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दाम देकर जमीन सरकार के नाम लिखवा ली जायेगी। जिस तरह का अत्याचारी कानून अंग्रेज चलाते थे। वो ही आज भी चल रहा है और हिन्दुस्तान के किसानों की हजारों एकड़ जमीन हर साल छीनी जाती है।
पहले हिन्दुस्तान में किसानों की जमीन छीनी जाती थी अंग्रेजों के लिए, अंग्रेजीं कम्पनियों के लिए। अब इस देश के किसानों की जमीन छीनी जाती है बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के लिए, देशी कम्पनियों के लिए, विदेशी कम्पनियों के लिए। पिछले 7-8 वर्षों से हमारे देश में जो उदारीकरण की नीतियां चल रही हैं, जागतीकरण की नीतियां चल रही हैं। उन नीतियों के कारण हजारों एकड़ जमीन महाराष्ट्र के किसानों की छीनी गई। हजारों एकड़ जमीन उत्तर प्रदेश के किसानों की छीनी गई, हजारों एकड़ की जमीन तामिलनाडू, कर्नाटक, गुजरात, आन्ध्रप्रदेश, पंजाब, हरियाणा आदि के किसानों की छीनी गई है। हर साल हजारों एकड़ जमीन गाँव के किसानों से छीन छीन कर परदेशी कम्पनियों को बेच दी जाती है और उस जमीन पर परदेशी कम्पनियों के बड़े-बड़े कारखाने लगाये जाते हैं। जिस जमीन पर धान पैदा होता था, गेहूँ पैदा होता था। अब उस जमीन पर कारखाना चलता है। सरकार क्या बोलती है। वो कहती है- औद्योगीकरण हो रहा है। इण्डस्ट्रीयलाईजेशन हो रहा है। वो लोग बोलते हैं कि यह फायदे का काम हो रहा है जो इंडस्ट्रीज बन रही है।
आप जानते हैं दुनिया में और हमारे देश में कोई भी ऐसी इंडस्ट्रीज नहीं है । जिसमें सौ रुपया लागत के रुप में अगर लगाया जाए तो सौ ही रुपया का उत्पादन होगा। हर फॅक्टरी में लागत ज्यादा होती है उत्पादन कम होता है । और भारत सरकार और भारत सरकार के नीति बनाने वाले लोग किस तरह की बेवकुफ नीतियां बनाते हैं कि वो इंडस्ट्रीज को महत्वपूर्ण मानते हैं और खेती को उससे कम मानते हैं । मेरी मान्यता यह है कि खेती से बड़ी इंडस्ट्रीज पूरी दूनिया में कोई नहीं है। खेती से बड़ा उद्योग पूरी दुनिया में कोई नहीं। आप पूँछेगें वो कैसे? किसान एक गेहूँ का बीज डालता है और उस एक गेहूँ के बीज डालने के बाद कम से कम 50-60 गेहूँ के दाने लगते हैं। तो एक गेहूँ का बीज डाला और उसमें से 50-60 गेहूँ के बीज पैदा हुए। यह बताईए, ऐसा कारखाना आपने दुनिया में कहीं देखा है । इतना जबरदस्त पूंजी का निर्माण जिस कारखाने में हो सके ऐसा कारखाना कहीं आपने देखा है । मैंने तो जितने कारखाने देखे जीवन में, वहाँ सौ रुपया डालते हैं तो सत्तर रुपये का उत्पादन मिलता है। सौ रुपया डालते हैं तो अस्सी रुपये का उत्पादन मिलता है। सौ रुपया डालते हैं तो पचास रुपये का उत्पादन मिलता है । माने जितनी लागत होती है। उससे
स्वदेशी कृषि
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