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की जरुरत हमारी खत्म हो जायेगी, तो फ्लडेड वॉटर की जरुरत नहीं होगी। तो सिंचाई की व्यवस्था को आवश्यक परिमाण में हम बदल लेगें।
सन् 1800 के पहले की जो सिंचाई की व्यवस्था थी, उसपर गंभीरता से शोध करना पड़ेगा। सन् 1800 के पहले हमारे देश में तालाबों की जो व्यवस्था थी, उसपर शोध करना पड़ेगा और उस शोध में से ; उस रिसर्च में से जो निकलेगा, उसको फिर से इस्तेमाल कर के उसको फंक्शनल बनाना पड़ेगा, उसको ऑपरेशनल बनाना पड़ेगा। उसको जीवन में उतारना पड़ेगा। और इस बात का हमको ध्यान रखना पड़ेगा कि इस देश में अन्न की उत्पादकता इतनी बढ़े कि कोई भी आदमी भूखा ना रहें, कम से कम कोई जानवर भी भूखा ना रहे। हम इस बात के पूरे समर्थन में है कि उत्पादकता बढ़नी चाहिए, उत्पन्नता बढ़नी चाहिए, लेकिन तरीका क्या होगा उसका; वो महत्वपूर्ण है। इस समय केमिकल्स फर्टीलायजर पेस्टीसाईड वाला तरीका बिलकुल अच्छा नहीं है। और ऑरगैनीक तरीके से (प्राकृतिक तरीके से) अन्न का उत्पादन कैसे बढ़े उस तरीके पर विचार करना होगा और यह उत्पादन इतना बढ़ना चाहिए कि कोई भूखा ना रहें और कोई जानवर भी भूखा ना रहे।
और कोई आदमी भूख से मरता है तो यहहमारे लिए शर्म कि ही बात होगी। क्योंकि भारतीय सभ्यता में भारतीय संस्कृति में अगर ऐसी स्थिति आ गई है; जानवर भूखा मरता है, आदमी भूखा मरता है। तो यह शर्म की ही बात होगी। ___ तो इस तरह की व्यवस्थायें हमको इस देश में फिर से करनी पड़ेंगी और अगर हम इस तरह की व्यवस्थाओं को करना शुरु कर देते हैं और इन व्यवस्थाओं को शुरु करने के लिए एक बड़ा अभियान चलाना शुरु कर देते हैं पूरे देश में; तो मुझे पूरा विश्वास है कि एक ना एक दिन भारतीय खेती इस विदेशी करण के चंगुल में से जरुर बाहर निकल आयेगी। एक ना एक दिन भारतीय किसान फिर से अपनी उत्पादकता को हासिल कर सकेगा, एक ना एक दिन किसान फिर उसी समृद्धिको वापस पा सकेगा। जो 200 साल पहले, 300 साल पहले इस देश में होती थी।
यह ठीक है कि हम गुलाम हुए अंग्रेजों ने हमारे ऊपर शासन किया, अंग्रेजों ने अत्याचार किया, यह सत्य है कि उन्होंने हमारी व्यवस्थाओं को पूरी तरह से तोड़ दिया, उन्होंने हमारी पूरी व्यवस्थाओं का सत्यानाश कर दिया। लेकिन जो व्यवस्थायें टूट गई अंग्रेजों के आने से, जो व्यवस्थायें टूट गई अंग्रेजों की शासन पद्धति के आने से; भारत में उन व्यवस्थाओं को फिर से खड़ा करना ही होगा और कृषि व्यवस्था उनमें से एक ऐसी व्यवस्था है जिसको अंग्रेजों ने तोड़ा है। जिसको तोड़ने का अंग्रेजों ने इस देश में कर्म किया है। उस व्यवस्था को फिर सेखड़ा करना ही होगा। क्योंकि भारतीय समाज के मूल में, भारत की पूरी संस्कृति के मूल में कृषि कर्म है। और स्वदेशी कृषि