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अगर बाहर से अनाज हमने खरीदा या हमारी सरकार ने खरीदा और देश में भी अनाज है काफी तो क्या होगा उसका। बाहर से जो अनाज आयेगा। वो देश के अंदर पैदा किये गए अनाज का दाम बुरी तरह से गिरायेगा। आप जानते हैं कि जब भी समाज में उपभोग से ज्यादा सप्लाई हो जाए, जितनी जरुरत नहीं है उससे ज्यादा माल आ जाये बाजार में तो निश्चित रुप से सामान की कीमतें गिर जाती हैं। तो भारत में जरुरत नहीं है। जरुरत नहीं है जिसअनाज की। वोअनाज अगर आ जायेगा जबरदस्ती तो कीमतें गिरेगी। और अनाज की कीमतें गिरेंगी तो नुकसान किसको होगा। किसानों को होगा।
और यह काम शुरु हो गया है। कैसे शुरु हो गया है। इस साल आपने अखबारों में खबर पड़ी होगी। भारत सरकार ने पंद्रह लाख टन परदेशी गेहूँ खरीदा है अभी कुछ दिन पहले। क्यूँ खरीदा। गैट करार का नियम है। जरुरत नहीं थी हमको इस साल गेहूँखरीदने की। लेकिन भारत सरकार ने खरीदा और किस भाव में खरीदा। इस साल हमारे देश के किसान सरकार को बोलते थे कि 700 रुपये क्विन्टल में हम आपको गेहूँबेचेंगे। हमको 700 रुपये क्विन्टल गेहूँका भावदे दो। मैंने आपको बताया किसान खुद भाव नहीं तय कर पाता। सरकार तय करती है। जो पैदा करता हैवोही भाव तय नहीं करता। और जो कभी हल नहीं चलाता। जिसने कभी हल नहीं चलाया वो भाव करता है। वो भाव तय करता है जिसने कभी खेती नहीं की वो खेती से पैदा होने वाले सामानों का दाम तय करता है दिल्ली में। और जो रोज खेती करता है उसको अधिकार नहीं है खेती का दाम करने का। खेती के अन्न का दाम तय करने का।
तो किसानों ने कहा भारत सरकार को कि इस साल हमको गेहूँबेचने का अधि कार दे दो 700 रुपये क्विन्टल। भारत सरकार ने नहीं दिया तो सरकार ने माना 650 रुपये क्विन्टल। सरकार ने कहा- 650 रुपये क्विन्टल से ज्यादा भाव नहीं देसकतेगेहँको। और भारत के किसानों को कहा गया कि आप 650 रुपये क्विन्टल में गेहूँबेचिए और जिन सरकारों ने भारत के किसानों का गेहूँ 650 रुपये क्विन्टल में बिकवाया। उसी सरकार ने ऑस्ट्रेलिया से गेहूँ खरीदा 850 रुपये क्विन्टल। माने भारत के किसान मांग रहे थे 700 रुपये क्विन्टल गेहूँका दाम। तो नहीं दिया सरकार ने। लेकिन ऑस्ट्रेलिया की एक कंपनी से गेहूँ खरीद लिया 850 रुपये क्विन्टल। माने परदेशी किसानो से गेहूँ तो 850 रुपये क्विन्टल खरीद सकते हैं लेकिन अपने देश के किसानों का गेहूँ 700 रुपये क्विन्टल भी नहीं खरीद सकते
स्वदेशी कृषि
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