्बाद होती थी। तो अंग्रेजों को नील चाहिए युरोप के बाजारों में बेचने के लिए और उस नील को पैदा करने के लिए भारत के किसान को मजबूर करते थे । गांधीजी ने जो सबसे पहला सत्याग्रह किया था अपने चंपारण्य के प्रवास में, वो सत्याग्रह इसी सवाल को लेकर था कि अंग्रेजों की सरकार जबरदस्ती किसानों से नील की खेती करवाती थी और गांधीजी कहा करते थे कि यह सबसे बड़ी हिंसा है। किसानों की मर्जी के खिलाफ जबरदस्ती उनसे किसी फसल का पैदा करवाया जाना गांधीजी कहा करते थे कि हिंसा है। तो इसलिए चंपारन का सत्याग्रह करना पड़ा था महात्मा गांधी को । ऐसे ही अंग्रेजों की सरकार ने मालवा के इलाके में किसानों को मारकर पीटकर जबरदस्ती उनसे अफीम की खेती करवाना शुरु किया । यह आज हमारे देश में बहुत बदनाम है मालवा का क्षेत्र । और हम लोग अकसर यह कहा करते हैं कि मालवा के किसान सबसे ज्यादा अफीम पैदा करते हैं। यह जो अफीम पैदा करवाने का किस्सा है यह अंग्रेजों का शुरु करवाया हुआ किस्सा है। हमारे देश में अंग्रेजों के आने के पहले अफीम की खेती नहीं थी । और होगी तो कहीं छुट - पूट, थी बड़े पैमाने पर नहीं थी । लेकिन अंग्रेजों की सरकार ने मालवा के किसानों को मार-पीट कर जबरदस्ती उनपर अत्याचार करके अफीम की खेती करवायी । क्यूँ करवायी ? क्योंकि अफीम का व्यापार अंग्रेजों की ईस्ट इंडिया कंपनी बहुत जगह पर करती थी। किसानों से उस अफीम को लेकर ईस्ट इंडिया कंपनी चीन में जाती थी बेचने के लिए। तो अफीम भारत में पैदा होती थी। ईस्ट इंडिया कंपनी उस अफीम को चीन में ले जाकर बेचती थी। अंग्रेजों के ऑफीसर ईस्ट इंडिया कंपनी की तरफ से मुनाफा भी कमाते थे और चीन के लोगों को नशे का शिकार भी बनाते थे। पूरे के पूरे चीन को बर्बाद किया था अंग्रेजों ने अफीम पिला-पिलाकर, अफीम खिला-खिलाकर । चीन के लोगों को पहले मुफ्त में अफीम खिलाई फिर धीरे-धीरे नशे के शिकार हो गए। तो उनसे पैसा लेना शुरु किया और अफीम देना शुरु किया और आप जानते हैं कि चीन में एक बहुत बड़ा अफीम स्वदेशी कृषि २८ Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ युद्ध हुआ है अंग्रेजों के खिलाफ जिसको ओपियम ट्रेड वार कहा जाता है चीन के इतिहास में। वो इसलिए हुआ कि भारत में अफीम पैदा होती थी मालवा में। अंग्रेजों की सरकार वो अफीम पैदा करती थी। चीन के लोगों को उससे बर्बाद किया जाता था। ___ इस तरह के कानून अंग्रेजों की सरकार ने बनाये थे भारत को बर्बाद करने के लिए भारत के किसानों को बर्बाद करने के लिए और इस तरह की व्यवस्थायें बनाकर अंग्रेजों ने भारत के किसानों को पूरी तरह से बांध दिया था। तो जो किसान सबसे ज्यादा उन्नत खेती करता था। जो किसान सबसे ज्यादा उन्नत खेती करने वाला माना जाता था। जिस देश की खेती सबसे ज्यादा उन्नत मानी जाती थी वो किसान बर्बाद हुआ। वो खेती बर्बाद हुई और वो धीरे-धीरे गरीबी में आ गया किसान, फिर दारिद्र में आया, फिर कंगाली में आया। फिर इस देश में भुखमरी हुई और अकाल पड़ गया और जब अकाल पड़ते थे तो हिन्दुस्तान के लाखों-लाखों लोग भुख से मर जाते थे। अंग्रेजों की सरकार के लिए वो बहुत सुविधा की बात मानी जाती थी। अंग्रेजों की सरकार को लगता था कि जितने लोग इस देश में मरते जाए भूख से उतना ही अंग्रेजों की सरकार को, लोगों को कन्ट्रोल करने में, लोगों को गुलाम बनाकर रखने में सुविधा होती थी। तो अकाल जब पडते थे। महामारियां जब होती थीं। भूख से जब लोग मरते थे। अंग्रेजों की सरकार उसके लिए कोई कदम नहीं उठाती थी। इस देश के लिए सबसे बड़ा दुभार्ग्य रहा है कि एक देश जो 300 साल पहले तक सबसे ज्यादा अन्न पैदा करता रहा। अनाज पैदा करता रहा उसी देश में अंग्रेजों को जमाने में दस-दस अकाल पडे। बड़े-बड़े अकाल पड़े, लाखों-लाखों करोड़ों-करोड़ों लोग उन अकाल में मारे गए। । बाद में अंग्रेजों की सरकार ने एक कानून और बनाया। जब यहाँ अकाल पडना शुरु हो गया। तो अनाज के उत्पादन में और ज्यादा कमी आ गयी तो अंग्रेजों की सरकार जो लगान वसुलती थी वो लगान में भी कमी आने लगी। क्योंकि अनाज का उत्पादन कम हुआ तो लगान मिलना कम हो गया तो अंग्रेजों की सरकार ने फिर और ज्यादा अत्याचार करना किसानों के ऊपर शुरु कर दिया और एक बार तो अंग्रेजों की सरकार ने इस कदर अत्याचार किया भारत के किसानों पर आपको याद होगा 1939 में दुसरा विश्व युद्ध जब शुरु हुआ और इस दूसरे विश्व युद्ध में जब अंग्रेजों की सरकार फंसी युद्ध करने के लिए तो अंग्रेजों की सेना दूसरा विश्व युद्ध लढ़ रही थी। लेकिन अंग्रेजों की सेना जो युद्ध लढ़ रही थी अपने स्वार्थ की पूर्ती के लिए। उस अंग्रेजी सेना के लिए भोजन भारत से भेजा जाता था। अनाज स्वदेशी कृषि . २९ Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भारत से भेजा जाता था। गो-मांस भारत से भेजा जाता था। अंग्रेजों की फौज लढ़ रही थी दूसरे विश्व युद्ध में और दुसरे विश्व युद्ध का काफी खर्चा भारत के किसानों को बर्दाश्त करना पड़ता था। दूसरे विश्व युद्ध के समय में अंग्रेजों की सरकार ने एक तो किसानों पर टॅक्स और बढ़ा दिया था। लगान और ज्यादा बढ़ा दिया था। भारत के उद्योगों पर टॅक्स बढ़ा दिया था। भारत के उद्योगों पर ज्यादा से ज्यादा भारत के उद्योगों से रेवेन्यू कलेक्शन हो सके। युद्ध के लिए ऐसी व्यवस्थायें बनायी थी और दूसरी तरफ भारत का भोजन। भारत का अनाज। भारत के गाय का कत्ल करने के बाद मांस अंग्रेजों की फौज को मिल सकेलगातार उसकी भी व्यवस्था की थी आप जानते हैं कि जब भारत के अन्न, भारत का अनाज अंग्रेजों की फौज को जाने लगा तो पहले से ही इस देश में अन्न उत्पादन में काफी कमी आ चूकी थी। फिर जो कुछ बचा हुआ अन्न था वो अंग्रेजों ने यहाँ से बाहर भेजना शुरु कर दिया। अपने देश में बेचना शुरु कर दिया था। तो फिर अनाज की कमी और ज्यादा हो गई तो अंग्रेजों ने और एक कानून बना दिया। और वो कानून है राशन कार्ड' का कानून जो आज भी इस देश में चल रहा है। आप में से बहुत सारे लोग नहीं जानते कि यह राशन कार्ड क्यूँ चलाया गया इस देश में। हम सब के घर में राशन कार्ड तो है। लेकिन वो राशन कार्ड क्यूँचलाया था। अंग्रेजों ने क्यूँशुरु किया था यह कानून यह बहुत कम लोग जानते हैं। 1939 के साल में अंग्रेजों ने राशन कार्ड का कानून बनवाया और भोजन और अनाज पर उन्होंने राशनिंग की व्यवस्था शुरु करवायी और यह राशन कार्ड का कानून अंग्रेजों ने क्यूँ बनवाया। क्योंकि यहाँ का अनाज यहाँ का भोजन इंग्लैंड चला जाता था। यहाँ के लोगों को भुखमरी की हालत का सामना करना पड़ता था। तो भारत के लोगों को भुखमरी की हालत का सामना करते हुए लोग जब मरते थे तो अंग्रेजों की सरकार ने लोगों को थोड़ा तसल्ली देने के लिए कानून बना दिया की राशन कार्ड आपले लो। अंग्रेजों की सरकार से और जिस व्यक्ति के पास राशन कार्ड होगा उसको सस्ते दाम पर अनाज मिल सकेगा। तो जिन लोगों ने राशन कार्ड बनवाये। अंग्रेजों की सरकार के ऑफिस में जाकर . घूस देकर, रिश्वत देकर भ्रष्टाचार करके उन लोगों को ही सिर्फ अनाज मिलता था। बाकी लोगों को अनाज मिल नहीं पाता था। तो इस तरह के अत्याचारी कानून और इस तरह की व्यवस्था अंग्रेजों ने शुरु की थी। इस देश में हिंसक व्यवस्थाओं के कारण भारत का किसान बर्बाद हुआ और भारत की खेती बर्बाद होती चली गई और तकलीफ हमारी यह है कि जिस तरह से | ३० ....... ..... स्वदेशी कृषि Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंग्रेजों की सरकार ने भारत की खेती को बर्बाद किया था। जिन नीतियों के कारण भारत के किसान को बर्बाद किया गया था। जिन नीतियों और जिन कानूनों के चलते भारत के किसान की बर्बादी आयी थी। भारत की खेती बर्बाद हई थी। वो सारी की सारी नीतियां वो सारे के सारे कानून आज भी चल रहे हैं। उदाहरण के लिए जो 'लेण्ड एक्यूजीशनस एक्ट 'अंग्रेजों ने बनाया वो आज आजादी के पचास साल के बाद भी चलता। जो 'इंडियन फॉरेस्ट एक्ट' अंग्रेजों ने बनाया था वो आज आजादी के पचास साल के बाद भी चलता है। जो कानून अंग्रेजों ने बनाया किसानों के पैदा किये हुए अनाज का दाम तय करने के लिए वो कानून इस देश में आज भी चलता है। बस फरक इतना है कि पहले गोरे अंग्रेज उस कानून को चलाते थे। अब काले अंग्रेज उस कानून को चलाते हैं और आज भी इस देश में ठीक उसी तरहसे किसानों की जमीनें छीनी जाती हैं। जिस तरीके से अंग्रेजों के जमाने में छीनी जाती थीं। अंग्रेजों के जमाने में जमीन कैसे छीनी जाती थी। एक कलेक्टर नाम का ऑफीसर अंग्रेजों ने बनाया। सन 1860 में एक कानून बनाया अंग्रेजों ने 'इंडियन सिविल सर्विसेस एक्ट' और इस'इंडियन सिविल सर्विसेस एक्ट' के नाम पर कलेक्टर नाम की पोस्ट बनवायी और उस कलेक्टर को यह अधिकार दिया गया कि वो गाँव-गाँव के किसानों को मार-पीट कर, उनके ऊपर अत्याचार करके, रेवेन्यूवसूले,लगान वसूले गाँव-गाँव में कलेक्टर क्या करता था कि जब किसान लगान नहीं दे पाता था तो उसकी जमीन सीज कर लेता था। उसकी संपत्ति सीज कर लेता था। उसके लिए एक नोटिस जाता था किसान को और उसकी संपत्ति जब्त कर ली जाती थी। तो जिस तरह से संपत्ति जब्त कर ली जाती थी। किसान की और उनकी जमीन छीन ली जाती थी। ठीक उसी तरह से आज भी इस देश में होता है। अब क्या होता है। कलेक्टर कभी नोटिस देता है। गाँव के किसान की जमीन छीन ली जाती है। वो किसान को यह अधिकार भी नहीं होता है कि वह अपनी जमीन के बारे में कहीं कोई केस लड़ सके। जिरह कर सके। क्योंकि कानून ऐसा है अंग्रेजों के जमाने का बनाया हुआ कि सरकार इमरजेंसी बताकर किसी भी गाँव के किसी भी किसान की कोई भी जमीन छीन सकती है। मान लीजीए सरकार को किसी भी जमीन पर कारखाना बनवाना है और गाँव का किसान वो जमीन देना नहीं चाहता तो सरकार जबरदस्ती नोटिस इश्युकरवाएगी कलेक्टर के माध्यम से तो गाँव/किसान की वो जमीन छीन ली जाएगी। फिर गाँव के किसान को मजबूरी में कुछ औना-पौना स्वदेशी कृषि . ३१ Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दाम देकर जमीन सरकार के नाम लिखवा ली जायेगी। जिस तरह का अत्याचारी कानून अंग्रेज चलाते थे। वो ही आज भी चल रहा है और हिन्दुस्तान के किसानों की हजारों एकड़ जमीन हर साल छीनी जाती है। पहले हिन्दुस्तान में किसानों की जमीन छीनी जाती थी अंग्रेजों के लिए, अंग्रेजीं कम्पनियों के लिए। अब इस देश के किसानों की जमीन छीनी जाती है बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के लिए, देशी कम्पनियों के लिए, विदेशी कम्पनियों के लिए। पिछले 7-8 वर्षों से हमारे देश में जो उदारीकरण की नीतियां चल रही हैं, जागतीकरण की नीतियां चल रही हैं। उन नीतियों के कारण हजारों एकड़ जमीन महाराष्ट्र के किसानों की छीनी गई। हजारों एकड़ जमीन उत्तर प्रदेश के किसानों की छीनी गई, हजारों एकड़ की जमीन तामिलनाडू, कर्नाटक, गुजरात, आन्ध्रप्रदेश, पंजाब, हरियाणा आदि के किसानों की छीनी गई है। हर साल हजारों एकड़ जमीन गाँव के किसानों से छीन छीन कर परदेशी कम्पनियों को बेच दी जाती है और उस जमीन पर परदेशी कम्पनियों के बड़े-बड़े कारखाने लगाये जाते हैं। जिस जमीन पर धान पैदा होता था, गेहूँ पैदा होता था। अब उस जमीन पर कारखाना चलता है। सरकार क्या बोलती है। वो कहती है- औद्योगीकरण हो रहा है। इण्डस्ट्रीयलाईजेशन हो रहा है। वो लोग बोलते हैं कि यह फायदे का काम हो रहा है जो इंडस्ट्रीज बन रही है। आप जानते हैं दुनिया में और हमारे देश में कोई भी ऐसी इंडस्ट्रीज नहीं है । जिसमें सौ रुपया लागत के रुप में अगर लगाया जाए तो सौ ही रुपया का उत्पादन होगा। हर फॅक्टरी में लागत ज्यादा होती है उत्पादन कम होता है । और भारत सरकार और भारत सरकार के नीति बनाने वाले लोग किस तरह की बेवकुफ नीतियां बनाते हैं कि वो इंडस्ट्रीज को महत्वपूर्ण मानते हैं और खेती को उससे कम मानते हैं । मेरी मान्यता यह है कि खेती से बड़ी इंडस्ट्रीज पूरी दूनिया में कोई नहीं है। खेती से बड़ा उद्योग पूरी दुनिया में कोई नहीं। आप पूँछेगें वो कैसे? किसान एक गेहूँ का बीज डालता है और उस एक गेहूँ के बीज डालने के बाद कम से कम 50-60 गेहूँ के दाने लगते हैं। तो एक गेहूँ का बीज डाला और उसमें से 50-60 गेहूँ के बीज पैदा हुए। यह बताईए, ऐसा कारखाना आपने दुनिया में कहीं देखा है । इतना जबरदस्त पूंजी का निर्माण जिस कारखाने में हो सके ऐसा कारखाना कहीं आपने देखा है । मैंने तो जितने कारखाने देखे जीवन में, वहाँ सौ रुपया डालते हैं तो सत्तर रुपये का उत्पादन मिलता है। सौ रुपया डालते हैं तो अस्सी रुपये का उत्पादन मिलता है। सौ रुपया डालते हैं तो पचास रुपये का उत्पादन मिलता है । माने जितनी लागत होती है। उससे स्वदेशी कृषि ३२ Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 50 टक्का, 60 टक्का ही उत्पादन मिलता है। लेकिन खेती ऐसा उत्पादन है जिसमें आप एक रुपये का सामान डालिए सौ रुपये का सामान मिलता है। - तो इतना बड़ा उद्योग है जिसका सत्यानाश अंग्रेजों ने किया था। अब वहीं सत्यानाश भारत की सरकार कर रही है। और आज भी इस देश में वैसी ही नीतियां चलाई जा रही हैं जो अंग्रेजों के जमाने में चलाई जा रही थी। अंग्रेजों के जमाने में किसान अपने अनाजों का दाम तय नहीं कर पाता था। आज आजादी के पचास साल के बाद भी किसान अपने अनाज का दाम तय नहीं कर पाता इस देश में। सिर्फ किसान ही एक ऐसा वर्ग है जो अपने द्वारा खेत में पैदा किए गए किसी भी सामान का दाम खुद नहीं तय कर पाता। जितने भी कारखाने चलते हैं इस देश में, जितने भी उद्योग चलते हैं पूरे देश में। हर उद्योग और हर कारखाना चलाने वाला आदमी अपने द्वारा पैदा की गई हर वस्तु का दाम खुद तय करता है। लेकिन किसान ही एक वर्ग है इस देश में,कास्तकार ही एक ऐसा वर्ग है इस देश में जो अपने द्वारा पैदा किये गए गेहूँ का दाम तय नहीं कर पाता। अपने द्वारा पैदा किये गये बाजरे का दाम तय नहीं कर पाता। अपने द्वारा पैदा किये गये धान का दाम तय नहीं कर पाता। अपने द्वारा पैदा किये गये मक्के का दाम तय नहीं कर पाता। कुछ भी चीज पैदा करता है किसान, उसका दाम वो खुद तय नहीं कर पाता। सरकार तय करती है। जिस तरह से अंग्रेजों की सरकार करती थी वो काम आज भी हो रहा है। इसी तरह से अंग्रेजों की सरकार ने भारत के किसानों पर पाबंदी लगा रखी थी कि किसान एक जिले का माल दूसरे जिले में नहीं ले जायेगा। वैसी ही पाबंदी आज भी है। एक प्रदेश का पैदा किया हुआ अनाज दूसरे प्रदेश में नहीं जाता। उस पर पाबंदी लागरखी है सरकार ने। जिस तरह से अंग्रेजों की सरकार किसानों के ऊपर लगान वसूलती थी। टॅक्स वसूलती थी। अब उस तरह की चर्चा इस देश में फिर शुरु हो गई है। आजादी के पचास साल के बाद खेती पर तो लगान कुछ कम कर दिए सरकार ने। लेकिन Indirect तरीके से, अप्रत्यक्ष तरीके से किसानों की जेब काटना शुरु कर दिया सरकार ने। और किसानों की जेब कैसे काटती हैसरकार । अगर किसान कपास की खेती करता है और एक क्विन्टल कपास पैदा करने में उसका दो हजार रुपया खर्च होता है तो एक क्विन्टल कपास जब बेचने जाएगा किसान तो सरकार कहेगी 1800 रुपये दाम ले लो। 1900 रुपये दाम ले लो। बहुत अधिक आप सरकार के साथ झगड़ा करेंगे तो 2000 रुपये क्विन्टल का दाम देने को तैयार हो जायेगी। माने जिस कीमत पर आपकी कपास की फसल लग रही है वो ही कीमत स्वदेशी कृषि Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आपको मिलेगी । मुनाफा कुछ नहीं होने देगी आपको। तो आपकी जेब ही काट रहे हैं ना या तो टॅक्स लगाकर आपकी जेब काटे या तो लगान वसुल कर आपकी जेब काटे या फिर आपके ऊपर पाबंदी लगाकर आपके दाम तय करने की नीति सरकार अपने हाथ में ले ले और आपको मुनाफा नहीं होने दे। तो यह एक तरह का टॅक्स ही है। किसानों के लिए और दूसरा तरीका क्या अपनाया हुआ है सरकार ने कि किसान जो कुछ पैदा करता है और जब बाजार में बेचने जाता है तो उसकी कीमत नहीं मिलती उसका दाम उसको नहीं मिलता। और उसके विपरीत किसान जो कुछ बाजार से खरीदता है उसकी कीमतें लगातार बढ़ती चली जाती हैं। अपनी खेती में डालने के लिए फर्टीलायजर लेता है खाद लेता है, अपनी खेती में डालने के लिए कीटनाशक ता है। अपनी खेती में डालने के लिए बीज लेता है। अपनी खेती में डालने के लिए और कोई चीज इस्तेमाल करनी हो किसान को जो बाजार से खरीदनी पड़े। तो उन सबके दाम तो बढ़ते चले जाते हैं। सौ टका दाम बढ़ जायेगा। दो सौ टका दाम बढ़ जायेगा। तीन सौ टका दाम बढ़ जायेगा। चार सौ टका दाम बढ़ जायेगा । पाँच सौ का दाम बढ़ेगा। लेकिन जो किसान बाजार में बेचने के लिए जायेगा कोई चीज तो उसका दाम नहीं बढ़ता। तो हमेशा खेती घाटे का सौदा रहती है। खेती में जो लगाते हैं वो निकलता नहीं और खेती में जितना लगाते हैं जब निकलता नहीं है तो किसान की खेती घाटे में आ जाती है और जब घाटे की खेती करना किसान शुरू करता है तो कर्जदार होता है। कई-कई से कर्ज लेता है या साहूकार से या बँकों से ले और कर्जदार हो जाता है। तो उसकी हालत और भी दयनीय हो जाती है। इस देश में ऐसे नियम और ऐसी व्यवस्थाएं चलाई गयी हैं । और कर्जा लेकर जब किसान खेती करता है तो उसके क्या नतीजे निकलते हैं। पिछले साल आंध् प्रदेश के 100 किसानों ने आत्महत्या की थी वो सबसे बड़ा उदाहरण है इस देश के सामने | 100 किसानों ने बँक से कर्जा लेकर कपास की फसल लगायी थी आंध प्रदेश में । उस कपास की फसल पर कीड़ा लग गया और कपास की फसल पर कीड़ा लग गया तो कीड़े को मारने के लिए किसान दवा लेके आये और दवा अंग्रेजी कंपनी की थी। परदेशी कंपनी की थी। उस दवा को उन्होंने खेत में छिड़का । उस दवा पर जितने निर्देश लिखे हुए थे सब अंग्रेजी में थे। किसान अंग्रेजी पढ़ना जानते नहीं तो दवा उन्होंने छिड़क दी खेत में। तो जो कपास की फसल बची हुई थी भी पूरी तरह से चौपट हो गई। तो किसानों के पास कुछ नहीं बचा। वो बँकों से स्वदेशी कृषि ३४ Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कर्जे के रुप में लिया था उसे वापस कर सके। बँक वाले आए अपना कर्जा मांगने के लिए। किसानों के पास कुछ नहीं था देने के लिए। तो किसानों ने क्या किया जो कपास की फसल पर कीड़ा मारने की दवा लेकर आये थे वहीं दवा उन्होंने खुद पी और सब के सब मर गए। ऐसे किसान आत्महत्या करते हैं। हिन्दुस्तान में पैंतालीस करोड़ छोटे किसान हैं जिनके पास दो बीघा की जमीन है। तीन बीघा की जमीन है। पाच बीघा की जमीन है। ऐसे पैंतालीस करोड़ किसान हैं। जरा उनकी आप कल्पना तो करिए कि पैतालीस करोड़ किसान आज की परिस्थितियों में किस तरह से खेती करते होंगे और किस तरह से कर्जदार बनते होंगे। और इस देश में कभी-कभी क्या होता है। गाँव का किसान कोई कर्जले लेता है। कर्ज चुकाने की स्थिति में नहीं होता और कभी-कभी वो कर्ज माफ कर दिया जाए तो पूरे देश में हंगामा हो जाता है। और हर साल हजारों करोड़ों रुपये का माफ किया जाता है पैसा बड़े-बड़े उद्योगों पर, बड़ी-बड़ी इंडस्ट्रीज पर, इंडस्ट्रीज बैठजाती हैं, उद्योग बैठे जाते हैं। उनके पैसे डूब जाते हैं और बँक वाले कुछ नहीं कर पाते। और जब किसान के कर्जे की माफी की बात आती है तो हंगामा करते हैं। ___ पूरे देश में ऐसी व्यवस्था आज भी चल रही है। इस देश में किसानों की जमीनें छीनी जा रही हैं। उनकी पैदा की गई फसल के दाम तय करने का अधिकार उनको नहीं मिल पाया है। जो कुछ खेत में लगाने के लिए बाजार से खरीदते हैं। उन सबके दाम बढ़ते चले जा रहे हैं। किसान जो कुछ पैदा करता है उसका उसको दाम नहीं मिल पा रहा है। बिजली का दाम बढ़ा दिया। पानी का दाम बढ़ा दिया। खाद का दाम बढ़ा दिया। जो सब्सिडी मिल सकती थी थोडी बहुत किसानों को गैट करार के बाद वो भी पूरी तरह से खत्म होती चली जा रही है। इस तरह से लगातार बर्बादी के रास्ते पर ही है। जिस तरहसे बर्बादी अंग्रेजों के जमाने में किसानों की आयी थी। वो ही बर्बादी आजादी के पचास साल के बाद भी है और इन बर्बादियों को बढ़ाने के लिए कुछ नये-नये कानून बनाए जा रहे हैं। जैसे अंग्रेजों की सरकार नये-नये कानून बनाती थी किसानों को बर्बाद करने के लिए। वैसे ही अब नये-नये कानून फिर किसानों को बर्बाद कराने के लिए बनाये जा रहे हैं। cocs . स्वदेशी कृषि Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ किसान की खस्ता हालत सरकारी कानूनों के कारण है (पुसद, यवतमाल में राजीव भाई द्वारा दिया गया व्याख्यान - भाग 2) ऐसा ही एक कानून इस देश में बन गया हैसन 1994 के साल में। 15 दिसम्बर .. को भारत सरकार ने गैट करार पर हस्ताक्षर करा दिए और इस गैट करार पर हस्ताक्षर होने के बाद तो किसानों की हालत और गिरती चली जा रही है। गैट करार पर जो हस्ताक्षर किया गया 15 दिसम्बर 1994 को। बहुत सारे लोगों को इसके बारे में काफी गलत फहमी है और इस गलत फहमी को आज में आप से दूर करना चाहता हूँ। यह गैट करार है क्या। हम लोगअगर समझ सके तो किसी दूसरे को भी समझा सकते हैं। __ गैट करार एक ऐसा दस्तावेज है एक ऐसा समझौता है। जिसको भारत सरकार ने किया है दुनिया के कई देशों के साथ मिलकर। यह समझौता क्या है। यह क्या करता है समझौता। इसमें क्या लिखा हुआ है। किस तरह की बाते इसमें लिखी हुई हैं। मैं पहले तो यह समझाने की कोशिश करता हँकी यहगैट क्या है। 1945 में जब दूसरा विश्व युद्ध खत्म हो गया तो सारी दुनिया में बर्बादी दिखाई दे रही थी। युरोप के देश बर्बाद हो गये थे। जो दूसरे विश्व युद्ध में शामिल हुए थे। तो उस बर्बादी को दूर करने के लिए एक संस्था बनायी गई। जिसका नाम रखा गया वर्ल्ड बँक'। इसका एक दुसरा नाम भी है International Bank For Re-Construction In Development 'और उसको वर्ल्ड बँक भी कहते हैं। यह क्यूँ बनायी गई संस्था। यह बनायी गई उन देशों के लिए जिन देशों में बर्बादी आयी है। उन देश के लोगों कोअगर लोन चाहिए प्रॉजेक्ट चलाने के लिए। परियोजना चलाने के लिए सरकारों को कर्जा चाहिए तो सरकार वर्ल्ड बँक से कर्जा ले सकती है। जो सरकारें बर्बाद हो . स्वदेशी कृषि Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चुकी थीं जो देश बर्बाद हो चुके हैं। फिर उसी के साथ-साथ एक और संस्था बनायी गई थी। जिसका नाम है ' अन्तर्राष्ट्रीय मुद्राकोष' (Inter National Monitory Fund) । इसको जिम्मेदारी क्या दी गई थी। दुनिया के तमाम देशों को अपने कर्ज का तात्कालिक व्याज चुकाने के लिए अगर पैसे की जरुरत पड़े तो अन्तर्राष्ट्रीय मुद्राकोष इसके लिए बनाया गया। वर्ल्ड बँक बनाया गया बड़ी-बड़ी परियोजना पर कर्ज लेने के लिए और अन्तर्राष्ट्रीय मुद्राकोष बनाया गया तात्कालिक रूप से किसी देश को भुगतान की स्थिति का सामना करना पड़ रहा है । पैसा नहीं है उनके पास भुगतान करने के लिए तो उसके लिए I.M.F. बनाया गया । तत्काल कर्जा देने के लिए I. M.F. और World Bank के अलावा एक तीसरी संस्था और बनायी गई। जिसका नाम था 'गैट-जनरल ऍग्रीमेन्ट ऑन टेरिफ एण्ड ट्रेड' और यह गैट संस्था की जिम्मेदारी क्या तय की गई। इसकी जिम्मेदारी यह तय की गई कि दुनिया के देशों में जो माल बिकने के लिए जाता है। किसी एक देश का माल किसी दूसरे देश में जाता है। दूसरे देश का माल किसी तीसरे देश में ता है। तो यह दुनिया के तमाम देशों के माल एक दूसरे के देशों में बिकने के लिए जाते हैं। तो उनमें अकसर झगड़े होते रहते हैं । कोई देश किसी परदेशी देश के माल पर टॅक्स बढ़ा देता है । कोई देश किसी दूसरे परदेशी देश के माल पर टॅक्स बढ़ा देता है। तो इस तरह के टॅक्स के झगड़े होते हैं। टॅरिफ के झगड़े होते हैं। नॉन टॅरिफ़ के झगड़े होते हैं। कोई देश कहता है- हमको इतना ही माल चाहिए तो जबरदस्ती दूसरा देश बेचने की कोशिश करता है। इस तरह के जो झगड़े होते है । उन झगड़ों का निपटारा करने के लिए एक संस्था बनायी गई। जिसका नाम रखा गया 'गैट - जर्नल ऍग्रीमेन्ट ऑन टेरिफ एण्ड ट्रेड' । तो टॅक्स के होने वाले झगड़े, टॅरिफ के होने वाले झगड़े, वस्तुओं पर लगाए जाने वाले आयात शुल्क पर होने वाले झगड़ों का निपटारा करने के लिए यह संस्था बनी और जब से यह संस्था बनी तब से भारत इसका सदस्य रहा। अंग्रेजों ने और अमेरिका ने और युरोप के कुछ देशों ने मिलकर इस गैट का निर्माण किया था और भारत उस समय अंग्रेजों का गुलाम था 1945-1946 में तो अंग्रेजों ने जैसा तय कर दिया वैसा भारत ने मान लिया। अंग्रेज चले गए और उन्होंने गैट नाम की संस्था में मेम्बरशिप ले ली और भारत को भी जबरजस्ती गैट का मेम्बर बना दिया | भारत जब गैट का मेम्बर हो गया तो उसके बाद आजादी के तुरन्त बाद इस देश में बहस हुई और बहस के समय यह तय किया गया कि अभी भारत मेम्बर बन गया है तो बन जाने दो क्योंकि इससे कुछ खास नुकसान तो होता नहीं। उस समय गैट के कानून क्या थे । कोई भी देश का व्यापार किसी भी दूसरे स्वदेशी कृषि ३७ Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देश के साथ होगा तो उस व्यापार में जो झगड़ा होगा टॅरिफ का। या झगड़ा होगा नॉन टॅरिफ का। तो उन्हीं झगड़ों का निपटारा करने के लिए यह संस्था काम करेगी। बाकी संस्था की कोई दूसरी जिम्मेदारी नहीं होगी। इस तरह से गैट का काम चलना शुरु हुआ। एक नियम उसमें यह रखा गया था कि कोई देश का आन्तरिक कानून और गैट के बनाये गए किसी कानून में अगर झगड़ा होगा तो देश का आन्तरिक कानून लागू किया जायेगा। गैट का कानून लागू नहीं किया जायेगा। तो किसी देश की सीमा जब शुरु होती थी तो गैट का कानून वहाँ पर खत्म होता था। तो देशों की सीमा के अन्दर गैट के कानून कभी लगा नहीं करते थे। देश की सीमा के बाहर जो ट्रेड का मामला है सिर्फ उसी में कानून लगा करते थे। तो इस तरह की व्यवस्था शुरु हुई और लगातार चलती रही। यह व्यवस्था 10 साल चली। 