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भारतीय समाज और भारतीय संस्कृति के मूल में जो कृषि कर्म है उसको उन्नत बनाना ही होगा और ऐसी स्थिति में ले जाना होगा कि दूसरे देश गर्व करें। हम गर्व करें और दूसरे देश हमारे उपर इस बात का रश्व करें। उनको इस बात की जलन हो कि भारतीय किसानों ने स्वावलंबी खेती को बनाते हुए किस तरह से अपने जीवन की उच्च ऊँचाईयों तक अपने आपको पहुँचाया है। और खेती से इतने उन्नत तरीके से आगे बढ़ाया है। इस तरह के प्रयोग पूरे देश में करने होंगे।
एक तरफशोध का काम चलेगा दूसरी तरफ इमप्लीमेंटेशन का काम चलेगा। एक तरफ शोध का काम चलेगा। दूसरी तरफ वो शोध को आचरण में लाने का काम चलेगा। यह दोनों काम देश में एक साथ चलेगें और पूरी तरह से यह काम समाज आधारित होंगे। सरकारों को सिर्फ इतना करना होगा कि वो इस तरह के काम में कोई अडंगाना डाले, कोई हस्तक्षेप ना करे। भारतीय किसान में यह क्षमता है, भारतीय किसान में यह ताकत है कि वो अपने आपको फिर से खड़ा कर लेगा। भारत की खेती में भी यह क्षमता है। कि वो अपने आपको फिर से खड़ा कर लेगी। लेकिन बस जरुरत इस बात की है। कि सरकारें उसमें हस्तक्षेप ना करें कानून बना कर। और परदेशी कम्पनी को उसमें हस्तक्षेप ना करने दिया जाए गैट करार जैसे सिद्धातों के आधार पर।
तो इस तरह की कल्पना हम लोग करते है। गाँव-गाँव के किसानों के बीच जाना चाहते हैं, उनको संगठित करना चाहते हैं, उनको खड़ा करना चाहते हैं, उनको उठाना चाहते हैं, उनको उत्पादकता के उसी स्तर पर फिर से ले जाना चाहते हैं जो 300 साल पहले हमारे देश में कभी होता था। खेती को उन्नत फिर से बनाना चाहते हैं अपने दम पर अपने पैरो पर स्वावलंबी तरीके से जो कभी इस देश में हुआ करती थी। यह हमारा सपना है। अगर आपको भी लगता हो कि यहजो हमारा सपना है वो आपका सपना बन जाए। अगर हमारा सपना आपका सपना बन जाए तो हम सब एक दूसरे के दोस्त हो सकते हैं। और एक बड़ी शक्ति के साथ इस देश में इस अभियान को चला सकते है। इतना ही मैं आप से कहने के लिए आया था। आपने शांति से सुना, बहुत आभार, बहुत शुक्रिया बहुत धन्यवाद।
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स्वदेशी कृषि