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का अनुभव है। इस कारण नीम को जगत् वृक्ष का सम्मान प्राप्त हुआ है। नीम में अवरोधक, नियंत्रक गुण है। नुकसानदेह कीटकों के प्रजनन कार्य में रूकावट डालना, उन्हें नपुंसक बनाना, उनका कायान्तरण न होने देना, उनका कवच निर्माण न होना, दीमक का नियंत्रण करना, उपयुक्त कीटकों का बचाव करके-अपनी खली से भूमि को सशक्त बनाने के गुण भी हैं।
गोमूत्र में रोग अवरोधक-रोग निवारण और फसलों की पोषक-संजीवक शक्ति है। इन दोनों को मिलाने पर उनकी शक्ति और बढ़ती है।
केंचुए भी पोषक सूक्ष्म जीवाणुओं की रक्षा करते हैं। भूमि की शक्ति बढ़ाते है। फसल की कीट तथा रोग प्रतिकारक शक्ति बढ़ाते है।
सावधनी से बचाव
जमीन की समय पर जुताई, निरोगी बीजों का चुनाव, बीजों पर रोग प्रतिबंधक और शक्तिवर्धक संस्कार, समयानुकूल निंदाई-गुड़ाई फसलचक्र में बदलाव, मिश्रित फसल लेना, फसल का रोगग्रस्त भाग हटाना, कीटभक्षी पक्षियों के लिये फसल में जगह-जगह ठहराव, मुख्य फसल से ध्यान हटाकर अपनी ओर आकर्षित करने वाले गेंदा,लाल अंबाडी जैसे पौधे का बीच-बीच में होना, पक्षियों को आवश्यकतानुसार भगाने के लिये आवश्यक साध्आदि के बारे में हमें जागृत रहना चाहिये।
इतनी सावधनी के बाद भी बीमारी आ सकती है। तो कीटकों की आदत, प्रजनन विकास आदि के अनुसार उपाय हम करें। कुछ कीटक तीव गंध से भागते हैं। कुछ कीटक तीखापन सहन नहीं कर पाते कोई कीटक नाजुक होते है। जो सामान्य विष के संपर्क में आते ही नष्ट होते हैं। कुछ खाने पर ही पोट विष से मरते हैं। कुछ केवल छेद करते हैं।
फंगस रोधक इलाज
जमीन के अंदर से फसलों की जड़ों में रोग फैलाने वाले फंगस होते हैं। ये जड़ों में सड़न पैदा करते हैं पौध के तने को भी काटते हैं। 1. बोनी के पूर्व बरसात आने पर एक एकड़ जमीन पर दस लीटर गोमूत्र का
छिड़काव करें। या बीस किलो करंज, नीम-एरंड की खली का जमीन में
मिला दें या बीस किलो करंज, नीम-एरंड की खली को जमीन में मिलादें। 2. बब्देरिया की 500 ग्राम पावडर - 500 ग्राम गुड़ के साथ दस लीटर पानी म
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स्वदेशी कृषि