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भी जल जाते हैं। वास्तव में यह अंगार किसान के भाग्य को जलाती है। कहावत है 'पुराना दो, नया लो' जंगल इसी तरह पनपते हैं।
सींग खाद नुस्खा 500
जैवगतिकी कृषि पद्धति में उपयोग में आने वाले नुस्खों को 500 से 508 नंबरों से पहचाना जाता है। इसमें नुस्खा 500 (सींग खाद) तथा नुस्खा 501 (सींग सिलिका खाद) अलग से उपयोग में लाये जाते हैं। नुस्खा 502 से 507 को कंपोस्ट नुस्खे कहते हैं। नुस्खा 508 फफूंदरोधी नुस्खा हैं। डा. ओ. एन. सोलंकी और टी. जी. के मेननजी ने विस्तार से निम्न जानकारी दी है।
जैवगतिकी पद्धति का नुस्खा 500 सबसे महत्वपूर्ण नुस्खा है जैवगतिकी कृषि पद्धति में सबसे पहले इसी का उपयोग किया जाता है। गोसींग खाद बनने के लिये आवश्यक वस्तुएं हैं गाय के सींग का खोल तथा गाय का गोबर।
भारतीय संस्कृति में गाय का महत्वपूर्ण स्थान है। कहा गया है कि गोमय बसते लक्ष्मीय अर्थात् गोबर में लक्ष्मी का वास है। इसी सिद्धांत को आगे बढ़ाते हुए जैवगतिकी पद्धति के प्रणेता रुडॉल्पफ स्टेनरकहते हैं कि गाय का गोबर नक्षत्रीय (Astral) एवं आकाशीय (Ethereal) प्रभावों से युक्त होता है। नक्षत्रीय (Astral) प्रभाव नाइट्रोजन बढ़ाने वाली ताकतों से युक्त हैतथा आकाशीय प्रभाव ऑक्सीजन बढ़ानेवाली ताकतों से युक्त है। इन्हीं शक्तियों के प्रभाव से गोबर का भूमि पर जीवनदायी असर होता है। इन्हीं शक्तियों से गोबर से अकार्बनिक तत्वों को आत्मसात करने की शक्ति पैदा होती है। गोबर को पुराने समय से ही अच्छा खाद माना जाता रहा है। गोबर में जीवों को आकर्षित करने की ताकत है। अधपके गोबर को ध्यान से देखने पर उसमें उपस्थित जीवों से इसे समझा जा सकता है। गाय का चारपेट वाला पाचन संस्थान का इसमें बहुत योग है।
गाय के सींग नक्षत्रीय ताकतों (Astral force) को ग्रहण करके उन्हें पाचन संस्थान तक पहुंचाते हैं। इसी वजह से गोबर में जीवनदायिनी शक्ति बहत होती है। मृत गाय के सींग की खोल निकालने के बाद भी उनमें यह शक्ति रहती है। अतः गाय के सींग की खोल गोबर का असर बढ़ाने के लिये उत्तम पात्र है। सींग की खोल की कुछ साल वापरने के बाद खोल पतला होने लगती है जो इस बात का परिचायक है कि सींग में भरे गोबर में उपस्थित जीवाणुओं ने उसका उपयोग खाद की गुणवत्ता सुधारने तथा अपनी संख्या बढ़ाने में किया। जीवाणु कम होकर के ह्यूमस बनाने वाले जीवाणुओं की संख्या अधिक हो जाती है। गोबर गल के सिंग के अलावा अन्य किसी अन्य पात्र में रखकर गाड़ा जाये तो यह प्रक्रिया नहीं होती है। गोबर जैसा गाड़ा था वैसा ही निकलता है। स्वदेशी कृषि