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छोड़ देते हैं और बिखरे हुए कचरे को ठीक करते हैं। एक सप्ताह बाद उसी पर फिर कचरा डाला जाता है। इस तरह लगातार आठ सप्ताह तक यह क्रिया चलती है। ___ बाद में ऊपर की दो परतें हटा कर नीचे की छह परतें अलग से निकालते हैं। उन्हें पानी छिड़क कर छांव में ढककर रखते हैं। एक माह के अंदर बढ़िया खाद तैयार होती है। ऊपर की हटाई गई दो परतें फिर से बाड़े में समतल बिछाकर ऊपर नई परत घास की डालनी रहती है। इस तरह निरंतर नया कचरा डालते रहते हैं। इस पद्धति से उस जगह पशुओं का खून चूसने वाले व अन्य तकलीफ देने वाले जीवाणु पैदा होने से रोकने के लिये समय-समय पर चूने के पानी का घोल छिड़कते हैं। 6. मटके में तुरत फुरत खाद
गोबर (किलो में) और मूत्र (लीटर) समसमान दोनों को मिलाकर उसमें दो गुना पानी मिलाकर मटके में घोल तैयार करें और उसमें सौ ग्राम गुड़ का चूरा पानी में घोलकर मिलायें। दस दिनों तक उस मटके के या हौदी-टंकी का मुंह बंद करें। दस दिन बाद इस घोल को बीस गुना पानी मिला कर छोटे पौधों के तनों के चारों ओर आधा इंच मिट्टी खोद कर डाल दें। फलवृक्ष हो तो तने से दूरी पर जड़ों की नुकीली सिरे होते हैं वहाँ गोल चक्कर आधा इंच गहरा एक इंच चौड़ा खोदकर उसमें तीन लीटर घोल डालकर उसे मिट्टी से ढंक दें। पंद्रह दिन में नयी सफेद मूलिओं का गुच्छा दिखेगा। पंद्रह दिन के भीतर पेड़ों-पौधे में ताजगी - नयापन दिखने लगेगा। हर दस दिन में इस तरह आप खाद बना सकते हैं या दस मटके रखकर हर दिन खाद बनाने का चक्र संचालित कर सकते हैं। हाथ से या स्प्रे पंप द्वारा सामने का नोज़ल निकालकर आसानी से पेड़-पौधों को यह खाद दे सकते हैं। कम से कम खर्चे में तुरंत खाद तैयार करने की यह सुलभ विधि है। बगीचे में नाली द्वारा भी यह खाद बहायी जा सकती है या गीली जमीन पर छिड़काव कर सकते हैं।
एक किलो गोबर के लिये सौ ग्राम गुड़ का प्रमाण रखें। 7. हरियाली खाद
षडरस भोजन मानव की सेहत के लिये आवश्यक माना गया है। फसलों की सभी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये नवधन्य का प्रयोग सफल हुआ है। तीन जाति धान्य जैसे एक दलीय-बाजरा-मक्का- ज्चार आदि। द्विदल धान्य जैसे मूंग-उड़द-मोठ आदि और तीन धान्य-जैसे तिल, सरसों - अलसी आदि इस तरह हर जाति से तीन-तीन प्रकार इकट्ठा करके सम प्रमाण में उन्हें मिलाकर एक एकड़ के लिये दस किलो के हिसाब से फसल थोड़ी बड़ी यानि आधा फीट तक ऊंचा होने पर उसके दो कतारों के बीच छिड़क कर इन बीजों को जमीन में मिला दें। उन में
स्वदेशी कृषि