________________
।
सावधानी क. जीवाणु गरम,शुष्क हवा में मरते हैं। नम और ठंडी जगह इनके पैकेट रखें। ख. कीटनाशक दवाइयां लगे बीजों को न लगायें। ग. कीटनाशक दवाई नलगाई हो तो गुड़ के पानी में मिलाकर बीजों को लगाकर
छांव में सुखाकर तुरंत इस्तेमाल करें और जमीन गीली हो तब बोयें। घ. कीटनाशक दवायें बीज को लगाई हों तो उसे न लगाकर होने के पंद्रह दिन
बाद जमीन की गरमी कम होने पर खाद के साथ कतार में बोयें या स्प्रे द्वारा पौधे के करीब स्प्रे करें। इससे बीजों की तुलना में तीन गुना जीवाणु यानि
तीन पैकेट लगेंगे। 16.पंचगव्य
देशी गाय का गोबर-गोमूत्र-दूध-दही-घी, इन पाँचों के मेल को पंचगव्य कहते हैं। बीज संस्कार और भूमि को सशक्त बनाने में यह पंचगव्य मदद करता है।
एक एकड़ भूमि के लिये 10 किलो गोबर, 5 लीटर गोमूत्र 2 लीटर दूध, एक लीटर दही, पाव किलो घी-इनकी राबड़ी करें। इसमें से बीजों को लगाने के भर का हिस्सा अलग करके बचे हुए पंचगव्य राबड़ी को दो सौ लीटर पानी में मिलाकर गीली जमीन पर खेत में बिखेर दें। इससे वातावरण शुद्धि होगी और जीवाणुओं को पोषण मिलेगा। 17.अग्निहोत्र द्वारा कृषि क्रांति ___सत्राहवीं सदी से अब तक किये गये प्रयोगों से ज्ञात हुआ है कि पाँच साल का सौ किलोग्राम वजन का पेड़ भूमि से केवल सौ दो सौ ग्राम मिट्टी खींचता है। अन्य सारा वजन हवा-पानी-सूरज की रोशनी से वह प्राप्त करता है। यानि वायुमंडल, पर्यावरण से शक्ति-वजन उसे प्राप्त होता है।
स्वभावतः प्रदूषित पर्यावरण से पौधे का विकास रूक जाता है। आज सारा पर्यावरण (हवा-पानी-रोशनी) प्रदूषण है। शुद्ध पर्यावरण में ही पौधे विकसित होंगे। जल-वायु के साथ जमीन भी रासायनिक खाद और जहरीली दवाओं से प्रदूषित हुई है। अग्निहोत्रा द्वारा वातावरण शुद्धि कराके पेड़ों में नई जान डालती है - उत्पादन में वृद्धि होती है। कानपुर विश्वविद्यालय, पूना विश्वविद्यालय, राहूरी कृषि विद्यापीठ में प्रयोग करके और कई जगह के किसानों ने यह सिद्ध किया है। हर किस्म की भूमि और हर तरह की फसलों में यह लाभदायी सिद्ध हुआ है। अनाज भंडारण में भी अग्निहोत्रा संरक्षक साबित हुआ है। यह अंधश्रद्धा का विषय नहीं।
वैज्ञानिक सत्य है, आयुर्वेद में इसकी सविस्तार चर्चा आयी है। । ९२ .........
स्वदेशी कृषि