15 साल चली। 20 साल चली। 25 साल चली। 30 साल चली। उसके बाद धीरे-धीरे इस गैट नाम की संस्था को बदलने का एक अभियान अमेरिका ने शुरु किया। अमेरिका ने क्या किया- 1970 और 1980 के दशक में अमेरिका के बाजार में थोड़ी मंदी आ गई। यूरोप के भी बाजार में मंदी आ गई। तो अमेरिका और यूरोप के अर्थशास्त्रियों ने और वहाँ की सरकार ने विचार करना शुरु किया कि हमारे बाजार की मंदी को अगर दूर करना है तो हमारे सामान दुनियां के तमाम दूसरे देशों के बाजारों में ज्यादा से ज्यादा बिकने चाहिए। तो अमेरिका का माल दूसरे देशों में बिकना चाहिए। यूरोप का माल दूसरे देशों में बिकना चाहिए। हालाकि उसके पहले भी बिकता था अमेरिका का माल दूसरे देशों में। जपान का माल दूसरे देशों में। यूरोप का माल दूसरे देशों में। लेकिन ज्यादा से ज्यादा बिकना चाहिए। इस तरह की बात करना शुरु किया अमेरिकी सरकार ने और यूरोप की सरकार ने। तो फिर उन्होंने क्या किया दुनिया के दूसरे देशों के बाजारों को खुलवाना है अपना माल बेचने के लिए तो उसके लिए कुछ ना कुछ तो कानून बनवाने पड़ेगें। तो अमेरिका ने और यूरोप के देशों ने गैट नाम की संस्था का दुरूपयोग करना शुरू किया। इस काम के लिए गैट में जो पहले कानून बनाये गए थे कि गैट में यह नियम था कि किसी भी देश के आन्तरिक कानून में, आन्तरिक मामले में गैट हस्तक्षेप नहीं करेगा। फिर अमेरिका ने ऐसी व्यवस्था बनाना शुरु किया कि गैट नाम की संस्था के नियम किसी देश के आन्तरिक कानूनों में भी हस्तक्षेप कर सकते हैं और आन्तरिक कानूनों में किसी देश में हस्तक्षेप कर के उस देश के कानूनों को बदलवा कर अपने देश का माल उन देशों में बिकवा कर कोई नई व्यवस्था बना दी जाये। इसके चक्कर में अमेरिका और यूरोप के देश लगे रहे और उन्होंने उसमें थोडी सफलता हासिल की। ३८ .... स्वदेशी कृषि Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1986 के साल में गैट की एक मीटिंग हुई और उस मीटिंग में अमेरिका और यूरोप के देशों ने यह कहना शुरु किया कि अभी हम सारी दुनिया के देशों में अपना माल बेचना चाहते है बहुत बड़े पैमाने पर । इसके लिए नियमों में बदलाव किया जाए। गैट के नियमों को बदल दिया जाए तो गैट के नियमों को बदलने के लिए अभियान शुरु हुआ। उस अभियान में अमेरिका के साथ यूरोप के भी बहुत सारे देश शामिल हुए तो पहले जो गैट नाम की संस्था और उसका नियम चलता था। उसको पूरी तरह से बदल दिया गया और जिस व्यक्ति ने इसके नियमों का बदलाव किया उसका नाम था आर्थर डंकल । वो उस समय गैट का महानिदेशक था । तो आर्थर डंकल ने नये नियम बना दिये और नये नियम बनाकर दुनियां के तमाम देशों के सामने रखे कि अभी आपको गैट में शामिल होना है तो इन नए नियमों को मानना पड़ेगा और वो नियम अमेरिका के हित में बनाए गये थे । यूरोप के हित में बनाए गये थे। तो जब नये नियम बनाना शुरु किया। तो डंकल ने जिस तरह के नियम बनाये और वो ड्राफ्ट तैयार किया। तो उस ड्राफ्ट का नाम पड़ गया 'डंकल ड्राफ्ट', 'डंकल प्रस्ताव' । डंकल प्रस्ताव को दुनिया के तमाम देशों के सामने पेश किया गया। या तो उसके बनाये गये नए ड्राफ्ट को, नए नियम को पूरी तरह से स्वीकार करिए या उसको पूरी तरह से रिजेक्ट कर दीजिए। और यदि आप रिजेक्ट कर देगें तो गैट के मेम्बर नहीं रहेंगे। स्वीकार करेंगे तो नए नियम आपके देश का नुकसान करेंगे। ऐसी स्थिति आ गई भारत के सामने । तो उस समय जो भारत की सरकार थी 1986-1987 के साल में उस सरकार ने पूरी तरह से घोषणा कि हम गैट करार को मानेगें नहीं और फिर भारत के ऊपर दबाव पड़ना शुरु हुआ अमेरिका की तरफ से। यूरोप की तरफ से । तो भारत सरकार ने एक काम किया कि भारत के कुछ सचिवों की समिति बनायी और उस समिति को यह कहा गया कि आप इसका अध्ययन करिए। तो भारत सरकार के कुछ सचिवों ने उसका अध्ययन किया। प्राथमिक स्तर पर उसमें से नतीजा यह निकला कि गैट करार अच्छा नहीं है। देश के लिए बहुत खराब है। बाद में भारत सरकार ने हमारे देश के कुछ मेम्बर ऑफ पार्लियामेन्ट को लेकर एक समिति बनाई थी गैट करार का अध्ययन करने के लिए। और उस समिति का अध्यक्ष बनाया गया था श्री. इंद्रकुमार गुजराल को। तो इंद्रकुमार गुजराल की अध्यक्षता वाली समिति ने भारत सरकार को जो रिपोर्ट पेश की। उस रिपोर्ट में पूरी तरह से कहा उन्होंने कि यह गैट करार बिलकुल भी देश के हित में नहीं है । इसको पूरी तरह से रद्द कर देना चाहिए। इसको पूरी तरह से रिजेक्ट कर देना चाहिए । स्वदेशी कृषि ३९ Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तो भारत सरकार द्वारा बनायी गई संसदीय समिति ने पूरी तरह से गैट करार को रिजेक्ट करने की बात कही। उसके बावजूद भारत सरकार ने 15 दिसम्बर 1994 को गैट करार पर हस्ताक्षर कर दिए। और गैट करार पर हस्ताक्षर करते समय देश के लोगों के सामने एक बहुत बड़ा झूठ बोला गया। वो झूठ क्या बोला गया भारत सरकार की तरफसे। कहा गया कि जब गैट करार लागू हो जायेगा पूरी दुनिया में तो सारी दुनिया का व्यापार 240 अरब डॉलर बढ़ जायेगा। और सारी दुनिया का व्यापार जब 240 अरब डॉलर बढ़ जायेगा। तो भारत का व्यापार भी कम से कम 5 अरब डॉलर तो बढ़ ही जायेगा। भारत का निर्यात 5 अरब डॉलर ज्यादा हो जायेगा। और आपको अगर याद होगा कि जिस समय भारत सरकार ने गैट करार पर हस्ताक्षर किया था। उस समय रोज टेलीविजन पर इस तरह के कार्यक्रम आते थे गैट करार के समर्थन में। तो सरकार कभी एक को बैठाती थी। कभी दूसरे को बैठाती थी और सरकारी लोगजो भोपूहोते थे। जो सरकारी चाटुकार होते थे। वो टेलीविजन पर यह बताते थे कि गाँव के किसानों को बहुत मदद होने वाली है। किसानों को बहुत फायदा होने वाला है। और इस तरह से पूरे देश में गैट करार विरोधी जो आंदोलन शुरु हुआ था उसको धीरे-धीरे खत्म करने का काम टेलीविजन के माध्यम से सरकार ने किया। और इस तरह से भारत की सरकार ने भारत के किसानों को और भारत के लोगों को गुमराह किया कि 240 अरब डॉलर का व्यापार बढ़ेगा पूरी दुनिया का। भारत का व्यापार 5 से 6 अरब डॉलर का बढ़ेगा। भारत का निर्यात भी बढ़ेगा। भारत के किसानों की आमदनी बढ़ेगी। भारत में किसानों का निर्यात बढ़ेगा। इस तरह की बातें करनी शुरु कर दी। आज गैट करार को लागू हुए चार साल हो गए हैं और चार साल लागू होने के बाद स्थिति क्या है-बिलकुल उल्टी है। पूरी दुनियां में किसी भी स्तर पर 240 अरब का व्यापार बढ़ा नहीं है बल्कि भयंकर मंदी आ गयी है। पूरी दुनिया में गैट करार लागू होने के बाद जो व्यापार बढ़ने की बात कही जा रही थी बिलकुल उल्टी बात साबित हुई है। व्यापार बढ़ा नहीं है। व्यापार कम हो गया है। और जब पूरी दुनिया में व्यापार कम हो जाता है। माल की खरेदी-बिक्री कम हो जाती हैं तभी मंदी आती है। इस समय पूरी दुनियां में भयंकर मंदी चल रही है। अमेरिका में भी मंदी चल रही है। यूरोप में भी मंदी चल रही है। खुद भारत में भयंकर मंदी चल रही है। तो इतना बड़ा झूठहम लोगों से बोला गया कि 240 अरब डॉलर का व्यापार बढ़ेगा। वो तो कहीं हुआ नहीं बल्कि स्थिति उल्टी हो गई। स्थिति यह हो गई है कि भारत का निर्यात पहले जितना होता था उसमें 5 अरब डॉलर का निर्यात कम हो गया। जो ..... स्वदेशी कृषि Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5 अरब डॉलर का निर्यात बढ़ने की बात कही जाती थी। गैट करार लागू होने से वो 5 अरब डॉलर का निर्यात अभी कम हो गया और हम लोग पहले से ही इस बात को बोलते थे कि गैट करार लागू होने से किसी भी किसान को कोई फायदा नहीं होने वाला। भारत के किसी उद्योग को कोई फायदा होने वाला नहीं। भारत के किसी व्यापार को कोई फायदा होने वाला नहीं। बल्कि किसानों को नुकसान होगा। उद्योगों को नुकसान होगा। व्यापारियों को नुकसान होगा। और क्या-क्या नुकसान होंगे, किस तरह के नुकसान होंगे उसको बताने के लिए अब मैं अपने साथ गैट करार की कॉपी लेकर आया हूँ। और इस गैट करार में लिखा हुआ क्या है। मैं आपको दो-तीन बातें पढ़कर सुनाना चाहता हूँ। गैट करार में वास्तव में क्या लिखा हुआ है। बहुत बार लोगों को गलत फहमी रहती है। किसी ने गैट करार देखा नहीं और वो गैट करार पर भाषण देना शुरु कर देता है कि यह बहुत अच्छा है देश के लिए। अखबारों में कहीं छप गया इसके आधार पर बोलना शुरु कर दिया कि गैट करार बहुत अच्छा है देश के लिए। तो वास्तव में गैट करार कितना खतरनाक हैकितना खराब इस देश के लिए। उसके लिए मैं आपको एक-दो प्रमाण देना चाहता हूँ गैट करार का। जो ऍग्रीमेन्ट है वो मेरे पास है। और उस ऍग्रीमेन्ट में से मैं आपको कुछ पढ़कर सुनाना चाहता हूँ। यह पूरा का पूरा ऍग्रीमेन्ट अंग्रेजी में लिखा गया। इस पूरे के पूरे ऍग्रीमेन्ट में करीब 550 से ज्यादा पन्ने हैं। कुछ लोगों को यह गलत फहमी है कि गैट करार सिर्फ किसानों के बारे में है। किसानों के बारे में ही नहीं है बहुत सारी दूसरी बातें भी इसमें हैं। किसानों के अलावा 28 ऐसे औद्योगिक क्षेत्र है हमारे देश में जिन के ऊपर यह गैट करार लागू होता है। खेती और किसानों का इसमें एक अध्याय है। लेकिन इसके अलावा 27 और अध्याय हैं जो दूसरे तमाम क्षेत्रों पर लागू होते हैं। कपड़े के बारे में हैं। इसमें बीमा कंपनियों के बारे में हैं। बैंकों के बारे में हैं। सर्विसेस का पूरा सेक्टर है। ट्रिप्स का पूरा का पूरा चेप्टर है। पेटेंट के बारे में है। इसमें बहुत सारे दूसरे विषयों के बारे में है। खेती और किसानों का एक विषय है इसमें। यह कहता क्या है और इस करार में लिखा हुआ क्या है। मैं आपको इसका एक पॅराग्राफ पढ़कर सुनाता हूँ। जो सबसे पहला अध्याय है। उस सबसे पहले अध्याय का पेज नम्बर 10 और पॅराग्राफनम्बर 5, क्या लिखा है। पहले मैं अंग्रेजी में पढ़कर सुनाता हूँ। फिर उसकी हिन्दी बताऊँगा। इसका मतलब क्या है। इसमें लिखा हुआ है No reservation may be made, in respect of any provision of this agreement reservation in respect of any provision of this agreement may only be made in accordance with the provisiones setout in this agreement. स्वदेशी कृषि ................ Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इसका मतलब क्या है। इसका मतलब यह है कि इस गैट करार में जो कुछ लिखा गया है। उसपर आप कुछ भी आपत्ति नहीं कर सकते। और अगर आप कुछ भी आपत्ति करना चाहें तो उतनी ही आपत्ति कर सकते हैं जो इसमें लिखा गया है। इसको समझिए नाक को ऐसे पकड़ा जाये या ऐसे घुमाके पकड़ा जाये। यह गैट करार की भाषा कुछ इसी तरह की है। पहले कह दिया कि इस गैट करार में जो कुछ भी लिखा गया है। आप उसपर कुछ भी आपत्ति नहीं कर सकते। फिर दूसरे लाईन में यह कह दिया गया कि अगर आप आपत्ति करना चाहें तो कर सकते हैं। लेकिन उतनी ही जितना इसमें लिखा हुआ है। माने इसके लिखे हुए के बाहर आप आपत्ति नहीं कर सकते। आपको लगता हैं कि इसमे खेती और किसानों के बारे में जो कुछ भी कहा गया है वो बहुत ही आपत्तिजनक है। वो बहुत ही खराब है। उससे बहुत ही बर्बादी होने वाली है देश की। और इसको निकाल दिया जाए तो आप यह नहीं कर सकते। यह इसका मतलब है। इसी अध्याय का पॅराग्राफ नम्बर 4, वो क्या कहता है। वो इससे भी ज्यादा खतरनाक बात कहता है। वो कहता है- Each Member shall be ensure the conformity of its Laws, Regulations and Adminstrative Procedure with its obligation as provided in this agreement माने हर देश को अपने कानून इस गैट करार में लिखे गए नियमों के आधार पर ही बनाने होंगे। माने अगर किसी देश में कोई ऐसा कानून हैजो गैट करार के नियम का विरोधी है तो आपको अपना कानून बदलना पड़ेगा। गैट करार को कानूनन लागू करवाना पड़ेगा। यह दो बाते ही सिद्ध करती हैं कि यह कितना खतरनाक ऍग्रीमेन्ट है। एक तरफ तो पूरी दुनिया में यह चर्चा चलाई जाती है अमेरिका और यूरोप की तरफ से कि हम बहुत डेमोक्रेटिक देश हैं। बहुत प्रजातांत्रिक देश हैं। और दूसरी तरफ इतनी भी छुट नहीं देते कि इसमें लिखे गये नियम पर किसी तरह की आपत्ति की जाए। या उसको बदलवाने की बात की जाए। इतनी भी छुट नहीं। तो इससे होगा क्या कि हमारे देश में बहुत सारे कानून हैं, बहुत सारे नियम है और गैट करार में अपने लिखे हुए अलग-अलग नियम हैं। वो सारे नियम बदल दिए जायेंगे। जो हमारे देश में है। और गैट करार के विरोधी हैं। ____ अब तक हमारे देश में क्या होता था। कोई गैट करार हो या कोई दूसरा करार हो, देश के अन्दर बनाया गया कोई भी नियम और कानून नहीं बदला जायेगा। अब तक हमारे देश में यह व्यवस्था थी। लेकिन गैट करार लागू होने के बाद व्यवस्था बिलकुल उल्टी हो गई है। अब हमारे देश में कोई कानून और नियम जो पहले से बनाया गया हो। वो गैट करार विरोधी हो तो वो नियम बदलना पड़ेगा हमको। वो कानून बदलना पड़ेगा। माने अब इस देश का कानून हमारी संसद में नहीं बनेगा। स्वदेशी कृषि ४२ ............... Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अब इस देश का कानून गैट करार के ऑफिस में बैठकर तय किया जायेगा। आप बतायें-हमने तो संसद बनाई हैअपना कानून बनाने के लिए। हमने तो विधानसभा बनाई है कानून बनाने के लिए। और हमारी संसद और हमारी विधानसभायें ही कानून बना नहीं सकेंगी। गैट के आधार पर जो कानून बन कर आयेगा उन्हीं को अगर भारत में लागू किया जायेगा। तो इस संसद का मतलब क्या है। फिर इन विधानसभाओं का मतलब क्या है। और इसी को कहते कि जब किसी देश की संसद अपने कानून बनाने का अधिकार खो देती है। जब किसी देश की विधानसभायें अपना कानून बनाने का अधिकार खो देती हैं तो उसी को कहते हैं कि राजनैतिक संप्रभुता खत्म हो गई है किसी देश की। किसी भी देश की संप्रभुता केखत्म होने का मतलब एकही होता है। उस देश की सरकार, उस देश की संसद, उस देश की विधानसभायें अपना कानून बनाने के अधिकार को खत्म कर दें और वो गैट करार के बाद हो गया। और इसमें क्या होगा खेती और किसानों के लिए। मान लीजिए कुछ कानून इस देश में हैं। मान लीजिए वो सब बदलने पड़ेगें। अगर गैट करार विरोधी हैं । उद्योग के बारे में इस देश में कुछ कानून हैं तो वो सब बदलने पड़ेगें। दवा उद्योग से सम्बन्धित अगर कुछ कानून ऐसे हैं जो गैट करार विरोधी हैं तो वो सब बदलने पड़ेगें। _माने हमको हमारे देश में अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए, अपने हित को सुरक्षित रखने के लिए कोई कानून अगर बनाना पड़े और वो कानून दुर्भाग्य से अगर गैट करार विरोधी हो तो वो कानून बदलना पड़ेगा। स्थिति क्या हो गई है -पहले हमारे देश का कानून अंग्रेज तय करते थे। अब हमारे देश का कानून गैट करार के आधार पर तय होगा। तो गुलामी के दिनों में जो हालत हमारी थी। वो ही हालत आजादी के पचास साल बाद भी है। कानून कैसे-कैसे हैं। किस-किस तरह के नियम हैं। किसानों से और खेती से सम्बन्धित जो कानून गैट करार में दिए गये हैं। उन्हीं की चर्चा मैं आपसे करूँगा। क्योंकि ढेर सारी चर्चायें करने के लिए ना तो वक्त है ना आपके पास सुनने के लिए। क्योंकि साड़े पाच सौ पन्ने का ऍग्रीमेन्ट अगर इसको सुनाना शुरु किया तो 10-15 दिन का व्याख्यान देना पड़ेगा। इसलिए सिर्फ खेती और किसानों के सम्बन्धित जो बातें हैं। और सबसे खतरनाक बात है इसमें। उन्हीं के बारे में मैं आपसे बात कहने की कोशिश करूँगा की किस तरह की बातें इसमें है किसानों के लिए। जो दस्तावेज इसमें दिया गया हुआ है। इसका नाम है 'ऍग्रीमेन्ट फॉर ऍग्रीकल्चर'। खेती पर समझौता और खेती पर समझौते के जो नियम बनाये गये स्वदेशी कृषि Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हैं उन नियमों में किस तरह के नियम हैं। वैसे हमारे यहाँ एक ऐसा नियम है जो अब तक चलता रहा है जो लाल बहादुर शास्त्री ने बनाया था। लाल बहादुर शास्त्री ने क्या नियम बनाया था। आप जानते हैं जब लाल बहादुर शास्त्री इस देश के प्रधानमंत्री बने थे तो अमेरिका से इस देश में लाल रंग का गेहूँआता था। जो बुजुर्ग यहाँ बैठे हैं सभा में उनको याद होगा। उसको कहते थे पी.एल.-480। तो पी.एल. -480 कानून के तहत अमेरिका का गेहूँ भारत में भेजा जाता था। वो गेहूँअमेरिका में जानवर भी नहीं खाते थे। तो जिस गेहूँको अमेरिका के जानवर भी नहीं खाते थे। वो गेहूँभारत के लोगों को खिलाया जाता था। और यह समझौता पंडित जवाहर लाल नेहरु ने किया था। लाल बहादुर शास्त्री जब प्रधानमंत्री बने तो प्रधानमंत्री बनते ही उन्होंने यह समझौता रद्द कर दिया। ___ लाल बहादुर शास्त्रीजी का यह कहना था कि जो गेहूँ अमेरिका में जानवर भी ना खाये। वो गेहूँ भारत के लोगों को खिलाया जाये तो यह देश के लोगों का सबसे बड़ा अपमान है। उस समय भारत में गेहूँ की कुछ कमी थी। गेहूँ का उत्पादन कुछ कम था। तो लाल बहादुर शास्त्री ने कहा कि भले ही इस देश में गेहूँका उत्पादन कितना ही कम क्यूँ ना हो। लेकिन मैं अपमान जनक शर्तों पर अमेरिका से गेहूँ नहीं खरीदूंगा। और उन्होंने गेहूँ खरीदने का समझौता रद्द कर दिया। उसके बाद में शास्त्रीजी के ऊपर दबाव होना शुरु हुआ और तमाम तरह के लोगों ने शास्त्रीजी को यह कहना शुरु कर दिया कि आप अमेरिका से गेहूँ नहीं खरीदेंगे तो हिन्दुस्तान के किसान भूखे मर जायेगें। हिन्दुस्तान के मजदूर भूखे मर जायेगें। तो शास्त्रीजी सबका एक ही जवाब देते थे कि गेहूँ का उत्पादन अगर कम है तो हमको कमी में रहना सीखना होगा। अपमान जनक शर्तों पर हमें किसी का गेहूँखाना मंजूर नहीं। बहुत स्वाभिमानी आदमी थे शास्त्रीजी। तो जब समझौता रद्द कर दिया। तो एक दिन शास्त्रीजी ने सारे देश के लोगों से एक अपील की दिल्ली के रामलीला मैदान में। एक बड़ी भारी सभा हुई थी और लाल बहादूर शास्त्रीजी ने उस जनसभा को सम्बोधित किया था। और उस जन सभा में लाल बहादुर शास्त्री ने देश के लोगों से कहा - मैंने अमेरिका सेलाल गेहूँखरीदना बंद कर दिया। क्योंकि अपमान जनक शर्तों पर मुझे गेहूँ लेना मंजूर नहीं। अब इस देश में गेहूँ की कमी होगी। तो मैं सारे देश के लोगों से अपील करता हूँकि गेहूँ खाना कम कर दें। और अगर सम्भव हो तो सप्ताह में एक दिन व्रत रखना शुरु कर दें। और देश के करोड़ों लोगों ने शास्त्रीजी की इस अपील का स्वागत किया और हिन्दुस्तान में करोड़ों लोगों ने सोमवार को व्रत रखना शुरु कर दिया। .. .. स्वदेशी कृषि Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शास्त्रीजी ने अपील की हमें सम्मान के साथ रहना है। भले ही एक समय कम खाना पड़े। अपमान के साथ हमको किसी का कुछ भी नहीं लेना, तो राष्ट्र के सम्मान को सुरक्षित रखने के लिए लाल बहादुर शास्त्री ने जब करोड़ों लोगों से अपील की तो करोड़ों लोगों ने उस बात का स्वागत किया। और वो समय ऐसा समय था कि जब आप जानते हैं कि पाकिस्तान के साथ हमारा युद्ध चल रहा था 1965 के साल में। और पाकिस्तान के साथ जो युद्ध चल रहा था। आप जानते हैं युद्ध में अर्थव्यवस्था पूरी तरह से डगमगा जाती है। खर्चे बहुत बढ़ जाते हैं सरकार के। तो ऐसी स्थिति में भी शास्त्रीजी ने अमेरिका से मदद लेना बंद करवा दिया। इतने स्वाभिमानी आदमी थे। और उसके बाद शास्त्रीजी ने ऐसा नियम बना दिया था कि- मैं देश में कोशिश करूँगा कि गेहूँ का उत्पादन ज्यादा से ज्यादा बढ़े। हमें परदेश से गेहूँ ना खरीदना पड़े और भारत के किसानों का गेहूँ का उत्पादन बढ़ाने के लिए उन्होंने कई तरह की योजनाएं चलाई। और उसका नतीजा यह निकला कि आज भारत गेहूँ उत्पादन में पूरी तरह से स्वावलम्बी है। ___ हमको जितने गेहूँ की जरुरत पड़ती है उतना गेहूँ इस देश में पैदा होता है। यह लाल बहादुर शास्त्री द्वारा बनायी गई योजना का परिणाम है। और शास्त्रीजी ने जब योजना बनाई थी। तो ध्यान रखिए उसके पीछे एक तर्क था कि हम परदेशी गेहँ नहीं खरीदेंगे। परदेशी अनाज नहीं खरीदेगें। हमारे पास अगर अनाज की कमी है तो कम खायेगें लेकिन परदेशों से बिलकुल नहीं खरीदेगें यह उनकी योजना थी। उस आधार पर भारत ने अनाज का उत्पादन बढ़ाया और आज इस देश में बीस करोड़ टन अनाज पैदा होता है। आजादी जब मिली इस देश को तो सिर्फ साड़े चार करोड़ टन अनाज पैदा होता था। आज आजादी के पचास साल के बाद बीस करोड़ टन अनाज का उत्पादन हुआ। पाँच गुणा उत्पादन इस देश के किसानों ने बढ़ाया तो वो उस तरह की नीतियों का परिणाम है। और आज हम स्वावलम्बी हैं। लेकिन अब क्या होगा ? गैट करार लागू हो गया है और तब से हमको यह कानून अपना बदलना पड़ेगा। यह नियम बदलना पड़ेगा। और नियम कैसे बदलना पड़ेगा। गैट करार में खेती से सम्बन्धित जो नियम दिये गए हैं। उनमें एक ऐसा नियम है जिसमें यह कहा गया है के हर साल हमको जबरदस्ती बाहर से अनाज खरीदना ही पड़ेगा। हमें उसकी जरुरत हो या ना हो कितना खरीदना पड़ेगा और कैसे खरीदना पड़ेगा। उसके लिए जो नियम इसमें लिखा गया है गैट करार में। वो में आपको पढ़कर सुनाना चाहता हूँ। ऍग्रीमेन्ट ऑन, ऍग्रीकल्चर में पेज नं. 23 पर एनेक्चर नं. 5 है। उस एनेक्चर में पॅराग्राफ नं. 5 है जो यह बात कहता है कि हमारे जैसे देशों को जबरदस्ती हर साल बाहर से अनाज खरीदना ही पड़ेगा। चाहे उसकी स्वदेशी कृषि ४५ Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जरुरत हो या ना हो। वो कैसे कहता है- There the special treetment is not to be continued at by end of the implement tension period the member consult shell implement the provision of paragraph six below in such case after the and of the implement tension period a minimum access opportunity for the designated product shall be mention at the level of 8% of corresponding domestic consumption in the Bess period in the schedule of the member consult. मतलब क्या है इसका। 1986 से 1988 के साल में भारत के लोगों ने जो अनाज खाया था। कुल मिलाकर वो था लगभग 24-25 करोड़ टन। तो 24-25 करोड़ टन जो हमने कुल अनाज खाया। उस अनाज का आठ प्रतिशत हर साल हमको विदेशों से खरीदना ही पड़ेगा। चाहे उसकी जरुरत हो या ना हो। अभी जैसे मान लीजीए हमारे यहाँ गेहूँ की जरुरत नहीं है विदेशों से खरीदने के लिए। लेकिन खरीदना पड़ेगा हमको। शक्कर की जरुरत नहीं है विदेशों से खरीदने के लिए। लेकिन खरीदनी ही पड़ेगी। जबरदस्ती लेनी पड़ेगी। और यह नियम हमारे देश पर कितने खतरनाक तरीके से लागू होगा। क्योंकि भारत की आबादी 98 करोड़ है। इसलिए हमारी घरेलू खपत (डोमेस्टिक कंज्मशन) भी ज्यादा है। हमारे यहाँ लोग ज्यादा हैं। हमारे यहाँ जनसंख्या ज्यादा है। इसलिए हमारे यहाँ अनाज का उपयोग भी ज्यादा है। और जिन देशों में जनसंख्या बहुत कम,जिन देशों में लोग बहुत कम हैं वहाँ पर अनाज का उपभोग भी बहुत कम है। तो उन देशों के लिए तो यह नियम बहुत अच्छा है। क्योंकि बहुत थोड़ा सा उनको खरीदना पड़ेगा। लेकिन हमारे देश में तो जनसंख्या सबसे ज्यादा है। विलायत में जितने देश मेम्बर हैं WTO के, उन सभी देशों में सबसे ज्यादा संख्या वाला देश है भारत। पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला देश है चीन। लेकिन चीन गैट का मेम्बर नहीं है। तो चीन पर यह नियम लागू नहीं होता। तो भारत सबसे अधि कि जनसंख्या वाला देश है इस गैट के देशों में। तो भारत के उपर यह नियम लागू होगा तो पूरी तरह से सत्यानाश हो जायेगा इस देश का। तो हर साल हमको करीब-करीब 8 प्रतिशत अन्न खरीदना ही पड़ेगा। और यह कितना बैठेगा और फिर इस नियम में एक चीज और जोड़ी गई है। हर साल हमको यह जो बाहर से खरीदने वाला अन्न है। इसमें 0.8 प्रतिशत तो खरीदना ही है। और हर साल इसमें 0.8 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी होती चली जायेगी। तो लगभग सन् 1999 तक आते-आते क्या स्थिति होगी। सन 1999 आते-आते हमको हर साल दो करोड़ टन अनाज बाहर से खरीदना ही पड़ेगा। चाहे उसकी हमको जरुरत हो या ना हो। अब आप जानते हैं कि जबरदस्ती ४६ ___ स्वदेशी कृषि Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अगर बाहर से अनाज हमने खरीदा या हमारी सरकार ने खरीदा और देश में भी अनाज है काफी तो क्या होगा उसका। बाहर से जो अनाज आयेगा। वो देश के अंदर पैदा किये गए अनाज का दाम बुरी तरह से गिरायेगा। आप जानते हैं कि जब भी समाज में उपभोग से ज्यादा सप्लाई हो जाए, जितनी जरुरत नहीं है उससे ज्यादा माल आ जाये बाजार में तो निश्चित रुप से सामान की कीमतें गिर जाती हैं। तो भारत में जरुरत नहीं है। जरुरत नहीं है जिसअनाज की। वोअनाज अगर आ जायेगा जबरदस्ती तो कीमतें गिरेगी। और अनाज की कीमतें गिरेंगी तो नुकसान किसको होगा। किसानों को होगा। और यह काम शुरु हो गया है। कैसे शुरु हो गया है। इस साल आपने अखबारों में खबर पड़ी होगी। भारत सरकार ने पंद्रह लाख टन परदेशी गेहूँ खरीदा है अभी कुछ दिन पहले। क्यूँ खरीदा। गैट करार का नियम है। जरुरत नहीं थी हमको इस साल गेहूँखरीदने की। लेकिन भारत सरकार ने खरीदा और किस भाव में खरीदा। इस साल हमारे देश के किसान सरकार को बोलते थे कि 700 रुपये क्विन्टल में हम आपको गेहूँबेचेंगे। हमको 700 रुपये क्विन्टल गेहूँका भावदे दो। मैंने आपको बताया किसान खुद भाव नहीं तय कर पाता। सरकार तय करती है। जो पैदा करता हैवोही भाव तय नहीं करता। और जो कभी हल नहीं चलाता। जिसने कभी हल नहीं चलाया वो भाव करता है। वो भाव तय करता है जिसने कभी खेती नहीं की वो खेती से पैदा होने वाले सामानों का दाम तय करता है दिल्ली में। और जो रोज खेती करता है उसको अधिकार नहीं है खेती का दाम करने का। खेती के अन्न का दाम तय करने का। तो किसानों ने कहा भारत सरकार को कि इस साल हमको गेहूँबेचने का अधि कार दे दो 700 रुपये क्विन्टल। भारत सरकार ने नहीं दिया तो सरकार ने माना 650 रुपये क्विन्टल। सरकार ने कहा- 650 रुपये क्विन्टल से ज्यादा भाव नहीं देसकतेगेहँको। और भारत के किसानों को कहा गया कि आप 650 रुपये क्विन्टल में गेहूँबेचिए और जिन सरकारों ने भारत के किसानों का गेहूँ 650 रुपये क्विन्टल में बिकवाया। उसी सरकार ने ऑस्ट्रेलिया से गेहूँ खरीदा 850 रुपये क्विन्टल। माने भारत के किसान मांग रहे थे 700 रुपये क्विन्टल गेहूँका दाम। तो नहीं दिया सरकार ने। लेकिन ऑस्ट्रेलिया की एक कंपनी से गेहूँ खरीद लिया 850 रुपये क्विन्टल। माने परदेशी किसानो से गेहूँ तो 850 रुपये क्विन्टल खरीद सकते हैं लेकिन अपने देश के किसानों का गेहूँ 700 रुपये क्विन्टल भी नहीं खरीद सकते स्वदेशी कृषि . .. . ... ... ... ........................ ४७ . Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आप सोचिए यह कैसी सरकार है। हम कैसे कहेंकि यह हमारे राष्ट्र की सरकार है। यहहमारी सरकार है। हमारे किसानों का गेहूँतो नहीं खरीदते 700 रुपये क्विन्टल में। परदेशी किसानों से खरीदते हैं 850 रुपये क्विन्टल में। सरकार हमारी है या परदेशियों की। और इसी तरह से आप जानते हैं कि पिछले साल भारत सरकार ने चीनी खरीदी थी 10 लाख टन परदेशियों सं। तो चीनी खरीदी जा रही है 10 लाख टन परदेशियों से। गेहूँखरीद लिया 15 लाख टन परदेशियों से। अभी जो गेहूँआ गया है 15 लाख टन उसको रखने की जगह नहीं है पूरे देश में। क्योंकि जहाँ गेहूँ रखा जा सकता है वो भण्डार पहले से ही भरे पड़े हैं। फूड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया के ऑफीसर कहते हैं- इस साल हमारा ही गेहूँइतना पैदा हुआ है देश में। तो उसको रखने की जगह नहीं है। यह परदेशियों से 15 लाख टन और आ गया इसको रखे कहाँ। हो सकता है किसी दिन पड़े-पड़े सड़ जाए पूरा का पूरा गेहूँ। लेकिन सरकार ने पैसा दे दिया है। डॉलर में गेहूँ खरीदकर ऐसे सत्यानाश हो रहा है इस गैट करार से। और ऐसे ही शक्कर खरीद ली गई 10 लाख टन परदेशों से। जिस समय भारत सरकार शक्कर खरीद रही थी परदेशों से उस समय ऐसी स्थिति थी कि थोड़ा शक्कर के दाम बढ़ते अगर तो किसानों को थोड़ा फायदा हो सकता था। लेकिन उसी समय परदेशी शक्कर खरीदकर दाम गिराये शक्कर के और किसानों को सीधे नुकसान हो गया इसका। क्योंकि शक्कर खरीदी गई है। गेहँखरीदा गया है। और तुवर की दाल भी खरीदी, चावल भी खरीदा जायेगा। चना भी खरीदा जायेगा। मटर भी खरीदी जायेगी। बाजरी भी खरीदी जायेगी। ज्वारी भी परदेशों से आयेगी। मक्का भी परदेशों से आयेगा। जो कुछ भारत का किसान पैदा करता है। वह सब परदेशों से आकर बिकना चालू हो जायेगा इस देश में। तो जरा सोचिए क्या होगा इस देश का। हमारे यहाँ तो अब तक परदेशी कम्पनी की लिपस्टिक बिकती है। नेलपॉलिश बिकती है। उनका साबुन बिकता है। उनकी क्रीम बिकती है। उनका पावडर बिकता है। उनके कपड़े बिकते हैं। उनके जूते बिकते है। उनकी चप्पल बिकती है। और हिन्दुस्तान के लोग लाईन लगाकर खरीदते हैं। क्योंकि इम्पोर्टेड माल है। सबके मन में लार टपकती है। इम्पोर्टेड माल मिल जाए तो सबसे अच्छा है। अब कल को इम्पोर्टेड गेहूँभी बिकना चालू हो जायेगा। इम्पोर्टेड शक्कर भी बिकना चालू हो जायेगी। इम्पोर्टेड तुवर की दाल भी आ जायेगी। इम्पोर्टेड चना भी आ जायेगा इस देश में। तो हिन्दुस्तान के लोग तो लाईन लगाकर इम्पोर्टेड गेहूँखरीदेगें। अब तक वो कहते थे कि हमको इम्पोर्टेड पेन मिलता था। इम्पोर्टेड पेन्सिल मिलती थी। इम्पोर्टेड कार मिलती थी। अब इम्पोर्टेड गेहूँ भी मिलेगा। अब इम्पोर्टेड । ४८ .. ........... स्वदेशी कृषि Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चावल भी मिलेगा। अब इम्पोर्टेड शक्कर भी मिलेगी इस देश के लोग इम्पोर्टेड ही खरीदेगें। तो फिर इस देश के किसान का कौन खरीदेगा। और इस देश के किसान का नहीं खरीदेगा तो किसान तो मरेगा। मैंने आपको बताया कि 45 करोड़ किसान इस देश में बहुत छोटे किसान हैं। उनकी हालत तो बुरी तरह से खराब हो गई और इसी तरह से इस गैट करार में एक और ऐसा नियम है कि हमारे देश के किसानों को थोड़ी बहुत सब्सिडी दी जाती है। उसमें भी कटौती करनी पड़ेगी। किसानों को दी जाने वाली सब्सिडी में करीब 24 टक्का कटौती करनी पड़ेगी। और किसानों को दी जाने वाली सब्सिडी में 24 टक्का कटौती करीब-करीब हो भी चुकी है। उसका नतीजा क्या निकला है। किसानों को जो डायरेक्ट सब्सिडी दी जाती है। दो तरह की सब्सिडी दी जाती है किसानों को। एक तो इनडायरेक्ट सब्सिडी होती है एक डायरेक्ट सब्सिडी होती है। तो डायरेक्ट सब्सिडी जब खत्म कर दी सरकार ने तो खाद का दाम बढ़ गया। बीज का दाम बढ़ गया। बिजली का दाम बढ़ गया। पानी का दाम बढ़ गया। केमिकल्स फर्टीलाईजर, इनसेक्टीसाइड इन सबके दाम बढ़ गए। और इन सबके दाम बढ़ गए माने खेती मंहगी हो गई और दुर्भाग्य दूसरा क्या है कि गाँव का किसान खेती मंहगी करे। माल बाजार में बेचने के लिए जाए तो परदेशी माल आ जाए तोदाम गिर जाए नीचे। तो किसान को दोहरानुकसान। कि जो नियम कभी हिन्दुस्तान में अंग्रेजों ने चलाए थे। जो नियम कभी अंग्रेजों के जमाने में चलाए गये थे। उसी तरह के नियम अब इस देश में गैट करार के माध्यम से चलाने की कोशिश की जा रही है। ___ इसमें कुछ लोगों को ऐसा लगता था कि कुछ चीजो में हमको फायदा हो जायेगा। जैसे सब्सिडी में एक्सपोर्ट की कटौती हो जायेगी। बहुत सारे देश जो एक्सपोर्ट की सब्सिडी देते हैं। वो भी कम हो जायेगें तो भारत के किसान के पास कुछ चीजें ऐसी हैं जिनको वो अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में बेच सकेगा। जैसे हमारे किसान को सबसे ज्यादा उम्मीद यह थी कि कपास हम ज्यादा से ज्यादा बेच सकेगें। कॉटन ज्यादा से ज्यादा बेच सकेगें। क्योंकि एक्सपोर्ट सब्सिडी अगर दूसरे देशों में कॉटन की खत्म होती है। तो हमारा कॉटन सस्ता हो जायेगा। कॉम्पटीटिव हो जायेगा। ज्यादा से ज्यादा बिकेगा। लेकिन यूरोपीय और अमेरिकी लोगों ने चतुराई के साथ व्यवस्था यह की है कि हमारे देश का कपास उनके देश में बिकने ना पाये। उसके लिए अलग कानून बना रखा है। जहाँ हमको थोड़ा फायदा हो सकता था। इस गैट करार के माध्यम से। हम हमारा कपास दूसरे देशों में ज्यादा बेच सकते थे। थोड़ा दाम लेके आ सकते थे। भारत के किसानों को थोड़ी मदद हो सकती थी। लेकिन वही कपास स्वदेशी कृषि ४९ Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भारत का यूरोप में ज्यादा बिक नहीं सकता- अमेरिका में ज्यादा बिक नहीं सकता। क्योंकि उस पर उन्होंने क्वान्टिटेटिव रिस्ट्रिक्शन के कानून लगा रखे हैं। कोटा फिक्स कर रखा है। भारत का कपास एक निश्चित मात्रा में ही बिकता है अमेरिका में। उससे ज्यादा बिक नहीं सकता। इसी तरह से भारत का कपास यूरोप में भी एक निश्चित मात्रा में ही बिकता है। उससे ज्यादा कभी बिक नहीं सकता। तो भारत का कपास कभी बिक सकता था अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में ज्यादा मात्रा में वो बिक नहीं पायेगा। क्योंकि उन्होंने कोटा फिक्स कर के रखा है। इससे ज्यादा कपास हम बेच नहीं सकते अपना उनके बाजार में। और उनके माल हमारे बाजार में भर जायेगें। क्योंकि इस तरह के कानून हैं। हमको इम्पोर्ट करना ही पड़ेगा। जबरदस्ती तो हमारा माल वोखरीदेगें नहीं और हमारामालतो वहाँ बिक नहीं पायेगा ठीक से और उनका माल जबरदस्ती हम खरीदते चले जायेगें। तो निश्चित रूप से निर्यात की आमदनी हमारी कम होगी। आयात के खर्चे बढ़ जायेगें। और निर्यात की आमदनी कम और आयात के खर्चे बढ़ेगेंतो व्यापार घाटा बढ़ेगा। तो सरकार दुष्चक्र में फंसेगी। परदेशी कर्ज लेने से परदेशी कर्जे के दुष्चक्र में फंसगेंतो परेदशी कर्जे का व्याज भी देना पड़ेगा। और वही दुष्चक्र इस अर्थव्यवस्था का किसानों के उपर भी चलना शुरु हो जायेगा। ऐसा नुकसान इस देश के किसानों को होने वाला है। और यहनुकसान शुरु हो गए गैट करार के लागू होने से। इसी तरह का एक भयंकर नुकसान और हो जायेगा इस देश के किसानों को। जो इससे भी भयंकर नुकसान इस देश में किसान को होने वाला हैगैट करार के माध्यम से। उसके बारे में भी मैं पढ़कर सुनाना चाहता हूँ। हमारे देश में अभी तक एक ऐसा नियम है कि किसान बीज बनाने का अधिकार अपने पास रख सकता है और इस देश का किसान बीज से बीज बनाता है। आप मान लीजीए गेहूँ की फसल लगाते हो तो गेहूँ की फसल लगाने के लिए आप बीज डालते हो तो गेहूँ की फसल लगती है। उस फसल का एक हिस्सा खाने के लिए रखते हो और एक हिस्सा बीज के रुप में सुरक्षित रखते हो। और अगले साल आपको फिर बीज मिल जाता है। माने एक बीज लगाया आपने फिर उसी बीज से दूसरा बीज बनाओ फिर उसी बीज से तीसरा बीज बनाओ। बीज से बीज बनता रहता है और किसान सीड मल्टीप्लीकेशन करता रहता है। माने हर बार किसान को नया बीज खरीदने की जरुरत नहीं। ऐसी व्यवस्था है इस देश में। इस समय एक नियम भी है हमारे देश में कि बीज जैसी चीज पर किसी का पेटेन्ट नहीं होता भारत में। हमारे यहाँ 1970 में एक ऐसा पेटेन्ट कानून बनाया गया है, जिस पेटेन्ट कानून में ऍग्रीकल्चर सेक्टर से सम्बन्धित बहुत सारी चीजों पर पेटेन्ट स्वदेशी कृषि ५० Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नहीं होता, बीज पर नहीं होता,बीज बनाने के तरीके पर नहीं होता, हमारे यहाँ खाद पर नहीं होता, खाद बनाने की टेक्नोलॉजी पर पेटेन्ट नहीं होता, हल बनाने की टेक्नोलॉजी पर पेटेन्ट नहीं होता, हल पर पेटेन्ट नहीं होता। माने किसानों की इस्तेमाल में आने वाली जितनी चीजें हैं उनपर पेटेन्ट नहीं होता, क्यूँ नहीं होता; ताकि किसानों को उससे मुनाफा हो उससे फायदा हो। पेटेन्ट होने से क्या नुकसान होता है? मान लीजिए किसी कम्पनी का कोई बीज है और उस कम्पनी का उस बीज पर पेटेन्ट है तो सिर्फ वही कम्पनी बीज बनाकर बेच सकती है कोई दूसरी कम्पनी नहीं बनाकर बेच सकती उस बीज को। तो मान लीजिए थोड़ी देर के लिए कल्पना कीजिए कि हमारे यहाँ गेहूँ की एक किस्म है जिसका नाम है RR-211 और RR-21 किस्म की गेहूँ जो हम हमारे देश में किसानों के द्वारा पैदा करवाते है। ___कल को मान लीजिए पेटेन्ट कानून ऐसा बन जाये कि बीज पर भी पेटेन्ट मिलना शुरु हो जाये और मान लीजिए किसी परदेशी कम्पनी ने या किसी स्वदेशी कम्पनी ने ही RR-21 नाम के गेहूँ की प्रजाति पर पेटेन्ट ले लिया कि सिर्फ वही कम्पनी को RR-21 बेचने का अधिकार होगा बाकी किसी को नहीं है। अभी क्या हैं आप खुद चाहें तो RR-21 बीज से बीज बनाके बेच सकते हैं बाजार में और किसान बीज का व्यापार कर सकता है और हजारों साल से इस देश में किसान बीज का व्यापार करता आया है यह उसका अधिकार है, Natural Right है। यह उसका Law of Natural Justice के हिसाब से भी बिलकुल फिट बैठता है कि जो किसान खेती को लगातार परिष्कृत करता है जो किसान खेती को लगातार उन्नत बनाता है उसको यह अधिकार है कि वो अपने बीज से बीज बनाकर बेच सकता है। किसी दूसरे के साथ बीज का बदलाव कर सकता है। अक्सर किसान एक दूसरे को बीज देते हैं। एक दूसरे का बीज ले लेते हैं। इस तरह का बदलाव पूरे देश में चलता है। ये सब अब पूरी तरह से खत्म हो जायेगा। क्योंकि गैट करार का नियम ऐसा कहता है कि बीज पर भी पेटेन्ट देना होगा और खेती से जुड़ी हुई कोई भी टेक्नोलॉजी पर पेटेन्ट होगा। हिन्दुस्तान में जो अभी तक खेती से जुड़ी हुई टेक्नोलॉजी परं पेटेन्ट नहीं दिया गया, अब हिन्दुस्तान में खेती से जुड़ी हुई हर टेक्नोलॉजी पर पेटेन्ट देना होगा। क्या बोलता हैगैट करार इसके बारे में? गैट करार का एक ऍग्रीमेन्ट है जिसका नाम है 'Home Tricks Trade With Trade Instructural Property Rights' इसका जो ऍग्रीमेन्ट है जिसके बारे में यह पेटेन्ट की बात कही गई है गैट करार का पेज नं. 342 और आर्टिकल 207 पैराग्राफ नं. 1 यह क्या बोलता है? पहले मैं अंग्रेजी में बताऊँगा, फिर हिन्दी में इसका मतलब बताऊँगा :स्वदेशी कृषि ५१ .............. Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Subject to the provision of 2 & 3 below patent shall be available for any invention whether products or process in all fields all Technology provided they are new in wall in investigated. इसका मतलब क्या है? इसका मतलब है कि हमारे देश को किसी भी वस्तु पर, किसी भी टेक्नोलॉजी पर पेटेन्ट का अधिकार देना पड़ेगा और पेटेन्ट का अधिकार देते समय भारत सरकार इस बात का कुछ भी ध्यान नहीं रखेगी कि यह वस्तु किस देश में बनाई गई है, यह वस्तु यहटेक्नोलॉजी किस देश में विकसित हुई है। माने अमेरिका में मान लिजिए कोई टेक्नोलॉजी बनती है। उस टेक्नोलॉजी का पेटेन्ट भारत में हो सकता है। यूरोप के किसी भी देश में कहीं टेक्नोलॉजी बनती है। उस टेक्नोलॉजी का पेटेन्ट भारत में हो सकता है। अब तक हमारे देश में क्या होता था? जिस देश में टेक्नोलॉजी बनती है या विकसित होती है पेटेन्ट उसी देश में मिलता है। लेकिन अब इस गैट करार के बाद दुनिया के किसी भी देश में कहीं कोई टेक्नोलॉजी बने उस पर पेटेन्ट आपको भारत में देना ही पड़ेगा और हर वस्तु पर, हर प्रक्रिया पर, हर टेक्नोलॉजी पेटेन्ट देना पड़ेगा। माने जो बीज का क्षेत्र हमारा बचा हुआ था पेटेन्ट से, खेती का क्षेत्र बचा हुआ था पेटेन्ट से, वो भी अब पूरी तरह से पेटेन्ट के अधिकार क्षेत्र में आ जायेगा। इसका नुकसान क्या होगा। मैंने आपको बताया कि इसका सबसे बड़ा नुकसान जो है वो किसानों को होगा जिस बीज को वो बना सकते हैं और बेच सकते हैं, बाजार में मुनाफा कमा सकते हैं। धंधा कर सकते हैं बीज बेचने का। वो धंधा उनका एक झटके में बंद हो जायेगा जब परदेशी कम्पनियों को उस बीज पर पेटेन्ट मिल जायेगा। और आप जानते हैं ज्यादा से ज्यादा परदेशी कम्पनियाँ हैं जो पेटेन्ट लेके बैठी हैं हमारे देश में और आपने सना होगा और अखबारों में पढ़ा भी होगा कि हमारे देश का नीम हो और नीम से बनने वाली हमारे देश में सैकड़ों किस्म की दवायें हैं, लेकिन उन पर पेटेन्ट अमेरिका में हो गया। बासमती नाम का चावल हमारे देश में पैदा होता। लेकिन उसपर पेटेन्ट अमेरिका में हो गया। तुलसी हमारे देश में होती है। और उस पर पेटेन्ट अमेरिका में हो गया,अदरक हमारे देश में होता है पेटेन्ट उस पर अमेरिका में है। मिरी - कालीमिर्च हमारे देश में होती है और उस कालीमिर्च के ढेर सारे प्रोसेस पर ढेर सारे पेटेन्ट अमेरिका में हैं। माने हमारे देश में जो बीज बनते हैं उनपर भी पेटेन्ट अमेरिका में हो रहा है। हमारे देश में जो आयुर्वेद की अच्छी-अच्छी दवायें मानी जाती हैं जैसे तुलसी, अदरक, कालीमिर्च, उनपर भी पेटेन्ट अमेरिका में हो रहा है इस तरह की खबरें आप पढ़ते होंगे। नीम पर पेटेन्ट ले लिया अमेरिका की कम्पनी ने। बासमती पर . ......... स्वदेशी कृषि . Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पेटेन्ट ले लिया अमेरिका की कम्पनी ने, हमारे देश के अदरक और तुलसी के पेड़ प्रोसेस पर पेटेन्ट ले लिया अमेरिका की कम्पनी ने और तो और हमारी हल्दी पर पेटेन्ट करवा लिया था उन्होंने, वो तो मुकदमा किया अमेरिका की कम्पनी में और हम लोग जीत गये और हम लोग जीत क्यूँ गये? क्योंकि अभी जो यह गैट करार वाला कानून है वो भारत में लागू नहीं है। अगर यह कानून लागू हो जाता भारत में, तो हल्दी वाला पेटेन्ट का केस हम कभी नहीं जीत पाते। क्योंकि हल्दी पेटेन्ट टेबल आइटम हो जाती फिर और हम उस केस को जीत नहीं पाते। तो अभी हमारे देश में जो पेटेन्ट का कानून है 1970 का बनाया हुआ, वो पूरी तरह से हमको बदलना पड़ेगा। और वो कानून अगर बदला तो हिन्दुस्तान के किसान को सबसे बड़ा नुकसान होगा कि वो बीज से बीज बनाकर बेच नहीं सकेगा और उससे मुनाफा नहीं कमा सकेगा। अब तक जो किसान करता रहा वो पूरी तरह से बंद कर दिया जायेगा। आप पूछेगे इसका और क्या नुकसान हो सकता है? आपको मैं यह जानकारी देना चाहता हूँ कि जब परदेशी कम्पनियों के अधिकार क्षेत्र में और बड़ी-बड़ी कम्पनियों के अधिकार क्षेत्र में पूरा बीज आ जायेगा तो यह कम्पनियां इस तरह की बदमाशी करने जा रही हैं कि वो ऐसे बीज बनायेगी जिससे सिर्फ एक बार फसल होगी, दूसरी बार फसल ही नहीं होगी। उस बीज को अंग्रेजी में कहा जाता है'टर्मिनेटर सीड'। टर्मिनेटर सीड का माने ऐसा सीड जिसको आप एक बार खेत में लगाईये, उससे फसल ले लिजिए, फिर दुबारा आपने उस बीज को फसल के रुप में इस्तेमाल किया तो वो कभी नहीं होगी, फसल ही चौपट हो जायेगी। और टर्मिनेटर सीड इतना खतरनाक सीड है कि वो जिस खेत में लगा दिया जाये आजू - बाजू के बहुत सारे खेतों को अपने आप बर्बाद कर देगा। आप जानते हैं कि कई बार विदेशों से बीज आते हैं, तो उन बीजों के साथ-साथ बहुत सारी बीमारियां भी आती हैं। हमारे यहाँ जब परदेशी बीज आया था एक बार तो उस परदेशी बीज के साथ काँग्रेसी घास घुस गई थी इस देश में। और गाँव-गाँव में फैल गई है। और सभी किसान परेशान हैं कि इसको खत्म कैसे किया जाये? और अब ऐसे ही बीज आयेंगे इनके साथ यह सब सत्यानाशी बीमारियां भी आयेंगी। ___ यह परदेशी कम्पनियों की चाल और साजिश है कि भारत में बीज के बाजार पर पूरी तरह से उनका नियंत्रण हो जाए। और आपको एक तीसरी बात बता दूँ इसी के साथ जुड़ी हुई कि पेटेन्ट यह कितने साल के लिए दिया जायेगा? मान लीजिए किसी बीज पर किसी विदेशी कम्पनी का पेटेन्ट है तो यह कितने साल के लिए होगा तो इसमें जो एक प्रोव्हीजन है पेज नं. 346 और पॅराग्राफ नं. 31 का आखरी लाईन हैजो बताता है, क्या बताता है? The term of protection available स्वदेशी कृषि Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ shall not and be for the expiration of period of 20 year counted from the file in date. माने किसी कम्पनी को जिस दिन पेटेन्ट मिला उससे लगातार बीस साल तक उस कम्पनी का पेटेन्ट अधिकार होगा। माने किसी एक कम्पनी को मान लीजिए RR-21 गेहूँ की प्रजाति पर पेटेन्ट मिल गया तो पूरे 20 साल तक उस कम्पनी को ही अधिकार होगा RR-21 बीज बनाकर बेचने का। बाकी किसी को नहीं होगा 20 साल तक। आप सोचिये 20 साल में तो एक पीढ़ी जवान हो के खत्म हो जाती है। एक पीढ़ी चली जाती है, गुजर जाती है। फिर आप क्या कर सकते कुछ लोगों को ऐसा लगता है कि राजीव भाई हम भी तो पेटेन्ट करा सकते हैं। हिन्दुस्तान का 45 करोड़ किसान तो गरीबी की रेखा के नीचे जीता है वो पेटेन्ट का एप्लीकेशन कैसे फाईल करेगा? लाखों डॉलर चाहिए पेटेन्ट एप्लीकेशन करने के लिए, कहाँ से लायेगा वो बिचारा। रोज दो समय की रोटी खाने को उसको मुश्किल हो जाती है वो पेटेन्ट एप्लीकेशन फाईल करने के लिए पाँच लाख डॉलर चाहिए, कहाँ से लायेगा। यह तो बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ ही करने वाली हैं। और बीज पर पूरी तरहसे बड़ी कम्पनियों का अधिकार हो जायेगा। हमारे बाजारों में परदेशी अनाज बिकना शुरु हो जायेगा। किसानों को मिलने वाली जो छोटी-मोटी सब्सिडी थी। वो भी पूरी तरह से खत्म हो जायेगी। तो आप सोचिये खेती का तो और सत्यानाश हो जायेगा। किसान तो और बर्बाद हो जायेगें। अब इसमें से आप यह प्रश्न पूछ सकते हैं कि राजीव भाई इसमें से बाहर निकलने का कोई रास्ता है क्या? अभी सरकारों ने तो यह कर दिया है करार। अब इसमें से बाहर निकलने का कोई रास्ता है क्या? हमारी खेती जो बर्बाद हो रही है। 'उस खेती को सुधारने का कोई रास्ता है? और वो रास्ता इसी गैट करार में लिखा हुआ है। और क्या लिखा हुआ है। इसी गैट करार का जो सबसे पहला चैप्टर है जिसके बारे में मैंने आपको पढ़कर सुनाया था। उसी चैप्टर में बिल्कुल साफ-साफ लिखा हुआ है,मैं आपको पढ़कर सुनाना चाहता हूँताकि किसी को गलत फहमी ना हो। बहुत बार यह चर्चा होती है पूरे देश में कि अब क्या करें हम तो गैट करार में फंस गये हैं सरकार ने तो समझौता कर लिया है अब हम इसको रद्द नहीं कर सकते इसमें से बाहर नहीं आ सकते बिल्कुल साफ-साफ गैट करार में लिखा हुआ है कि कोई भी सरकार इस गैट करार के समझौते को रद्द कर सकती है। और कोई भी सरकार इस गैट करार में से बाहर निकल सकती हैकैसे? इसमें बिल्कुल साफ-साफ लिखा हुआ है"आर्टीकल नं. 15 पेज नं. 