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लेकिन अंगुलियों के बीच से नहीं निकले। सींगों को गड्ढे में उनके नुकीले सिरे ऊपर रख कर जमायें। जब सारे सींग गड्ढे में भर दिये हों तो धीरे-धीरे गड्ढे को मिट्टी से भरें ताकि सींग गिरे नहीं। गड्ढा मिट्टी से भरने के बाद गड्ढे के आस-पास निशान के लिए चिन्ह लगा दें ताकि सींग खाद निकालते समय आसानी रहे । समय-समय पर गड्ढे का निरीक्षण करते रहें। गड्ढे की मिट्टी में नमी बनाये रखें। अगर मिट्टी सूख गई हो तो पानी का छिड़काव कर नमी बनाये रखें।
(5) खाद बनाने का समय
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खाद बनाने के लिए अक्टूबर महीना का समय उत्तम है। भारतीय पंचांग के अनुसार कुवार महिने की नवरात्र में या शरदपूर्णिमा तक सींग खाद बनाने के लिए उत्तम समय है | सींग खाद में चंद्र की शक्तियों को काम करने का समय मिलता है । ठंड के दिन छोटे रहते हैं तथा सूर्य की गर्मी भी कम होती है अतः चंद्रशक्तियों को अपना असर बढ़ाने के लिए काफी समय मिलता है। बायोडायनामिक पंचांग के अनुसार अक्टूबर मास में चंद्र दक्षिणायन हो तो सींग खाद बनाना चाहिए । ( 6 ) सींग खाद निकालने का समय --
सींग की खोलों को सामान्यतः छः माह गड्ढे में रखा जाता है। बोल चाल की भाषा में चैत्र नवरात्रि में (मार्च या अप्रैल मास में) जब चंद्र दक्षिणायन हो तब सींग निकाल कर उन पर लगी हुई मिट्टी साफ कर उन्हें रख लें। एक साफ कागज या अखबार पर एक पत्थर पर सींग को हल्के से टकरायें ताकि अंदर जो खाद बन गया है वह बाहर आ जाये। इस तरह समस्त सींगो से खाद निकाल लें। ( 7 ) खाद का भंडारण --
खाद की मात्रा के अनुसार उसे मिट्टी के घड़े में (मटके में रखें। खाद मटके में भरते वक्त उसमें नमी का ध्यान रखें। एकदम सूखा खाद नहीं भरें । पानी छिड़क कर नर्म कर लें । इस घड़े को किसी ठंडे स्थान पर रखें या ठंडी जमीन में आधा गाड़ दें। समय-समय पर खाद को देखते रहें कि खाद में नमी तो है ? मटके का ढक्कन भी ढीला होना चाहिए कि उसमें से अंदर हवा आ जा सके। इस समय में जीवाणुओं के प्रभाव से सींग में से निकले हुए खाद के डल्ले एक जीव होकर बारीक खाद में परिवर्तित हो जाते हैं। यदि खाद सूख रहा हो तो थोड़े पानी से उसे नम कर लेना चाहिए। पानी बरसात का या ट्यूबवेल का हो। नल का पानी नहीं लें।
( 8 ) उपयोग का समय --
सींग खाद का उपयोग एक फसल पर दो बार किया जाता है। पहला बोनी से एक दिन पहले सायंकाल में किया जाता है। दूसरा जब फसल बीस दिन की हो
स्वदेशी कृषि
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