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अग्निहोत्रा किसी भी धर्म-जाति के स्त्री- पुरुष - बाल - वृद्धों द्वारा बारिश कर सकते हैं, कोई बंधन नहीं है ।
अग्निहोत्र पात्र व साहित्य
अग्निहोत्र जिसमें किया जाता है वह पात्र तांबे या मिट्टी के अलावा अन्य किसी धातु या पदार्थ का नहीं होता। इसका निश्चित आकार है- ऊपर का 14.5ग 14. 5 तला 5.25 ग 5.25 तथा ऊंचाई 6.5 सें.मी. । न इससे छोटा न बड़ा । पिरामिड का अर्थ है वह आकार जिसके बीच अग्नि समान ऊर्जा विद्यमान हो ।
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पिरामिड में एक समय की आहुति देने के लिये गोवंश के 250 ग्राम कंडे, बरगद, पीपल या अवटूंबर की पेन्सिलनुमा आकार की लकड़ी - अग्नि प्रज्ज्वलन के लिये कपूर - दियासलाई, होम के लिये देशी गाय के घी के दो बूंद और दो चुटकी भर अखंड (अक्षत) चावल काफी है । अग्निहोत्र - समय - विधि
सूर्योदय और सूर्यास्त के ठीक समय पर आहुति दी जाती है। स्नानादि शुद्धि कार्य निपटा कर सारी पूर्व तैयारी कर के हथेली पर अक्षत चुटकी भर चावल पर गाय के घी के दो बूंद डालकर मलकर सब चावलों में चुपड़ लें। इन चावलों के दो बराबर हिस्से कर दें । आहुतियों में से आधा भाग दूसरे हाथों की पाँचों अंगुलियों से उठा लें और बुलन्द आवाज में बोलें ।
सूर्योदय के समय-मंत्र-
सूर्योदय के समय की पहली आहुति का मंत्र रहेगा । ओम् सूर्याय स्वाहा, इदं सूर्याय इदम् न मम ।
दूसरी आहुति का मंत्र रहेगा ।
ओॠम् प्रजापतये स्वाहा, इदं प्रजापतये इदम् न मम । सूर्यास्त समय का मंत्र --
ओऋम् अग्नये स्वाहा (पहली आहुति अग्नि में डालते हुए कहे)
इदं अग्नये इदम् न मम
ओॠम् प्रजापतये स्वाहा (दूसरी आहुति अग्नि में डालते हुए कहे)
इदं प्रजापतये इदम् न मम
शाम को अग्निहोत्र विधि समाप्त हुई ।
अग्नि में आहुति भस्म होने तक बैठे रहें । अग्निहोत्र खेत पर सबेरे-शाम हर रोज करें।
यह संभव न हो तो कम से कम पूनम और अमावस के दिन करें । इससे वातावरण शुद्ध होकर अनुकूल वायु और मानसिक भाव सब फैलते हैं।
स्वदेशी कृषि
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