9 और पहला अध्याय गैट करार का वो क्या कहता है स्वदेशी कृषि Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Any Member may with draw from this agreement. onts it agt इसमें से बाहर निकल सकता है। माने कोई भी देश इसको रद्द करवा सकता है अपने लिएकमसेकम। कैसे? उसमें आगेकीलाईन लिखी गईहै। Suchwithdrawal shall apply both to this agreement and the multi laterally period agreement and shall take effect upon the expiration of six month from the day on which written notice of the withdrawal is received by the Director Journal of W.T.O. इसका माने क्या है? कोई भी देश गैट करार में से बाहर आ सकता है कैसे? एक ऍप्लीकेशन देगा गैट का जहाँ हेड ऑफिस है। वो जगह है जेनेवा। तो गैट के हेड ऑफिस में जो इनका सबसे बड़ा अधिकारी बैठता है उसका नाम है डायरेक्टर जनरल ऑफ W.T.O. । उसको यहऍप्लीकेशन दिया जायेगा कि हम इसमें से बाहर निकलना चाहते हैतो जिस डेट को हमाराअप्लीकेशन वहाँ पर रिसीव किया जायेगा - लिया जायेगा। उसी डेट से लेकर अगले 6 महीने के बाद हम अपने आप इसमें से बाहर निकल आयेगें। माने कुछ भी मुश्किल नहीं है इसमें से बाहर निकलना। कई बार देश के नेता हमको बेवकूफ बनाते हैं। गुमराह करते हैं कि एक बार ऍग्रीमेन्ट हो गया है। तो अब इसमें से बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं है। मैं यही कहने आया हूँ आपको कि इसमें से बाहर निकलने का रास्ता है और बिलकुल साफ-साफ लिखा गया है। इसमें से कोई भी सरकार बाहर निकल सकती है। तो यही काम हम लोगों ने शुरु किया है कि हम भारत सरकार को दबाव डाल रहे हैं कि वो इस गैट ऍग्रीमेन्ट में से बाहर निकले। आप पूँछेगें अगर सरकार बाहर निकल आयी तब क्या होगा? तो इसका एक तीसरा रास्ता है। मान लीजीए भारत सरकार इसको रद्द करे और इसमें से बाहर निकल आये तो दुनिया के बहुत सारे ऐसे देश हैं जो हमारे ही जैसे हैं। जिनको बहुत नुकसान हो रहा है गैट करार से जैसे। ब्राजील है, जैसे मैक्सिको है, जैसे- चिली है, जैसे- अर्जेंटीना है, जैसे हमारे साउथ ईस्ट एशिया के बहुत सारे देश हैं अफ्रीका में नाइजीरिया है अफ्रीका में नामीबिया है इजिप्ट नाम का देश है। ऐसे तमाम देश हैं जिनको गैट करार से नुकसान हो रहा है और बहुत बार उन देशों के प्रतिनिधी कहते रहते हैं। मलेशिया नाम का जो एक देश है वहाँ के जो प्रधानमंत्री हैं जिनका नाम हैं डॉ. महात्रे मोहम्मद; वो तो कई बार कह चुके हैं गैट करार गरीब देशों के लिये खतरे की घंटी है। इसीलिए सब गरीब देशों को इसमें से बाहर निकल आना चाहिए। तो एक रास्ता और है वो रास्ता यह हैकि अगर भारत सरकार इसमें से बाहर निकले तो उन सभी देशों को बाहर निकलने के लिए रास्ता खुल जायेगा जो इसमें फंस गये हैं। और वो सब देश भी अगर इसमें स्वदेशी कृषि - ५५ Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ से बाहर निकल आये तो यह गैट नाम की संस्था ही रद्द हो जायेगी, डूब जायेगी, बाढ़ में चली जायेगी और हम सब की जान बच जायेगी। फिर हम क्या कर सकते है? जो देश इसमें से बाहर निकलेंगे उन सब देशों के साथ मिलकर फिर से कोई एक नया ऍग्रीमेन्ट हम कर सकते हैं, जो हमारे देश के हित के अनुकूल हो। उन देशों के भी हित में हो; हमारे किसानों के फायदे में हो, हमारे उद्योगपतियों के फायदे में हों, दूसरे देशों के भी किसानों के फायदे में हो, उनके भी उद्योगपतियों के फायदे में हो; एक नया ऍग्रीमेन्ट फिर कर सकते हैं। यह ऍग्रीमेन्ट कभी अंग्रेजों ने किया था अमेरिकियों के साथ मिलकर; तो जरुरी तो नहीं है कि वो ही परमानन्ट हो गया; अभी कोई दूसरा ऍग्रीमेन्ट हो सकता है, तो हम लोग दो ही बातें सरकार को कह रहे हैं। या तो आप इसमें से बाहर निकलो और बाहर निकलो तो दूसरे तमाम देशों को बाहर निकलने का रास्ता बताओ और एक नया ऍग्रीमेन्ट साईन करो। सभी देशों के साथ मिलकर या इस गैट ऍग्रीमेन्ट की शर्तों को बदलवाओ कि यह शर्ते देश के हित में नहीं है, ना किसानों के हित में हैं, ना उद्योगों के हित में है, ना व्यापारियों के हित में हैं, किसी के हित में नहीं हैं और सुप्रीम कोर्ट में जाकर हम यह सिद्ध करेगें कि यह जो गैट करार नाम का पूरा का पूरा दस्तावेज है; वो संविधान विरोधी है और आप जानते हैं कि हमारे देश में कोई भी सरकार संविधान विरोधी एक भी काम नहीं कर सकती। किसी भी सरकार को यह अधिकार नहीं है कि वो संविधान विरोधी कार्य करे या कोई निर्णय ले। मैंने आपको बताया कि हमारे देश में अब तक यह गोल्डन रुल चलता रहा है कि अगर कोई अन्तर्राष्ट्रीय कानून देश के कानूनों के हित के खिलाफ है तो देश का कानून जिन्दा रहेगा। अन्तर्राष्ट्रीय कानून भारत में नहीं लागू होगा। लेकिन अभी गैट करार शुरु होने के बाद क्या होने जा रहा है कि अन्तर्राष्ट्रीय कानून लागू होगा तो हमारे देश का कानून जिन्दा नहीं रहेगा। तो इसका माने कॉन्ट्रा कॉन्स्टीटयुशनल है यह ऍग्रीमेन्ट और इसके होने के बाद हमारे देश की सरकारों के कानून बनाने के अधिकार खत्म होते हैं। केन्द्र सरकार जो कानून बना सकती है वो अधिकार खत्म होते हैं। राज्य सरकारें जो विधानसभा में कानून बना सकती हैं उसके अधिकार खत्म होते हैं। केन्द्र और राज्य सरकारों के कानून बनाने के अधिकार अगर खत्म होते हैं तो हमारी पॉलीटिकल सावरेनिटी खत्म होती है, राजनैतिक सम्प्रभुता खत्म होती है, और संविधान में राजनैतिक सम्प्रभुता का बहुत बड़ा महत्व है। और तीसरी बात जो हम कहने वाले हैं कि हमारे यहाँ संविधान में फेड्रल स्ट्रक्चर की बात कही गई है। राज्य के और केन्द्र के संबंध है जो फेड्रलिज्म के आधार पर है। यह जो स्वदेशी कृषि Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फेड्रल स्ट्रक्चर है उसमें क्या होता है? केन्द्र कोई ऐसा कानून बनाना चाहता है जिससे राज्य पर प्रभाव पड़ता है, तो केन्द्र पहले राज्य सरकार को पूछेगा और राज्य सरकार कोई ऐसा कानून बनाना चाहती है जिसका अधिकार क्षेत्र केन्द्र के पास है तो राज्य सरकार केन्द्र से पूछती है। माने केन्द्र सरकार राज्य को पूछे बिना या राज्य सरकार केन्द्र को पूछे बिना इस तरह के कानून नहीं बना सकती। गैट करार लागू होने के बाद यह नहीं होने वाला। - गैट करार के बाद तो यह हालत हो जायेगी कि सरकार सोच भी नहीं पायेगी किसी कानून के बारे में, वो विदेशों से बनकर आ जायेगा। गैट के ऑफिस से बनकर आ जायेगा और भारत में लागू हो जायेगा। इसलिए हम लोग इसको कहरहे हैं कि यह कॉन्ट्रा कॉन्स्टीटयुशनल ऍग्रीमेन्ट है अर्थात संविधान विरोधी यहदस्तावेज है इसलिए इसको रद्द करना ही होगा। हम देश के लोगों को बताना चाहते हैं कि हम यह काम क्यूँ कर रहे हैं, गैट करार का विरोध क्यूँ कर रहें है, हम W.T.O. के ऍग्रीमेन्ट का विरोध क्यूँ कर रहे हैं, उससे देश को क्या नुकसान है और यही बात मैं आपको समझाना चाहता हूँ। अब इस पूरी प्रक्रिया में से बाहर निकलना है हमारे अपने देश को। तो मुझे लगता है कि हमको गैट करार रद्द करवाना पड़ेगा। इसी के साथ-साथ जो कानून इस देश में किसानों को बर्बाद करने के लिए बनाये गए हैं वो कानून भी रद्द करवाने पड़ेंगे और इसकी लड़ाई भी हमको अलग से शुरु करनी है। अंग्रेजों के जमाने के बनाये गये जो कानून भारत में आज भी लागू हैं उन सबको एक-एक कर के रद्द किया जाए। और तकलीफ हमारी क्या है? अंग्रेजों के जमाने के बनाये हुए तीन हजार सात सौ पैंतीस कानून है इस देश में, जो आज भी लागू हैं। मैंने आपको बताया था लैण्ड अॅक्युझिशन है जो लागू है। अंग्रेजों के जमाने का इंडियन फॉरेस्ट है। अंग्रेजों के इंडियन सर्विसेस एक्ट जो लागू है अंग्रेजों के जमाने का। तो ऐसे अंग्रेजों के जमाने के बनाये हुए तीन हजार सात सौ पैतीस कानून इस देश में आज भी है। सब कानूनों को एक-एक कर के रद्द करवाना होगा और इसके लिए बहुत बड़े पैमाने पर आन्दोलन चलाना पड़ेगा। किसानों की जमीनों पर सरकारों के अधिकार ना होने पाये इसके लिए हमको लड़ना होगा। और लैण्ड अॅक्युझिशन एक्ट को खत्म करवाना होगा। यह जो जंगल है यह समाज की सम्पति है,राष्ट्र की सम्पति है, गाँव की सम्पति है, इसके लिए लड़ना होगा और इंडियन फॉरेस्ट एक्ट को बदलवाना होगा। अंग्रेजों के आने से पहले जैसे जंगल; गाँव व समाज की सम्पति माने जाते थे वैसी ही व्यवस्था फिर बनानी होगी। इसी तरह से गाँव के किसान को अपने खेत में पैदा किये गए अनाज का दाम स्वदेशी कृषि स्वदेशा कृषि .............. . .. Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तय करने का अधिकार नहीं है इसके लिए फिर लड़ना पड़ेगा और आन्दोलन चलाना पड़ेगा और सरकारों को मजबूर करना पड़ेगा। वो किसानों को दाम तय करने का अधिकार दें और या फिर लड़ाई इस स्तर पर लड़नी पड़ेगी कि अगर किसानों को खेती का ठीक से दाम नहीं मिलता, अनाजों का ठीक से दाम नहीं मिलता, किसान की खेती घाटे में चली जा रही है, तो उद्योगों में और कारखाने में पैदा होने वाले सामानों का दाम गिराया जाए। अगर खेती से उत्पन्न चीजों का दाम कम करना है सरकार को तो उद्योगों में पैदा होने वाली चीजों का दाम भी कम करना पड़ेगा, माने एक समानता लानी पड़ेगी। हमारे देश का जो सर्विस सेक्टर है, हमारे देश का जो इंडस्ट्रियल सेक्टर है, और हमारे देश की खेती जो किसानों का सेक्टर है, क्षेत्र है। इन तीनों के दामों में एकरुपता लानी पड़ेगी, समरुपता लानी पड़ेगी। अब किसान की गरीबी दूर होने का कोई रास्ता नहीं है। क्योंकि किसान जो पैदा करें वो सस्ते में बिके और किसान जो खरीदे वो बहुत मँहगे में खरीदे। यह नियम जब तक चलता रहेगा किसानों की गरीबी दूर नहीं होगी, इसके लिए भी हमको लड़ना पड़ेगा। इसके लिए भी आन्दोलन करना पड़ेगा। और जिस तरह से अंग्रेजों ने भारत के किसानों को बर्बाद करने के लिए गाय कत्ल करवाना शुरु किया था, गौ-हत्या करवाना शुरु किया था, उस तरह से यह जो गौ-हत्या आज भी चल रही है, इसको पूरे देश में रुकवाना होगा। पूरे देश में केन्द्रीय स्तर पर एक कानून हमको बनवाना होगा, जिसके कारण गौ-हत्या तत्काल बंद की जाए। बहुत सारे राज्यों ने कानून बनाये लेकिन केन्द्र के स्तर पर आज तक एक भी ऐसा कानून नहीं है, जिससे केन्द्र के स्तर पर गौ-हत्या रुकने का कोई काम हो सके। ! ५८ स्वदेशी कृषि Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खेती को विदेशीकरण से बचाने के उपाय (पुसद, यवतमाल में राजीव भाई द्वारा दिया गया व्याख्यान - भाग 3) __ आजादी के पचास साल हो गए हैं, पचास साल से हमारी संसद में यह बहस चल रही है कि गौ-हत्या पर पूरे देश में केन्द्रीय स्तर पर पाबंदी लगाई जाए। लेकिन आज तक वो कानून नहीं बन पाया और उसके लिए भी हमको लगातार प्रयास करना होगा और उसके लिए लड़ना होगा। तो एक काम तो सरकारी तौर पर संघर्ष का होगा और पार्लियामेण्ट के स्तर पर संघर्ष का होगा,सुप्रीम कोर्ट में जाना पड़ेगा, हाईकोर्ट में जाना पड़ेगा, अदालतों से लड़ना पड़ेगा, देश के लोगों को आन्दोलित करना पड़ेगा, सत्याग्रह करने पड़ेगें। एक तो इस स्तर पर काम चलेगा और एक दूसरे स्तर पर भी काम हमको शुरु करना पड़ेगा कि पिछले 200-300 सालों में हमारी खेती का जो विदेशीकरण हो गया है और हमारी खेती का जो परदेशीकरण हो गया है। इस विदेशीकरण से अपनी खेती को बाहर निकालना पड़ेगा, किसानों को विदेशीकरण से बाहर निकालना पड़ेगा। ____ आप पूछेगे कि क्या विदेशी करण हो गया है? हम सब लोग रासायनिक खाद इस्तेमाल करते हैं,खेती में जो विदेशीकरण का प्रतीक है, हम सब लोग कैमिकल्स डालते है पैस्टीसाईड के रुप में जो विदेशीकरण का प्रतीक है हम लोग ट्रैक्टर से खेत जोतते हैं जो विदेशीकरण का प्रतीक है। हम लोग हायब्रिड सीड्स इस्तेमाल करते हैं जो विदेशीकरण का प्रतीक है। और लोगों के मन में जाने-अनजाने यह गलत फहमी बैठगई है कि खेती का विदेशीकरण करके हमारा उत्पादन बहुत बढ़ सकता है। आपको मैं जानकारी दे दूँ कि ट्रैक्टर से लगातार खेत जोतने के बाद स्वदेशी कृषि Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खेती की मिट्टी बर्बाद हो जाती है,खराब हो जाती है। मिट्टी की जो नमी है, मिट्टी की जो मुलायमियत है, मिट्टी में जो नर्मी है वो सब खत्म हो जाती है लगातार ट्रैक्टर चलाते-चलाते। इसी तरहसे लगातार रासायनिक खाद का इस्तेमाल कर-कर के खेत का सत्यानाश हो जाता है, मिट्टी का सत्यानाश हो जाता है लगातार केमिकल्स पैस्टीसाइड का इस्तेमाल करते-करते। आप जानते हैं हमारे देश में हजारों एकड़ जमीन बर्बाद हो गई। जहाँ पर भयंकर तरीके से रासायनिक खाद इस्तेमाल किया जाता था, भयंकर तरीके से रासायनिक खाद के साथ-साथ रासायनिक दवा इस्तेमाल की जाती थी। आप जाइये देखकर आइये पंजाब में,आप जाइये देखकर आइये हरियाणा में, आप कभी चलिए मैं आपको दिखाता हूँ मेरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में। जितने इलाकों में भारत में ज्यादा से ज्यादा रासायनिक कीटनाशकों का इस्तेमाल किया गया है। उन सब इलाकों की हजारों एकड़ जमीन बंजर होती चली जा रही है, अभी उसमें कुछ नहीं होता, सब चौपट हो रहा है। एक जमाने में ऐसा लगता था कि रासायनिक कीटनाशक डालकर, रासायनिक खाद डालकर खेती का उत्पादन बढ़ा दिया जायेगा। लेकिन आज स्थिति ऐसी आ गई है कि उत्पादन बढ़ नहीं रहा है बल्कि लगातार कम होता चला जा रहा है। हमारे देश में एक बहुत बड़ा रिसर्च संस्थान है जिसका नाम है इंडियन काउन्सलर ऑफ ऍग्रीकल्चर रिसर्च (आय. सी. ए.)'इसके वैज्ञानिकों की अभी जो स्टडीज हो रही है, वो बिल्कुल साफ-साफ बताती है कि अब एक लिमिट आ गई हैखेत की; उससे ज्यादा उत्पादन वो दे नहीं सकता और मिट्टी पूरी तरह से बेकार हो गई है, मिट्टी पूरी तरह से बंजर हो रही है, खेत पूरी तरह से बंजर हो रहा है। और आप जानते हैं कि रासायनिक खाद का सबसे बड़ा दुरुपयोग होता है। रासायनिक खाद की बर्बादी की जो निशानी है वो यह है कि जितना ज्यादा से ज्यादा रासायनिक खाद आप डालेगें उतना ही खेत को पानी की ज्यादा से ज्यादा जरुरत पड़ती है। और जितनी ज्यादा से ज्यादा पानी की जरूरत पड़ती है उतनी ही खेती लगातार मंहगी होती चली जाती है। जितना ज्यादा से ज्यादा रासायनिक खाद डालेगें खेत में-उतना ही आपके गेहूँ में, चावल में, तुवर की दाल में, आपकी दूसरी चीजों में लगातार तत्व कम होता चला जाता है। रासायनिक खाद से बनाई गयी खेती और पैदा किया गया अनाज खाने में जैसे भूसे जैसा होता है, उसमें तत्व बहुत कम होता है। खेती का उत्पादनजरुर बढ़ता है,लेकिन क्वालिटी लगातार गिरती चली जाती है। और अनाज की क्वालिटी अगर लगातार गिरती चली जाती है तो जो अनाज हम खा रहे हैं, हमारे शरीर पर भी उसका दुष्प्रभाव पड़ता है। और रासायनिक खाद और रासायनिक स्वदेशी कृषि Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दवाओं का शरीर पर कितना दुष्प्रभाव पड़ रहा है? हम जो भोजन करते हैं। हम जो सब्जियां खाते हैं, दालें खाते हैं, अनाज खाते हैं, उसमें रासायनिक पदार्थों की मात्रा इतनी ज्यादा हो गई है कि माताओं के दूध में भी अभी जहर आ गया। बच्चे बचपन से ही जहर (विष) पी रहे हैं माताओं के दूध के साथ, इतना भयंकर दुष्परिणाम निकला है। और इस रासायनिक खाद व रासायनिक कीटनाशकों के उपयोग से तमाम तरह की बीमारियांबढ़ती चली जाती हैं। एक-एकसे नई-नई बीमारियां इस देश में आती चली जा रही हैं। कैन्सर जैसी बीमारी आज इतने बड़े पैमाने पर फैल गई है। आज से 20-25 साल पहले कोई जानता नहीं था कि कैन्सर की कोई बीमारी होती है। इतने बड़े पैमाने पर नये-नये किस्म की जटिल से जटिल बीमारियां पैदा होती चली जा रही हैं, क्योंकि आदमी के खाने-पीने में जो वो इस्तेमाल कर रहा है-जहर (विष) की मात्रा बढ़ती चली जा रही है। तो इसलिए रासायनिक खादों का इस्तेमाल कम करना पड़ेगा। और रासायनिक कीटनाशकों का इस्तेमाल भी आपको कम करना पड़ेगा। ताकि आपकी जमीन बच सके और आपके जमीन के अन्दर जो जीव-जंतु हैं, जो कीटाणू हैं, वो बच सकें। ___ आप जानते हैं कि जब आप रासायनिक कीटनाशक डालते हैं अपने खेत में, और रासायनिक खाद डालते हैं आप अपने खेत में तो आप के खेत के अन्दर जो करोड़ों-करोड़ों जीव-जंतु होते हैं छोटे-छोटे जो मायक्रो ऑरगेनीजम कहलाते हैं। जो छोटे-छोटे मायक्रोलेवल के माने जो आँख से नहीं दिखाई देते। मुश्किल से लेन्स लगाकर हम उनको देख पाते हैं, ऐसे छोटे-छोटे जीवाणु खत्म हो गये। मिट्टी के अन्दर के जीवाणु अगर खत्म हो गए, तो खेती की मिट्टी में और कुछ नहीं होता। यह जीवाणु ही हैं जो आपके खेत में उत्यादन करवाते हैं, मिट्टी में अपने में कोई दम नहीं। मिट्टी के अन्दर जो जीवाणु पनपते हैं करोड़ों-करोड़ों की संख्या में उनकी ताकत है कि उस मिट्टी में से कुछ पैदा होता है। और जो जीवाणु लगातार खत्म होते जा रहे हैं उनके लगातार खत्म हो जाने से तो मिट्टी बेकार हो रही है। ___ तो अब सरकारें भी एक नये अभियान को चलाने में लग गई हैं, अब सरकारों को भी समझ में आ रहा है कि बहुत बड़ी गलती हुई है। बड़े-बड़े वैज्ञानिकों को भी समझ में आ रहा है कि रासायनिक खाद का प्रचार कर-कर के रासायनिक कीटनाशक का प्रचार कर-कर के इस देश की खेती का बड़ा नुकसान हुआ है। और अब वहीं वैज्ञानिक क्या कहते हैं- केंचुआ पालो और अपनी खेती में केंचुआ डालो। भारत सरकार प्रोजेक्ट चला रही है कि आप उनसे केंचुआ ले आओ खरीदकर, आप अपने खेत में डालो, तो तुम ने नीतियाँ ऐसी क्यूँ चलाई जिससे स्वदेशी कृषि Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ केंचुआ मरे पहले। केंचुआ मार दिया अपने खेत के, जीवाणु मार दिये अपने खेत के,जीव-जंतु मार दिये अपने खेत के, और अब खेत पूरी तरह से बेकार हो गया, बेकस हो गया। तो उस खेत को वापस जिन्दा कराने के लिए कहते हैं कि अब वो कीटाणु-जीवाणु पनपे और वहाँ पर केंचुअपनपे। इसके लिए नये तरह की पद्धति पूरे देश में चलाई जा रही है। तो पहले किया ही क्यूँ था? यह सब बर्बादी लाई क्यूँ थी इस देश में? इसलिए मैंने आपसे कहा कि अब हर किसान को चतुराई के साथ, इस बुद्धिमानी के साथ, बुद्धिशीलता के साथ, इस रासायनिक खाद का बहिष्कार करना पड़ेगा, रासायनिक कीटनाशकों का बहिष्कार करना पड़ेगा,और आपको चुनना पड़ेगा कि यह खेती रहे या खेत बर्बाद हो। नहीं तो आने वाली पीढ़ी को कुछ नहीं बचेगा। आप चले जायेगें तो वो पीढ़ी क्या करने वाली है? यह खेत तो ईश्वर ने दिया है आपको, खेत तो आपने नहीं बनाया, खेत कोई बना भी नहीं सकता, ईश्वर की दी गई जमीन है, ईश्वर ने यह जमीन दी है आपको; ताकि आप इसे अगली पीढ़ी को देकर जाये। और वो जमीन को अगर आप बर्बाद कर केचले जायेगें तो आने वाली पीढ़ी को क्या मिलेगा? इसलिए गंभीरता से आपको यह सब बातें सोचनी पड़ेंगी। तो आप पूँछेगें कि इसका विकल्प क्या? रासायनिक खाद का हम अगर बहिष्कार करें; तो इसके विकल्प में आप सोचिए जरा तीन सौ साल पहले इस देश के किसान क्या करते थे? गाय के खाद का इस्तेमाल करते थे,गोबर का इस्तेमाल करते थे, उस समय तो कोई रासायनिक खाद नहीं था,और जिस समय रासायनिक खाद नहीं था उस समय इस देश की खेती का उत्पादन ब्रिटेन की कुल खेती के उत्पादन का तीन गुणा ज्यादा होता था। जिस समय कोई रासायनिक कीटनाशक नहीं था इस देश में, उस समय इस देश की खेती दुनिया में सबसे उन्नत खेती मानी जाती थी और आज भी वो हो सकती है। उसका ज्ञान तो हमारे पास है ही, ज्ञान तो लुप्त नहीं हुआ है, उस ज्ञान का आप प्रयोग करना शुरु करिए। तो क्या करें? गोबर के खाद का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करना शुरु करिए आप। तो उसके लिए छोटासा एक काम करिए कि आप ज्यादा से ज्यादा पशुओं का पालन करिए, गाय पालिये, गाय के साथ-साथ बकरियां पालिए। ____ मैं तो किसानों को एक ही परामर्श देता हूँ कि अगर किसानों ने मारुति कार खरीद रखी है। तो कार बेचें और चार गाय खरीदें, अगर ट्रैक्टर खरीद रखा है तो ट्रैक्टर बेचिए और 10 गाय खरीदें, क्यूँ खरीद ले? क्योंकि एक दिन कार, यह ट्रैक्टर सब बंद होने वाले है। आप पूँछेगें कैसे? पेट्रोल खत्म हो जायेगा दुनिया में, ___ स्वदेशी कृषि ६२ ........... ........ Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पेट्रोल की मात्रा बिल्कुल सीमित है, और जब पेट्रोल खत्म हो जायेगा दुनिया में तो कार कैसे चलायेगें ? आपको बैल लगाना पड़ेगा, और कार खींच के ले जानी पड़ेगी, कार खींच के ले जायेगा आप का बैल। तो ऐसी नौबत आये इसके पहले कार बेच दीजिए और चार गाय खरीद लीजिए। यह सबसे ज्यादा बुद्धिमत्ता का सौदा होगा । और गाय पालेगें तो गोबर आयेगा, गोबर से खाद बनेगा । और मेढ़क पद्धति से जो खाद बनाने की पद्धति प्रचलित हुई है पूरे देश में; इस पद्धति से एक किलो गाय के गोबर से कम से कम 30-33 किलो खाद बन सकती है। आपके पास कचरा है, आपके पास गोबर है, गाय का मूत्र है, मिट्टी आपके खेत में जो है उसका इस्तेमाल करते हुए और उसके लिए आप चाहे तो क्या कर सकते हैं 100 किलो गाय का गोबर अगर आपके पास हो तो 100 किलो गाय के गोबर से आप कम से कम 3300 किलो खाद बना सकते हैं और उसका तरीका क्या है? इसका तरीका बिल्कुल सरल है; 100 किलो गाय का गोबर, 1500 किलो उसमें चाहिए बायोमास कचरा और करीब 1700 किलो चाहिए उसमें मिट्टी, और इन तीनों को एक खास तरीके की टँकी को बनाकर उसमें रखा जाता है । कैसे टँकी बनाया जाता है ? मान लीजिए 2 मीटर लम्बा गढ्ढा है आधा मीटर चौड़ा है करीब एक मीटर गहरा है ऐसा एक टैंक बनवाइये । उसमें बीच-बीच में छेद खुले रहें इस तरह से टैंक की चुनवाई करवाइये, और उसके नीचे बायोमास का लेयर बिछाईए । फिर उसके बाद जो गाय का गोबर है, गौमुत्र के साथ मिलाकर उसकी एक परत बिछाईए, मिट्टी उसमें बिछाईए, फिर उसके ऊपर इसी तरह की परत बनाते चले ये । और जब वह पूरा भर जायेगा तो दो महीने तक उसको ढँक के रखिए। दो ढाई महीने के बाद खाद तैयार हो जायेगा। यह एक बहुत अच्छा तरीका है खाद बनाने का । आपके पास गाय है गाँव में, गाय का गोबर है, और गाय के गोबर का आप इस्तेमाल कर सकते हैं। एक दूसरा तरीका भी है। गौमूत्र ले लीजिए 10 लीटर और 10 किलो गोबर ले लीजिए। और उसमें 250 ग्राम गुड़ डाल दीजिए, आठ दिन तक इसको रखिए । और आठ दिन तक रखने के बाद करीब 200 किलो पानी इसमें मिला लीजिए और उस पानी को खेत में जो आपके पौधें है उनकी जड़ों में लगा दीजिए। खाद का भी काम करेगा, कीटनाशक का भी काम करेगा। और इनमें कोई भी ऐसी चीज नहीं है जो आपके गाँव में ना बनती हो और आपके घर में ना बनती हो । गाय आपके पास है तो गोबर आपको मिलेगा। गाय आपके पास है तो गौमूत्र आपको मिलेगा । और हर गाँव में गन्ना पैदा होता है। तो उससे गुड़ बना सकते हैं। तीन चीजें इस्तेमाल होती है। और तीनों चीजें आपके गाँव में है । और पानी तो हर गाँव में है । बहुत स्वदेशी कृषि Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आसानी के साथ इस तरह से आप खाद का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। और खाद के साथ-साथ कीटनाशक के रुप में भी इस्तेमाल कर सकते है। दूसरा एक काम और कर सकते हैं कि कीटनाशक अगर रासायनिक नहीं खरीदेंतोप्राकृतिक तरीके से कीटनाशक बना सकते हैं। गौमूत्र ले लीजिए और करीब 2 लीटर ले लीजिए, उसमें नीम का पत्ता उबाल दीजिए और आधे घंटे तक उसको उबालिए और उसके बाद उसको 100 मिलीलीटर की मात्रा में लेकर पंद्रह लीटर पानी में मिला लीजिए। और उसको पंद्रह लीटर पानी को स्प्रेकरिए, जिस तरह से छिड़काव करते है आप के यहाँ। स्प्रे मशीन तो होती होगी हर गाँव में, हर किसान के पास स्प्रे मशीन है। तो उसमें भरकर उसको स्प्रे करिए और आपके खेत में किसी भी तरह का कीट जो फसल पर लग गया है खत्म हो जायेगा। एकदम प्राकृतिक तरीके से कीट को खत्म करने का सबसे अच्छा तरीका है। और इसको बनाने में आपका खर्चा भी खास नहीं आने वाला। अगर रासायनिक कीटनाशक आप लेके आयेंगे तो वह 300 रुपये लीटर मिलेगा,400 रुपये लीटर मिलेगा, 500 रुपये लीटर भी मिल सकता है, 1000 रुपये लीटर भी मिल सकता है। तो आपका तो खर्चा ही बढ़ रहा है ना और इसमें तो सारी की सारी चीजें ऐसी हैं कि जो आपके घर में मौजूद हैं। गौमूत्र आपके पास है क्योंकि गाय आपके पास है, नीम हर गाँव में मिल जायेगा। नीम की पत्ती आपको मिल जायेगी, गौमूत्र में नीम की पत्ती डालकर उबालना है, और उसका इस्तेमाल करना है। एक तरीका और भी है; 300 ग्राम गुड 15 लीटर पानी में गरम करके रख लीजिए और फिर उसके बाद उस पर स्प्रेकर दीजिए। कीटनाशक के रुप में काम में ला सकते हैंआप इसको सब तरह के कीट मर जायेगें। चूने के पानी का छिड़काव कर सकते हैं। 10 ग्राम चूना ले लिजिए, 50 मिली लीटर पानी ले लीजिए, और इसको छानकर करीब 15 लीटर पानी में घोल लीजिए और उसको स्प्रे की तरह से छिड़क दीजिए अपने खेत पर। जितने भी कीट हैं किसी भी फसल पर; सब तरह के कीट आपके मर जायेगें। एक और तरीका है; गौमूत्र 1 लीटर लीजिए और सीधे 15 लीटर पानी में मिला लीजिए और झाड़ के ऊपर स्प्रे कीजिए उसकी जड़ में इसके बाद जो फल आयेंगे उनकी मिठास भी बढ़ जायेगी। और कीड़े तो अपने आप मर ही जायेंगे। यह सब काम इतने आसान हैं कि बहुत आसानी के साथ अपने गाँव में ही इस्तेमाल होने वाले जो संसाधन हैं उनसे हम कर सकते हैं और गाँव का एक भी पैसा खर्च करने से आप बचा सकते हैं। जो रासायनिक कीटनाशकों पर आप खर्च करते हैं। और इसी तरह से गोबर के खाद का इस्तेमाल करें। गाय के गोबर से खाद बनाना शुरु .. ....... . स्वदेशी कृषि Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ करेंतो एक गाय से करीब 80 टन खाद हर साल में बन सकता है और एक गाय से अगर 80 टन खाद एक साल में बन सकता है तो करीब-करीब बाजार की आज की कीमतों पर वो 25 से 30 हजार रुपये का खाद है। ___तो एक गाय का गोबर 25 से 30 हजार रुपये का खाद बना सकता है तो गौ पालन से दूध मिलेगा,घी मिलेगा, मख्खन मिलेगा ही। गाय के गोबर से आपके पूरे देश की खाद की जरुरत पूरी हो सकती है गाय के मूत्र से पूरे देश के कीटनाशक की जरुरत पूरी हो सकती है और अगर हम रासायनिक खादों का बहिष्कार कर सकें और रासायनिक कीटनाशकों का बड़े पैमाने पर बहिष्कार कर सकें तो हर साल इस देश का लगभग 20 हजार करोड़ रुपया भी बचेगा। भारत सरकार जो आयात करती है परदेशों से, उस परदेशी आयात में एक तो सबसे ज्यादा आयात होता है पेट्रोल का, डीजल का और पेट्रोलियम प्रोडक्टस का, और दूसरा सबसे ज्यादा भारत सरकार आयात करती हैरासायनिक खादों के रुप में। जो केमिकल्स फर्टीलाइजर इस्तेमाल किये जाते हैं उनमें भारत सरकार का लगभग 20 हजार करोड़ रुपये का खर्चा होता है। विदेशों से रासायनिक खाद इम्पोर्ट करने मे खरीदने में वो 20 हजार करोड़ का भारत सरकार का खर्च बचेगा। और अब तो सरकार की स्थिति ऐसी हो गई है कि यह इम्पोर्ट करना जरुरी हो गया है क्योंकि गाँव-गाँव के जगह-जगहहर किसान यही इस्तेमाल कर रहेंहै, तो कहीं-कहीं से कर्ज लेकर ये सब रासायनिक खाद इम्पोर्ट करना पड़ता है। वो सरकार इम्पोर्ट करने से बच जायेगी। आयात होने से बचेगा और अगर आयात होने से हम बचालेगें तो हमारे देश का पैसा बचेगा डॉलर बचेगा, डॉलर बचेगा अगर हमारे देश का, तो कटोरा लेकर भीख माँगने की कहीं जरुरत नहीं पड़ेगी। और इस देश में स्वावलंबन की नीतियाँ फिर से लागू की जा सकेंगी। ऐसे ही कुछ और काम करिए आप, हमारी खेती का एक विदेशीकरण और हो रहा है बहुत सारी हम ऐसी चीजें पैदा करते हैं जिनकी हमारे समाज को कोई जरुरत नहीं हैं। उदाहरण के लिए सोयाबीन, ये जो सोयाबीन की खेती करना भारत के किसानों ने शुरु किया है इसकी भारत के समाज को कोई जरुरत नहीं है, वास्तव में सोयाबीन की जरुरत यूरोप को होती है। यूरोपियन समाज में सोयाबीन की जरुरत होती है। आप पूछेगें क्या जरुरत होती है यूरोप में सोयाबीन की? सबसे ज्यादा जरुरत होती है सोयाबीन की 'खली' यूरोप में जो बनायी जाती है और खिलाई जाती है सुअरों को, डुक्कर जिनको आप कहते हैं। यूरोप में जितने देश हैं उनमें से बहुत सारे देशों में डुक्कर का मांस खाया जाता है। सुअर का मांस खाया जाता है। तो सुअर को मोटा-ताजा बनाने के लिए उसको ज्यादा चर्बी चढाने के लिए, उसको स्वदेशी कृषि Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोयाबीन खिलाया जाता है तो सोयाबीन की जरुरत है डुक्कर को, वहाँ के डुक्कर खाते हैं सोयाबीन, ताकि उनका मांस बढ़े और फिर लोग उनके मांस को खाते हैं। लेकिन वहाँ प्रॉब्लम क्या हुई है। यूरोप के जिन-जिन देशों में सोयाबीन की खेती ज्यादा से ज्यादा करवाई डुक्करों को खिलाने के लिए उन सब देशों की खेती बर्बाद हो गई जमीन खराब हो गई, क्योंकि सोयाबीन की फसल लगातार आप लेते चले जायेंगे तो जमीन के सारे पोषक तत्वों की जो शक्ति होती है वो नष्ट हो जाती है। तो सोयाबीन की खेती जिन-जिन यूरोप के देशों में की गई थी उन सब देशों में खेती सत्यानाश हो गई-जमीन चौपट हो गई-मिट्टी बर्बाद हो गई, तो अब उन देशों ने क्या किया कि अपने देश में सोयाबीन पैदा करना बंद कर दिया। सबसे ज्यादा खेती बर्बाद हुई है सोयाबीन कर-कर के हॉलैण्ड की, तो हॉलैण्ड की सरकार ने क्या फैसला किया कि अब हम सोयाबीन नहीं करेंगे अपने देश में, क्योंकि हमारा खेत बर्बाद होता है तो सोयाबीन वो तो अपने देश में नहीं करते। भारत में ला के उन्होंने पटक दिया और हमारे किसानों को कह रहे हैं कि तुम सोयाबीन पैदा करो। ताकि हमारे खेत बर्बाद हो जायें उनके खेत सुरक्षित बने रहें। और हमारे यहाँ जानते है, ये सोयाबीन जो होता है उसका क्या किया जाता है? जो सोयाबीन पैदा होता है। उसका पूरा तेल निकाल लेते हैं। बची हुई जो खली होती है वो यूरोप में बेच देते हैं। माने उनके डुक्करों के लिए हम अपने खेत बर्बाद कर रहेहैं और किसानों को कैसे बेवकूफ बनाया जा रहा है। कह रहें है बड़ी भारी कैश क्रॉप है ये कैश क्रॉप के चक्कर में अगर आप और दो-पाँच साल फंसे रहे तो मैं आपको चेतावनी दे सकता हूँ गारंटी दे सकता हूँकि आपकी मिट्टी में फिर कुछ नहीं होगा पाँच साल के बाद, इसलिए मेरा आपसे विनम्र निवेदन है कि सोयाबीन की खेती करना तत्काल बंद कर दे। ये सोयाबीन की खेती का पूरे भारत के गाँव-गाँव के किसानों का, गाँव-गाँव के किसानों के द्वारा सोयाबीन की खेती करना ये विदेशीकरण की निशानी है की खेती के विदेशीकरण की निशानी है। ___ एक दूसरी बात और बता दूं कि एक बहुत बड़ा भ्रामक प्रचार पूरी दुनिया में चल रहा है कि सोयाबीन में बहुत बड़ी मात्रा में प्रोटीन होता है। सोयाबीन में जो भी प्रोटीन होता है वो कभी-भी पचता नहीं है आदमी के शरीर में। बिल्कुल किसी काम में नहीं आता। आप जानते हैं, मूंग की दाल में भी बहुत प्रोटीन होता है, उड़द की दाल में भी होता है, तुअर की दाल में होता है, तो मूंग की दाल में,उड़द की दाल में, तुअर की दाल में जो प्रोटीन होता है वो खाने के बाद शरीर में डायजेस्ट हो जाता है और काम में आ जाता है शरीर के। सोयाबीन खाने के बाद जो प्रोटीन निकलता है वो कभी-भी शरीर में काम नहीं आता, कभी-भी डायजेस्ट नहीं होता स्वदेशी कृषि ५ ५ ........................... ....... ............ .. ................... .. - -........... Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बहुत ही जटिल होता है बहुत ही कॉम्लिकेटेड होता है सोयाबीन से निकला हुआ प्रोटीन शरीर के किसी काम का नहीं। तो वो हमारे खाने के काम में भी नहीं आ सकता सोयाबीन, इसलिए मेरा आप से निवेदन है ये जो विदेशीकरण किया है आपने सोयाबीन की खेती कर-कर के, इस विदेशी करण को खत्म करिए और सोयाबीन बंद कर के जो भारतीय समाज में बहुत पहले से चली आ रही फसलें थी उनको ही पैदा करने का काम शुरु करिए। एक और काम करना पड़ेगा हमको विदेशी करण खत्म करने के लिए अपने खेती का कि हम लोगों को आदत पड़ गई है हायब्रिड बीज लगाने की, संकरित बीज लगाने की। आपको मैं जानकारी दे दूँहायब्रिड बीज से जो अनाज आप पैदा कर रहें है, अमेरिका, यूरोप जैसे देशों में उस अनाज को जानवर ही खाते हैं लोग नहीं खाते और हायब्रिड बीज द्वारा पैदा किया गया अनाज बहुत घटिया क्वॉलिटी का माना जाता है। आप हायब्रिड बीज से कुछ भी अनाज पैदा करिए, किसी भी देश में आप इसको बेच नहीं पायेगें, सिर्फ अपने खाने के लिए रख सकते है लेकिन हायब्रिड द्वारा पैदा किया हुआ अनाज दुनियां का कोई भी अमीर देश खरीदता नहीं हैयह सिर्फ बेवकूफी का काम है। यह बड़ी भारी गलत फहमी है आपलोगों के मन में कि हायब्रिड से ही उत्पादन बढ़ता है। ऐसा कुछ भी नहीं है। हमारे अपने जो स्वदेशी बीज थे जो भारतीय बीज थे उनके भी उत्पादन कुछ कम नहीं होते। आज से 200-300 साल पहले एक एकड़ में भारत में धान पैदा होता था 65-70 क्विन्टल। बिना किसी हायब्रिड सीड के। एक लाख किस्म की भारतीय धान की प्रजातियां थी इस देश में। और दक्षिण भारत में मालवार के इलाके में एक एकड़ में धान पैदा होता था 65-70 क्विन्टल 300 साल पहले बिना किसी हायब्रिड बीज के, बिना किसी केमिकल्स फर्टिलाइजर के बिना केमिकल्स पैस्टीसाईड के। तो आप से तीसरा निवेदन मेरा यह है कि आप ये जो विदेशीकरण कर रहें हैं हायब्रिड बीज के नाम पर, संकरित बीज के नाम पर, इसको कम से कम करिए। और स्वदेशी बीजों का चलन बढ़ाये। तो एक तरह की बात हर जगह के किसान हमको ये कहते हैं- कि राजीव भाई आपकी बात समझ में आती है संकरित बीज नहीं इस्तेमाल करना चाहिए, लेकिन आप बताइये हमको स्वदेशी बीज मिलेगा कहाँ से? क्योंकि जिस दुकान पर जाते हैं वहाँ संकरित बीज ही मिलता है जिस कम्पनी के पास जाओ। वो सब संकरित बीज ही बेचते हैं। जिस एजेन्सी पर जाओ वहाँ सिर्फ संकरित बीज ही मिलता है। ये बात सही है कि धीरे-धीरे स्वदेशी बीज का चलन खत्म हुआ हैलेकिन फिर हम लोगों को ऐसा लगा कि ये समस्या तो बहुत बड़ी है, तो इस समस्या का समाधान करने के लिए हम लोगों ने एक रास्ता स्वदेशी कृषि Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खोजा कि जहाँ-जहाँ देश के किसानों के पास स्वदेशी बीज उपलब्ध है वो स्वदेशी बीज लेकर हम बीज से बीज बनाने का एक नया अभियान शुरु कर रहें है। जैसे हमको स्वदेशी बीज मिल गया चावलों का, हमारे उत्तर प्रदेश में जो पहाड़ का इलाका है जैसे चमोली है, गढ़वाल है, पौड़ी है, उत्तर काशी है, टेहरी है, वगैरह-वगैरह, इस इलाके में स्वदेशी चावल का बीज अभी-भी मौजूद है। तो हमारे साथियों ने उसको इकट्ठा करना शुरु किया और वो इकट्ठा कर के उस बीज को हम फिर से उत्पादित कर के दूसरे गाँव के लोगों को वो बीज बाँट रहें है और कह रहे हैं कि तुम भी अपने खेत में लगाओ। बीज पैदा करो किसी तीसरे को बेचो, तीसरे को कहते हैं कि तुम लोग बीज पैदा करो; किसी चौथे को बेचो। इस तरह से बीज से बीज बनाने का अभियान हम लोगों ने शुरु किया है। आप भी यह अभियान चला सकते हैं, अपने गाँव में आप यह देखिए कि इस विदर्भ के इलाके में या यवतमाल जिले में ही मान लीजिये कितने स्वदेशी बीज हैं जो बच गए। अगर एक तरफ से सर्वे करने के लिए निकला जाये, सर्वेक्षण करने के लिए निकला जाए तो जरुर मुझे उम्मीद है कि कुछ ना कुछ गाँव यवतमाल में, विदर्भ में, ऐसे जरुर मिलेगें। कुछ ना कुछ किसान ऐसे जरुर मिलेगें जिन्होंने बीज बचा के रखा है अभी-भी,जिनके पास स्वदेशी बीज हैं। तो वो स्वदेशी बीज किसानों से लेकर हम जगह-जगह, हमारी योजना यह है कि सीड्स फार्म हम बनायें, जैसे मान लीजिये 20 गाँव हैं या 25 गाँव है, 20-25 गाँव का एक समूह बना दिया जाए और उन 20-25 गाँव का समूह बनाकर उन 20-25 गाँव के बीज की जरुरत को पूरा करने के लिए उन 20-25 गाँव के किसानों से जमीनें लेकर उनमें बीज लगाकर फसल पैदा कर के दोबारा से बीज बनाया जाये। उन 20-25 गाँव के किसानों को बाँटा जाए कि भाई आप अपने-अपने खेत में अब यह बीज लगाओ और पैदा करो और दूसरों को बेचों तो संकरित बीज से हम बाहर निकलेगें और स्वदेशी बीज की तरफहमारी पकड़ मजबूत होती चली जायेगी। और इस स्वदेशी बीज को बढ़ाना ही पड़ेगा क्योंकि तत्व उसमें है पोषकता उसमें है ताकत उस स्वदेशी बीज में है, संकरित बीज में कोई ताकत नहीं है। कोई पोषकता भी नहीं है। ऐसे ही भारतीय खेती के विदेशीकरण को दूर करने के लिए एक दो छोटे-छोटे काम हमको और करने पड़ेगें। अब हमारी मिट्टी में दम नहीं रहा। धीरे-धीरे मिट्टी बेकस हो गई, तो दम नहीं रहा इस मिट्टी में, इस मिट्टी को पुनर्जीवित करना होगा और इस मिट्टी को फिर से पुनर्जीवित करने के लिए हमको ऑर्गेनिक फार्मिंग की तरफ ध्यान देना होगा, प्राकृतिक तरीके से खेती करने के बारे में गंभीरता से सोचना पड़ेगा, ताकि मिट्टी की जो जान निकल गई हैवो वापस आ सके। और मुझे भरोसा स्वदेशी कृषि Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ है, और विश्वास है कि दो-तीन साल अगर हम प्राकृतिक खेती का प्रयोग करें तो जरुर आपकी मिट्टी में फिर से ताकत आ जायेगी। तो प्राकृतिक खेती की तरफ गंभीरता से सोचिए। हमारे देश में बहुत बड़े-बड़े लोग हैं जो प्राकृतिक खेती के प्रयोग कर रहें है और जो लोग प्राकृतिक खेती के प्रयोग कर रहें है उनके प्रयोगों से जो परिणाम निकल रहें है वो बहुत ही उत्साहवर्धक है। मेरे कई दोस्त हैं इस देश में, जो प्राकृतिक तरीके से अपने खेत में खेती कर रहे है और उनका उत्पादन बहुत तेजी से बढ़ रहा है और उनके द्वारा पैदा किये गए उत्पादनों में जो मिठास है, जो उनमें क्वॉलिटी है वो किसी भी तरह दूसरे भोजन में मुझे तो नहीं दिखाई देती। मेरे बहुत सारे दोस्त है जो पूरे देश में इस काम में लगे हुए है। तो आप से भी मेरा निवेदन है की गाँव-गाँव में प्राकृतिक खेती कैसे की जाये उसके लिए शिबिर लगाया जाए किसानों के सम्मेलन आयोजित किये जाएं, किसानों की जो संस्थाएँ हैं जगह-जगहपर वो संस्थाएँ किसानों को एकजुट करें, सम्मेलन आयोजित हो वर्कशॉप आयोजित हो किसानों को समझाया जाए कि प्राकृतिक खेती के नतीजे क्या निकलते हैं। जिन लोगों ने प्राकृतिक खेती करके नतीजे पाये हैं और उत्साहवर्धक परिणाम उनके आये हैं उन लोगों को सम्मेलन में बुलाया जाए और उनके माध्यम से चर्चा गाँव-गाँव में चलाई जाए। गाँव-गाँव के किसानों को उसमें शामिल किया जाए। एक रास्ता यह हो सकता है हमारे इस विदेशीकरण से बाहर निकलने का,और विदेशीकरण से बाहर निकलने का एक और गंभीर प्रयास आपको करना पड़ेगा। आज कल हमारे देश में खेती में मोनोकल्चर आ गया है। मोनोकल्चर माने एक जैसे खेती पूरे देश में होने लगी है। अभी कपास करना शुरु किया तो सबने कपास-कपास ही लगा दिया। एक के बाद एक ने कपास लगाना शुरु किया। फिर सोयाबीनलगाना शुरु हुआ तो सबने सोयाबीन-सोयाबीन लगाना चालू किया। एक भेड़ चाल हो गई है पूरे देश में। बगल के किसान ने लगा के देखा तो हम भी लगायेगें। बगल का किसान कुएं में गिरेगा तो क्या आप भी गिरेगें। वो अपना सत्यानाश करेगा तो क्या आप भी करेगें अपना। वो पागल हो गया है; आप भी बनेगें क्या पागल? तो अपनी खेती को इस मोनो कल्चर में से बाहर निकालिए। माने विविधता लाइये उत्पादन में। मैं यह नहीं कहता कि कपास मत करिए। कपास भी करिए। कपास के साथ-साथ उड़द भी करिए। मूंग भी करिए। तुवर भी करिए। गेहूँभी करिए। चावल भी करिए। तमाम विविधता-विविधता वाली फसलें करिए। आपकी मिट्टी की शक्ति बरकरार रहें। आप जानते हैं कि वैज्ञानिक भी इस बात को कहते हैं कि कपास के बाद; कपास लगाने से खेत खत्म होता है। मिट्टी स्वदेशी कृषि Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खत्म होती है। तो कभी-भी कपास के बाद कपासमत लगाइये। कोई दूसरी फसल लगाइये। उसके बाद फिर जरुरत पड़े तो कपास लगाइये। तो ऐसे अपनी खेती में विविधता लाइये। यहविविधता इस तरहसे लाइये कि देश में दलहन का और तिलहन का उत्पादन लगातार बढ़े जो लगातार कम होता जा रहा है। दालों का उत्पादन बहुत कम हो गया है इस देश में। तिलहन का उत्पादन बहुत कम हो गया है। माने जितनी तेजी से हमारी आबादी बढ़ी है। और आबादी की जरूरतें बढ़ी हैं। उतनी तेजी से दालों का उत्पादन नहीं बढ़ा। जितनी तेजी से हमारी आबादी बढ़ी है। उतनी तेजी से हमारे यहाँ तिलहन का उत्पादन नहीं बढ़ा। तो अभी भारत के किसानों को बहुत गंभीरता के साथ इस दिशा में यह सोचना पड़ेगा और इसकी कार्य योजना बनानी पड़ेगी कि हम हमारे देश में दलहन का उत्पादन; दालों का उत्पादन कैसे बढ़ायें? क्योंकि दाल भारतीय भोजन में सबसे आवश्यक तत्व है। दाल खाने से आपके सभी तरह के पोषक तत्व की पूर्ति होती है। सब्जी खाने में बहुत बार पोषक तत्व नहीं मिलते। लेकिन दाल खाने से सभी तरह के पोषक तत्व की पूर्ति हो जाती हैशरीर को। तो दलहन का उत्पादन कैसे बढ़े? दालों का उत्पादन कैसे बढ़े? और तिलहन उत्पादन इसलिए बढ़ाना पड़ेगा; क्योंकि आपको खाद्य तेल चाहिए, खाने के लिए तेल चाहिए, तो दलहन और तिलहन का उत्पादन कैसे ज्यादा से ज्यादा बढ़े? और मोनोकल्चर में से हमारी खेती कैसे बाहर निकले? कपास के अलावा और भी सारी फसलें है उन सारी फसलों का हम हमारी खेती में प्रयोग करें। और उन फसलों को लगायें। - आप जानते हैं बहुत बार किसान यह कहते हैं कि कपास कॅशक्रॉप है। लेकिन कपास के साथ-साथ मूंग भी कॅशक्रॉप है, उड़द भी कॅशक्रॉप है, तुवर की दाल भी कॅशक्रॉप है इसका भी तो पैसा मिलता है। ऐसा थोड़ी है कि इसका पैसा नहीं मिलता। बल्कि कपास का पैसा तीन महीने बाद मिलेगा, छः महीने बाद मिलेगा, कभी सालभर बाद भी मिलेगा। उड़द की दाल कोजाकेले आइये। सबेरे बेचिए शाम को पैसा ले आइये। शक्कर की मिलें बन्द हो जाती है। फिर आपके पैसे लटक जाते है। और जो सोसायटी होती हैं वो बैंक की तरफ हो जाती है। वो पैसा दे नहीं पाती। फिर किसान अपना गन्ना जलाते है खेत में पड़े-पड़े। तो इस तरह से अपनी खेती को विविधता में लाइये। एकरुपता वाली खेती करना बन्द करिए। बदलते चले जाइये यहाँ आप सब किसान हैं। समझदार हैं। आपको ज्ञान है। आपको जानकारियाँ हैं कि कौन सी फसल के बाद कौन सी फसल लेनी चाहिए। जिससे खेती बरकरार ७० ... स्वदेशी कृषि Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बनी रहे। खेती की मिट्टी बरकरार बनी रहे। खेती की उर्वरकता बरकरार बनी रहे। मिट्टी की उत्पादक शक्ति बरकरार बनी रहे। तो यह एक काम करना पड़ेगा। __ ऐसे ही एक काम और करना पड़ेगा, मुझे ऐसा लगता है कि बाहर के देशों से जो आयात कर रहें हैं अनाज; बाहर के देशों से जो बीज आयात कर रहें है, बाहर के देशों से जो खाने का तेल आयात कर रहें हैं, वो पूरी तरह से बन्द करना पड़ेगा। क्योंकि बाहर के देशों से जो बीज आ जाता है उस बीज के साथ-साथ बीमारियां भी आ जाती हैं। मैंने आपको बताया कि काँग्रेसी घास घुस गई है इस देश में और अभी मुश्किल हो गई। पूरे देश के लोगों के लिए बाहर के बीज आते हैं और पचास तरहकी दूसरी चीजें घुस जाती हैं उनके साथ। तो इसलिए बाहर के बीजों की निर्भरता कम करनी पड़ेगी, बाहर के अनाज पर निर्भरता कम करनी पड़ेगी, बाहर के तेलों पर निर्भरता कम करनी पड़ेगी, और कुछ साल के लिए हो सकता है, हमारे देश में कमी हो जाए तो उस कमी को बर्दाश्त करना सीखना पड़ेगा। मैं उस सिद्धांत को मानने वाला हूँ जिसमें लाल बहादुर शास्त्रीजी विश्वास करते थे कि अगर हमारे यहाँ कोई चीज की कमी है तो उस कमी को सहन करना होगा ना कि कटोरा लेकर भीख माँगनी होगी दूसरों से जाकर। हमारे घर में कोई चीज की कमी होती है तो उस कमी को बर्दाश्त करते हैं ऐसा नहीं है कि हर बार पड़ोसी के पास जाते हैं कटोराले के,लाओ भाई हमको यहदे दो। यह नहीं करना पड़ेगा। इससे आत्मसम्मान खत्म होता है, हमारा अपने उपर आत्मविश्वास भी खत्म हो जाता है। यह काम हमको करने पड़ेगें और भारतीय खेती में जो ज्ञान मौजूद रहा है उस ज्ञान का इस्तेमाल हम सब अपने विवेक के अनुसार करेगें। जरूरत पड़ने पर उसमें बदलाव करेगें और हमको एक काम और करना पड़ेगा इस विदेशीकरण की व्यवस्था को समाप्त करने के लिए। भारतीय खेती को फिर से उन्नत बनाने के लिए एक और प्रयोग करना जरुरी है। पूरे देश में बड़े पैमाने पर पेड़ लगाये जाएँ, वृक्ष लगाये जाएँ, वनीकरण का काम बहुत जरुरी है। किसानों की सबसे ज्यादा मदद अगर कोई कर सकता है, तो वो वृक्ष कर सकता है, पेड़ कर सकता है। उसके लिए हमारे देश में वृक्ष आयुर्वेद नाम का पूरा एक शास्त्र है जो कहता है कि कुछ तरह के पेड़ इस देश के किसानों के लिए बहुत ही मददकारी हैं, बहुत ही जरुरी है। हर गाँव में कुछ पेड़ तो अवश्य होने चाहिए, जैसे कड़वे नीम का पेड़ हर गाँव में होना चाहिए। जैसे आमले का पेड़ हर गाँव में होना चाहिए। पीपल का पेड़ हर गाँव में होना ही चाहिए। बरगद का पेड़ हर गाँव में होना ही चाहिए। इमली का पेड़ हर गाँव में होना ही चाहिए। तो हर गाँव में जो होने वाले पेड़ हैं, उनके बारे में जानकारी करें आप लोग। और हर गाँव में इस तरह के पेड़ लगाओ। नीम का पेड़ लगे, नीम स्वदेशी कृषि - ७१ Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ का अभियान पूरे देश में चले । आमले के पेड़ लगे, उसका पूरे देश में अभियान चले । इमली के पेड़ लगे, उसका पूरे देश में अभियान चले। बरगद के पेड़ लगे, पीपल के पेड़ लगे, उसका अभियान पूरे देश में चले । जो पेड़ किसानों के अच्छे मित्र हैं उनकी संख्या में बढ़ोत्तरी हमको करनी ही होगी और यह काम आप अपने से शुरु करें। अपने घर से शुरु करिए । कैसे कर सकते है? मैं बहुत बार लोगों को अपील करता हूँ अपने व्याख्यान में कि हम एक काम कर सकते हैं अपने घर के बच्चों के जन्मदिन पर एक नीम का पेड़ लगा सकते है, अपने घर के किसी बच्चे के जन्मदिन पर आमले का पेड़ लगा सकते है। अपने घर के बच्चे के जन्मदिन पर एक पीपल का पेड़ लगा सकते है । और हर व्यक्ति अपने बच्चे के जन्मदिन पर या अपने जन्मदिन पर एक नीम का पेड़, एक पीपल का पेड़, एक आँवले का पेड़ या एक बरगद का पेड़ लगाना शुरू कर दें। तो इस देश में 98 करोड़ पेड़ हर साल लग सकते है। क्योंकि हमारी आबादी 98 करोड़ की है। अगर 98 करोड़ पेड़ हर साल लगाते है। तो 5-10 साल में इस देश में जंगल खड़ा हो जायेगा। जो जंगल का सत्यानाश किया है अंग्रेजों ने; जिस जंगल का सत्यानाश किया गया 'इंडियन फॉरेस्ट ऍक्ट, के आधार पर और जिन जंगलो का सत्यानाश किया जा रहा है आजादी के पचास साल के बाद; वो जंगल हमको फिर से खड़े करने होंगे। क्योंकि जंगल किसानों को बहुत कुछ देते हैं। वनों से उपज तो मिलती ही है, और लकड़ी भी मिलती है जो खेती किसानों के बहुत काम आती है। तो हमको जंगलों के लगाने का बहुत बड़े पैमाने पर अभियान चलाना होगा । और मुझे लगता है कि पूरे देश के विद्यार्थियों को इस काम में लगाना चाहिए। पूरे देश के स्कूल कॉलेज के विद्यार्थियों को एक शिक्षा बचपन से देनी चाहिए कि हर जन्मदिन पर एक पेड़ लगाओ। तो यह एक संस्कार बन जायेगा इस देश में। और एक व्यक्ति अगर पचास साल भी जिन्दा रहे, तो एक व्यक्ति पचास पेड़ लगा के जायेगा | 98 करोड़ लोग अपनी आयु जब पूरी करेगें, पीढ़ी जब जवान हो कर मरेगी तो हर पीढ़ी कम से कम पचास पेड़ लगा के जायेगी । तो 98 करोड़ गुणा पचास । अर्थात एक-एक पीढ़ी में करोड़ों-करोड़ों पेड़ लगते चले जायेगें। और जंगल बनते चले जायेगें। जिस तरह से जंगलों का सत्यानाश हुआ है। उन जंगलों को फिर से खड़ा करना पड़ेगा । उनको सघन बनाना पड़ेगा। इसका फायदा क्या होगा? जंगल बढ़ते चले जायेगें। पेड़ों की संख्या बढ़ती चली जायेगी। तो मिट्टी का कटाव रुक जायेगा । और मिट्टी का कटाव रुकेगा तो बारिश के समय में यह जो मिट्टी बहकर आती है । और नदियों में चली जाती है। और नदियों की गहराई कम होती चली जाती है। और नदियों की गहराई कम होने से बाढ़ आ जाती है। पानी 1 स्वदेशी कृषि ७२ Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फैल जाता है पूरे इलाके में। तो यह फिर नहीं होगा मिट्टी का कटाव रुकेगा; और मिट्टी का कटाव रुकेगा तो नदियों में मिट्टी आना कम हो जायेगी। सिलटेशन की प्रॉब्लम सॉल्व हो जायेगी। तो बाढ़ की समस्या पर भी काबू पाया जा सकता है। __एक अभियान मुझे और लगता है चलाना पड़ेगा इस पूरे देश में, और वो अभियान क्या होगा? वो अभियान ऐसा होगा कि हमारे देश में पिछले कई सैकड़ों वर्षों से नदियाँ ऐसे ही बहती चली जा रही है। जैसे पहले बहती थी और मैंने बताया की कटाव होने के कारण मिट्टी बहुत जमा हो गई है। मुझे ऐसा लगता है कि पूरे देश के विद्यार्थियों को और देश के किसानों को कमर कस के एक अभियान पूरे देश में चलाना चाहिए कि नदियों की गहराई बढ़ाई जाए। नदियों में जो मिट्टी आकर जमा हो गई है। उस मिट्टी को खींचकर नदियों में से निकाला जाए। और हर नदियों में से करोड़ों-करोड़ों टन मिट्टी निकल आती है। देश में 10 करोड़ नौजवान है। भारत सरकार के आँकड़ो के अनुसार 10 करोड़ विद्यार्थी हैं। और भारत सरकार के आँकड़ो के अनुसार 20 करोड़ बेरोजगार है। तो 20 करोड़ बेरोजगार को अगर इस देश में काम पर लगा दिया जाये कि वो कुछ नहीं दिन भर दो घण्टे, पाँच घण्टे, दस घण्टे मिट्टी निकाले नदियों में से, और मिट्टी निकालकर फिर जमा करें और वो ढेर कहाँ ले जाए? किसानों के खेत में डाल दिया जाए। किसानों के खेत की उपर की जो लेयर है मिट्टी की; वो बहुत उपजाऊ हो जायेगी। दो काम एक साथ हो जायेगें, नदियों की गहराई बढ़जायेगी। वो मिट्टी जो निकलेगी वो गाँव के किसानों के काम आयेगी। और गाँव के खेत पर अगर छः इंच ऊँची एक नई लेयर बिछा दी जाए, जो नदियों की मिट्टी है उसकी लेयर बिछा दी जाए तो बहुत बड़े पैमाने पर खेती की उत्पादकता अपने आप बढ़ जायेगी। क्योंकि अभी जो मिट्टी बेकस हो गई हैआपकी लगातार कैमिकल्स फर्टीलाइजर डालते-डालते, कैमिकल्स पेस्टीसाईड डालते-डालते, उस मिट्टी को लगातार फिर से पूर्ववत् बनाने के लिए यह अभियान बहुत जरुरी होगा। ___ एक तरफ से हमारी नदियों की मिट्टी निकाल दी जाए उनकी गहराई बढ़ा दी जाए, ताकि नदियों में पानी ज्यादा आ जाए और दूसरी तरफ उस मिट्टी को गाँव के खेतों में बिछा दिया जाए। 6 इंच लेयर भी अगर बिछ गई तो उस मिट्टी से जो करोड़ोंटन मिट्टी नदियों में से निकलेगी, तो इस देश की खेती को फिर से हम जिन्दा कर देगें। और यह अभियान बहुत बड़े पैमाने पर चलाना पड़ेगा और यहसामाजिक अभियान होगा। नदियों की गहराई बढ़ेगी, बाढ़ की समस्या हल हो जायेगी और इस देश के किसानों की भूमि की उत्पादकता वापस लौट आयेगी। और किसानों को उसमें पूरे बड़े पैमाने पर मदद करनी पड़ेगी। स्वदेशी कृषि Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक काम और करना होगा। हमको अपनी खेती को विदेशीकरण से बाहर लाने का। हमारे देश में जो पहले गाँव में तालाब की व्यवस्था होती थी, वो व्यवस्था अभी धीरे-धीरे टूट गई। अंग्रेजों ने तालाबों का सत्यानाशकैसे किया? जो तालाब हमारे देश के लोगों ने बनाये थे, हमारे पुरखों ने बनाये थे बड़ी मेहनत से, अंग्रेजों ने उन तालाबों के रख-रखाव पर ध्यान देना ही बन्द कर दिया। उन तालाबों के लिए पैसा देना भी बन्द कर दिया। तालाब की जब टूट-फूट होती थी, उसकी मरम्मत ठीक करना भी बन्द करवा दिया अंग्रेजों ने तो धीरे-धीरे तालाब खत्म होते गए, सुखते चले गए। और अब इस देश में क्या हो रहा है कि तालाब की जो जमीन होती है उसपर बिल्डिंग खड़ी हो जाती है। सरकार उसमें बिल्डिंग खड़ा कर देती है। तालाब का तो सत्यानाश होता ही है और वो जमीन भी चली जाती है। तो इसलिए हमको गाँव में फिर से तालाबों की व्यवस्था खड़ी करनी पड़ेगी। और गाँव-गाँव में तालाबों की व्यवस्था इसलिए खड़ी करनी पड़ेगी। क्योंकि हर गाँव में जो बारिश का पानी है वो बहकर गाँव के बाहर ना जाए। तालाब में एकठ्ठा हो जाए और हर गाँव में अगर एक तालाब बन जाये तो निश्चित रूप से मैं गारंटी से यह कह सकता हूँकि गाँव की जमीन के अन्दर का जो पानी है, जो वॉटर लेवल है, वो अपने आप उपर बढ़ जायेगा। हर गाँव में तालाब हो जाए, हर गाँव में तालाब में पानी इकठ्ठे होने की व्यवस्था हो जाए। तो हर जगह वॉटर लेवल बढ़ जायेगा। हर जगह पानी की सतह उपर आ जायेगी। तो ज्यादा से ज्यादा पानी जमीन के अन्दर इकट्ठा हो जायेगा। इसलिए तालाबों की व्यवस्था को पूरे देश में एक अभियान के तौर पर चलाना होगा। राजस्थान में जिस तरह के खूबसूरत तालाब होते थे। दक्षिण भारत में मालावार के इलाके में, मैसूर के इलाके में जिस तरह के खुबसूरत तालाब होते थे। वैसे ही तालाबों पुनर्निमाण का संकल्प आपको करना पड़ेगा और इसके लिए राष्ट्रीय स्तर पर अभियान चलाना पड़ेगा। सिंचाई की व्यवस्था भी हमारे यहाँ अच्छी रही है। सिंचाई की व्यवस्था का गंभीरता से अध्ययन कर के आज हमको उसमें से यह बात निकालनी पड़ेगी कि सिंचाई की व्यवस्था में क्या आवश्यक बदलाव करने की जरुरत है। मुझे ऐसा लगता है कि अगर केमिकल्स फर्टीलायजर और केमिकल्स पेस्टीसाइड की व्यवस्था को खत्म कर दिया जाए तो ज्यादा पानी की जरूरत अपने आप खत्म हो जायेगी। वॉटर हमको चाहिए नहीं; ज्यादा पानी तो तब चाहिए जब केमिकल्स फर्टीलायजर डालें; पेस्टीसाईड डालें और यह डालना ही हम बन्द कर देगें। गोबर के खाद का इस्तेमाल करेंगे, गौमूत्र का पेस्टीसाइड इस्तेमाल करेगें तो ज्यादा पानी ७४ ................................................ स्वदेशी कृषि Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ की जरुरत हमारी खत्म हो जायेगी, तो फ्लडेड वॉटर की जरुरत नहीं होगी। तो सिंचाई की व्यवस्था को आवश्यक परिमाण में हम बदल लेगें। सन् 1800 के पहले की जो सिंचाई की व्यवस्था थी, उसपर गंभीरता से शोध करना पड़ेगा। सन् 1800 के पहले हमारे देश में तालाबों की जो व्यवस्था थी, उसपर शोध करना पड़ेगा और उस शोध में से ; उस रिसर्च में से जो निकलेगा, उसको फिर से इस्तेमाल कर के उसको फंक्शनल बनाना पड़ेगा, उसको ऑपरेशनल बनाना पड़ेगा। उसको जीवन में उतारना पड़ेगा। और इस बात का हमको ध्यान रखना पड़ेगा कि इस देश में अन्न की उत्पादकता इतनी बढ़े कि कोई भी आदमी भूखा ना रहें, कम से कम कोई जानवर भी भूखा ना रहे। हम इस बात के पूरे समर्थन में है कि उत्पादकता बढ़नी चाहिए, उत्पन्नता बढ़नी चाहिए, लेकिन तरीका क्या होगा उसका; वो महत्वपूर्ण है। इस समय केमिकल्स फर्टीलायजर पेस्टीसाईड वाला तरीका बिलकुल अच्छा नहीं है। और ऑरगैनीक तरीके से (प्राकृतिक तरीके से) अन्न का उत्पादन कैसे बढ़े उस तरीके पर विचार करना होगा और यह उत्पादन इतना बढ़ना चाहिए कि कोई भूखा ना रहें और कोई जानवर भी भूखा ना रहे। और कोई आदमी भूख से मरता है तो यहहमारे लिए शर्म कि ही बात होगी। क्योंकि भारतीय सभ्यता में भारतीय संस्कृति में अगर ऐसी स्थिति आ गई है; जानवर भूखा मरता है, आदमी भूखा मरता है। तो यह शर्म की ही बात होगी। ___ तो इस तरह की व्यवस्थायें हमको इस देश में फिर से करनी पड़ेंगी और अगर हम इस तरह की व्यवस्थाओं को करना शुरु कर देते हैं और इन व्यवस्थाओं को शुरु करने के लिए एक बड़ा अभियान चलाना शुरु कर देते हैं पूरे देश में; तो मुझे पूरा विश्वास है कि एक ना एक दिन भारतीय खेती इस विदेशी करण के चंगुल में से जरुर बाहर निकल आयेगी। एक ना एक दिन भारतीय किसान फिर से अपनी उत्पादकता को हासिल कर सकेगा, एक ना एक दिन किसान फिर उसी समृद्धिको वापस पा सकेगा। जो 200 साल पहले, 300 साल पहले इस देश में होती थी। यह ठीक है कि हम गुलाम हुए अंग्रेजों ने हमारे ऊपर शासन किया, अंग्रेजों ने अत्याचार किया, यह सत्य है कि उन्होंने हमारी व्यवस्थाओं को पूरी तरह से तोड़ दिया, उन्होंने हमारी पूरी व्यवस्थाओं का सत्यानाश कर दिया। लेकिन जो व्यवस्थायें टूट गई अंग्रेजों के आने से, जो व्यवस्थायें टूट गई अंग्रेजों की शासन पद्धति के आने से; भारत में उन व्यवस्थाओं को फिर से खड़ा करना ही होगा और कृषि व्यवस्था उनमें से एक ऐसी व्यवस्था है जिसको अंग्रेजों ने तोड़ा है। जिसको तोड़ने का अंग्रेजों ने इस देश में कर्म किया है। उस व्यवस्था को फिर सेखड़ा करना ही होगा। क्योंकि भारतीय समाज के मूल में, भारत की पूरी संस्कृति के मूल में कृषि कर्म है। और स्वदेशी कृषि Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भारतीय समाज और भारतीय संस्कृति के मूल में जो कृषि कर्म है उसको उन्नत बनाना ही होगा और ऐसी स्थिति में ले जाना होगा कि दूसरे देश गर्व करें। हम गर्व करें और दूसरे देश हमारे उपर इस बात का रश्व करें। उनको इस बात की जलन हो कि भारतीय किसानों ने स्वावलंबी खेती को बनाते हुए किस तरह से अपने जीवन की उच्च ऊँचाईयों तक अपने आपको पहुँचाया है। और खेती से इतने उन्नत तरीके से आगे बढ़ाया है। इस तरह के प्रयोग पूरे देश में करने होंगे। एक तरफशोध का काम चलेगा दूसरी तरफ इमप्लीमेंटेशन का काम चलेगा। एक तरफ शोध का काम चलेगा। दूसरी तरफ वो शोध को आचरण में लाने का काम चलेगा। यह दोनों काम देश में एक साथ चलेगें और पूरी तरह से यह काम समाज आधारित होंगे। सरकारों को सिर्फ इतना करना होगा कि वो इस तरह के काम में कोई अडंगाना डाले, कोई हस्तक्षेप ना करे। भारतीय किसान में यह क्षमता है, भारतीय किसान में यह ताकत है कि वो अपने आपको फिर से खड़ा कर लेगा। भारत की खेती में भी यह क्षमता है। कि वो अपने आपको फिर से खड़ा कर लेगी। लेकिन बस जरुरत इस बात की है। कि सरकारें उसमें हस्तक्षेप ना करें कानून बना कर। और परदेशी कम्पनी को उसमें हस्तक्षेप ना करने दिया जाए गैट करार जैसे सिद्धातों के आधार पर। तो इस तरह की कल्पना हम लोग करते है। गाँव-गाँव के किसानों के बीच जाना चाहते हैं, उनको संगठित करना चाहते हैं, उनको खड़ा करना चाहते हैं, उनको उठाना चाहते हैं, उनको उत्पादकता के उसी स्तर पर फिर से ले जाना चाहते हैं जो 300 साल पहले हमारे देश में कभी होता था। खेती को उन्नत फिर से बनाना चाहते हैं अपने दम पर अपने पैरो पर स्वावलंबी तरीके से जो कभी इस देश में हुआ करती थी। यह हमारा सपना है। अगर आपको भी लगता हो कि यहजो हमारा सपना है वो आपका सपना बन जाए। अगर हमारा सपना आपका सपना बन जाए तो हम सब एक दूसरे के दोस्त हो सकते हैं। और एक बड़ी शक्ति के साथ इस देश में इस अभियान को चला सकते है। इतना ही मैं आप से कहने के लिए आया था। आपने शांति से सुना, बहुत आभार, बहुत शुक्रिया बहुत धन्यवाद। ७६ स्वदेशी कृषि Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - -6 भूमि को स्वस्थ-सशक्त कैसे बनायें तीसरे अध्याय में हमने भूमि के क्षरण और प्रदूषण रोकने के तरीके पढ़े। चौथे अध्याय में भूमि को सशक्त बनाने की बात समझेंगे। भारत में छत्तीस करोड़ एकड़ भूमि में खेती होती है। हमारी आबादी सौ करोड़ से ऊपर जा रही है। एक आदमी के पीछे एक तिहाई एकड़ जमीन आती है। दिनोंदिन आबादी बढ़ती जायेगी और बड़े बांध-तालाब,सड़क, रेल, बड़े उद्योग और आबादी के लिये कई लाख एकड़ जमीन जायेगी। बढ़ती आबादी, घट रही भूमि के बावजूद भुखमरी मिटाकर मनुष्य एवं कृषि उपयोगी पशुओं को संतुलित भोजन मिल सके, इतनी भूमि की शक्ति बढ़ानी है। - कृषि भूमि को सशक्त बनाने के तरीके एक जमाना था जब आदमी कम थे और तुलना में भूमि अधिक थी। तब जमीन का कुछ हिस्सा पड़ती रखकर उसे विश्राम दिया जाता था और दूसरे वर्ष पड़ती जमीन की जुताई करते थे। इस अदल-बदल से जमीन की उर्वरा शक्ति का बचाव होता था। अब यह संभव न होने से हर साल फसल लेते हुए जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ाने का पराक्रम करना है- यह कैसे करेंगे? 1. भूमि का कटाव रोककर उर्वरा मिट्टद्धी और खाद की रक्षा 2. जमीन में नमी बनाये रखने से जीवाणुओं की रक्षा और उनमें बढ़ोत्तरी 3. फसल चक्र में बदलाव 4. संमिश्र फसलें बोना 5. एक साल गहरी जड़ वाली और दूसरे साल उथली जड़वाली फसलें बोना 6. हरित खाद स्वदेशी कृषि ७७ Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 7. बाड़े में मुलायम कचरा मिट्टी हर सप्ताह डालकर गोबर-गोमूत्र का पूरा लाभ लेना 8. खेत में से फसल निकालने पर खाली जगह में हर सप्ताह अदल-बदल करके पशु रखना 9. खर-पतवार आदि से कंपोस्ट खाद बनाना 10. मूत्र में दस गुना पानी मिलाकर उसका छिड़काव फसल पर कम से कम तीन बार करना 11. छाछ, दूध आदि में पानी मिलाकर फसल पर छिड़काव 12. तुरत-फुरत खाद हौदी में गोमूत्र गोबर-गुड़ के पानी से दस दिन में तैयार करना 13. आच्छादन 14. केंचुओं द्वारा खाद 15. गो-सिंग खाद 16. गो-सिंग सिलीका खाद 17. जीवाणु खाद 18. अमृत पानी 19. पंचगव्य 20. हड्डी चूर्ण 21. खली 22. राख 23. आदमी का मलमूत्र 24. गोबरगैस प्लांट स्लरी 25. समुन्दर का फेन 26. नील-हरित शैवाल 27. तालाबों की मिट्टी 28. अग्निहोत्र आदि। किसान को जहाँ जो चीज उपलब्ध होगी उसका उपयोग करके जमीन की शक्ति में निरंतर बढ़ोत्तरी करते जाने का पुरुषार्थ करना है। अपने खेत पर उगाई फसल की बीमारी रोकने की दवाई भी वे बनावें। भूमि को स्वस्थ-सशक्त बनाने के और फसल पर बीमारी न आये ऐसे निरोध कि और बीमारी लगने पर उस पर इलाज करने की चर्चा हम आगे करेंगे। ७८ ..................... स्वदेशी कृषि Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संपूर्ण-सात्विक खाद पान पत्ती, घास-फूस- कपास, अरहर-ज्वार के डंठल, भूस, गोबर, गोमूत्र, हड्डी, खली आदि सेंद्रिय वस्तु से बनाये खाद को सेंद्रिय खाद कहते हैं। खनिज-पेट्रोल आदि से बनाये गये यूरिया-फॉस्फेट-पोटाश आदि खाद रासायनिक खाद के नाम से जाने जाते हैं। सेंद्रिय खाद से फसलों के लिये आवश्यक नत्र, स्फूरद, पलाश इन तीन तत्वों के साथ-साथ तेरह सूक्ष्म द्रव्य भी प्राप्त होते हैं। जबकि रासायनिक खादों में सूक्ष्म द्रव्यों का अभाव होने से उन्हें अलग से डालना पड़ता है। इसी कारण सेंद्रिय खाद संपूर्ण खाद है और सेंद्रिय खाद रासायनिक खाद जैसा नुकसानदेह न होने से सात्विक खाद भी उसे कह सकते हैं। ___ अब यह बात साबित हो चुकी है कि रासायनिक खाद से भूमि दिनोंदिन बंजर बन रही है, वह महंगी भी है। नशा के आदी व्यक्ति को जिस तरह मात्रा बढ़ानी पड़ती हैया अधिक विषैला नशा करने की आवश्यकता होती है। वैसे ही रासायनिक खाद की आदी भूमि भी नशाबाज बनती है। रासायनिक खाद और सेंद्रिय खादः तुलनात्मक अध्ययन 1960 से भारत में रासायनिक खाद के उत्पादन में वृद्धि करने का प्रचार किया गया। प्रारंभ में दुनिया में हर जगह उसके तात्कालिक लाभ दिखे, लेकिन दीर्घकाल के बाद उससे होने वाली हानिने दुनिया को चौंका दिया। इसी से जापान में कहावत बनी 'रासायनिक खाद पिता के लिये फायदेमंद लेकिन संतान के लिये नुकसानदेह हैं। अमेरिका में 23 करोड़ एकड़ भूमि रासायनिक खादों से बंजर हुई है। 1. सेंद्रिय खाद कृषि भूमि एवं फसलों का संतुलित भोजन है रासायनिक खाद जहरीले रासायन हैं। 2. नत्र, स्फूरद और पलाश के साथ-साथ अन्य अत्यावश्यक तेरह सूक्ष्म द्रव्य सेंद्रिय खाद से प्राप्त होते हैं। किसान बेकार बनते हैं। रासायनिक खाद नत्र-स्फूरद-पलाश तक सीमित है और अन्य अत्यावश्यक सूक्ष्म तेरह तत्वों की पूर्ति के लिये कंपनियों से अलग से खनिज-द्रव्य खरीदने पड़ते हैं। 3. सेंद्रिय खाद दिनों दिन भूमि की उर्वरकता को बढ़ाता है। अगली पीढ़ी के लिये भूमि सुरक्षित होती है। रासायनिक खाद से शनैः - शनैः भूमि बंजर होने लगती है जिससे भावी संतान की रोजी-रोटी मारी जाती है। स्वदेशी कृषि Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 4. सेंद्रिय खाद से भूमि को उर्वरा बनाने वाले जीवाणुओं की संख्या बढ़ती है, उनके क्रिया-कलापों से जमीन की जुताई होती है जिससे हवा-पानी-प्रकाश का भूमि में प्रवेश होने से प्रदूषणकारी तत्व मिट जाते हैं। भूमिके तापक्रम-आर्द्रता में संतुलन बना रहता है कृषि भूमि मुलायम-भुरभुरी बनती है।रासायनिक खाद कृषि-मित्र जीवाणुओं की हत्या करते है। भूमि को कठिन-कड़ी बनाते हैं। उसमें क्षार या अम्ल दोष बढ़ाते हैं। 5. सेंद्रिय खाद से कम बारिश हुई तो भी आर्द्रता बनी रहती है।अधिक बारिश हुई तो अतिरिक्त पानी की निकासी करने में सहायक होता है। रासायनिक खाद डालने पर कम बारिश हुई तो फसल सूख जाती है, अधिक बारिश होने पर पानी में घुलकर वह बह जाती है। रासायनिक खाद पर उगाई फसल को पानी की अधिक मात्रा लगती है। 6. सेंद्रिय खाद से भूमि चलनी जैसी सछिद्र बनकर-मिट्टी छोटे-छोटे कणों में बंध जाती है। जिससे हवा से उड़ जाने या पानी से बह जाने पर रोक लगती है। यह गुण रासायनिक खाद में नहीं है। 7. सेंद्रिय खाद लगातार तीन फसलों के लिये काम आती है। रासायनिक खाद केवल एक फसल तक ही सीमित रहती है। 8. सेंद्रिय खाद हम अपने ही गाँव में अपने ही खेत पर खेती के वस्तुओं से और अपने पशुओं के गोबर-गोमूत्रा से बना सकते हैं। रासायनिक खाद बाहर से आने से हम परावलंबी बनते हैं। पैसा किसान के घर से-गाँव से बाहर चले जाने से गाँव गरीब और किसान बेकार बनते हैं। १. लगातार सेंद्रिय खाद इस्तेमाल करने पर फसलों में बीमारियां कम आती हैं, और बीमारियां वनौषधियों से हटाई जा सकती हैं, जबकि रासायनिक खाद बीमारियों को बढ़ाता है और खर्चीली रासायनिक दवाओं के कारण किसान की कमर टूट जाती है। 10. सेंद्रिय खाद बनाने से सफाई होकर गाँव-शहर-स्वच्छ सुंदर दिखते हैं। साथ-साथ बीमारियों पर अकुंश लगता है। रासायनिक खाद से उत्पन्न बीमारियां हटाने के लिये जहरीली रसायनिक दवायें छिड़कने से भूमि-हवा-जल- अनाज प्रदूषित होकर तरह-तरह की बीमारियां बढ़ रही हैं। 11. सेंद्रिय खाद से निर्मित अनाज, साग, सब्जी, फल - मधुर, पुष्टिकर, काफी समय तक ताजगी भरे रहते हैं। उनका संग्रह अकाल में काम ८० स्वदेशी कृषि Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आता है। रासायनिक खाद के उत्पादन बेस्वाद, रोगोत्पादक और तुरन्त सड़ने लगते हैं। इससे अकाल की भीषणता बढ़ती है। 12. सेंद्रिय खाद गोबर-खरपतवार से बनती है, किसान को हर दिन -हर साल निरंतर यह सब अपने ही खेत और पशु से प्राप्त होत हैं।यहअखूट-निरंतर बहने वाला झरना है। रासायनिक खाद जिन खनिजों से प्राप्त की जाती है उन खनिजों के जल्द ही समाप्त होने का इशारा वैज्ञानिकों ने किया है। मतलब रासायनिक खाद खनिज समाप्ति के बाद स्वयं समाप्त होंगे। 13. पर्यावरण के साथ सेंद्रिय खाद का सामंजस्य है। रासायनिक खाद पर्यावरण का संतुलन बिगाड़ते हैं। रासायनिक खाद कारखाने भी प्रदूषण बढ़ाते हैं। 14. देहात के आम आदमी, महिला-पुरुष, बच्चे-बूढ़े-अनपढ़ कोई भी सेंद्रिय खाद बना सकते हैं। इतना सरल है। रासायनिक खाद बनाने के लिये करोड़ों रुपयों की पूँजी, बड़े भारी भरकम सयंत्रों की जरूरत होती है। तज्ञ लोग चाहिए। यह बड़ा जटिल मामला है। 15. सेंद्रिय खाद की ढुलाई अपने ही बैलों द्वारा किसान आसानी से कर • सकते हैं।रासायनिक खाद की ढुलाई के लिये जहाजरानी, रेल आदि इस्तेमाल होते हैं। भारत में यातायात के साधन पर्याप्त नहीं हैं। उन पर अतिरिक्त बोझा ढुलाई का पड़ता है। इन साधनों का इस्तेमाल करने से हवा में प्रदूषण बढ़ता है। पेट्रोल-डीजल भारत में आयात किया जाता है। इससे परकीय चलन कर्जा उठाकर लेना होता है। ब्याज तो चढ़ता ही है, जनहित विरोधी शर्ते विश्व बैंक एवं अन्य वित्तीय संस्थाओं की हम पर लदती हैं। 16. सेंद्रिय खाद हमें स्वावलंबी बनाता है। रासायनिक खाद सेव्यापारी-उद्योगपति, साहूकार, सरकार पर निर्भरता बढ़ती है। रासायनिक महंगा खाद सस्ता दिखाने के लिये इसके उत्पादक कारखानों को तेरह हजार करोड़ रुपयों की सब्सिडी सरकार दे रही है। यानि भारत के हर नागरिक के सिर पर हर साल एक सौ तीस रुपयों का बोझ टैक्स के रूप में पड़ता है। 17. भारत में आठ करोड़ लोगों को काम स्वरोजगार के तहत सेंद्रिय खाद निर्माण से मिलेगा। इससे गाँव की बेकारी-अर्ध बेकारी की समस्या हल होगी। रासायनिक खादों के कारण यह ग्रामीण उद्योग समाप्त हुआ है। स्वदेशी कृषि Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 18. देहात और शहर में उपलब्ध मल-मूत्र - खर-पतवार आदि की एक लाख करोड़ रुपयों की खाद बनेगी । उससे दो लाख करोड़ रुपये का उत्पादन खेती में होगा, भूख - बेकारी मिटेगी, विदेशी कर्जा कटेगा । 19. गाँव की ओर से काम के लिये शहर में हो रहे पलायन थमेंगे और नई नारकीय झुग्गी झोपड़ियां नहीं बनेंगी। शहर में बसे देहात के निवासी अपने गाँव लौटने लगेंगे। बदसूरत बनते जा रहे शहरों की सुरक्षा स्थिति सुधरेगी इसलिये कंपोस्ट खाद हमारे लिये मांगल्य लाने वाला मांगल्य दूत है, भारतीय अर्थव्यवस्था के लिये वरदान है। आम जनता को स्वावलंबी, समर्थ बनाने वाला जीवनदायी पथ है। जबकि सब तरह से बरबाद करने वाली रासायनिक खाद, सर्व विनाशकारी मृत्यु की ओर ले जाने वाला कुमार्ग है। हम संकल्प करें कि हमारे परिवार की महिलाएं जैसे अपने ही घर में परिवार के लिये भोजन पकाती हैं वैसे ही हम किसान भी अपनी भूमि का, फसल का भोजन खाद भी अपने खेत पर पकायेंगे । हमारा मंत्र 'घर - घर में रोटी, खेत-खेत पर खाद ' सेंद्रिय खाद बनाते समय ध्यान रखने की बातें 1. जहाँ खेत हो वहीं पर खाद बनायें। इससे ढोने के अनावश्यक श्रम और समय की बचत होगी । 2. बारिश के पानी का बहाव खाद में न आये ऐसी जगह का चुनाव करें। 3. यथासंभव पेड़ की छांव वाली जगह हो । 4. कचरा विविधप्रजाति का रहा तो खाद में विविध उपयोगी तत्व आयेंगे । 5. कचरा मोटा या अधिक लंबाई वाला हो तो उसके छोटे टुकड़े करें । उसमें कुछ सूखा, कुछ हरा हो तो खाद जल्दी बनेगी । 6. गेहूं या सोयाबीन के जैसा ध्प बैठने वाला कचरा हो तो उसके साथ दूसरा कचरा मिलावें । 7. खाद बनाते समय कचरा बहुत ढीला या सख्त न रहे। हल्का दबाव उस पर डालकर उसे समतल करें । 8. बबूल के बीज या गाजर घास के बीज उसमें न हों। कंकड़, टीन, रबड़, प्लास्टिक के टुकड़े अलग किये जायें। ८२ स्वदेशी कृषि Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 9. कंपोस्ट की क्रिया जल्द शुरू होने के लिये पुरानी अधपकी खाद भी मदद करेगी। जैसे दूध का दही जमाने में दही जामन काम करता है। 10. कंपोस्ट के हौदे के सिर को गोबर - मिट्टी से सील करें । आठ दिन के बाद इसकी जांच करें कि उसका तापमान बढ़ा है या नहीं। इसके लिए एक नुकीली लोहे की सलाख उसमें पांच मिनट गड़ा कर रखें और बाहर निकालकर देखें कि वह गरम हुई या नहीं। वह ठंडी रही तो समझना चाहिए कि कहीं गलती हुई है। फिर से उसे खोलकर नये सिरे से वैज्ञानिक ढंग से उसकी भराई करें । 11. कंपोस्ट की जमीन के ऊपर बनायी हौदी या टंकी या कटघरा बनाते समय उसकी चौड़ाई की बाजू हवा की दिशा में रखें। लंबाई बहने वाली हवा की दिशा में रखेंगे तो गरम हवा की मार से नमी जल्दी सूख जायेगी और बीच-बीच में पानी डालने का काम बढ़ेगा। गरमी के दिनों में दो माह बाद दुबारा पानी का छिड़काव करें। 12. खाद बनने में 105 से 120 दिन लगते हैं। खरीफ की बुवाई के समय और रबी की बुवाई के समय ताजी खाद मिले, ऐसा सालभर में दो बार खाद बनाने की समय सारिणी (टाइम टेबल) बनायें । 13. रवानुमा दाना, सुगंध और सुनहरा रंग या चाय पाउडर जैसा खाद- उत्तम पकने के ये तीन लक्षण हैं। 14. बीस-पचीस फीसदी खाद अधपकी रहती है उसे चलनी से छान लें। अधपकी खाद का अगले समय के लिए खाद बनाने में इस्तेमाल करें। 15. छानकर निकली खाद छांव में रखें। अधिक दिन रखना हो तो नमी बनी रहने के लिए ऊपर थोड़ा पानी छिड़कते जायें। 16. खाद बनाते समय उसमें राख फॉस्पफेट, निंबोली आदि डालें तो गुणवत्ता बढ़ेगी। 17. खाद बनते समय जीवाणु उसमें डालने से खाद कम समय में बनेगी । सेंद्रिय खाद-पद्धतियां 1. नॉडेय इस पद्धति में जमीन के ऊपर आयताकार 12 फीट लंबी - पाँच फीट चौड़ी और तीन फीट ऊंची नव इंच चौड़ी जुड़ाई से हौदी बनाई जाती है। कचरा अधिक मात्रा में उपलब्ध हो तो हौदी की लंबाई आवश्यकतानुसार बढ़ायें । ईंटों की जुड़ाई स्वदेशी कृषि ८३ Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मिट्टी से की जा सकती है। मजबूती के लिये सिर्फ आखिरी रहा सीमेंट में जोड़िये। हौदी का तल फर्श-ईंट पत्थर बिछाकर पक्का करें। हौदी बांधते समय चारों दीवारों में छेद रखें जाते हैं। ईंटों की हर दो रद्दों की जुड़ाई के बाद तीसरे रद्दे की जुड़ाई करते समय हर एक ईंट की जुड़ाई के बाद सात इंच का छेद छोड़कर जुड़ाई करें।इस प्रकार चारों दीवारों में छेद के मध्य में दूसरी लाईन के छेद आयें और दूसरी लाईन के दो छेदों के मध्य में तीसरी लाईन के छेद आयें। हौदी का चित्रा-- 12 फीट हौदी की भराई- 12-5-3'- हौदी भराई के लिये 1400 किलो कचरा, 90 किलो गोबर, 1600 किलो महीन मिट्टी जिसमें पत्थर, कांच, प्लास्टिक आदि न हो और मौसम के अनुसार 1500 से 2000 लीटर पानी। इतनी चीजें इकट्ठा होने पर ही हौदी की भराई करें। अड़तालीस घंटे के भीतर यह काम पूरा करें। भराई की पद्धति हौदी की भराई शुरू करते समय प्रथम नीचे की जमीन (फश) पर और हौदी की अंदर की दीवारों को पानी और गोबर के घोल से गीला करें। इसके बाद छः इंच इतनी ऊंचाई आने तक कचरा सूखा हो तो उसे पूरा भिगो कर हौदी में समतल बिछा देने पर उस पर पाँच किलो गोबर-पानी में मिलाकर वह घोल कचरे पर छिड़क दें। बाद में उस पर वह ढंक जाय इतनी मिट्टी समतल बिछा दें। इस प्रथम परत जैसी ही क्रिया हौदी पूरी भरने तक परत-दर-परत करते जायें। करीब नौ या दस परतों के बाद हौदी भर जायेगी। तब हौदी के ऊपर भी डेढ़ फुट तक इसी क्रम से भराई करें। ऊपर की भराई करते समय ऊपर के हिस्से को झोपड़ीनुमा बनायें। सावधनी- नॉडेप कंपोस्ट पक्व होने में पहली भराई की तारीख से 90 से 120 दिन लगते हैं। हौदी पूरी भरने के बाद उसे गोबर - मिट्टी के तीन इंच गारे से उसकी लिपाई करके उसे सील करें। पंद्रह-बीस दिन बाद कचरा सिकुड़कर नीचे बैठने लगेगा, तब फिर ऊपर की गोबर-मिट्टी की परत हटाकर फिर वहाँ कचरा-गोबरघोल ___ स्वदेशी कृषि Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ डालकर हटाये गये गोबर-मिट्टी के घोल से फिर से बंद करें जिससे हौदी में नमी और गरमी बनी रहे। इस खाद को पकने पर मुलायम कचरा हो तो 105 दिनों के बाद या कड़ा-सूखा कचरा हो तो 120 दिनों के बाद बाहर निकालकर एक इंच में 36 छेद वाले चलनी से छानें। करीब ढाई टन अच्छी खाद छनकर मिलेगी। एक एकड़ भूमि (43590 फिट) के लिये दो हौदी से निकली छनी हुई खाद बीज के साथ बोने से पर्याप्त होगी। छनने के बाद बचा कचरा दुबारा खाद बनाने के लिये काम में लाने से अगली खाद कम समय में बनेगी। 2. सीमेंट-ईट की हौदी का विकल्प सीमेन्ट - ईंट से बनी एक हौदी बनाने का खर्च दो हजार रुपयों तक बैठेगा। जिन्हें यह खर्च करना भारी पड़ता हो वे खेत में-जंगल में उगे वनस्पतियों से - जैसे बेशरम, तुवर, कपास, ज्वार के सूखे पौधे द्वारा कटघरा बनाकर भी उसमें ऊपर बनाये पद्धति से खाद बना सकते हैं। एक साल के भीतर यह कटघरा गल जायेगा तो यही कचरा कंपोस्ट में काम देगा, फिर नया कटघरा बना सकते हैं। बांस, नारियल की टहनियों से भी कटघरा बनाया जा सकता है। 3. अर्ध भूगर्भ हौदी - जहाँ जमीन सख्त हो वहाँ जमीन के भीतर डेढ़ फीट- गड्ढा बनाकर फिर जमीन के ऊपर नाडेप पद्धति जैसी डेढ़ फीट दिवारें खड़ी करें। इसमें आधा खर्च बचेगा और नाडेप पद्धति के अधिकांश लाभ मिलेंगे। जमीन के ऊपर डेढ़ फीट दिवारें बनाते समय गड्ढे के किनारों से आध फीट जगह छोड़कर दिवारें बनायें जिससे वह हौदी गड्ढे में नहीं ढहेगी। 4. बायोडंग पद्धति - इस पद्धति में जमीन के ऊपर नाडेप पद्धति जैसी परत दर परत रचना की जाती है। फिर इस ढेर को काले पॉलिथिन से पूरा ढक देते हैं। पंद्रह बीस दिन बाद पॉलीथीन हटाकर इस ढेर को पानी छिड़ककर फावड़े से पलटी देकर मिलाते हैं। फिर उसका पूर्व जैसा ढेर बनाकर पॉलीथीन से ढंक देते हैं। दो माह में मुलायम खाद तैयार मिलती है। 5. बाड़ा पद्धति जहाँ पशु रखे जाते हैं, उसके छत को औसत से तीन फीट अधिक ऊंचा रखा जाता है। पशु बाँधने की जगह मुलायम कचरा बिछाकर उस पर नाम मात्र महीन मिट्टी छिड़कते हैं। पशुओं का मूत्र वहीं गिरता है। गोबर को उसी जगह फैलाकर । स्वदेशी कृषि .........................................--- --- ......... --------- ....... ८५ Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छोड़ देते हैं और बिखरे हुए कचरे को ठीक करते हैं। एक सप्ताह बाद उसी पर फिर कचरा डाला जाता है। इस तरह लगातार आठ सप्ताह तक यह क्रिया चलती है। ___ बाद में ऊपर की दो परतें हटा कर नीचे की छह परतें अलग से निकालते हैं। उन्हें पानी छिड़क कर छांव में ढककर रखते हैं। एक माह के अंदर बढ़िया खाद तैयार होती है। ऊपर की हटाई गई दो परतें फिर से बाड़े में समतल बिछाकर ऊपर नई परत घास की डालनी रहती है। इस तरह निरंतर नया कचरा डालते रहते हैं। इस पद्धति से उस जगह पशुओं का खून चूसने वाले व अन्य तकलीफ देने वाले जीवाणु पैदा होने से रोकने के लिये समय-समय पर चूने के पानी का घोल छिड़कते हैं। 6. मटके में तुरत फुरत खाद गोबर (किलो में) और मूत्र (लीटर) समसमान दोनों को मिलाकर उसमें दो गुना पानी मिलाकर मटके में घोल तैयार करें और उसमें सौ ग्राम गुड़ का चूरा पानी में घोलकर मिलायें। दस दिनों तक उस मटके के या हौदी-टंकी का मुंह बंद करें। दस दिन बाद इस घोल को बीस गुना पानी मिला कर छोटे पौधों के तनों के चारों ओर आधा इंच मिट्टी खोद कर डाल दें। फलवृक्ष हो तो तने से दूरी पर जड़ों की नुकीली सिरे होते हैं वहाँ गोल चक्कर आधा इंच गहरा एक इंच चौड़ा खोदकर उसमें तीन लीटर घोल डालकर उसे मिट्टी से ढंक दें। पंद्रह दिन में नयी सफेद मूलिओं का गुच्छा दिखेगा। पंद्रह दिन के भीतर पेड़ों-पौधे में ताजगी - नयापन दिखने लगेगा। हर दस दिन में इस तरह आप खाद बना सकते हैं या दस मटके रखकर हर दिन खाद बनाने का चक्र संचालित कर सकते हैं। हाथ से या स्प्रे पंप द्वारा सामने का नोज़ल निकालकर आसानी से पेड़-पौधों को यह खाद दे सकते हैं। कम से कम खर्चे में तुरंत खाद तैयार करने की यह सुलभ विधि है। बगीचे में नाली द्वारा भी यह खाद बहायी जा सकती है या गीली जमीन पर छिड़काव कर सकते हैं। एक किलो गोबर के लिये सौ ग्राम गुड़ का प्रमाण रखें। 7. हरियाली खाद षडरस भोजन मानव की सेहत के लिये आवश्यक माना गया है। फसलों की सभी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये नवधन्य का प्रयोग सफल हुआ है। तीन जाति धान्य जैसे एक दलीय-बाजरा-मक्का- ज्चार आदि। द्विदल धान्य जैसे मूंग-उड़द-मोठ आदि और तीन धान्य-जैसे तिल, सरसों - अलसी आदि इस तरह हर जाति से तीन-तीन प्रकार इकट्ठा करके सम प्रमाण में उन्हें मिलाकर एक एकड़ के लिये दस किलो के हिसाब से फसल थोड़ी बड़ी यानि आधा फीट तक ऊंचा होने पर उसके दो कतारों के बीच छिड़क कर इन बीजों को जमीन में मिला दें। उन में स्वदेशी कृषि Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फूल लगने के पहले इस नवधान्य फसल को काटकर वहीं छोड़ दें या जुताई करके जमीन में मिला दें। यह धीरे-धीरे गलकर खाद की पूर्ति करेगी। जीवाणु और फसल दोनों का पोषण करके भूमि को उर्वर सशक्त बनायेगी। फी एकड़ सौ-सवा सौ रुपया बीज का खर्च आयेगा। 