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तय करने का अधिकार नहीं है इसके लिए फिर लड़ना पड़ेगा और आन्दोलन चलाना पड़ेगा और सरकारों को मजबूर करना पड़ेगा। वो किसानों को दाम तय करने का अधिकार दें और या फिर लड़ाई इस स्तर पर लड़नी पड़ेगी कि अगर किसानों को खेती का ठीक से दाम नहीं मिलता, अनाजों का ठीक से दाम नहीं मिलता, किसान की खेती घाटे में चली जा रही है, तो उद्योगों में और कारखाने में पैदा होने वाले सामानों का दाम गिराया जाए। अगर खेती से उत्पन्न चीजों का दाम कम करना है सरकार को तो उद्योगों में पैदा होने वाली चीजों का दाम भी कम करना पड़ेगा, माने एक समानता लानी पड़ेगी। हमारे देश का जो सर्विस सेक्टर है, हमारे देश का जो इंडस्ट्रियल सेक्टर है, और हमारे देश की खेती जो किसानों का सेक्टर है, क्षेत्र है। इन तीनों के दामों में एकरुपता लानी पड़ेगी, समरुपता लानी पड़ेगी।
अब किसान की गरीबी दूर होने का कोई रास्ता नहीं है। क्योंकि किसान जो पैदा करें वो सस्ते में बिके और किसान जो खरीदे वो बहुत मँहगे में खरीदे। यह नियम जब तक चलता रहेगा किसानों की गरीबी दूर नहीं होगी, इसके लिए भी हमको लड़ना पड़ेगा। इसके लिए भी आन्दोलन करना पड़ेगा। और जिस तरह से अंग्रेजों ने भारत के किसानों को बर्बाद करने के लिए गाय कत्ल करवाना शुरु किया था, गौ-हत्या करवाना शुरु किया था, उस तरह से यह जो गौ-हत्या आज भी चल रही है, इसको पूरे देश में रुकवाना होगा। पूरे देश में केन्द्रीय स्तर पर एक कानून हमको बनवाना होगा, जिसके कारण गौ-हत्या तत्काल बंद की जाए। बहुत सारे राज्यों ने कानून बनाये लेकिन केन्द्र के स्तर पर आज तक एक भी ऐसा कानून नहीं है, जिससे केन्द्र के स्तर पर गौ-हत्या रुकने का कोई काम हो सके।
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स्वदेशी कृषि