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और गौवंश का कत्ल होता था। गाय का मांस यहाँ से भेज दिया जाता था, इंग्लैंड में जाता था। अंग्रेजों की सरकार के जो सिपाई होते थे वो जो गाय का मांस खाते थे। आप जानते हैं युरोप के देश की जो प्रजा है यह जो गोरी प्रजा है। यह गाय का मांस सबसे ज्यादा खाती है। जितनी गोरी प्रजा है पूरी दुनिया में इसको गाय का मांस सबसे अच्छा लगता है। तो गाय कत्ल होता था भारत में। उसका मांस इंग्लैंड जाता था। और गाय का कत्ल कर के अंग्रेजों की फौज जो भारत में रहती थी। उसको मांस बेचा जाता था। उसको मांस दिया जाता था।
तो भारत के किसानों को बर्बाद करने के लिए जो तीसरा काम अंग्रेजों ने किया वो गाय के कत्ल करवाने के बाद में अंग्रेजों को ऐसा लगा कि सिर्फ गाय के कत्ल करवाने से बात नहीं बनेगी। गाय जहाँ से पैदा होती है। उस नंदी का कत्ल पहले करो, तो अंग्रेजों ने पहले नंदी का कत्ल करवाना शुरु किया और बहुत ही व्यवस्थित पैमाने पर गाय और नंदी का कत्ल अंग्रेजों ने करवाया। हम लोगों ने जो दस्तावेज इकठे किये हैं उनसे पता चलता है कि 1760 से लेकर 1947 के साल तक अंग्रेजों ने करीब 48 करोड़ से ज्यादा गाय और बैल का कत्ल करवाया। और यह जो 48 करोड़ गाय और नंदियो के कत्ल करवा दिये। मैं कभी-कभी कल्पना करता हूँकि वो गाय नहीं काटी गई होती। वो नंदी नहीं काटे गए होते तो आज हिन्दुस्तान में गाय की संख्या हमारी आबादी से तीन गुनी ज्यादा होती। कम से कम इस देश में देड़ सौ करोड़ से ज्यादा गाय और बैल होते लेकिन अंग्रेजों ने बहुत ही व्यवस्थित तरीके से यह कत्ल करवा कर हिन्दुस्तान के किसानों का सत्यानाश करवाया।
फिर उसके बाद अंग्रेजों ने हिन्दुस्तान के किसानों का सत्यानाश करने के लिए एक चौथा काम किया और चौथा काम उन्होंने क्या किया कि इस देश के किसानों की जो क्रय शक्ति थी। उसको कम करवाओ - माने किसान जो खेती करता है। खेती के साथ-साथ कुछ और भी उद्योग कर सकता है। पशुपालन का काम कर सकता है। दूसरे कई काम कर सकता है और उससे जो उसकी क्रय शक्ति बढ़ती है, उसकी समृद्धि बढ़ती है, उसकी संपत्ति बढ़ती है। उसको कम करवाओ। तो अंग्रेजों ने कृषि और पशुपालन दोनों को अलग-अलग करवा दिया। पहले खेती के साथ पशुपालन बिलकुल जुड़ा हुआ था। लेकिन फिर अंग्रेजों ने नीति ऐसी बनाई कि कृषि अलग हो गई और पशुपालन बिलकुल एक अलग तरह के बात हो गई। अंग्रेजों ने फिर भारतीय समाज में एक-एक करके उन जातियों पर अत्याचार करने शुरु किये जो जातियां सबसे ज्यादा पशुपालन करती थी। हमारे समाज में जिन जातियों को हम पिछड़ी जातियां कहते हैं। नीचे दर्जे के जातियां कहते हैं। वास्तव में यह भारत के समाज की रीड़ की हड्डी रही हैं। यहीं जातियां रही हैं जिनके पास
___ स्वदेशी कृषि
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