8. अमृत पानी___ एक एकड़ (43560 वर्ग फुट) जमीन की खाद की पूर्ति करने के लिये दस किलो देशी गाय का गोबर, आधा किलो शहद (मधु) के साथ खूब मलने के बाद उसमें दही से निकाला पाव किलो देशी गाय का घी मिलाकर खूब मलिये। इन तीनों के मिश्रण का दो सौ लीटर पानी में घोल तैयार करें। बआई के ठीक पहले गीली जमीन पर इस मिश्रण का छिड़काव एक एकड़ जमीन पर करें। जमीन कमजोर हो तो फिर एक माह बाद फसल के दो कतारों के बीच गीली जमीन पर इस घोल का छिड़काव करें और पानी चला दें। अथवा पानी देते समय इतना घोल पूरे एक एकड़ में फैल जाय, इस हिसाब से धीरे-धीरे पानी की धारा में छोड़ दें।हर फसल में और हर प्रकार के जमीन में यह फायदेमंद साबित हुआ है। इससे भूमि उर्वर बनती है। फसल में मिठास आती है।केंचुए एवं अन्य जीवाणु आकर्षित होते हैं। महाराष्ट्र में सैकड़ों किसानों ने इस पद्धति को अपनाकर गन्ना अंगूर-केले आदि फसलों में अनाज और साग-सब्जी में अत्यधिक उत्पादन लिया 9. केंचुओं द्वारा खाद(1) केंचुए जमीन से प्राप्त पान-पत्ती-अधपकी खाद, गोबर, कीटकों के अवशेष, मुरुम-मिट्टी खाकर गुजारा करते हैं। गोबर-कचरा को पचाकर बचा हिस्सा छोटी गोलीनुमा आकार में विष्ठा के रूप में बाहर आता है। केंचुओं के पेट में चल रही रासायनिक प्रक्रिया के कारण मूलतः सेंद्रिय खाद्य पदार्थों में उपलब्ध स्फूरद, पलाश, कैल्शियम एवं अन्य सूक्ष्म तत्व विष्ठा में मिलते हैं। नत्र की मात्रा सात गुना, स्फूरद 11 गुना और पलाश 13 गुना बढ़कर प्राप्त होते हैं। विटामिन, एंजाइम्स एण्टी बायोटिक और संजीवकों की प्राप्ति यानि सर्वगुणसंपन्न खाद की खदान ही है। (2) किसान के ये दोस्त भूमि के अंदर छोटे-छोटे बिल बनाकर उसे सछिद्र करते हैं जिससे जमीन के अंदर हवा का प्रवेश और पानी का संग्रह होता है और भूमि स्वस्थ रहती है। . . . . . " स्वदेशी कृषि............................... ८७ Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (3) इन बिलों द्वारा पानी का संग्रह भूगर्भ में होने से आवश्यकतानुसार फसल को वह अनायास प्राप्त होता है और सिंचाई में बचत होती है। भूगर्भ में बारिश के अतिरिक्त पानी का संग्रह होता है जिससे भूगर्भ में पानी की सतह ऊपर उठती हैऔर भूगर्भ में स्थित इस पानी में घुले हुए खनिज द्रव्य अनायास फसल को प्राप्त होते हैं। भूमि भुरभुरी होने से फसलों की जड़ें चारों ओर फैलती हुई गहराई तक जाती हैं जिससे वनस्पति में अधिक शाखायें, पत्तियां, फूल, फल निकल आते हैं। वहपान - पत्ती गलता है जिससे केंचुए और अधिक संख्या में बढ़ने लगते हैं और भूमि दिनों दिन अधिक उर्वर होती जाती है। रोगमुक्त , रसीले , चमकीले , टिकाऊ , सुस्वादु , सम आकार वाले और अधिक मात्रा में फल लगते हैं, अनाज में बढ़ोत्तरी होती है। (6) एक ही समय, उसी जगह में आवश्यक पोषकत्व प्राप्त होने से विभिन्न कंपनियों की विभिन्न प्रकार की दवायें या खाद मोल लेने से बचाव होता (5) (7) 200 सालों में प्रकृति जितनी उर्वरा भूमि की परत बना सकती है वह कार्य दस मिली मीटर मोटाई की उर्वरा मिट्टी केंचुए हर साल बनाकर कर देते हैं। (8) खड़ी फसल को नुकसान पहुंचाये बगैर भूगर्भ में दस फीट अंदर प्रवेश करके वहां के पोषक तत्व केंचुए ऊपर लाकर अपने अन्य जीवाणु-श्रृंखला के माध्यम से फसल को उपलब्ध कराते हैं। एक हेक्टेयर में एक टन केंचुए और एक टन जीवाणु पाँच हॉर्स पॉवर ट्रैक्टर जितनी पल्टी जमीन को देते हैं। वायु मंडल में 80 प्रतिशत नाइट्रोजन की मात्रा है, लेकिन फसल स्वयं उसका लाभ नहीं उठा सकती है। ये जीवाणु भूगर्भ में के खनिज और वातावरण के नत्र फसल को प्राप्त करा देने का मुक्तिवाहिनी का काम करते हैं। (9) भूमि की गहराई में हवा का प्रवेश कराके उसका तापमान सुस्थिर रखने का, सामू को रखकर भूमि में क्षार और अम्ल को नियंत्रिात करने का काम करते हैं। वे फसलों को लाभ पहुंचाने वाले जीवाणुओं की संख्या में दस गुना वृद्धि करते हैं। भूमि का कटाव रोकते हैं। . (10) खेत में उचित मात्रा में केंचुओं के निर्मित होने पर और पर्याप्त मात्रा में खरपतवार, पान- पत्ती-घास-फूस जमीन में उपलब्ध रहने पर बाहर से खाद डालने की जरूरत नहीं होगी। एक समय हमारे देश में उपलब्ध गोधन ८८ . स्वदेशी कृषि Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ को देखकर किसान की समृद्धि आंकी जाती थी। अब समय आ रहा है कि खेत में उपलब्ध (प्राप्त) केंचुओं की संख्या किसान की समृद्धि का मापदंड बनेंगे और गायों को खिलाने की जैसी चिंता करनी होती है वैसे ही इन केंचुओं को उचित खाद्य मिल रहा है, यह देखना होगा। केंचुआ पालन-रखरखाव-- देशी-विदेशी प्रकार के केंचुओं का भारत में उपयोग किया जा रहा है। देशी केंचुए जमीन के अंदर सात-आठ फीट गहरा बिल बनाते हैं। मिट्टी-मुरूम खाकर भी गुजारा कर सकते हैं-विदेशी केंचुए जमीन के अंदर आधा फीट तक काम करते हैं गोबर-मुलायम कचरे पर पलते हैं। गोशाला में गायों को जैसे रखा जाता है वैसे केंचुओं का भी पालन करते है। क्योंकि रासायनिक खादों के इस्तेमाल से भूमि के अंदर उनकी तादाद नहीं के बराबर है। प्रथम जमीन के अंदर एक फीट गहरी-दस फीट लंबी ढाई फिट चौड़ी खाई बनाते हैं। उसमें पत्थर-ईंट के छोटे टुकड़े डालकर खाई की गहराई को आध भरा जाता है। बचे छह इंचों में मुलायम खाद, कुछ अधपका खाद डालते है। उसमें 250 ग्राम केंचुए बिखेर देते हैं। बाद में उसके ऊपर मुलायम कचरा,जिसे पंद्रह दिन पहले ही थोड़ा गीला करके रखा जाता है। इसकी एक फीट परत गोबर में मिलाकर डालते हैं। इस बेड को गीले बोरे से ढंक कर रखा जाता है। इस बेड में सदा नमी बनी रखने के लिये पानी का छिड़काव, कीचड़ न हो, इतना करना अत्यावश्यक डाला हुआ सारा कचरा खाकर केंचुए गीले बोरों को चिपकने लगते हैं और नीचे सारे कचरे की जगह काली गोली जो केंचुओं की विष्ठा होती है, दिखाई दे तब खाद बन चुकी ऐसा समझकर पानी छिड़कना बंद करें। और अब उस बेड पर उन गोलियों के तीन ढेर बनायें। जब ढेर पूरा सूख जायेगा तो केंचुए नीचे जमीन में ईट-पत्थर में छिप जायेंगे। इस सूखे ढेर को (खाद) इकट्ठा करें और छांव में रखें। लगातार केंचुआ खाद कैसे बनायेंगे प्रथम खाद निकालने पर उसी बेड पर फिर से अधपका कचरा-गोबर एक फीट ऊंचाई तक बिखेर दें। पानी छिड़कने पर नीचे गये केंचुए फिर ऊपर आकर अपना काम शुरू करेंगे। दस-बारह दिन में यह डाला हुआ गोबरयुक्त कचरा केंचुए खा जायेंगे। तब फिर इसी तरह आधा पका कचरा-गोबर या हरी घास की आधा फीट परत उस पर डालें। जब केंचुए इसको पूरा हजम करेंगे तब वे ऊपर डाले बोरे से चिपक जायेंगे। तब फिर पानी छिड़कना बंद करें। खाद को इसके स्वदेशी कृषि .............................................................................................................. . ८९ Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पहले बताये गये तरीके से इकट्ठा करें। इस तरह खाद बनाने का काम निरंतर जारी रख सकते हैं। बचाव-धूप, बारिश और पक्षियों से बचाने के लिये छत घास-फूस आदि अवश्य होना चाहिये। मेढक, साँप, मुर्गी, चीटियों से भी रक्षा करनी चाहिए। बेड सूख गया तो दीमक आकर केंचुओं पर हमला करते हैं। खाद का उपयोग बीज बोते समय बीजों के साथ इसे बो सकते हैं या अलग से भी दे सकते हैं। प्रचुर मात्रा में नत्र-स्फूरद-पलाश और सूक्ष्म द्रव्य इस खाद में पाये जाते हैं। गोशालाओं में खाद बनाने के लिये केंचुआ खाद बनाना अधिक सुविधाजनक है। 10.छांछ-दूध-गुड़ पानी में मिलाकर अलग से छांछ-दूध-गुड़ का छिड़काव करने से फसल को लाभ होता है, ऐसा किसानों का अनुभव है। इन तीनों को अलग-अलग छिड़कने से लवण-सूक्ष्म द्रव्य प्राप्त होते हैं। 11.गोमूत्र का छिड़काव गोमूत्र खाद-दवा दोनों का काम करता है। गोमूत्र तीन बार फसल केजीवनक्रम में छिड़कने से खाद-सूक्ष्मद्रव्यों की पूर्ति होती है। फसल की प्रथमावस्था में 5 प्रतिशत गोमूत्र पानी में मिलाकर और बाद में 10 प्रतिशत गोमूत्र फसल की बढ़ोत्तरी के समय और 10 प्रतिशत फूलने-फलने के पूर्व छिड़कें। गोमूत्र के रासायनिक संगठनगोमूत्र के मुख्य तत्व निम्न हैं 1. नाइट्रोजन (नत्रजन) 2. सल्फर (गंधक) 3. अमोनिया 4. अमोनिया गैस 5. कॉपर 6. पोटैशियम 7. मैंगनीज 8. यूरिया 9. सॉल्ट 10. आरोग्यकारक अम्ल 11. कैल्शियम 12. जल 13. आयरन-लौह 14. यूरिक एसिड 15. फॉस्पफेट 16. सोडियम 17. कार्बोनिक एसिड 18. विटामिन ‘ए , बी , सी, डी, ई' 19. अन्य मिनरल 20. दूध देती गाय के मूत्र में लेक्टोज 21. एन्जाइम्स 22. हिम्यूरिक एसिड 23. स्वर्ण क्षार। गोमूत्र से आसव, अर्क, बटी बनाकर कई मानवी रोगों का ईलाज होता है। 12.गोबर गैस प्लांट - खाद, जलावन, प्रकाश और ऊर्जा-इन चारों में गोबर गैस प्लांट की उपयोगिता है। जनता यादीनबन्ध, ये दो प्रकार के गैस प्लांट आसान और कम खर्चीले हैं। दो । ९० स्वदेशी कृषि Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घन मीटर के गैस प्लांट के लिये उसके साथ संडास जोड़ा जाय तो पंद्रह हजार खर्च आता है। शासन, बैंक या खादी ग्रामोद्योग बोर्ड उसके लिये पूंजी देते हैं। पाँच पशुओं का दिन भर का गोबर-पचास किलो-दो घन मीटर गैस प्लांट के लिये काफी है। गोबर गैस संयंत्र से प्राप्त स्लरी-उत्तम द्रव खाद है। उसे सीध या सुखाकर फसल को देते हैं। केंचुओं के लिये उत्तम भोजन है। 13.राख-खली-हड्डी राख में पलाश के गुण हैं जिससे फसल हरी भरी होती है। राख छिड़कने से कुछ कीट नष्ट होते हैं। राख छिड़कने से फलों का पोषण होता है। प्याज की फसल में वह विशेष लाभकारी सिद्ध हुई है। खली-अखाद्य खली जैसे निंबोली-करंज-अरंड-महुआ आदि फसल की उत्तम खाद है। हड्डी- हड्डी चूरा - मछली का चूर्ण फलवाले वृक्ष के लिये विशेष फायदेमंद है। इससे स्फूरद तत्व की पूर्ति होती है। 14.समुन्दर का फेन नदी-नालों से समुद्र में वनस्पति के अवशेष, मलमूत्र,खनिज द्रव्य गिरते रहते हैं। उनका नित्य मंथन समुद्र में चलता है समुद्र के नीचे की वनस्पतियाँ, जलचरों के अवशेष भी उसके साथ मिल जाते हैं। ज्वार-भाटा के कारण यह सारा निचोड़-फेन के रूप में समुद्र के किनारों पर जम जाता है। यह उत्तम खाद है। 15.जीवाणु खाद . कडधन्य, द्विदल अनाज और तिलहन फसलों के लिये विभिन्न जीवाणुओं की खाद विशेषतः बीज पर प्रक्रिया करने के लिये और खाद के रूप में इस्तेमाल होती है। जीवाणु खाद-प्रकार नाम किस फसल पर उपयोग 1. रायजेवियम द्विदल जातियों पर चना, अरहर आदि 2. एजोटोबैक्टर एकदल धन, गेहूं, बाजरा आदि 3. एजोस्पाशरियम् गेहूं, गन्ना, जौ, मक्का, आदि 4. नीलहरित शैवाल धन 5. एजोला 6. स्त्रुडोमोनास गेहूँ, मका, धन, आदि स्वदेशी कृषि धन Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । सावधानी क. जीवाणु गरम,शुष्क हवा में मरते हैं। नम और ठंडी जगह इनके पैकेट रखें। ख. कीटनाशक दवाइयां लगे बीजों को न लगायें। ग. कीटनाशक दवाई नलगाई हो तो गुड़ के पानी में मिलाकर बीजों को लगाकर छांव में सुखाकर तुरंत इस्तेमाल करें और जमीन गीली हो तब बोयें। घ. कीटनाशक दवायें बीज को लगाई हों तो उसे न लगाकर होने के पंद्रह दिन बाद जमीन की गरमी कम होने पर खाद के साथ कतार में बोयें या स्प्रे द्वारा पौधे के करीब स्प्रे करें। इससे बीजों की तुलना में तीन गुना जीवाणु यानि तीन पैकेट लगेंगे। 16.पंचगव्य देशी गाय का गोबर-गोमूत्र-दूध-दही-घी, इन पाँचों के मेल को पंचगव्य कहते हैं। बीज संस्कार और भूमि को सशक्त बनाने में यह पंचगव्य मदद करता है। एक एकड़ भूमि के लिये 10 किलो गोबर, 5 लीटर गोमूत्र 2 लीटर दूध, एक लीटर दही, पाव किलो घी-इनकी राबड़ी करें। इसमें से बीजों को लगाने के भर का हिस्सा अलग करके बचे हुए पंचगव्य राबड़ी को दो सौ लीटर पानी में मिलाकर गीली जमीन पर खेत में बिखेर दें। इससे वातावरण शुद्धि होगी और जीवाणुओं को पोषण मिलेगा। 17.अग्निहोत्र द्वारा कृषि क्रांति ___सत्राहवीं सदी से अब तक किये गये प्रयोगों से ज्ञात हुआ है कि पाँच साल का सौ किलोग्राम वजन का पेड़ भूमि से केवल सौ दो सौ ग्राम मिट्टी खींचता है। अन्य सारा वजन हवा-पानी-सूरज की रोशनी से वह प्राप्त करता है। यानि वायुमंडल, पर्यावरण से शक्ति-वजन उसे प्राप्त होता है। स्वभावतः प्रदूषित पर्यावरण से पौधे का विकास रूक जाता है। आज सारा पर्यावरण (हवा-पानी-रोशनी) प्रदूषण है। शुद्ध पर्यावरण में ही पौधे विकसित होंगे। जल-वायु के साथ जमीन भी रासायनिक खाद और जहरीली दवाओं से प्रदूषित हुई है। अग्निहोत्रा द्वारा वातावरण शुद्धि कराके पेड़ों में नई जान डालती है - उत्पादन में वृद्धि होती है। कानपुर विश्वविद्यालय, पूना विश्वविद्यालय, राहूरी कृषि विद्यापीठ में प्रयोग करके और कई जगह के किसानों ने यह सिद्ध किया है। हर किस्म की भूमि और हर तरह की फसलों में यह लाभदायी सिद्ध हुआ है। अनाज भंडारण में भी अग्निहोत्रा संरक्षक साबित हुआ है। यह अंधश्रद्धा का विषय नहीं। वैज्ञानिक सत्य है, आयुर्वेद में इसकी सविस्तार चर्चा आयी है। । ९२ ......... स्वदेशी कृषि Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अग्निहोत्रा किसी भी धर्म-जाति के स्त्री- पुरुष - बाल - वृद्धों द्वारा बारिश कर सकते हैं, कोई बंधन नहीं है । अग्निहोत्र पात्र व साहित्य अग्निहोत्र जिसमें किया जाता है वह पात्र तांबे या मिट्टी के अलावा अन्य किसी धातु या पदार्थ का नहीं होता। इसका निश्चित आकार है- ऊपर का 14.5ग 14. 5 तला 5.25 ग 5.25 तथा ऊंचाई 6.5 सें.मी. । न इससे छोटा न बड़ा । पिरामिड का अर्थ है वह आकार जिसके बीच अग्नि समान ऊर्जा विद्यमान हो । I पिरामिड में एक समय की आहुति देने के लिये गोवंश के 250 ग्राम कंडे, बरगद, पीपल या अवटूंबर की पेन्सिलनुमा आकार की लकड़ी - अग्नि प्रज्ज्वलन के लिये कपूर - दियासलाई, होम के लिये देशी गाय के घी के दो बूंद और दो चुटकी भर अखंड (अक्षत) चावल काफी है । अग्निहोत्र - समय - विधि सूर्योदय और सूर्यास्त के ठीक समय पर आहुति दी जाती है। स्नानादि शुद्धि कार्य निपटा कर सारी पूर्व तैयारी कर के हथेली पर अक्षत चुटकी भर चावल पर गाय के घी के दो बूंद डालकर मलकर सब चावलों में चुपड़ लें। इन चावलों के दो बराबर हिस्से कर दें । आहुतियों में से आधा भाग दूसरे हाथों की पाँचों अंगुलियों से उठा लें और बुलन्द आवाज में बोलें । सूर्योदय के समय-मंत्र- सूर्योदय के समय की पहली आहुति का मंत्र रहेगा । ओम् सूर्याय स्वाहा, इदं सूर्याय इदम् न मम । दूसरी आहुति का मंत्र रहेगा । ओॠम् प्रजापतये स्वाहा, इदं प्रजापतये इदम् न मम । सूर्यास्त समय का मंत्र -- ओऋम् अग्नये स्वाहा (पहली आहुति अग्नि में डालते हुए कहे) इदं अग्नये इदम् न मम ओॠम् प्रजापतये स्वाहा (दूसरी आहुति अग्नि में डालते हुए कहे) इदं प्रजापतये इदम् न मम शाम को अग्निहोत्र विधि समाप्त हुई । अग्नि में आहुति भस्म होने तक बैठे रहें । अग्निहोत्र खेत पर सबेरे-शाम हर रोज करें। यह संभव न हो तो कम से कम पूनम और अमावस के दिन करें । इससे वातावरण शुद्ध होकर अनुकूल वायु और मानसिक भाव सब फैलते हैं। स्वदेशी कृषि ९३ Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अग्निहोत्र में इकट्ठा हुई भस्म संग्रहित करके उसे बीज के साथ मलें या फसल पर छिड़कें। पानी के घोल में यह पूरे खेत में भी, दी जा सकती है। 18. मल्चिंग - आच्छादन -- मल्च किसका कोई भी गलने वाली यानि विघटित होने वाली चीज अर्थात् पान - पत्ती, खरपतवार, फसल लेने के बाद छूटने वाले फसल के अवशेष हिस्से । अगस्त, ग्लिरिसिडिया, आजन, कड़वा नीम, करंज, एंडी आदि पेड़-पौधें की पान - पत्ती इत्यादि से नाइट्रोजन, उड़द, मूंग आदि द्विदल वनस्पति से स्फुरद, बैंगन, मूली, केला जैसे चौड़े पत्ते वाली वनस्पति से पलाश की प्राप्ति होती है । इनके विघटन से तेरह प्रकार के सूक्ष्म द्रव्य भी मिलते हैं। सावधानी मल्च की परत पतली या अधिक मोटी न हो। पतली परत होने से बास्पिभवन पर रोक नहीं लगेगी। तेज धूप से संरक्षण नहीं मिलेगा । मोटी परत डालने से आच्छादन घप्प हो तो नीचे हवा का प्रवेश नहीं होगा और अतिरिक्त पानी की भाप बनने में बाध पड़ेगी। पद्धति - तरीका बगीचे में के फलवाले वृक्ष लताएं, पेड़ों के तने से दो फीट की दूरी पर पेड़ों के चारों ओर आधा फिट गहराई, दो फीट चौड़ी खुदाई की जाये। जिससे पेड़ की सिंचाई उस क्यारी द्वारा होवे। इस क्यारी के ऊपर शुरू में बताये मुताबिक आच्छादन डालें। उस पर हर पंद्रह-बीस दिन के बाद गोबर मिश्रित पानी का घोल छिड़कने से मल्च का रूपांतर चंद दिनों में ह्युमस में हो जायेगा । फिर उन्हीं क्यारियों पर फिर से मल्च करें। इससे प्रचुर मात्रा में केंचुए और जीवाणु बढ़ेंगे और बढ़िया खाद उपलब्ध करायेंगे । और खेत को फिर दूसरी फसल के लिये जुताई करते हैं। इसके बदले कर्नाटक के किसान पत्तों - डंठलों का आच्छादन क्यारियों में करते हैं और तीन-चार बार उसी जगह पुनः फसल लेते हैं। इससे नई जुताई - नये बीज खाद, निंदाई-गुड़ाई, पानी में बचत करके कम श्रम में अधिक लाभ प्राप्त करते हैं। यह अंगार खरपतवार को नहीः किसान के भाग्य को जलाती है पतझड़ के मौसम में या फसल निकालने के बाद के अवशिष्ट को किसान जला देते हैं। इससे जानवरों का चारा जलता है, जिस खरपतवार के खाद द्वारा भूमि को अत्युत्तम भोजन प्राप्त होता उससे वह वंचित रहती है, उपयुक्त जीवाणु स्वदेशी कृषि ९४ Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भी जल जाते हैं। वास्तव में यह अंगार किसान के भाग्य को जलाती है। कहावत है 'पुराना दो, नया लो' जंगल इसी तरह पनपते हैं। सींग खाद नुस्खा 500 जैवगतिकी कृषि पद्धति में उपयोग में आने वाले नुस्खों को 500 से 508 नंबरों से पहचाना जाता है। इसमें नुस्खा 500 (सींग खाद) तथा नुस्खा 501 (सींग सिलिका खाद) अलग से उपयोग में लाये जाते हैं। नुस्खा 502 से 507 को कंपोस्ट नुस्खे कहते हैं। नुस्खा 508 फफूंदरोधी नुस्खा हैं। डा. ओ. एन. सोलंकी और टी. जी. के मेननजी ने विस्तार से निम्न जानकारी दी है। जैवगतिकी पद्धति का नुस्खा 500 सबसे महत्वपूर्ण नुस्खा है जैवगतिकी कृषि पद्धति में सबसे पहले इसी का उपयोग किया जाता है। गोसींग खाद बनने के लिये आवश्यक वस्तुएं हैं गाय के सींग का खोल तथा गाय का गोबर। भारतीय संस्कृति में गाय का महत्वपूर्ण स्थान है। कहा गया है कि गोमय बसते लक्ष्मीय अर्थात् गोबर में लक्ष्मी का वास है। इसी सिद्धांत को आगे बढ़ाते हुए जैवगतिकी पद्धति के प्रणेता रुडॉल्पफ स्टेनरकहते हैं कि गाय का गोबर नक्षत्रीय (Astral) एवं आकाशीय (Ethereal) प्रभावों से युक्त होता है। नक्षत्रीय (Astral) प्रभाव नाइट्रोजन बढ़ाने वाली ताकतों से युक्त हैतथा आकाशीय प्रभाव ऑक्सीजन बढ़ानेवाली ताकतों से युक्त है। इन्हीं शक्तियों के प्रभाव से गोबर का भूमि पर जीवनदायी असर होता है। इन्हीं शक्तियों से गोबर से अकार्बनिक तत्वों को आत्मसात करने की शक्ति पैदा होती है। गोबर को पुराने समय से ही अच्छा खाद माना जाता रहा है। गोबर में जीवों को आकर्षित करने की ताकत है। अधपके गोबर को ध्यान से देखने पर उसमें उपस्थित जीवों से इसे समझा जा सकता है। गाय का चारपेट वाला पाचन संस्थान का इसमें बहुत योग है। गाय के सींग नक्षत्रीय ताकतों (Astral force) को ग्रहण करके उन्हें पाचन संस्थान तक पहुंचाते हैं। इसी वजह से गोबर में जीवनदायिनी शक्ति बहत होती है। मृत गाय के सींग की खोल निकालने के बाद भी उनमें यह शक्ति रहती है। अतः गाय के सींग की खोल गोबर का असर बढ़ाने के लिये उत्तम पात्र है। सींग की खोल की कुछ साल वापरने के बाद खोल पतला होने लगती है जो इस बात का परिचायक है कि सींग में भरे गोबर में उपस्थित जीवाणुओं ने उसका उपयोग खाद की गुणवत्ता सुधारने तथा अपनी संख्या बढ़ाने में किया। जीवाणु कम होकर के ह्यूमस बनाने वाले जीवाणुओं की संख्या अधिक हो जाती है। गोबर गल के सिंग के अलावा अन्य किसी अन्य पात्र में रखकर गाड़ा जाये तो यह प्रक्रिया नहीं होती है। गोबर जैसा गाड़ा था वैसा ही निकलता है। स्वदेशी कृषि Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सींग खाद ऐसे बनायें सींग का चयन--सींग के खोलों को एकत्रा करें। ये खोल मृत गायों के सींग से निकाले जाते हैं। सींग खोल के चयन में ये सावधनियां आवश्यक हैं। (अ) सींग खोल गाय का हो। वह गाय कम से कम एक या दो बार ब्याई हो। (ब) सींग में छेद या दरार न हो। (स) यदि सींग पर रंग किया गया है तो उसे निकाल दें। (द) सींग की जड़ में बने हुए छल्लों से गाय कितनी बार ब्या चुकी है इसका अनुमान लगाया जा सकता है। सींग खोल प्रत्येक गाँव में मृत गायों से प्राप्त किया जाय। (2) गोबर का चयन- ये सींग खोल में भरने के लिये गोबर दुधारु गाय का होना चाहिए। स्वस्थ गाय का गोबर ही प्रयोग में लायें। गाय के पंद्रह दिन पूर्व तक औषधि नहीं दी गई हो तथा हरा चारा खायी गाय का ही गोबर प्रयोग में लायें। सींग खोल में भरने के लिये ताजे गोबर का ही प्रयोग करें। (3) सींग खोल गाड़ने के लिए गड्ढा - अच्छी उपजाऊ जमीन में ही बनाना चाहिए। जमीन में पानी का भराव नहीं होना चाहिए। सींग गाड़ने के लिये 30 से 40 सें.मी. (एक से सवा फुट) गहरा गड्डा खोदना चाहिए। यदि इस स्तर पर मुरम आ जाए तो गड्ढे में जमीन के ऊपर की मिट्टी की परत बिछा दें। सींग की संख्या के अनुसार गड्ढे की लंबाई-चौड़ाई निर्धरित करें। यदि अधिक संख्या में सींग गाड़ रहे हों तो दो मीटर चौड़ा, चार मीटर लंबा तथा 40 सेंटीमीटर गहरा गड्ढा बनाये। सामान्यतः जिस तरह की मिट्टी में सींग खाद बनाया जाता है उसी मिट्टी के गुणों को वह ग्रहण कर लेता है। यदि मिट्टी काली है तो सींग खाद काला दिखेगा, यदि मिट्टी रेतीली हो तो वह सींग खाद भी भूर-भूरा होगा। भले ही खाद का रंग अलग हो, उसका असर एक सा ही रहेगा। (4)खाद बनाने की विधि-- गाय के गोबर को अच्छी तरह मसलकर एक जैसा कर लें। यदि गोबर बहुत कड़ा हो तो थोड़ा सा पानी मिला लें। सींग के खोल में गोबर भरें। आवश्यक होने पर सींग को पत्थर या ईंट पर हल्की सी छपकी दें ताकि गोबर सींग खोल के अंदर तक पहुँच जाये। जब सींग खोलों में गोबर भर जाये तो गड्डे से निकाली हुई मिट्टी में थोड़ा सा पका हुआ गोबर का खाद मिलाएं। यदि मिट्टी सूखी हो तो थोड़ा पानी मिलाकर मिट्टी में नमी पैदा कर लें। नमी इतनी हो कि मिट्टी का गोला बन जाये । ९६ स्वदेशी कृषि Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लेकिन अंगुलियों के बीच से नहीं निकले। सींगों को गड्ढे में उनके नुकीले सिरे ऊपर रख कर जमायें। जब सारे सींग गड्ढे में भर दिये हों तो धीरे-धीरे गड्ढे को मिट्टी से भरें ताकि सींग गिरे नहीं। गड्ढा मिट्टी से भरने के बाद गड्ढे के आस-पास निशान के लिए चिन्ह लगा दें ताकि सींग खाद निकालते समय आसानी रहे । समय-समय पर गड्ढे का निरीक्षण करते रहें। गड्ढे की मिट्टी में नमी बनाये रखें। अगर मिट्टी सूख गई हो तो पानी का छिड़काव कर नमी बनाये रखें। (5) खाद बनाने का समय 11 खाद बनाने के लिए अक्टूबर महीना का समय उत्तम है। भारतीय पंचांग के अनुसार कुवार महिने की नवरात्र में या शरदपूर्णिमा तक सींग खाद बनाने के लिए उत्तम समय है | सींग खाद में चंद्र की शक्तियों को काम करने का समय मिलता है । ठंड के दिन छोटे रहते हैं तथा सूर्य की गर्मी भी कम होती है अतः चंद्रशक्तियों को अपना असर बढ़ाने के लिए काफी समय मिलता है। बायोडायनामिक पंचांग के अनुसार अक्टूबर मास में चंद्र दक्षिणायन हो तो सींग खाद बनाना चाहिए । ( 6 ) सींग खाद निकालने का समय -- सींग की खोलों को सामान्यतः छः माह गड्ढे में रखा जाता है। बोल चाल की भाषा में चैत्र नवरात्रि में (मार्च या अप्रैल मास में) जब चंद्र दक्षिणायन हो तब सींग निकाल कर उन पर लगी हुई मिट्टी साफ कर उन्हें रख लें। एक साफ कागज या अखबार पर एक पत्थर पर सींग को हल्के से टकरायें ताकि अंदर जो खाद बन गया है वह बाहर आ जाये। इस तरह समस्त सींगो से खाद निकाल लें। ( 7 ) खाद का भंडारण -- खाद की मात्रा के अनुसार उसे मिट्टी के घड़े में (मटके में रखें। खाद मटके में भरते वक्त उसमें नमी का ध्यान रखें। एकदम सूखा खाद नहीं भरें । पानी छिड़क कर नर्म कर लें । इस घड़े को किसी ठंडे स्थान पर रखें या ठंडी जमीन में आधा गाड़ दें। समय-समय पर खाद को देखते रहें कि खाद में नमी तो है ? मटके का ढक्कन भी ढीला होना चाहिए कि उसमें से अंदर हवा आ जा सके। इस समय में जीवाणुओं के प्रभाव से सींग में से निकले हुए खाद के डल्ले एक जीव होकर बारीक खाद में परिवर्तित हो जाते हैं। यदि खाद सूख रहा हो तो थोड़े पानी से उसे नम कर लेना चाहिए। पानी बरसात का या ट्यूबवेल का हो। नल का पानी नहीं लें। ( 8 ) उपयोग का समय -- सींग खाद का उपयोग एक फसल पर दो बार किया जाता है। पहला बोनी से एक दिन पहले सायंकाल में किया जाता है। दूसरा जब फसल बीस दिन की हो स्वदेशी कृषि ९७ Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जाये तब किया जाता है। जैसा कि पहले बताया जा चुका है कि सींग खाद में चंद्रमा की शक्तियों का असर है। अतः चंद्रमा की अमृतमय शक्तियों का अधिक लाभ प्राप्त होने के लिए शुक्ल पक्ष में पंचमी से पूर्णिमा के बीच इसका उपयोग करना लाभप्रद होगा। बायोडायनामिक पंचाग देखकर दक्षिणायन चंद्र में भी इसका उपयोग किया जाये। अमावस के आसपास किया गया उपयोग चंद्र बल की कमी से लाभप्रद नहीं होगा। (9) उपयोग विधि-- 30 ग्राम सींगखाद तेरहलीटर पानी में मिलाएं। पानी कुवेंका अथवा ट्यूबवेल का हो, नल का नहीं हो। इस तीस ग्राम सींगखाद को पानी में अच्छी तरह मिलाएं। इस मिश्रण को एक बाल्टी में डाल कर एक लकड़ी के डंडे की मदद से गोल घुमाया जाता है ताकि उसमें भंवर पड़ जाये। एक बार भंवर आने पर फिर पलट दी जाती है। इस तरह सींग खाद व पानी के मिश्रण को एक घंटे तक अवर - नवर घुमाया जाता है। इस मिश्रण को झाडू या ब्रश की मदद से एक एकड़ में छिड़क दिया जाता है। उस मिश्रण का उपयोग एक घंटे में कर लेना चाहिए। ध्यान रहे कि सींग खाद का उपयोग संध्याकाल में किया जाये तथा जमीन में नमी हो। अधिक क्षेत्रफल में सींग खाद का छिड़काव करने के लिए बर्तन जैसी कोठी आदि का प्रयोग घोल बनाने के लिए तथा स्प्रेपंप बिना नोजल का उपयोग छिड़काव के लिए किया जा सकता है। स्प्रेपंप का साफ होना आवश्यक है। उसमें कोई रासायनिक अवशेष नहीं हो। सींग खाद का लाभ-- सींग खाद के दो-तीन साल के नियमित उपयोग से जमीन में गुणात्मक सुधर आ जाते हैं। जमीन में जीवाणुओं की संख्या बढ़ जाती है। केंचुए तथा ह्यूमस बनाने वाले जीवों की संख्या बढ़ जाती है। जमीन भूर-भूरी होने से जड़ेंगहराई तक जाती हैं तथा मिट्टी में नई शक्ति चार गुना बढ़ जाती है। दलहनी फसलों की जड़ों में नोड्यूलस की संख्या बढ़कर जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ती है। सींग सिलिका चूर्ण नुस्खा 501 इस नुस्खे का नाम सींग सिलिका कर नुस्खा नं. 