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बहुत ही जटिल होता है बहुत ही कॉम्लिकेटेड होता है सोयाबीन से निकला हुआ प्रोटीन शरीर के किसी काम का नहीं। तो वो हमारे खाने के काम में भी नहीं आ सकता सोयाबीन, इसलिए मेरा आप से निवेदन है ये जो विदेशीकरण किया है आपने सोयाबीन की खेती कर-कर के, इस विदेशी करण को खत्म करिए और सोयाबीन बंद कर के जो भारतीय समाज में बहुत पहले से चली आ रही फसलें थी उनको ही पैदा करने का काम शुरु करिए।
एक और काम करना पड़ेगा हमको विदेशी करण खत्म करने के लिए अपने खेती का कि हम लोगों को आदत पड़ गई है हायब्रिड बीज लगाने की, संकरित बीज लगाने की। आपको मैं जानकारी दे दूँहायब्रिड बीज से जो अनाज आप पैदा कर रहें है, अमेरिका, यूरोप जैसे देशों में उस अनाज को जानवर ही खाते हैं लोग नहीं खाते और हायब्रिड बीज द्वारा पैदा किया गया अनाज बहुत घटिया क्वॉलिटी का माना जाता है। आप हायब्रिड बीज से कुछ भी अनाज पैदा करिए, किसी भी देश में आप इसको बेच नहीं पायेगें, सिर्फ अपने खाने के लिए रख सकते है लेकिन हायब्रिड द्वारा पैदा किया हुआ अनाज दुनियां का कोई भी अमीर देश खरीदता नहीं हैयह सिर्फ बेवकूफी का काम है। यह बड़ी भारी गलत फहमी है आपलोगों के मन में कि हायब्रिड से ही उत्पादन बढ़ता है। ऐसा कुछ भी नहीं है। हमारे अपने जो स्वदेशी बीज थे जो भारतीय बीज थे उनके भी उत्पादन कुछ कम नहीं होते। आज से 200-300 साल पहले एक एकड़ में भारत में धान पैदा होता था 65-70 क्विन्टल। बिना किसी हायब्रिड सीड के। एक लाख किस्म की भारतीय धान की प्रजातियां थी इस देश में। और दक्षिण भारत में मालवार के इलाके में एक एकड़ में धान पैदा होता था 65-70 क्विन्टल 300 साल पहले बिना किसी हायब्रिड बीज के, बिना किसी केमिकल्स फर्टिलाइजर के बिना केमिकल्स पैस्टीसाईड के।
तो आप से तीसरा निवेदन मेरा यह है कि आप ये जो विदेशीकरण कर रहें हैं हायब्रिड बीज के नाम पर, संकरित बीज के नाम पर, इसको कम से कम करिए।
और स्वदेशी बीजों का चलन बढ़ाये। तो एक तरह की बात हर जगह के किसान हमको ये कहते हैं- कि राजीव भाई आपकी बात समझ में आती है संकरित बीज नहीं इस्तेमाल करना चाहिए, लेकिन आप बताइये हमको स्वदेशी बीज मिलेगा कहाँ से? क्योंकि जिस दुकान पर जाते हैं वहाँ संकरित बीज ही मिलता है जिस कम्पनी के पास जाओ। वो सब संकरित बीज ही बेचते हैं। जिस एजेन्सी पर जाओ वहाँ सिर्फ संकरित बीज ही मिलता है। ये बात सही है कि धीरे-धीरे स्वदेशी बीज का चलन खत्म हुआ हैलेकिन फिर हम लोगों को ऐसा लगा कि ये समस्या तो बहुत बड़ी है, तो इस समस्या का समाधान करने के लिए हम लोगों ने एक रास्ता स्वदेशी कृषि