501 है। सींग सिलिका बनाने के लिए आवश्यक है कि रवेदार चकमक पत्थर का (QWARTZCRYSTAL) बहुत ही महीन चूर्ण तथा गाय के सींग के खोल में भरकर बसंत ऋतु के अंत में जमीन में गाड़कर शरद ऋतु में बाहर निकाला जाये अर्थात् पूरे गर्मी के महीनों में जमीन के अंदर रहता है और इस तरह गर्मी के मौसम की तरह काम करने की शक्ति . स्वदेशी कृषि . ९८ Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हमारे पास आ जाती है। सींग सिलिका प्रकाश संश्लेषण क्रिया में वृद्धि करके मजबूत पौधे बनाता है, पौधों की वृद्धि तथा बीज निर्माण क्रिया में गति आती है। इसका मुख्य असर पत्तों पर होता है। इसके लिए आवश्यक है कि पौधों की जड़ों को मजबूत करने वाले नुस्खे 500 का उपयोग पहले किया जाए, तभी उसका पूर्ण लाभ प्राप्त हो सकेगा। चूर्ण बनाने की विधि-- सींग सिलिका चूर्ण बनाने के लिए सर्वप्रथम रवेदार चकमक पत्थर का चयन करें। ध्यान में रहे इस पत्थर में रवेदार अंश का ही उपयोग करें। धूल, मिट्टी व अन्य अशुद्धियों को साफ पानी से धोयें तथा उसे अच्छी तरह सुखा लें। इस चकमक पत्थर को लोहे के खलबते अथवा लोहे के हथौड़े से फोड़-फोड़कर बारीक चूरा करें। इसे बारीक आटा छानने की छननी से छान लें। अब इस चूर्ण को दो कांच के बीच में रखकर पीसें, जिससे कि यह अत्यंत महीन हो जायेगा। जब तक चेहरे पर लगाने जैसा पाऊडर नहीं हो जाये तब तक इसे पीसते रहें। इस महीन चूर्ण को एक थाली में लेकर उसमें वर्षा या कुएंका पानी मिलाकर रोटी के आटे जैसा तैयार कर लें। इसको सींगकेखोल में भरकर घंटे दो घंटे खड़ा रखें, ताकि उसमें का अतिरिक्त पानी ऊपर आ जाये। इस पानी को फेंक दें। इन सींगों के नुस्खा पाँच सौ बनाते वक्त जैसा गाड़ा था, वैसा ही गाड़ दें। इन सींगों को जमीन में गाड़ने का समय वही होता है। जो नुस्खा 500 सींगों के निकालने का होता है। सामान्यतः मार्च माह में चंद्र दक्षिणायन में रहे तब सींग सिलिका चूर्ण बनाने के लिए जमीन में गाड़े। भारतीय पंचाग अनुसार चैत्र के नवरात्रि में इन्हें गाड़ें व कुवार के नवरात्रि में निकालें। एक साफ कागज के ऊपर सींग को हलके से ठोकें तो अंदर से सिलिका चूर्ण बाहर आ जायेगा। इसे धूप में सुखा लें तथा कांच की बरनी में भर लेंव एक खिड़की जिसमें धूप आती हो रखें। नुस्खा 501 को कभी अंधेरे में नही रखें। सींग सिलिका चूर्ण के उपयोग की विधि -- केवल एक ग्राम सींग सीलीका का खाद एक एकड़ के लिए पर्याप्त है। एक ग्राम नुस्खा 501, तेरह लीटर पानी में मिलायें। ध्यान रहे पानी बारिश का अथवा कुएं का ही हो। नुस्खा क्रमांक 500 के अनुसार ही पानी में सीधे व उल्टी भंवर पैदा करें। इस तरह इस मिश्रण को एक घंटे तक घुमायें। इस नुस्खे की बारीक फुहार या धुंध का रूप प्राप्त करने के लिए सबसे छोटे छेद वाला नोजल अपने स्प्रेयर में लगायें। स्प्रेयर को अच्छी तरह धेकर साफ कर लें, फिर उसमें इस मिश्रण को स्वदेशी कृषि Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ डालें। नोजल को आकाश की ओर ऊंचा उठाकर अपने खेत में फसल नुस्खा 501 की फुहार उड़ाएं। नुस्खा 501 में छिड़काव का सर्वोत्तम समय प्रातःकाल का है, जब मंद-मंद हवा चल रही हो। इससे फुहार सब ओर फैल जाएगी। उपयोग का समय-- जैसा कि पहले बताया गया है सींग सिलीका चूर्ण प्रकाश संश्लेषण (फोटोसिंथेसिस) क्रिया में वृद्धि करके मजबूत पौधे बनाता है। अतः जब पौधो में तीन-चार पत्ते आ जाएं तब पहली बार नुस्खा 501 (सींग सिलिका चूर्ण) का छिड़काव करें। जिन पौधे पर फफूंद रोग का आक्रमण अधिक होता हो, उनमें प्रत्येक माह छिड़काव किया जाए जैसे टमाटर, मिर्च आदि। चूंकि यह नुस्खा फास्फोरस के साथ काम करता है, इसलिए बीज एवं फूल बनाने की क्रिया शीघ्र प्रारंभ होती है। इस नुस्खे का छिड़काव पौधे में फफूंद जन्य रोगों से बचाव के लिए वर्षभर किया जा सकता है। इसके छिड़काव का असर वातावरण में गर्मी होने पर असरदार होता है, इसीलिए इसका छिड़काव प्रातःकाल में किया जाता है, ताकि दिन की गर्मी का पूरा-पूरा लाभ मिले। सिलिका के बारीक कण सूर्य प्रकाश में चमकाकर उसका प्रभाव कई गुना बढ़ा देते हैं। अतः गर्मी, उमस तथा सूर्यप्रकाशये तीनों मिलकर इसके असर को कई गुना अधिक बना देते हैं। ___ चंद्रमा पौधे में वृद्धि कारक है उसके असर से पौध बढ़ेंगे, लेकिन वे नरम एवं जल्दी सड़ने वाले होंगे। शनि के असर से पौधे के ढांचे का निर्माण होता है। शनि के असर से पौधे आकार ग्रहण करते हैं तथा वे मजूबत होते हैं। अतः नुस्खा 501 (सींग सिलिका चूर्ण) का श्रेष्ठतम असर प्राप्त करने के लिए इसका उपयोग जब शनि चंद्र आमने-सामने (180 अंश) हो तब करना चाहिए। यह समय कैल्शियम एवं सिलिका प्रक्रियाओं को मजबूती से संतुलित करता है। अतः इस समय किया गया छिड़काव पौधे को कीट रोध एवं मजबूत बनाता है। अतः इस समय नियमित छिड़काव से पाउडरी मिल्डयू, गेस्वा, ब्लाइट आदि रोगों से पौधे का बचाव होता है। नुस्खा 501 के छिड़काव से बीज की गुणवत्ता में सुधार होता है तथा उसे अधिक समय तक रखा जा सकता है। इसके छिड़काव से अंगूरों की मिठास भी बढ़ती है। चारे की भी मिठास बढ़ती है, जिसे पशु चाव से खाते हैं। १०० _ स्वदेशी कृषि Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -7 वनौषधि गत पचास सालों से कीटनाशक, फफूंदनाशक, नींदानाशक के रूप में रासायनिक दवाओं का इस्तेमाल हो रहा है। उसकी - जाँच पड़ताल करके विश्व के आरोग्य संगठन और राष्ट्र संघ के खाद्य एवम् कृषि संगठनों ने सभी दृष्टि से इन्हें घातक पाया है। फिर भी अकेले 1998 में, भारत में 4388 करोड़ रुपयों की रासायनिक दवायें इस्तेमाल की गई। जल, जमीन, हवा, अनाज में ही नहीं माता के दूध में भी इनके जहरीले अंश आ गये। ऐसे विषाक्त वातावरण में सौ साल की कर्ममय जिंदगी हमें कैसे मिल सकती है ? मृत्युपंथ की ओर ले जाने वाली इस खतरनाक परिस्थिति से बचाने के रास्ते हमारे पुरखों के पास थे जिन्हें मानव प्रेमी आधुनिक वैज्ञानिकों ने और प्रशस्त किया है। भूमि माता--बीज पिता भूमि सशक्त हो और स्थानीय बीज शुद्ध हो तो उसमें उगने वाला पौधा निरोगी और पुष्ट होगा जिसे बीमारी लगेगी नहीं, हुई तो अपने आप निकल जायेगी। अन्यथा साधरण ईलाज से दुरुस्त होगी। रासायनिक खाद के कारण प्रदूषित जल-जमीन में वह शक्ति कैसे होगी ? इसीलिए बीमारी की जड़ रासायनिक खाद का बहिष्कार करना चाहिए। स्वास्थ्य दाता नीम और गोमूत्र नीम की जड़, अंतरसाल, पत्ते, फूल, निंबोली,खली, तेल आदि के समुचित उपयोगसे चार सौ प्रकार के हानिकारक कीटकों से रक्षा हो सकती है। ऐसा वैज्ञानिकों स्वदेशी कृषि ......... १०१ Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ का अनुभव है। इस कारण नीम को जगत् वृक्ष का सम्मान प्राप्त हुआ है। नीम में अवरोधक, नियंत्रक गुण है। नुकसानदेह कीटकों के प्रजनन कार्य में रूकावट डालना, उन्हें नपुंसक बनाना, उनका कायान्तरण न होने देना, उनका कवच निर्माण न होना, दीमक का नियंत्रण करना, उपयुक्त कीटकों का बचाव करके-अपनी खली से भूमि को सशक्त बनाने के गुण भी हैं। गोमूत्र में रोग अवरोधक-रोग निवारण और फसलों की पोषक-संजीवक शक्ति है। इन दोनों को मिलाने पर उनकी शक्ति और बढ़ती है। केंचुए भी पोषक सूक्ष्म जीवाणुओं की रक्षा करते हैं। भूमि की शक्ति बढ़ाते है। फसल की कीट तथा रोग प्रतिकारक शक्ति बढ़ाते है। सावधनी से बचाव जमीन की समय पर जुताई, निरोगी बीजों का चुनाव, बीजों पर रोग प्रतिबंधक और शक्तिवर्धक संस्कार, समयानुकूल निंदाई-गुड़ाई फसलचक्र में बदलाव, मिश्रित फसल लेना, फसल का रोगग्रस्त भाग हटाना, कीटभक्षी पक्षियों के लिये फसल में जगह-जगह ठहराव, मुख्य फसल से ध्यान हटाकर अपनी ओर आकर्षित करने वाले गेंदा,लाल अंबाडी जैसे पौधे का बीच-बीच में होना, पक्षियों को आवश्यकतानुसार भगाने के लिये आवश्यक साध्आदि के बारे में हमें जागृत रहना चाहिये। इतनी सावधनी के बाद भी बीमारी आ सकती है। तो कीटकों की आदत, प्रजनन विकास आदि के अनुसार उपाय हम करें। कुछ कीटक तीव गंध से भागते हैं। कुछ कीटक तीखापन सहन नहीं कर पाते कोई कीटक नाजुक होते है। जो सामान्य विष के संपर्क में आते ही नष्ट होते हैं। कुछ खाने पर ही पोट विष से मरते हैं। कुछ केवल छेद करते हैं। फंगस रोधक इलाज जमीन के अंदर से फसलों की जड़ों में रोग फैलाने वाले फंगस होते हैं। ये जड़ों में सड़न पैदा करते हैं पौध के तने को भी काटते हैं। 1. बोनी के पूर्व बरसात आने पर एक एकड़ जमीन पर दस लीटर गोमूत्र का छिड़काव करें। या बीस किलो करंज, नीम-एरंड की खली का जमीन में मिला दें या बीस किलो करंज, नीम-एरंड की खली को जमीन में मिलादें। 2. बब्देरिया की 500 ग्राम पावडर - 500 ग्राम गुड़ के साथ दस लीटर पानी म १०२ स्वदेशी कृषि Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रात में रखें। फिर उसको छानकर 80 लीटर पानी में मिलाकर वह घोल जमीन में छिड़कें। नर्सरी में पौधे तैयार करतसमय भी यह किया करें। 3. नदी किनारे के फसलों पर या गन्ने की गंडेरी पर हुमणी नामक बड़ी इल्ली हमला करती है। पाव किलो रवांड दो लीटर पानी में डेढ़ लीटर होने तक उबालें। फिर पानी के द्वारा उसे बहा दें। 4. फसल को पानी देते समय पानी के नाली पर बारीक छेद वाले डिब्बे में नीम का तेल या हींग का पानी बूंद-बूंद गिरा दें। इसमें बागवानी में लगे पेड़ का जमीन के अंदर से काटने, सड़ाने वाले जीवाणु पर नियंत्रण आयेगा। 5. पाँच किलो चूना तीस लीटर पानी में रातभर भिगोकर उसे बहा दें या गीली जमीन पर छिड़काव करें। 6. धन के खेत में गुड़ाई करते समय आक के पत्ते मिला दें। रतन जोत-एरण्ड जैसे पत्ते वाला पौध (भोगल एरण्ड) इसके पफलों को पीसकर वह पावडर पानी में मिलाकर धन की खेत में तनाच्छेदक कीड़े के लिये बिखेर दें। तम्बाकू, धतूरा, एरंड बीज, गेंदा के उंडल इनको कूटकर पानी में उबालकर खेत में दें। या सिट्रोला तेल पानी में मिलाकर छिड़काव करें या लहसुन, तम्बाकू, मिर्च, हींग को उबाल कर 10 लीटर पानी में 50 मिली लीटर घोल मिलाकर फसल पर तनाच्छेदक कीड़ों का उपद्रव रोकने के लिये छिड़कें। ध्यान मेंतनाच्छेदक कीटों को खाने का काम मेंढक करते हैं उन्हें बचायें-बढ़ायें। इल्लियां और अन्य रोग निवारण दवा तांबे के बर्तन में दस लीटर गोमूत्र में तीन किलो नीम की पिसी हुई पत्ती या एक किलो निंबोली चूर्ण या खली दस दिन रखने के बाद आधा रहने तक उसे उबालें। इस समय उसमें आधा किलो तम्बाकू के उडंल भी उबलने दें। __आधा किलो हरी मिर्च कटकर एक लीटर पानी में रातभर उसे रखें। पाव किलो लहसुन कूटकर उसे आधा लीटर केरोसिन में रातभर रखें। मिर्च और लहसुन को निचोड़कर वह पानी और केरोसिन गोमूत्र द्रावण ठंडा होने पर उसमें मिलायें। बाद में 200 मिली यह द्रावण 15 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रेपंप द्वारा उसका छिड़काव हर प्रकार के इल्लियों पर और अन्य कीट-पतंगों पर कर सकते हैं। यह करीब सार्वभौम इलाज है। 7. स्वदेशी कृषि १०३ Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गोमूत्र 5 प्रतिशत गोमूत्र पानी में मिलाकर हर दस दिन बाद फसल पर निरंतर छिड़कने से रोग आने में प्रतिबंध और रोग पर दवा जैसा उपयोग होता है। कपास रोग नियंत्रण ट्रामकोग्रामा, बॅकान एवम् क्रायसोप नामक परजीवी कीटकों का उपयोग करें। ट्रायको कार्ड - बोने के डेढ़ माह बाद एक हेक्टेयर में डेढ़ लाख अंडे इतने कार्ड कपास के पत्तों पर स्टीच करें। दो बार एक माह के अंतराल से यह किया करें। __प्रथम उपयोग साठ दिन बाद करें। इसमें से पराजीवी कीटक निकलेंगे। मेटॅरिझम पावडर डेढ़ लीटर पानी में 500 ग्राम गुड़ और 500 ग्राम मेटॅरिझम पावडर बीस लीटर पानी में उसे मिला दें और यह द्रावण एक एकड़ फसल पर छिड़कें जिससे कीट नियंत्रण होगा। बाजरे का आटा-- दस दिन पुराना बाजरे का आटा पंद्रह लीटर पानी में हवा बंद डिब्बे में जमीन में या खाद के गड्ढे में गड़ाकर बीस दिन रखें। पंद्रह लीटर पानी में 45 मिली लीटर मिलाकर पंप से फसल पर छिड़काव करने से कीट-पतंग नष्ट होंगे। छांछ- पंद्रह दिन हवा बंद मटके में जमीन में गाड़ने के बाद वह छांछ पानी में खटास आये इतना मिलाकर उसका छिड़काव करने से इल्ली-पतंग पर नियंत्रण पा सकते हैं। इससे मिर्च-टमाटर-बैगन आदि पर का चुर्रामुर्रा या कुकड़ा दूर होता है। भूरा रोग- फुलाव के पहले 10 दिन पुराना बाजरे का आटा चौगुना राख मिलाकर उसे भुरकने से भूरा रोग हटता है। सफेद माक्खे पायरोथोराईड जैसी जहली महंगी दवा ने भी घुटने टेक दिये हैं। इन मक्खियों को भगाने के लिये हवा का रुख देखकर शाम को खरपतवार में नीम की पत्ती डालकर धुआं करें सारा खेत धुएं में डूब जाय। मक्खी भाग जायेगी। जो कुछ अंडे आदि बचेंगे तो दूसरे दिन गुड़ का पानी पत्तों पर चिपकने जैसा बनाकर छिड़कें। उससे वे चिपक जायेंगे। तीन दिन में नष्ट होगी। फसल की श्वसन क्रिया पूर्ववत जारी रखने के लिये -फिर पानी के फब्बारे से पत्ते स्प्रेपंप द्वारा धो दें। । १०४ स्वदेशी कृषि ... ......... ........ ........ ............................................ ................. .. .. Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुपात यह आयुर्वेदिक पद्धति के औषधि से बनाई दवा है जो पौधों की बीमारी से रक्षा और विकास करती है। चिपचिपा द्रव-- फलदार वृक्ष से यह निकलता है और पेड़ सूख जाता है। __ पेड़ के जड़ों के पास क्यारी अरंडी का तेल, उबले तम्बाकू का घोल या पावडर बिखेर दें। तो जड़ों के द्वारा यह दवा पेड़ में पहुंच कर चिपचिपा द्रव स्राव रोकेगी। पेड़ में छेद फलदार पेड़ों में कीट छेद करने से पेड़ सूख जाते हैं। जहाँ छेद दिखे वहाँ तुरन्त उसमें का बुरा निकाल कर कपड़े या कपास को पेट्रोल में भिंगो कर उसे छेद में ढूंस दें। या स्प्रेपंपसे पेट्रोल छेद में छिड़क कर वह छेद-गोबर-गोमूत्र मिट्टी में मिला कर बंद करें। राख कछ कीट-पतंग पतों में छेद करते हैं। राख का छिड़काव करने से सूक्ष्म जीवाणु वहाँ पहुंच नहीं पाते हैं। फलों का पोषण भी होता है। ज्वार में ट्रायगा रोग ज्वार के बीजों के साथ धनया बोने से नियंत्रण होता है। गेहूँ में तांबेरा-गेहूँ के बीज दूध में भिंगो कर छांव में सुखाने के बाद बोने से गेंहुवा रोग का खतरा कम होता है। अग्निहोत्र सारा पर्यावरण ही प्रदूषित हो गया तो फसल के विकास में रोगों के कारण बाध पड़ना अनिवार्य है। खेत में अग्निहोत्र द्वारा वातावरण शुद्धि अनिवार्य है। प्रकाशपाश-- लालटेन, पेट्रोमॅक्स, या बल्ब को तीन तारों में लटककर रात में खेत में रखने पर पतंग, कीटक आकर्षित होंगे। नीचे चौड़े बर्तन में केरोसीन मिश्रित पानी रखने से वेटकराकर बर्तन में गिरेंगे। चिपकाने वाली कागज रखने पर भी नियंत्रण होगा। एक फिट बाय एक फीट टीन के पत्ते को काटकर उसके दोनों बाजुओं पर पीला रंगलगायें। वहसूखने स्वदेशी कृषि १०५ Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पर अंडी का तेल उसपर दोनों ओर लगायें। सफेद माक्खी कीट इसमें चिपक जायेंगे। वह पूरा कीटों से पट जाने पर उसे झोकर फिट अंडी का तेल लगाकर पत्ता , खड़ा करें। एक एकड़ में पाँच जगह पत्ते काफी हैं। प्रकृति निर्मित मित्र-- प्रकृति अपना संतुलन बनाये रखती है। फसल को नुकसान पहुंचाने वाले कीटक प्राणियों का नियमन करने वाले कीटक-प्राणी भी आगे आते हैं - जैसे मेंढक, बतख-बगुले, सांप अन्य पछी-- इनकी हम रक्षा करें। किसान प्रयोगशील बनें गोमूत्र में बेल, महानिम, तुलसी, नीम, सीताफल बेशरम, गाजर गवत की पत्तियां पंद्रह बीस दिन रखने पर उनका दवा जैसा उपयोग होता है। चक्रव्यूह में फंसा किसान रासायनिक खादों के कारण फसल तुरन्त बढ़ने से पौधे नाजुक कमजोर होने से बीमारी का तेज हमला होता है। उसे हटाने के लिये महंगी-रासायनिक दवायें छिड़कने से अनाज विषाक्त होता है। इन दवाओं के आदि बन गये रोगाणु को नष्ट करने के लिये और अधिक विषैली और अधिक महंगी दवाओं का इस्तेमाल करने से मनुष्य में बीमारी और जमीन का स्तर गिरते जाना ऐसा दुष्टचक्र शुरू होता है। परिवार के लिये दवा और फसल के लिये दवा और.खाद आदि खर्चे का बोझ असह्य होने पर स्वयम् किसान जहरीली दवा पीकर आत्महत्या करने पर मजबूर हो रहे हैं। घर में गाय और खेत पर नीम का पेड़ किसान के ये दो मुक्तिदाता हैं। गाय दूध देगी बैल व खाद दवा देगा। नीम का पेड़ हर तरह की दवा के काम आयेगा। इन दोनों की मदद से किसान परिवार रोगमुक्त शतायु बनने के रास्ते पर कदम बढ़ा सकता है। स्वायत्त समृद्ध जिंदगी जी सकता है। कीटनाशक बनाने की कुछ अन्य देशी विधियाँ कपास की खेती के लिये 1) कपास की खेती में लगने वाले कीड़ों के लिये एक किलोग्राम नीम की निम्बोली, सौ ग्राम सोडा (कपड़ा धेनेवाला) और 50 ग्राम लहसुन का रस-तीनों को स्वदेशी कृषि Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आपस में मिलाकर 15 लीटर पानी में मिलाकर फसल पर छिड़काव करना चाहिए। 2) कपास की खेती के लिये 150 किलोग्राम निम्बोली की खली (निम्बोली में से तेल निकालने के बाद बचा हुआ चूरा) प्रति एक हेक्टेयर खेत में दस-पन्द्रह दिन के अन्तर पर छिड़कने से किसी भी तरह का कीड़ा फसल पर नहीं लगता। 3) मूंगफली की खेती में कीटनाशक के रूप में प्रयोग के लिए1.5 किलोग्राम सीताफल के पत्तों की चटनी बनाकर एक लीटर पानी में डालकर एक रात तक रख देना चाहिए। इसके ही साथ 500 ग्राम सूखी (लाल) मिर्च पानी में रात भर के लिए रखकर तथा 2 लीटर पानी में 1 किलोग्राम निम्बोली को पीसकर ऊपर से दो किलोग्राम पानी मिलाकर एक रात रखकर, तीनों द्रवों को 10 लीटर पानी में मिलाकर फसल पर छिड़कना चाहिए। इससे सभी हानिकारक कीट समाप्त हो जाते हैं। यह दवाई बैगन की फसल के ऊपर भी डाली जा सकती है। 4) नफतिया के 500 ग्राम पत्ते 2.5 लीटर पानी में डालकर इतना गरम करें कि पानी आधा रह जाय फिर इस दवाई को 25 लीटर पानी में मिलाकर कपास पर छिड़कें। 5) केतकी के पेड़ के 500 ग्राम पत्ते दो लीटर पानी में इतना गरम करें कि पानी आधा रह जाय फिर इसे 50 लीटर पानी में मिलाकर कपास की फसल पर छिड़कें। ज्वार की फसल के लिये 6) तीन किलोग्राम नीम के पत्ते को पीसकर उसमें 300 ग्राम हल्दी मिलायें। फिर उसमें 5 लीटर गोमूत्र और 5 किलोग्राम गाय गोबर को 20 लीटर पानी में डालकर दो दिन तक रखने के बाद उसे खूब मिलायें और दो सौ लीटर पानी में घोलकर खेती पर छिड़कें, सभी तरह के हानिकारक कीट मर जायेंगे। 7) किसी भी प्रकार की सब्जी के लिये 1 किलोग्राम तम्बाकू को दो लीटर खट्टी छांछ में मिलायें। फिर इस मिश्रण को 15 लीटर पानी में मिला कर और हर 10 दिन के अन्तर पर सब्जियों पर छिड़कें। इससे कीट नहीं लगेंगे। 8) 10 किलोग्राम सूखी निम्बोली को पीसकर पावडर बनायें फिर उसे एक कपड़े में भरकर पोटली बनाकर 500 लीटर पानी में इस पोटली को हाथ से मसलकर रस निकालें। यह किसी भी तरह की फसल के लिये उपयोगी है। स्वदेशी कृषि ___ १०७ Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 9) एक बरतन में 3 लीटर गोमूत्र, 3 किलो गोबर और 3 लीटर पानी मिलाकर इसमें 250 ग्राम पुराना गुड़ मिलायें। इस बरतन को इस तरह बन्द करें कि उसमें हवा न जाय। 8 दिन बाद इस दवा को 200 लीटर पानी में मिलाकर फसल पर छिड़कें। पूरी फसल के दौरान 3-4 बार छिड़क सकते हैं। 10) 100 लीटर गोमूत्र में 7 किलो नीम के पत्ते, 7 किलो आकड़ा के पत्ते और 7 किलो सीताफल के पत्ते मिलाकर 15 दिन तक रखें। फिर 15 दिन बाद इसमें 100 ग्राम लहसुन का अर्क मिलाकर गर्म करें। अब इसमें से आधा लीटर दवा 100 लीटर पानी के अनुपात में मिलाकर फसल पर छिड़कें। यह सभी फसलों पर काम आती है। 11) 3 किलो ग्राम गन्धती के पत्ते 20 लीटर पानी में डालकर गरम करें। इतना गरम करें कि पानी 5 लीटर रह जाय। फिर इसमें से 100 ग्राम दवा लेकर 15 लीटर पानी में मिलायें और फसल पर छिड़कें। यह दवा भी सभी फसलों के लिए उपयोगी है। 12) 3 किलोग्राम रतनजोत के पत्ते 20 लीटर पानी में तब तक उबालें जब तक पानी एक-चौथाई न रह जाय। फिर इसमें 100 मिलीलीटर दवा 15 लीटर पानी में मिलाकर छिड़कें। यह दवा सभी फसलों पर उपयोगी है, लेकिन आम की फसल पर अत्यन्त उपयोगी है। 13) 3 किलोग्राम तम्बाकू पावडर, 250 ग्राम वावडिंग का पावडर, 5 लीटर गोमूत्र, 5 किलोग्राम गोबर को आपस में मिलायें। और 20 लीटर पानी में दो दिन तक रखें। उसके बाद उसे 200 लीटर पानी में मिलाकर फसल पर छिड़कें। यह फलों की खेती पर विशेष असरकारक है। धान की खेती के लिये 14) 1 किलोग्राम रामी के पत्तों का रस निकालकर 10 लीटर पानी में डालें और गरम करें। फिर इस दवा को 100 लीटर पानी में मिलाकर धान की फसल पर छिड़कें। १०८.....................-- ....................... स्वदेशी कृषि Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आग उगलने वाली आवाज मौन हो गई.... राजीव भाई के प्रखर और ओजस्वी वाणी शांत हो गई। उनकी वाणी में स्वदेश के लिए प्रेम और अगाध श्रद्धा थी।..... राजीव भाई के जाने से देश को बहुत बड़ी क्षति हुई है। उनके असमय निधन से राष्ट्र ने जो खोया है उसकी भरपाई कोई नहीं कर सकता।.... देश में अब दूसरा राजीव पैदा नहीं होगा। उनकी एक आवाज़ करोड़ों आवाज़ों के बराबर थी।.... उनके स्वदेशी के स्वप्न को साकार करने के लिए हम सच्चे प्रयास करें। यही उस पुण्यात्मा को सच्ची श्रद्धांजलि होगी। परमपूज्य स्वामी रामदेव जी राजीव भाई का जीवन निरंतर कर्मयोनि का जीवन था। वर्धा से निकलकर हरिद्वार आने पर उनकी यात्रा पूर्ण हो गई थी। भारत स्वाभिमान के लिए उन्होंने जो पृष्ठभूमि बनाई, वह उनके अद्भुद ज्ञान का प्रमाण है। उनके पास जो ज्ञान था। उनकी जो स्मृति थी वह बहुत कम लोगों के पास होती है। पाँच हजार वर्षों का ज्ञान उनके पास था। उनका दिमाग कम्प्यूटर से भी तेज चलता था। उनका आन्दोलन रूकेगा नहीं, ऐसी परमपिता से प्रार्थना। परम श्रद्धेय डॉ. प्रणव पण्ड्या राजीव भाई स्वदेशी ग्राम द्वारा संकल्पित (स्वदेशी शोध केंद्र, सेवाग्राम, वर्धा)) भारत को स्वदेशी और स्वावलंबी बनाने के लिए, तथा राजीव भाई के अधुरे सपनों को पुरा करने के लिए राजीव भाई की स्मृति में सेवाग्राम, वर्धा में 23 एकड़ में एक स्वदेशी शोध केंद्र बनाने की योजना है। अगामी 30.11.2012 को स्वदेशी दिवस के दिन उसकी शुरुवात की जाएगी। आपका सहयोग अपेक्षित है। -स्वदेशी के दर्शन पर आधारित भारत बनाने के लिए जैविक खेती प्रशिक्षण और स्वदेशी बीजों के संरक्षण के लिए स्वदेशी शिक्षा के प्रयोग के लिए गौ संवर्धन और पंचगव्य शोध के लिए स्वदेशी रोजगार उपलब्ध कराने के लिए भारत में स्वदेशी नीतियों को लागु करने के लिए स्वदेशी उद्योगों को बढाने के लिए शोध कार्य परत की पारंपरिक ज्ञान को आम जन के बीच फैलाने के लि मेरा हो मन स्वदेशी, मेरा हो तन स्वदेशी मर जाँऊ तो भी मेरा, होवे कफन स्वदेशी ___ स्वदेशी प्रकाशन